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पश्चाताप - 1

पश्चाताप

मीना पाठक

(1)

अमिता फूट फूट कर रो रही थी अब उसे अपने किये पर पश्चाताप हो रहा था | शायद उसे उन बुजुर्गों की हाय लगी थी | जिसे रोता बिलखता वह छोड़ आई थी | कितना रोका था उन लोगों ने; पर उसने उनकी एक ना सुनी | नेत्रों से अश्रु बहते जा रहे थे, हृदय हाहाकार कर उठा था | वह कितनी स्वार्थी हो गयी थी उस समय, एक बार भी उसने उन वृद्ध माता-पिता के बारे में नहीं सोचा जिन्होंने अपना इकलौता बेटा खोया था | आज वो दोनों बुजुर्ग ना जाने किस हाल में होंगे | होंगे भी या..!
उसका मन काँप उठा | उस नन्ही जान का क्या हुआ ? कैसा होगा वह ? वह उसकी भी अपराधी थी | इस अपराध की कोई क्षमा नहीं थी | अब वह क्या करे ? कहाँ जाय ? कहीं जाने लायक भी तो नहीं रखा उसने स्वयं को, किस मुंह से जाय और किसके पास ? उनके पास ? जिसने उसको सही मार्ग ना दिखा कर उसे गलती करने दिया और खुद भी उससे लाभान्वित हुए ! निराशा और अवसाद में डूबा अमिता का अंतर्मन एकाएक वर्तमान से अतीत की ओर मुड़ गया |

*

घर में घूम-घाम थी | सभी रिश्तेदार आ गए थे | उसके हाथों में मेहँदी लगाई जा रही थी | मुहल्ले की स्त्रियाँ ढोलक के थाप पर बन्नी गा रही थी |

“फेरों पे बन्नी, बन्ने से झगड़ी

तू क्यूँ नहीं लाया रे, सोने की तगड़ी ||”

अमिता की आँखों से आंसू छलक पड़े | काश ! कि वह उस दिन अमित की बात ना मानती | उसके साथ बैराज ना जाती, ना भैया लखनऊ से लौटते समय बस की खिड़की से उसे देखते; पर आखिर कब तक छुपाती, एक ना एक दिन तो घर में सबको पता चलना ही था | दोनों एक-दूजे को कितना प्रेम करते थे; पर घर वालों के चलते सब बिखर गया |

अमिता चार भाइयों में सबसे छोटी बहन थी | माँ, पापा और भाइयों की लाडली | उसे कभी किसी ने कुछ भी करने से नहीं टोका था | यथासंभव जो माँगा वो ला कर दिया पर उस दिन बैराज पर गंगा की लहरों पर अमित के साथ नौका विहार करते हुए उसके बड़े भैया ने देख लिया और घर में भूचाल आ गया था | उसका कॉलेज जाना बंद करा दिया गया, मोबाइल छीन लिया गया और आनन-फानन में मझली भाभी के दूर के रिश्ते के भाई से विवाह तय कर दिया गया था | आज उसकी मेंहदी की रश्म है और सभी खुश हैं, सिवाय उसके |

वह बहुत रोई पर किसी का भी दिल नहीं पसीजा | भाभियों को वैसे भी वह सुहाती नहीं थी | वह चौबीस घंटे उसकी निगरानी करतीं | मेहँदी रची और धूम-धाम से उसका ब्याह हो गया |
मध्यमवर्गीय ससुराल में अपने सास-ससुर की इकलौती बहू थी वह | उसे किसी भी प्रकार का कोई दुःख नहीं था; पर देह यहाँ थी मन अमित के पास....|

*

धीरे-धीरे अमिता समय के साथ समझौता करने लगी और यही उसका भाग्य है, मान कर नलिन के साथ जीवन बिताने लगी | पर भाग्य को कुछ और ही मंजूर था | विवाह के एक वर्ष बाद ही अचानक नलिन की मृत्यु ने उसके जीवन में फिर से भूचाल ला दिया | सब कुछ भूल वह अब जीवन में आगे बढ़ चली थी; पर एक बार फिर से वह अकेली हो गयी थी |

*

अचानक बेटे की मृत्यु ने माता-पिता की कमर ही तोड़ दी | वृद्ध तो थे ही, बेटे के गम में दोनों धीरे-धीरे मृत्यु के द्वार पर पहुँच गए, रो-रो कर आँखों की रौशनी जाती रही; पर उँगली से प्राण तो नहीं निकाल सकते थे ना ! क्या करते ! जितनी साँसें उपरवाले की दी हुई बची थीं वो तो चुकानी ही थीं | विक्षिप्तों जैसी हालत हो गयी थी उनकी | नलिन की तेरवीं हो गयी, सभी रिश्तेदार जाते-जाते उसे समझा गए कि अब वही उन बुजुर्गों का सहारा थी | पर उसके मन में तो कुछ और ही चल रहा था | सास – ससुर को दिन-रात बिलखते छोड़ एक दिन वह यूँ ही दो-चार दिन घूमने के लिए कह कर मायके आ गयी |

ससुराल वालों ने सोचा कि कुछ दिन मायके रहेगी तो इसका मन बदल जाएगा, उसके ऊपर भी तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था; किन्तु दिन पर दिन के बाद महीने बीतने लगे तब सास ने फोन किया, दोनों ननदें लिवाने उसके मायके भी आई पर वह वापस नहीं गयी | उसके माता-पिता व भाई भी नहीं चाहते थे कि वह अब उस घर में जाय | क्या रखा था अब वहाँ !

एक दिन अचानक जब अमिता ससुराल जा कर कपड़े और गहने समेटने लगी तब सास-ससुर का माथा ठनका | उन दोनों ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, दोनों बड़ी ननदों ने भी आ कर समझाया; पर उसने उनकी एक ना सुनी ऊपर से घमकी और दे डाली “आप लोग मुझे अपने कानूनी अधिकारों का प्रयोग करने के लिए बाध्य ना करें |”

सुन कर सब ऐसे सन्न रह गए जैसे सांप सूँघ गया हो | मायके वालों के शह पर उसने अपने वो जेवरात भी सास से निकलवा लिए जो उनके पास रखे थे | सास ने ये कहते हुए कि “मेरा तो सर्वस्व लुट गया, अब इन गहनों का क्या करूँगी |” बहू का जो भी कीमती सामान उनके पास रखा था वो सब दे दिया | वह सारा सामान ले कर अपने मायके आ गयी | उस समय उसके पेट में चार महीने का गर्भ था | माँ ने बहुत चाहा कि गर्भपात हो जाय तो अमिता को इस जंजाल से छुटकारा मिल जाय पर डॉ० ने गर्भपात करने से मना कर दिया |

उसके लिए दुबारा लड़का तलाशा जाने लगा | धीरे-धीरे समय बीतने लगा | नौवें महीने में उसने बेटे को जन्म दिया और उसी समय एक रिश्ता भी मिल गया | लड़का दो बच्चों का पिता था | छोटे बच्चे को जन्मते हुए ही उसकी माँ चल बसी थी, बड़ा मात्र तीन वर्ष का था; पर धन-वैभव से भरा पूरा समृद्ध घराना था, ना माता-पिता ना भाई-बहन | जब अमिता को सारी बात बतायी गयी तब एक बार तो उसकी ममता अपने बच्चे के लिए जागी; पर माँ ने बच्चे की जिम्मेदारी से उसे मुक्त कर दिया था |

अब क्या !!

उसे यही तो चाहिए था | बड़ा बंगला, नौकर, चाकर, रुपया-पैसा, रुतबा और क्या चाहिए उसे ! कोई रोक-टोक नहीं, कोई पाबंदी नहीं, ऐशो-आराम का जीवन उसे मिल रहा था जैसा की वह पहली शादी से पहले अमित के लिए सोचा करती थी; पर किस्मत ने दगा दे दिया था | अमित तो न जाने कहाँ होगा ? क्या कर रहा होगा ? यहीं कानपुर में है या कहीं बाहर चला गया ? उसने अपनी सोच को झटका और माँ से विवाह के लिए हाँ कर दिया |

छ: महीने बाद ही एक दिन बिचवानी के माध्यम से खबर आई कि लड़का लड़की को एक बार देखना चाहता है | किसको ऐतराज हो सकता था भला | खुद अमिता भी देखना चाहती थी उसे |

*

शहर के एक बड़े भव्य मंदिर में मिलने का स्थान तय हो गया | अमिता ने पार्लर में जा कर वैक्स, ब्लीच, फेसियल, मेनीक्योर, पेडीक्योर, आदि कराया जिससे उसका रूप और निखर आया | बच्चे के जन्म के बाद से ही वह अपने खानपान और फिगर पर घ्यान दे रही थी सो वह कहीं से भी अब एक बच्चे की माँ नहीं लग रही थी |पार्लर में आईने के सामने खड़ी वह आत्म मुग्ध हो रही थी | घूम-घूम कर उसने आईने में अपनेआप को हर ऐंगल से निहारा फिर चेहरे को दुपट्टे से कवर कर पार्लर वाली को पेमेंट दिया और घर की ओर चल दी |

*

जैसे ही वह रिक्शे से उतरी उसके पास ही एक ऑटो आ कर रुका | उसने देखा कि उसकी दोनों ननदें ऑटो से उतर रहीं हैं | अमिता का दिल धाड़-धाड़ बज उठा | “अब यह लोग क्या करने आयीं हैं ? कहीं ये लोग मेरे आने वाले जीवन में व्यवधान ना डालें !” उसके मन में अनेकों प्रश्न कुलबुलाने लगे | अब जो भी हो जाय मैं वहाँ नहीं जाउंगी, मन ही मन निर्णय लेती हुई वह जल्दी से किराया चुकता कर घर के भीतर आ गयी | पीछे से वो लोग भी आ गयीं पर अमिता जिस बात से डर रही थी वह कारण नहीं था उनके आने का | वह दोनों अपने पिता के कुल का चिराग मांगने आयीं थीं | माँ ने सहर्ष स्वीकार कर लिया | अमिता को भी कोई ऐतराज नहीं था | भाभियों के सिर से भी एक बवाल टल गया था | वह दोनों अपने भाई की इकलौती निशानी अपने गोद में समेट कर ले गयीं|
वह आजाद परिंदे की तरह खुले आसमान में उड़ना चाहती थी | वह भी कोई जिंदगी थी जो वह जिए जा रही थी | भाइयों का मान रखने के लिए ही वह नलिन नाम के खूँटे से चुप-चाप बंध गयी थी और जीने भी लगी थी | सब स्वीकर कर लिया था उसने; पर जब ईश्वर को ही उसका वह जीवन मंजूर नहीं था तो वह क्यूँ उसी खूँटे से बंधी अपना जीवन हवन करती रहती | ऑटो जेके मंदिर के सामने रुकता है और अमिता के सोच का तारतम्य टूट जाता है | वह माँ, बड़ी भाभी और भैया के साथ नीचे उतरती है, भैया ने ऑटो का किराया चुकता किया और सभी मंदिर के मुख्य द्वार से भीतर प्रवेश कर गए |

*

संध्या के कदमो की आहट आसमान में उभरने लगी थी | मंदिर के विशाल प्रांगण में जगह-जगह लोग झुण्ड बना कर बैठे हुए थे | रंगीन फब्बारों की बूँदे कृत्रिम झील की सतह पर जलतरंग बजा रहे थे | लोग किनारों पर खड़े उन फुहारों का आनंद ले रहे थे | हवा के झोंके के साथ फब्बारों की नन्ही बूँदे जब आस-पास खड़े लोगों पर पड़तीं तब सबके चेहरे खिल उठते | बच्चों की खुशी का ठिकाना नहीं था | कुछ जोड़े घनी हरियाली से बनी हाथी, घोड़े, भालू आदि की आकृतियों के पीछे दुनिया से बेखबर अपने प्रेम में डूबे थे |

तभी भैया ने कहा “तुम सब मंदिर घूमो, तब तक मैं देखता हूँ |” अमिता इन सब से दृष्टि हटा कर माँ व भाभी के साथ मंदिर की सीढियाँ चढ़ने लगी | मंदिर के चौखट को स्पर्श कर माथे लगा सभी भीतर प्रवेश कर गए | मंदिर के भीतरी दीवारों पर संगमरमर के टुकड़ों को जोड़ कर बनाए गए धार्मिक आख्यानों के कलात्मक चित्र, ऊपर छज्जों की पट्टियों पर उकेरे गए गीता के श्लोक, मंदिर की नक्काशीदार छत्त से लटके कांच के सुन्दर भारी-भरकम फानूस और सुन्दर रुपहले, गोटेदार चमकीले वस्त्रों में सजी देवी-देवताओं की मूर्तियों को देख कर मन भक्ति भाव से भर गया | भगवान की सुंदर मनमोहक छवि का दर्शन कर तीनो वहीँ बैठ कर कीर्तन का आनंद लेने लगीं तभी बड़ी भाभी के मोबाइल ने मेसेज आने का संकेत दिया | भाभी ने अमिता को मेसेज दिखाया | बड़े भैया का मेसेज था, जिसमे लिखा था “अमिता को नीचे भेजो |”

अमिता ने भगवान को प्रणाम किया और बाहर आ गयी | उसने ऊपर से ही देख लिया था, भैया फब्बारे के पास खड़े एक युवक से बतिया रहे थे | मंदिर की सीढियाँ उतरते हुए अमिता की नजर उस युवक पर पड़ गयी | सफ़ेद शर्ट, काली पैन्ट, फ्रेंच कट दाढ़ी, आँखों पर काला चश्मा, कलाई में सोने का ब्रेसलेट और उँगली में गाड़ी की चाबी का छल्ला | देख कर ही वह सम्भ्रांत लग रहा था और हैंडसम भी | जैसे-जैसे वह उनके करीब आती जा रही थी उसके दिल की धड़कन बढती जा रही थी |
अमिता के पहुँचते ही भैया उन दोनों को ले कर एक बड़े से पेड़ के नीचे आ गए और वहीं बैठने को कह स्वयं ‘अभी आता हूँ’ कह कर मंदिर की ओर बढ़ गए |

अब वह दोनों अकेले थे | चारो तरफ नज़र घुमाने के बाद एक एकांत कोने की तरफ इशारा करते हुए युवक बोला “आइये उधर बैठते हैं |”

*

अमिता के कानो में घंटियाँ सी बजने लगीं | दिल जोर से धड़क उठा | भीड़ से दूर एकांत में अमलतास के नीचे बैठने को कहा युवक ने | अमिता बैठ गयी युवक ने भी अपने जूते उतारे और वहीं उसके सामने हरी मुलायम दूब पर बैठ गया | अमिता की धड़कन बढ़ती जा रही थी |

“कैसी हो अमिता ?”

अपना नाम उस युवक के मुंह से सुन कर अमिता ऐसे उछल पड़ी जैसे उसका पैर बिजली के नंगे तार पर पड़ गया हो ! आश्चर्यचकित हो उसके चेहरे पर कुछ तलाशने लगी, शायद कोई पहचान का चिह्न मिल जाय | मन में हजारों प्रश्नों के बिच्छु डंक मार रहे थे | कौन है ..? इसे मेरा नाम कैसे पता है? क्या इससे पहले कभी मिल चुकी हूँ मैं..या इसने मुझे पहले कहीं देखा है ? आदि- आदि प्रश्नों के जाल में उलझी वह उससे कुछ कहती तभी युवक ने अपना चश्मा उतार कर उसकी आँखों में आँखे डाल दीं | अमिता की आँखे फटी की फटी रह गयीं |

उफ्फ़ !! समंदर सी गहरी और नीली आँखे थीं उसकी | उसकी आँखों की गहराई में उतरते हुए उसे लगा कि वह डूब जायेगी | झट से उसने अपनी आँखें नीची की और धीरे से बोली, “आप को मेरा नाम कैसे पता ?”

“गूगल से ढूँढा था |” कह कर हँस पड़ा युवक |

अमिता अपनी मूर्खता पर झेंप गयी | जरूर भैया ने ही नाम बताया होगा | उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या बात करे ?

“मेरा नाम किंशुक है. |” और वह अपने बारे में सब कुछ बताता चला गया |

लगा ही नहीं कि अमिता उससे पहली बार मिली है | धीरे-धीरे उनकी बात-चीत जान-पहचान में बदल गयी | अमिता मन ही मन खिल कर गुलमोहर हो रही थी | रूप के साथ वैभव, संपदा भी मिल रहा था उसे |

उसे भला कैसे ऐतराज हो सकता था | थोड़ी देर बाद भैया सबके साथ वहीं आ गए | उन लोगो ने अमिता के चेहरे की रंगत देख कर ही जान लिया था कि वह क्या चाहती है| माँ ने किंशुक के हाथ पर शगुन का एक चांदी का सिक्का रख दिया |

कुछ दिनों बाद ही बड़ी सादगी से आर्यसमाज मंदिर में उन दोनों का विवाह करा दिया गया | वह अपनी नयी ससुराल आ गयी |

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