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ठग लाइफ - 11

ठग लाइफ

प्रितपाल कौर

झटका ग्यारह

दोनों दोस्तों की नज़रें फ़ोन पर पडी जो डाइनिंग टेबल पर सामने ही रखा था. फ़ोन से नज़रें उठा कर रेचल ने देखा तो सविता दहशत ज़दा चेहरे से आँखें गडाए फ़ोन को घूर रही थी. उसका चेहरा काला पड़ गया था. होंठ सूख गए थे. चाय का कप होठों से लगाए बिना उसने मेज़ पर रख दिया था. रेचल ने सविता के हाथ पर सांत्वना भरा हाथ रखा, दूसरे हाथ से फ़ोन उठाया और कॉल रिसीव की.

'हेल्लो"

दूसरी तरफ चुप्पी थी. घोर चुप्पी. जैसे कोई दम साधे इधर से और कुछ सुने जाने के इंतजार में हो.

रेचल ने फिर कहा, "हेल्लो" और एक सवालिया नज़र सविता पर डाली.

सविता की आँखों में अब दहशत की जगह सवाल उतर आया था. उसने आँखें उठा कर इशारे से पूछा, "कौन है."

रेचल ने इशारे से ही जवाब दिया, "पता नहीं."

एक बचकाना सा खेल जैसे दो दहशतजदा दोस्तों के बीच चल निकला. उधर से दूसरी हेल्लो पर भी चुप्पी ही थी. इधर भी कमरा शांति से घबराया कुछ सुनने को बेताब हुआ जा रहा था.

रेचल ने फिर हिम्मत की. इस बार थोड़ी ज्यादा और थोड़ी गहरी, "हेल्लो, हू इज दिस?"

इस बार एक सांस की आवाज़ उधर से आयी. जैसे कोई दम साधे बैठा हो और आवाज़ को पहचान कर ये सोच रहा हो कि बोले या चुप्पी साधे ही रहे.

रेचल ने इस बार सामने वाले को संभलने का एक और मौका दिया. वह चुप रही. सविता बड़ी बड़ी आँखों से लगातार उसे घूर रही थी.

आखिरकार जब रेचल फोन डिसकनेक्ट करने ही वाली थी कि उधर से एक मरदाना आवाज़ आयी, "सविता?"

"नो, दिस इस नॉट सविता? हु आर यूं?" रेचल ने थोड़े ठसके के साथ कहा. वो जानती है इस दुनिया में नर्वज का खेल बड़े बड़े जंग जिता सकता है.

"सविता से बात कर सकता हूँ?" आवाज़ में ठिठकन थी. रेचल ने ताड़ लिया यही वक़्त है प्रहार करने का. उसने सविता की सवालिया नज़र को इग्नोर करते हुए फ़ोन अपने पास ही रखा. सविता तब तक कमरे की चुप्पी की वजह से उधर से आया सवाल सुन चुकी थी. और समझ भी गयी थी कि ये फ़ोन रमणीक का था सो उसने रेचल से फ़ोन लेने के लिए हाथ बढ़ाया.

लेकिन रेचल ने हाथ के इशारे से उसे ऐसा करने से रोका और उधर से आया जवाब उसे सुनाने के लिए फ़ोन मेज़ पर रख कर स्पीकर ऑन कर दिया.

"मैं रमणीक."

कुछ देर चुप्पी छाई रही. रेचल को लगा सविता कुछ बोलेगी लेकिन सविता तय नहीं कर पाई वो क्या बोले.

फ़ोन फिर बोला, "सविता से प्लीज बात करवा दीजिये. बहुत ज़रूरी है."

अब तक सविता अपने आप में स्थापित हो चुकी थी.

"यस, रमणीक. क्या कहना है?"

सविता ने फ़ोन को उठाने या उसे स्पीकर से हटा कर बातचीत को प्राइवेट करने के ज़हमत नहीं उठायी. हालाँकि रेचल से उसकी दोस्ती बहुत पुरानी नहीं थी लेकिन उसे आज लग रहा था कि रेचल ही उसकी सच्ची हमदर्द है. रेचल ही है जो उसे संभाल सकती है. जिसके सामने वह अपनी सारी गलतियों और भूलों को बेपर्दा हो कर जी सकती है. बगैर शर्मिंदा हुए.

"सविता, डार्लिंग. मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ. कल जो कुछ भी हुआ उसके बारे में बताने के लिए. तुम्हें सारी बात बतानी है." रमणीक की आवाज़ में किसी तरह का अफ़सोस या पछतावा रेचल को नहीं सुनायी दिया.

लेकिन सविता के चेहरे पर कुछ ऐसा था जिसे देख कर रेचल सहम गयी. उसे फ़ौरन समझ में आ गया कि आगे की बात दोनों में प्राइवेटली ही होनी चाहिए.

रेचल ने फ़ोन उठाया, स्पीकर ऑफ किया, सविता के हाथ में पकडाया और खुद अपने कमरे में चली गयी.

सविता ने कान से फ़ोन लगाते ही कहा, "अब क्या कहना चाहते हो? कल तुम्हारे फ़ोन से भी गलियाँ सुन चुकी हूँ. तुम तो कहते थे कि तुम रेखा से डरते नहीं हो. फिर तुम्हारा फ़ोन भी तुमने उसको दे डाला? सोचा नहीं मुझ पर क्या गुजरेगी?" सविता के स्वर में शिकायत से ज्यादा तल्खी थी.

रमणीक ने बिना एक पल रुके जवाब भी दे डाला, "यार, तुम जानती तो हो. उसने अपने पापा से सब कुछ बता देने की धमकी दे दी. उनसे तो डरना पड़ता है यार. अच्छा सुनो. मिलो मुझसे. अभी शाम को चार बजे. ये मेरे नया नंबर है. ये सिर्फ तुम्हारे पास है. किसी को नहीं दिया इसी पर फ़ोन करना. इसी से मैं मेसेज करूंगा कि कहाँ मिलना है. मिल कर सारी बात बताता हूँ. अभी ऑफिस में हूँ. लम्बी बात नहीं कर सकता. "

सविता कुछ कहती कि उससे पहले ही रमणीक ने फ़ोन काट दिया. कुछ देर यूँही बैठी रही. फिर उठ कर रेचल के कमरे में गयी तो देखा रेचल अपने हाथों पर नेल पेंट लगा रही थी. सुंदर सुडोल छरहरी रेचल क्लासिक ब्यूटी तो नहीं है सविता की तरह लेकिन बहुत ही सुरुचिपूर्ण तरीके से रहती है सो बेहद आकर्षक है. एक बार कोई भी देखे तो दोबारा मुड़ कर उसे देखने से खुद को नहीं रोक सकता.

सविता ने उसके हाथ से नेल पेंट ले लिय और खुद उसके हाथों के नाखूनों पर दक्षता से लगाने लगी. रेचल ने खुद को सविता के हवाले कर दिया और आराम से अपने सोफे पर अधलेटी हो गयी.

रेचल इंतज़ार करती रही कि सविता रमणीक से हुयी बातचीत का खुलासा करेगी लेकिन सविता अपने ही ख्यालों में खोयी हुयी नेल पेंट लगाती रही.

घर में शांति थी. रसोई से बर्तन धोने और पानी के सिंक में गिरने की हल्की हल्की आवाजें आ रही थीं. कुछ देर में वे आनी बंद हो गयीं. फिर दरवाज़े पर दस्तक दे कर सपना अन्दर आयी और कमरे की सफाई में जुट गयी. ज़ाहिर है उसके सामने कोई बात नहीं हो सकती थी.

हाथ के नेल पेंट पूरी हो जाने के बाद सविता ने रेचल का दांया पैर उठाया और देखा कि पंजों पर लगा हुआ नेल पेंट कहीं कहीं से चिप हो रहा था. उसने सपना से ड्रेसिंग टेबल पर रखा नेल पेंट रेमोवेर मंगवाया और इसे हटाने में जुट गयी. रेचल ने मुस्कुरा कर सपना और सविता दोनों को देखा और आँखें बंद कर के इत्मीनान से थोडा और नीचे सरक कर औरर भी ज्यादा अधलेटी हो गयी. सपना ने एक छोटा सा ठहाका लगाया और अपने काम में लग गयी. सविता तल्लीनता से नेल पेंट हटा कर रेचल के पैरों के नाखूनों को नए रंग में रंगने में जुट गयी.

अब तक सविता संभल चुकी थी और ये भी सोच चुकी थी कि उसे रेचल को सारी बात बता देनी चाहिए. अब चूँकि उसके और रेचल के बीच कोई पर्दा नहीं रह गया था और रेचल उसे किसी तरह से भी जज नहीं कर रही थी तो वह उसकी सलाह भी ले सकती थी.

सविता को काफी हैरानी भी हो रही थी कि उम्र में उससे बहुत कम होने के बावजूद रेचल बेहद परिपक्व समझ रखती थी. इसके साथ ही उसे अपनी बेटी जसमीत का भी ख्याल आया. क्या वो भी इतनी ही समझदार है? उम्र में रेचल से दो तीन साल ही छोटी होगी. क्या ये जनरेशन इतनी ही समझदार है?

क्या सविता खुद परिवार में रह कर माता-पिता का प्यार पा कर बड़ी नहीं हुयी इसलिए ज़िंदगी भर बेवकूफी भरे कदम उठाती रही है? ख़ास कर अपनी निजी ज़िंदगी में. सोचती रही और नेल पेंट लगाती रही. कुछ फैसला नहीं कर पाई.

"तो तुम मिलोगी रमणीक से?" ये रेचल थी. उसके आँखें अभी बंद ही थीं.

सविता चौंक गयी. क्या रेचल ने रमणीक की बातें सुन ली थीं? लेकिन ये तो संभव नहीं. डाइनिंग हॉल में उस वक़्त सिर्फ सविता थी. और बात सिर्फ सविता के कानों ने ही सुनी थी. यानी रेचल जानती है इन हालात में मर्द का अगला कदम क्या होता है. सविता ने अब तक तो नहीं सोचा था

कि वह रमणीक से मिलेगी या नहीं. लेकिन उसी पल उसने फैसला कर लिया कि वह रमणीक से मिलेगी और जानेगी उसके मुंह से कि पूरी बात क्या थी.

आज तक जितने भी पुरुष सविता की ज़िंदगी में आये थे वे बिना कोई सफाई लिए या दिए उसकी ज़िंदगी से निकल गए थे या यूँ कहें कि सविता को उन्होंने अपनी ज़िंदगी से बेदखल कर दिया था. ये पहली बार था कि निकाल दिया गया या यूँ कहें कि निकल चुका शख्स उससे मिल कर बात करना चाहता था.

सविता के लिए ये नयी बात थी. एक चुनौती भी थी और एक तरह का आत्म-विशवास बढ़ाने वाला कदम भी. उसे लग रहा था कि आखिरकार एक पुरुष ऐसा है जो इतनी लानत मलानत के बाद भी उससे मिलने की मंशा रखता है. बचपन से एहसासे कमतरी की शिकार सविता के लिए ये बड़ी बात थी. उसने इस बारे में रेचल की सलाह लेने की ज़रुरत नहीं समझी. एक पल में फैसला कर लिया और सुना भी दिया.

"हाँ. मैं मिलूंगी रमणीक से. पता तो लगे क्या हुआ, कैसे हुआ और अब वो क्या कहना चाहता है?"

रेचल ने कुछ नहीं कहा. उसे अंदेशा था कि सविता यही फैसला लेगी. वो उसी तरह चुपचाप अधलेटी पड़ी रही. कल से सविता के इस झमेले ने उसे भी मानसिक तौर पर थका दिया था. रमणीक के आमने-सामने बात करने को तैयार हो जाने से उसे भी राहत ही हुयी. लगा कि सविता अब संभाल लेगी. जो भी धुंध है छट जायेगी तो दोस्ती के नाते रेचल को सविता की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा. एक तरह से वह खुद भी इस मसले से जितना हो सके दूर ही रहना चाहती थी लेकिन दोस्त को परेशानी में भी नहीं देख सकती थी.

नेल पेंट लग चुका था. रेचल हल्की खुमारी में थी. उसकी मुंदी हुयी आँखें खुल ही नहीं रही थीं. इस वक़्त उसका ध्यान सविता की समस्या से हट कर अपने आने वाले काम की तरफ हो गया था. मंडे से उसे ऑफिस ज्वाइन करना था. एक नया बैग लेना था और कुछ फॉर्मल कपडे भी. कॉर्पोरेट के हिसाब से. आज का दिन उसने शौपिंग के लिए तय किया था. वो चाहती थी उससे पहले एक झपकी ले ले और फिर फ्रेश हो कर रिलायंस माल जा कर ये सारी शौपिंग कर ले.

सविता को भी शायद समझ आ गया था कि अब उसे रेचल को अकेले छोड़ देना चाहिए. सुबह से रेचल उसके साथ थी. उसका मूड अब तक संभल चुका था. रमणीक के फ़ोन को भी रेचल ने समझदारी से हैंडल कर के उस तक पहुंचा दिया था. खुद उसे भी अब नहाने-धोने और कुछ देर सो लेने की ज़रुरत महसूस होने लगी थी. रात भर वह नींद और डरावने सपनों के बीच डोलती हुयी अपनी ज़िंदगी की फिल्म देखती रही थी.

इस वक़्त इस उम्मीद के साथ कि शायद रमणीक से मिलने पर कुछ अच्छा ही होगा उसकी मायूसी छट गयी थी. शायद वो उसकी नौकरी या बिज़नस के बारे में भी बात करना चाहता है. जो भी था शाम को उसका फ़ोन फिर से आने की उम्मीद से उसका बुझा हुआ मन एक बार फिर हरा हो गया था. एक नन्हे बच्चे की तरह वह कल ही हुआ अपना सारा अपमान जैसे भूल गयी थी.

उसने अहिस्ता से रेचल के पैरों को सहलाया. लेकिन रेचल तब तक नींद में गाफिल हो चुकी थी. बिना कोई अतिरिक्त हरकत किये वह उठी और चुपचाप कदमों की आवाज़ को कारपेट के धागों में छिपाते हुए कमरे से बाहर निकल गयी. दरवाज़ा बंद करते हुए उसने देखा सपना हॉल में डस्टिंग कर रही थी. उसे इशारे से सविता ने अपने जाने की बात कही और मेन डोर से रेचल के घर से बाहर निकल आयी.

लिफ्ट से जब वह निकल कर अपने घर की तरफ जा ही रही थी तो उसे याद आया कि घर में दूध,अंडे, ब्रेड, सब्जी कुछ भी नहीं है. कल ही ये सब लाना था लेकिन कल का दिन तो उसका जिस तूफ़ान से हो कर गुजरा था उसके बीच अंडे-दूध कहाँ याद रहते. जो एक कप दूध रखा था वो उसने रात को ही ब्रेड के साथ ले लिया था. खाना बनाने की न तो हिम्मत थी न बाहर से मंगवाने की. डर और तनाव से कल उसकी जिस्म की सारी मांसपेशियां ही जवाब दे गयी थीं.

चाभी से दरवाजा खोल कर अन्दर गयी. कॉरिडोर में साइड पैनल की ड्रावर में रखा घर खर्च वाला वालेट उठाया और उलटे पैरों बाहर निकल आयी. लिफ्ट का इंतज़ार करते हुए उसने फ़ोन पर नज़र डाली तो दिन के ग्यारह बज रहे थे.

उसकी बिल्डिंग की बाहरी दीवार से सटे सब्जी, फल वाले के कीओस्क तक पहुँची तो फ़ोन फिर बज उठा. इस बार दिल नहीं कांपा. उसने आत्म विशवास से कॉल ले तो ली लेकिन एक बार हेल्लो कहने पर उधर से कोई आवाज़ नहीं आयी. तो वह घबरा उठी. फिर हेल्लो कहा तो उधर से आवाज़ आयी.

"गुड मोर्निंग मेम, मैं एयरटेल की तरफ से मानव बोल रहा हूँ....." इतना सुनना था कि उसने फ़ौरन फ़ोन काट दिया और सब्जी के ढेर से टमाटर चुनने लगी.

कुछ ही देर में दो छोटे छोटे थैलों में आधा किलो टमाटर, एक गोभी, आधा किलो आलू, एक किलो प्याज, कुछ हरी मिर्च, धनिया, छः अंडे, एक लिटर दूध की थैली, एक छोटी ब्रेड; ये सब लेकर जब वह बिल्डिंग के अन्दर की तरफ जा रही थी तब सविता ने उसे आख़िरी बार फिर देखा था और अन-देखा कर के अन्दर चली गयी थी.

वो एक अधेड़ उम्र का मगर चुस्त लम्बा ऊंचा पुरुष था. उसके बालों में चांदी थी. कपड़े साफ़ सुथरे थे. हाथों में अंगूठियाँ दूर से ही चमक रही थीं. हलके नीले रंग की शर्ट पर छोटा प्रिंट था. जीन्स का रंग उड़ा हुया था. वाशड जीन्स नहीं बल्कि खूब पहनी हुयी और धुली हुयी लेकिन महंगी ब्रांडेड जीन्स.

वो बिल्डिंग के गेट से कुछ दूर सड़क के किनारे इस तरह खड़ा हुआ था जैसे किसी का इंतज़ार कर रहा हो. उसकी अंगुलिओं में सिगरेट थी जिसके कश वह आराम से बीच-बीच में इत्मीनान से लगा रहा था.

सविता को सब्जी ब्रेड लेते वक़्त महसूस हुआ जैसे वो उसे देख रहा है. लेकिन जब भी उसने मुड़ कर देखा तो पाया कि वह सविता को नहीं बल्कि कभी सब्जी वाले को तो कभी वहां खड़े बच्चों की अभिभावकों को देख रहा होता था, जो अपने बच्चों की स्कूल बस के आने के इन्त्ज़ार में वहां खड़े थे. शायद इन दिनों बच्चों के इम्तिहान चल रहे थे. इसलिए बस जल्दी ही आ भी गयी.

सविता को उसका अपनी तरफ छिप कर देखना अजीब नहीं लगा. आकर्षक स्त्री होने के नाते उसे आदत है इस सब की. अक्सर पुरुष उसे इसी तरह नज़र बचा कर देखने लगते हैं. दरअसल इस सब से उसे अपने अन्दर एक तरह का आत्म-विशवास जगाने में मदद मिलती है. वह सोच पाती है कि अब भी वह पुरुषों के लिए आकर्षण का केंद्र है. पचास से ऊपर हो जाने के बावजूद.

आज भी उसने यही सोचा और इस बारे में इससे ज्यादा कुछ भी न सोचते हुए एक आख़िरी नज़र उस आकर्षक पुरुष पर डाली और बिल्डिंग के अंदर चली गयी.

लेकिन जाते-जाते वह यह नहीं देख पायी कि तभी एक काले रंग की सेडान कार वहां आयी और वो पुरुष उसमें बैठा कर वहां से चला गया.

***