Aamchi Mumbai - 20 books and stories free download online pdf in Hindi

आमची मुम्बई - 20

आमची मुम्बई

संतोष श्रीवास्तव

(20)

भारत का एकमात्र ऑपेरा हाउस....

ऑपेरा हाउस मरीन लाइन्स रेलवे स्टेशन के सामने है | द रॉयल ऑपेरा हाउस नाम से जाना जाने वाला यह भारत का एकमात्र ऑपेरा हाउस है जिसका निर्माण १९०९ में अंग्रेज़ों के शासनकाल में हुआ | जब जॉर्ज पंचम १९११ में मुम्बई आये तो इसका उद्घाटन उनके हाथों हुआ था | हालाँकि यह पूरी तरह से बनकर तैयार हुआ १९१५ में | यह भारतीय और यूरोपियन स्थापत्य कला बारोक शैली का मिला जुला प्रतिरूप है साथ ही कोलकाता के वास्तु शिल्पी मौरिस बैंडमेन और जहाँ गीरफ्रेम जी करारा की भी इसके निर्माण में अहम भूमिका है | इसका मुख्य डोम आठ भागों में बँटा है | हर एक भाग थियेटर, साहित्य, संगीत और चित्रकला से जुड़े लोगों को अलग-अलग रूप से समर्पित है | जॉर्ज पंचम के द्वारा उद्घाटन होने के कारण इसका नाम ऑपेरा हाउस से द रॉयल ऑपेरा हाउस रख दिया गया और पहला शो अमेरिकन जादूगर रेमंड का हुआ | बाद मेंजब हिन्दी फिल्में ऊँचाईयाँ छूने लगीं तो उनके प्रीमियर शो यहाँ होने लगे | इसके अलावा ऑपेरा और नाटक भी खेले जाने लगे | बालगंधर्व और पृथ्वीराज जैसे कलाकारों की जब प्रस्तुतियाँ होती थीं तो मुम्बई का कला जगत रोमाँच की दुनिया से गुज़रता था और यहाँ उमड़ पड़ता था | जिसकी वजह से रॉयल ऑपेरा हाउस मील का स्तंभ बनता जा रहा था |

रॉयल ऑपेरा हाउस अब पूरी तरह पुनरुद्धार की दिशा में है | जबकि एक ज़माना था जब ऑपेरा हाउस मुम्बई की शान, पहचान था | १९३५ से यहाँ फिल्में दिखाई जाने लगी थीं, फैशन शो भी होते थे | धीरे-धीरे मुम्बई परिवर्तन के दौर से गुज़रने लगा | कई स्क्रीन वाले थियेटर बन गए..... मॉल संस्कृति सिर उठाने लगी और ऑपेरा हाउस की चमक फीकी पड़ने लगी और १९८० में इसे बंद कर दिया गया | एक क़दम १९९३ में काठियावाड़ी फैशन शो को आयोजित करके उठाया गया लेकिन वह अंतिम शो सिद्ध हुआ | सन् २०१२ में इसे विश्व स्मारक निगरानी सूची में शामिल कर लिया गया | जबकि २००१में इसे धरोहर इमारत घोषित किया गया था | नब्बे के दशक में ऑपेरा हाउस गोंदालवंश के शाही परिवार का हो गया था | जिसे ९९९ साल की लीज़ पर उन्होंने अपने अधिकार में कर लिया था | वे इसके पुनर्निर्माण की योजनाओं में मुब्तिला हैं | बहरहाल ऑपेरा हाउस इलाके में जाने पर इमारत लोहे के मोटे तारों से बँधी और नीले पतरे से घिरी अपने पुनरुद्धार की याचना सी करती नज़र आती है | जब मैं बिरला पब्लिक स्कूल वालकेश्वर में पढ़ाती थी तो कितनी ही बार ऑपेरा हाउस के सामने बस स्टॉप पर बस के इंतज़ार में खड़ी अपलक इसे निहारा करती थी | क्या ज़माना रहा होगा जब यह कला प्रेमियों की चहल-पहल से भरा रहता होगा | आज मानो वह स्वयं अपने अतीत को मुझसे कहना चाहता है | कहना चाहता है कि इस नश्वर दुनिया में चाहे इंसान हो या इमारत सबका यही अंत है |

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