Ab lout chale - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

अब लौट चले - 1

अब लौट चले

आज मुझें ऐसा लग रहा था कि मै सच में आज़ाद हूं, सारी दुनियां आज पहली बार मुझें नई लग रहीं थी, सब कुछ नया और सुकून से भरा गर्त के अँधेरे को चीर मेरे कदम नए उजाले की और अनयास ही बढ़ चुके थे, ठीक उसी तरह जब मै मनु के साथ अपना घर छोड़ कर नई जिंदगी की शुरुआत करने के लिए नये शहर मे आ बसी थी..
शायद मनु ही मेरा सच्चा प्यार था... उसने हर पल की ख़ुशी मेरी झोली में उड़ेली थी, आज भी उसके शब्द मेरे कानो में गूंजते है...
क्या हुआ जान तुम इतनी मायूश क्यों हों...?
और मेरे शरीर एक अजीब सी सिरहन दौड़ पड़ी थी... एक पल तो ऐसा लगा कि मनु ने अभी अभी मेरे कानो में आ कर कहा हों... आज मेरे जीवन में ये अनसुलझा सा मोड़ था जब मै मनु और अपने छोटे से 2 साल के बेटे अभिषेक को रोता छोड़ रवि के रवि के साथ अपने प्यार की नई जिंदगी की शुरुआत करने 35 साल पहले जा चुकी थी... इन 35 साल के दौरान मैंने ये नहीं जाना था की सच्चा प्यार क्या है... मै भटक गई थी की मनु सिर्फ मेरे लिए दिखावा है लेकिन मै गलत थी मेरी सोच और उस समय का लिया गया निर्णय दोनों ही गलत थे... रवि ने तो सिर्फ मुझें हमेशा भोग विलाश की देह समझा था.... रवि के प्यार में उसके हर जुल्म को चुप रह कर सहती रही... लेकिन मनु ने कभी भी मेरे प्रति ऐसा नहीं सोचा था... हां मनु में एक बात जरूर देखने को मिली थी कि उसके मन में मेरे प्रति एक डर जरूर था कि कही मै उससे दूर ना चली जाऊं ना जानें क्यों उसे ऐसा आभास होता था... और हुआ भी यहीं कि मनु के प्रति अभिषेक के होने तक मेरा स्वभाव बदलने सा लगा था.... लेकिन फिर भी मनु से मुझें खुश रखने के लिए जो भी बनता था वो मेरे लिए करता था.... लेकिन मै तो रवि की शानो शौकत की चकाचोंध मै अंधी हों चुकी थी उस वक़्त मै रवि के मंसूबो को समझ नहीं पा रहीं थी... हमारी शादी की वो तीसरी सालगिरह थी... मनु का एक्सीडेंट होने के कारण बिस्तर में पड़ा था एक पैर की हड्डी बुरी तरह से टूट चुकी थी... लें दें कर मै ही उसका सहारा थी... सुबह सुबह जब मनु को चाये देने गई तो उसने खींच कर मुझें अपनी बाहो में लेते हुए कहा था..
जानू... शादी की साल गिरह मुबारक हों...
तब मेने कितने रूखे और निर्दयी पन से उसे झिड़क कर उसका और अपना मूढ़ खराब कर दिया था... और अपनी ज़िद्द पर अड़ते हुए कहा था कि मुझें आज होटल में खाना खाना है... चाहें कुछ हों... मै आज शाम होटल मै जाकर ही डिनर करुँगी... तब मनु ने होले से मुस्कुराते हुए कहा था
जानू तुम तो जान ही रहीं हों मै चलने फिरने के काबिल नहीं हू... चाहो तो तुम चली जाओ मैंने तुम्हे रोका है क्या...

पार्ट - 2 मे