Kaun Dilon Ki Jaane - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

कौन दिलों की जाने! - 7

कौन दिलों की जाने!

सात

प्रथम जनवरी,

नववर्ष का प्रथम प्रभात

धुंध या कोहरे का कहीं नामो—निशान नहीं था, जैसा कि इस मौसम में प्रायः हुआ करता है। आकाश में कहीं—कहीं बादलों के छोटे—छोटे टुकड़े मँडरा रहे थे। ठंड भी बहुत कम थी। रमेश और रानी ‘न्यू ईयर ईव' का ज़श्न मनाकर रात को चाहे लगभग दो बजे आकर सोये थे, फिर भी रानी ने सदैव की भाँति समय पर उठकर नित्यकर्म निपटाये तथा स्नान कर पूजा की। तत्पश्चात्‌ सूर्य को जलार्पण करने के लिये लॉन में आई। सूर्य—देवता अभी दिखाई नहीं दे रहे थे, लेकिन पूर्व दिशा के क्षितिज से धीरे—धीरे उषा की लालिमा ने आकाश की ओर अपनी छटा बिखेरनी प्रारम्भ कर दी थी। उदय होते हुए सूर्य की किरणें इस तरह नीचे से ऊपर आकाश की ओर उठती लग रही थीं जैसे फव्वारे की फुहारें तेज हवा के झोंकों के कारण ऊपर उठती हुई सीधी न रहकर तिरछी हो गई हों। बादलों के टुकड़ों का सुरमई रंग सूर्य—किरणों के प्रकाश से गुलाबी और सुनहला होता जा रहा था। रंगों के सम्मिश्रण से कुछेक बादल के टुकड़े तो ब्रह्मा द्वारा रचित प्राकृतिक चित्रकारी के सर्वोत्कृष्ट दृष्य प्रतीत हो रहे थे। प्रकृति के इस अनुपम दृश्य को देखकर रानी को सहसा याद हो आये फिल्मी गाने के बोल तथा वह होंठों में ही गुनगुनाने लगी — ‘ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार....।' कुछ ही पलों पश्चात्‌ वृक्षों की ऊपरी शाखाओं के पीछे से ऊपर की ओर उठते दिखाई दिये सूर्य—देवता। इस मौसम में ऐसा सूर्योदय तो रानी ने अपने जीवन में प्रथम बार देखा था। उसका मन प्रफुल्लित हो उठा। एक चाह मन में उठी कि सारा साल इसी तरह खुशियों से भरपूर रहे। उसने सूर्य को जल अर्पण किया। फर्श पर छितराये पानी को मध्यमा अँगुली से छूकर माथे पर लगाया और अन्दर आ गई।

रमेश गहरी नींद में था। उसके जागने के अभी कोई आसार दिखाई नहीं दे रहे थे। एकबार तो रानी ने मन में सोचा कि चाय बनाकर पी लूँ, लेकिन दूसरे ही पल मन ने कहा कि नहीं, नववर्ष का प्रथम दिवस है, रमेश के जागने की प्रतीक्षा करनी चाहिये। समय बिताने के लिये रानी शॉल ओढ़कर ड्रार्इंगरूम में बैठकर आलोक द्वारा दी गई अमृता प्रीतम की आत्मकथा ‘रसीदी टिकट' पढ़ने लगी। आधा—एक घंटा हुआ होगा कि रमेश के पुकारने की आवाज़़ आई। रानी ने, जहाँ पढ़ रही थी, वहीं पृष्ठ मोड़कर किताब बन्द की तथा अल्मारी में रखकर बेडरूम में आ गई। रमेश रजाई ओढ़कर बैठा हुआ था। रानी ने आते ही ‘हैप्पी न्यू ईयर' कहा। रमेश ने ‘सेम टू यू' कहा और रानी को नहा—धोकर तैयार हुई देखकर पूछा — ‘इतनी जल्दी नहा—धोकर तैयार हो, कहीं जाने का प्रोग्राम है क्या?'

‘नहीं तो, इस समय कहाँ जाना है? नये साल का पहला दिन है, यह सोचकर टाईम से उठकर स्नान आदि कर लिया ताकि आने वाले समय में आलस से बचा जा सके। नये साल की पहली ‘मॉर्निंग टी' आपके साथ पीने के लिये इन्तज़ार कर रही थी, लेकिन आपको नींद से उठाना उचित नहीं समझा। फ्रैश हो लीजिए, फिर चाय पीते हैं।'

रानी के नववर्ष के अघोषित संकल्प — सुबह समय से जागना व आलस से बचना — की तरफ ध्यान दिये बिना रमेश बोला — ‘सॉरी, तुम्हें इन्तज़ार करना पड़ा। नये साल का पहला दिन, ऊपर से संडे। आज तो मैं जल्दी से रजाई की गरमाहट को विधवा करने वाला नहीं। तुम चाय के साथ ऑमलेट भी बना लो, इतने में मैं फ्रैश होेकर आता हूँ।'

इतना कहकर रमेश बाथरूम में चला गया और रानी रसोई में। रमेश को बाथरूम में बीस—पच्चीस मिनट लगे। इतने में रानी ने चाय के साथ रमेश के लिये ऑमलेट बनाया और अपने लिये सैंडविच। एक प्लेट में ऑमलेट, दूसरी में सैंडविच तथा चाय की केतली और दो कप ट्रे में रखकर रानी बेडरूम में आई। एक ही ऑमलेट देखकर रमेश ने पूछा — ‘क्या बात! एक ही ऑमलेट लाई हो, तुम नहीं खाओगी?'

‘मैं चाय के साथ सैंडविच लूँगी। मैंने सोचा है, आज के बाद नो अंडा, नो मीट।'

‘क्यों भई, ऐसा क्यों?'

‘अब उम्र हो गई है। वेज़िटेरियन खाना हल्का होता है, मेरा मतलब, जल्दी पच जाता है। उम्र बढ़ने के साथ—साथ पाचन—क्रिया भी मंद पड़ जाती है और नॉन—वेज खाना कई तरह के विकारों को भी जन्म देता है, इसलिये नो अंडा, नो मीट का संकल्प लिया है।'

‘यह क्या कल से तुमने ‘उम्र हो गई है', ‘उम्र हो गई है' की रट लगा रखी है? आज नॉन—वेज छोड़ने की बात कर रही हो, रात पार्टी में तुमने बीयर—व्हिस्की भी नहीं ली। किसी सन्त—महात्मा के प्रवचन का असर है या तुम्हारे बचपन के दोस्त, क्या नाम बताया था, की संगत का असर है?' रमेश ने रानी की आलोक से दोस्ती पर व्यंग्य बाण चलाते हुए पूछा।

रानी को अहसास था कि रमेश के आलोक वाले प्रसंग का उत्तर देने से बात का बतंगड बन सकता है, अतः उसने उस प्रसंग को नज़रअन्दाज़ करते हुए इतना कहना ही उचित समझा — ‘जहाँ तक उम्र का सवाल है, इस सच्चाई से आँखें नहीं मूँद सकते कि मैं साठवें साल में चल रही हूँ। दूसरे, अच्छी षुरुआत के लिये कहीं से भी प्रेरणा मिले, अनुकरण करने में भलाई ही होती है।'

‘अच्छा भई, जैसी तुम्हारी मर्जी,' कहकर रमेश ने ऑमलेट की प्लेट उठा ली।

उनके चाय पीते—पीते कई मित्र—रिश्तेदारों की ‘हैप्पी न्यू ईयर' की कॉल्स व एस.एम.एस. आते रहे और वे कॉल्स का जवाब देते रहे। चाय समाप्त करने के पश्चात्‌ उन्होंने भी कई कॉल्स किये। दोनों बेटियों, दामादों तथा उनके बच्चों से ‘न्यू ईयर विश' के बाद भी काफी देर तक बातें होती रहीं। जब वे इससे फारिग हुए तो रमेश ने हल्के—से व्यंग्यपूर्ण लहज़े में कहा — ‘अपने दोस्त को भी ‘न्यू ईयर विश' कर लो,' वास्तव में तो वह आलोक का उल्लेख करके रानी की प्रतिक्रिया देखना चाहता था।

रानी ने रमेश के लहज़े को अनदेखा कर कहा — ‘कर लूँगी,' और बात के रुख को बदलने के इरादे से पूछा — ‘आप दोपहर के खाने में क्या पसन्द करोगे?'

व्यंग्यमय लहज़े को बरकरार रखते हुए मज़ाकिया अंदाज़ में रमेश ने कहा — ‘ओ जी! जो भी खिलाओगी, खा लूँगा। पसन्द ना—पसन्द तो मेहमानों से पूछी जाती है। अपन तो ठहरे घरवाले। कहते हैं ना, घर की मुर्गी दाल बराबर।'

बात और न बढ़े, इसलिये रानी उठकर रसोई में खाना बनाने के लिये चली गई और रमेश स्नानादि में व्यस्त हो गया।

रमेश और उसके पाँच—छः दोस्त प्रत्येक रविवार को दोपहर बाद किसी एक के घर पर इकट्ठे होते हैं और फिर देर शाम तक इनकी ताश मेराथन बाजी चलती है। इस बीच हर घंटे—आध घंटे बाद खाने—पीने का दौर भी चलता रहता है। खाने—पीने का कुछ सामान तो हलवाई से आ जाता है और कुछ जैसे चाय—पकौड़े आदि बनाने तथा परोसने आदि का अतिरिक्त दायित्व मेज़बान गृहस्वामिनी को ही निभाना पड़ता है। दोपहर का खाना खाने के बाद रमेश अपनी इसी ताश—पार्टी के लिये निकल गया। नववर्ष की प्रथम ताश—पार्टी होने के कारण रमेश ने रास्ते में से ‘चने की दाल की बर्फी' का एक डिब्बा भी ले लिया।

रसोई समेटने के बाद समाचार पत्र पढ़ने के लिये रानी लॉन में गई, किन्तु कुछ ही मिनटों बाद अन्दर आ गई, क्योंकि धूप की तपिश बर्दाश्त से बाहर थी। पहली जनवरी को ऐसी गर्मी तो उसने अपने जीवन—काल में कभी नहीं देखी थी। दूसरे दिन के समाचार पत्रों की मुख्य सुर्खी थी — ‘सदी का सबसे गर्म नववर्ष का प्रथम दिवस।' लेकिन जब बेडरूम में आई तो थोड़ी ही देर बाद ठंडक अनुभव होने लगी। ब्लैंकट लिया तो अच्छा लगा। आलोक को ‘न्यू ईयर विश' करने के लिये मोबाइल उठाया। आलोक का नम्बर मिलाया। उधर से ‘हैलो' की आवाज़़ सुनते ही बोली — ‘आलोक, ऐ वैरी वैरी हैप्पी न्यू ईयर। आने वाले समय में तुम्हारे लिये खुशियों से भरे लम्बे जीवन की कामना करती हूँ।'

‘तुम्हारी शुभ कामनाओं के लिये धन्यवाद। रश्मि के बिछोह से जीवन में एक तरह का अकेलापन, सूनापन—सा आ गया था। साधु—सन्त तो अकेले रह सकते हैं, किन्तु सांसारिक व्यक्ति के लिये तो अकेलापन बड़ा भयावह होता है। चाहे रश्मि को भूलना मेरे लिये सम्भव नहीं, फिर भी तुम से मिलने के बाद ऐसा लगने लगा है जैसे जीवन को एक नई दिशा मिल गई है, जीवन मेरे लिये निरर्थक नहीं रहा। मुझे एक ऐसी साथी मिल गयी है, जिसके साथ अपने दिल की बातें तथा विचार निःसंकोच साँझा कर सकता हूँ।

सूनी—सूनी थी जो राहें,

बन गयी हैं प्यार की बाहें।

‘रानी, वैसे मैं इस ‘नववर्ष' को ‘नववर्ष' नहीं मानता। अगर मानता होता तो सम्भवतया मेरी शुभ कामनाएँ ही तुम्हें सबसे पहले मिलतीं! इसे नववर्ष न मानने के पीछे कुछ कारण हैं। सामाजिक चेतना, उत्साह और उल्लास ही मनोरथ होता है उत्सव या पर्व मनाने का। एक जनवरी को नववर्ष मनाने में केवल फूहड़ उल्लास होता है, सामाजिक चेतना और उत्साह का नितान्त अभाव रहता है। आज चाहे वैसी भयंकर ठंड नहीं है जैसी कि सामान्यतया प्रथम जनवरी को होती है। इस मौसम में सनसनाती हवाओं के बीच कड़ाके की ठंडक हड्डियों को जमा देती है, ऐसे वातावरण में अर्ध—रात्रि को मोमबत्ती बुझाकर नये वर्ष का स्वागत करना पूरी तरह से तर्कहीन व मूर्खता है। जीवन से प्रकाश को विदा कर नये का कैसा स्वागत! भारतीय संस्कृति के अनुसार तो नये का स्वागत, अभिनन्दन दीप जलाकर करने की परम्परा है। दीप जलाना अर्थात्‌ प्रकाश फैलाना, अन्धकार को दूर करना। मैं तो प्रथम जनवरी को नववर्ष मनाना हमारी गुलाम मानसिकता का परिचायक ही मानता हूँ। इसे दुर्भाग्य न कहें तो क्या कहें कि पूरा देश एक भेड़चाल का शिकार हो गया है। इन भाव—विचारों को बड़े सुन्दर ढंग से अभिव्यक्ति दी गई है व्हाटसएप्प मैसेज़ में जो कुछ समय पूर्व ही मुझे रिसीव हुई है। यह कविता मैं तुम्हारे नम्बर पर फॉरवर्ड कर रहा हूँ। इसे इत्मीनान से पढ़ना और इस पर विचार करना।'

‘पढूँगी भी और विचार भी करूँगी। एक शुभ समाचार जिसे सुन कर तुम अवश्य प्रसन्न होंगे — हम यानी रमेश जी और मैं अपने कपल्स किटी पार्टी के मैम्बर्स के साथ ‘न्यू ईयर ईव' मनाने मेरियट होटल में गये थे। पार्टी के दौरान मैंने बीयर—व्हिस्की को छूआ तक नहीं बावजूद इसके कि रमेश जी तथा कई किटी मैम्बर्स ने इसके लिये ‘फोर्स' भी किया, क्योंकि इससे पहले मैं पार्टी या विवाह—शादी में कभी—कभार बीयर—व्हिस्की ले लिया करती थी, और आगे भी अपने इस इरादे पर कायम रहने का मन है। आज सुबह मैंने ‘न्यू ईयर रेजोल्यूशन' के तौर पर ‘नो अंडा, नो मीट' का भी संकल्प लिया है।'

‘रानी, यह तो वाकई ही मन को प्रसन्न करने वाला समाचार है। तुम्हें तुम्हारे संकल्प के लिये बहुत—बहुत बधाई। तुम्हारा ‘नो अंडा, नो मीट' का संकल्प तो इसलिये भी बहुत अच्छा है, क्योंकि मांसाहार मनुष्य की शरीर—संरचना के अनुकूल नहीं है। कई लोग जो मांस का सेवन करने के आदी हैं, प्रायः भ्रामक तर्क देते हैं कि शाकाहारी आहार में पर्याप्त पोषक तत्त्व नहीं होते। मांसाहारी व शाकाहारी जीवों की आँतों व दाँतों के अध्ययन ने सिद्ध कर दिया है कि वे सर्वथा एक—दूसरे से भिन्न हैं। दूसरे, अच्छा निर्णय जब भी ले लो, अच्छा है। इसके लिये ‘न्यू ईयर' तक इन्तज़ार करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिये। फिर भी तुमने जो संकल्प लिया है, उस पर कायम रहो, यही प्रभु से मेरी प्रार्थना है तथा हार्दिक इच्छा है।'

जब बात हो चुकी तो रानी ने व्हॉट्‌सएप्प खोला और निम्न कविता पढ़ीः

यह नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं, है अपना यह त्यौहार नहीं

है अपनी यह रीत नहीं, है अपना यह व्यवहार नहीं।

धरा ठिठुरती सर्दी से, आकाश में कोहरा गहरा है

बाग बाज़ारों की सरहद पर, सर्द हवा का पहरा है।

सूना है प्रकृति का आँगन, कुछ रंग नहीं, उमंग नहीं

हर कोई है घर में दुबका हुआ, नव वर्ष का यह कोई ढंग नहीं।

चंद मास अभी इंतज़ार करो, निज मन में तनिक विचार करो

नये साल नया कुछ हो तो सही, क्यों नकल में सारी अक्ल बही।

उल्लास मंद है जन—मन का, आयी है अभी बहार नहीं

यह नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं, है अपना यह त्यौहार नहीं।

यह धुंध कुहासा छंटने दो, रातों का राज्य सिमटने दो

प्रकृति का रूप निखरने दो, फागुन का रंग बिखरने दो।

प्रकृति दुल्हन का रूप धर, जब स्नेह—सुधा बरसायेगी

शस्य— श्यामला धरती माता, घर—घर खुशहाली लायेगी।

तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि, नव वर्ष मनाया जायेगा

आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर, जय गान सुनाया जायेगा।

युक्ति—प्रमाण से स्वयंसिद्ध, नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध

आर्यों की कीर्ति सदा—सदा, नव वर्ष शुक्ल प्रतिपदा।

अनमोल विरासत के धनिकों को, चाहिये कोई उधार नहीं

यह नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं, है अपना यह त्यौहार नहीं।

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