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स्टॉकर - 31




स्टॉकर
(31)



निशांत टंडन शिव के पिता अभय टंडन की नाजायज़ संतान था।
अभय टंडन एक व्यापारी थे। उनका अपना प्रिंटिंग का व्यापार था। उनकी पत्नी नम्रता एक रईस परिवार से थी। उसके पिता मन्मथ कपूर एक बड़े वकील थे। उनके पास बहुत सी पुश्तैनी संपत्ति थी। नम्रता उनकी इकलौती संतान थी।
नम्रता और अभय के बीच का रिश्ता आपसी प्रेम से अधिक सामाजिक प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए था। नम्रता अधिकतर अपने पिता के घर पर ही रहती थी। शिव के जन्म के बाद भी उनके रिश्ते पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा।
अभय टंडन एक रसिक किस्म के व्यक्ति थे। साहित्य, कला, संगीत और नाटकों के कद्रदान थे। अक्सर उनके घर पर इन क्षेत्रों से जुड़े लोगों का आना जाना होता था।
संगीत में उन्हें गज़ल सुनने का बहुत शौक था। उन दिनों लतिका सिंह नामक एक गज़ल गायिका ने इस क्षेत्र में कदम रखा था। अपने पहले ही स्टेज शो से उसने धूम मचा दी थी।
अभय के कानों में जब यह बात पड़ी तो उनका मन लतिका को सुनने के लिए मचल उठा। उन्हें पता चला कि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर शहर का मशहूर क्लब लतिका का एक स्टेज शो कराने वाला है। अभय ने अपनी जान पहचान का प्रयोग कर पहली पंक्ति का टिकट प्राप्त कर लिया।
लतिका की आवाज़ गज़ल गायिकी के लिए एक दम मुफीद थी। लतिका ने अपने शो के दौरान एक से बढ़ कर एक गज़लें सुनाईं। अभय उसकी आवाज़ के दीवाने हो गए।
अभय के साथ उनके एक दोस्त मोहम्मद अब्दुल रशीद थे। वह ना सिर्फ अच्छे शायर थे बल्कि वह एक उर्दू अखबार निकालते थे। वह खुद उस अखबार के एडिटर भी थे। वह चाहते थे कि लतिका का एक इंटरव्यू उनके अखबार में छपे। अतः शो खत्म होने के बाद लतिका से मिलने पहुँच गए। अभय भी लतिका से मिलने की चाह लिए उनके पीछे हो लिए।
अब्दुल रशीद तो लतिका से बात कर रहे थे। पर अभय बस लतिका को चोरी चोरी ताक रहे थे। लतिका बेहद खूबसूरत थी। अपनी बातचीत के दौरान एक दो बार वह हंसी भी थी। उसकी हंसी ऐसी थी जैसे कोई झरना बह रहा हो।
अभय चोरी छिपे उसे देख रहे थे यह बात लतिका को भी पता थी। वह भी चोरी छिपे अभय की तरफ देख लेती थी।
बातचीत के दौरान जब भी अभय और लतिका की नज़रें मिलतीं तो वह मुस्कुरा देती। यह अभय के लिए एक इशारा था कि उनका उसे ताकना लतिका को बुरा नहीं लगा।
अब्दुल रशीद ने लतिका को मना लिया कि वह अपना रिपोर्टर भेज कर उसका इंटरव्यू कराएंगे।
उसके बाद करीब छह महीने बीत गए। पर अभय की लतिका से मुलाकात नहीं हुई। पर उसकी मखमली आवाज़ और खूबसूरती का जादू अभय के दिमाग पर छाया हुआ था। उनके पास लतिका का फोन नंबर था। जो उन्होंने अब्दुल रशीद से लिया था।
उन्होंने कई बार सोंचा था कि लतिका को फोन करें। पर हर बार यह सोंच कर रह जाते थे कि अगर फोन घर के किसी सदस्य ने उठाया तो वह क्या कहेंगे। किस रूप में अपना परिचय देंगे।
कई दिनों तक उनके दिल और दिमाग के बीच रस्साकशी चलती रही। अंततः जीत उनके दिल की हुई। उन्होंने फोन किया तो फोन घर के नौकर ने उठाया। उन्होंने नौकर से कहा कि वह उसकी बात लतिका से करा दे। नौकर ने बताया कि लतिका कहीं प्रोग्राम करने गई है। दो दिनों के बाद लौटेगी। नौकर ने उससे पूँछा कि वह लतिका को क्या संदेश दे तो अभय ने कह दिया कि वह दो दिनों के बाद खुद फोन कर लेंगे।
पर दो दिनों के बाद चाह कर भी अभय फोन नहीं कर पाए। उन्हें लगा कि पहले ही बिना सही जान पहचान के उनका फोन करना उचित नहीं था। अगर वो दोबारा फोन करेंगे तो लतिका को लगेगा कि वह बहुत बेसब्रे इंसान हैं। अतः उन्होंने फोन नहीं किया।
वह प्रेस के अपने दफ्तर में बैठे थे जब उनकी मेज़ पर रखा फोन ट्रिंग ट्रिंग करके बज उठा। फोन उनके सेक्रेटरी ने उठाया। कुछ क्षण बात करने के बाद उसने चोंगा अभय की तरफ बढ़ा कर कहा कि कोई मोहतरमा लतिका उनसे बात करना चाहती हैं। नाम सुन कर अभय चौंक गए। उन्होंने सेक्रेटरी को बाहर जाने को कहा।
"हैलो...."
"अभय साहब आपने फोन किया था। तब मैं थी नहीं। आपने कहा था कि आप फोन करेंगे। पर आपने फोन नहीं किया।"
"मैंने तो आपके नौकर को अपना परिचय नहीं दिया था। फिर आप कैसे जान गईं कि फोन मैंने किया था।"
उस तरफ कुछ पल खामोशी रही।
"उस दिन आप जिस तरह से मुझे देख रहे थे मुझे लगा था कि आप मुझसे कुछ कहना चाहते हैं। पर आप अब्दुल साहब के सामने कुछ कह नहीं पाए थे। जब आपने उनसे मेरा नंबर मांगा था तो नंबर देने से पहले उन्होंने मुझसे पूँछा था। मैं तब से आपके फोन का इंतज़ार कर रही थी।"
"आपको मेरा नंबर कैसे मिला ?"
"अब्दुल साहब से...."
"पर उन्होंने आपको नंबर देने से पहले मुझसे नहीं पूँछा।"
फोन पर लतिका की हंसी सुनाई पड़ी।
"उन्होंने भी उस दिन आपको मुझे ताकते देख लिया था।"
अभय झेंप गए।
"वो तो दरअसल मैं आपकी तारीफ करना चाहता था। बहुत मीठी आवाज़ है आपकी।"
"बस इतना ही...."
अभय कोई जवाब नहीं दे पाए। लतिका की आवाज़ सुनाई पड़ी।
"चलिए बाकी जो कहना है मिल कर कह दीजिएगा।"
यह सुन कर अभय को खुशी हुई।
"हम कैसे मिल सकते हैं ?"
"अगले हफ्ते अब्दुल साहब की शादी को पंद्रह साल पूरे हो रहे हैं। उन्होंने एक बड़ी दावत रखी है। अब आप तो उनके खास दोस्तों में हैं। मैं भी गज़ल का प्रोग्राम करने वहाँ आऊँगी।"
कह कर लतिका ने फोन रख दिया।
अभय बेसब्री से अगले हफ्ते की राह देखने लगे।

अब्दुल रशीद की पार्टी में लतिका ने वैसे ही रंग जमा दिया जैसा अपने स्टेज शो में किया था। अभय इस बात की राह देख रहे थे कि कब वह और लतिका एक दूसरे के साथ बैठ कर इत्मिनान से बातें कर सकें। लेकिन वहाँ इसका मौका नहीं मिल पा रहा था। कभी अभय का कोई जानने वाला उन्हें घेर लेता। तो कभी लतिका का कोई मुरीद उसकी तारीफ करने के लिए आ जाता।
पार्टी के बाद अभय लतिका को छोड़ने उसके होटल में गए। लतिका ने उन्हें अपने कमरे में आने को कहा। अभय को संकोच हो रहा था। रात के करीब ग्यारह बजे थे। पर लतिका ज़िद करके अपने कमरे में ले गई।
होटल के कमरे में सही मायनों में वो दोनों एक दूसरे के साथ बैठ कर बातें कर पाए। बातें करते हुए कब डेढ़ घंटा बीत गया दोनों को ही पता नहीं चला। जब अभय चलने लगे तो लतिका ने कहा।
"कल मुझे यहाँ कुछ काम है। परसों सुबह यहाँ से जाऊँगी। अच्छा हो कि आप कल की शाम यहाँ मेरे साथ बिताएं।"
अभय का मन अभी नहीं भरा था। लतिका की यह दावत उन्होंने तुरंत कबूल कर ली।
अगले दिन शाम को अभय एक तोहफे के साथ लतिका के होटल के कमरे में पहुँच गए। लतिका उनके पहुँचने की राह देख रही थी। उन्हें देख कर उसने गर्मजोशी के साथ अभय का स्वागत किया।
दोनों के बीच गज़ल और शेरो शायरी की बात होने लगी। लतिका ने बताया कि उसकी माँ ने शास्त्रीय संगीत सीखा था। पर उनके समय में औरतों का महफिल में गाना पसंद नहीं किया जाता था। अतः उन्होंने कभी अपनी कला का प्रदर्शन दूसरों के सामने नहीं किया।
पर वह लतिका के पिता की अनुपस्थिति में अपने कमरे में गाती थीं। उन्हें सुन कर लतिका की संगीत में रुचि जागी। उसने अपनी माँ से संगीत सीखना शुरू कर दिया।
जब वह कॉलेज में पहुँची तो संगीत के साथ साथ उसका रुझान शायरी की तरफ भी हो गया। यहीं से उसकी गज़ल गायिकी शुरू हुई।
लतिका के पिता की मृत्यु हो गई। उसके परिवार वालों ने उसके पिता की संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया। उसे और उसकी माँ को अपने ही घर में घुट घुट कर रहना पड़ता था।
लतिका को ये सब गंवारा नहीं था। उसने अपने पैरों पर खड़े होने का निश्चय किया। वह एक दफ्तर में नौकरी करने लगी।
पर यहाँ इतनी कमाई नहीं हो रही थी कि वह अपनी माँ को लेकर अलग रह सके।
एक बार अपने एक दोस्त की इंगेजमेंट पार्टी में उसने गज़ल गाकर सुनाया। सबने उसकी खूब तारीफ की। वहीं लतिका की मुलाकात राजेश नाम के व्यक्ति से हुई। उसने लतिका को राज़ी कर लिया कि वह शहर के एक व्यापारी के बेटे की शादी में गज़ल गाए।
उस दिन लतिका ने पहली बार किसी बड़ी महफिल में गाया। उसके बाद तो उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।