Do Ajnabi aur wo aawaz - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

दो अजनबी और वो आवाज़ - 3

दो अजनबी और वो आवाज़

भाग-3

इसके पहले मैं कुछ और सोच पाती, वह आवाज मेरे निकट आकर मुझसे कहती है तुम यहाँ बैठो और मेरा इंतज़ार करो। जब हमारी कॉफी तैयार हो जाएगी तो यह भैया तुम्हारा नाम लेकर तुमसे खुद कॉफी ले जाने को कहेंगे। मैं अभी आता हूँ। मैं वहाँ बैठकर अपनी नर्वसनेस को छिपाने का निरर्थक प्रयास करते हुए आस पास के माहौल का जायजा लेने लगती हूँ। वो फिर मेरे पास आकर पूछता है कॉफी आ गयी क्या ? मैं ज़रा गुस्से से उससे कहती हूँ कम से कम आज तो मेरे सामने आकर बैठो, वह फिर गायब... मुझे अंदर ही अंदर डर लग रहा है। मेरे पास पैसे भी नहीं है।

थोड़ी देर बाद जब मुझसे कॉफी का बिल मांगा जाएगा, तो मैं उसे क्या जवाब दूँगी। सोच सोचकर मेरी हालात पहले से ही खराब है, दिल ज़ोर–ज़ोर से धडक रहा है। ऐसा लग रहा है मुझे देखकर सबको पता चल जाएगा कि कुछ तो गड़बड़ है। और एक वो है जिसे मेरी कोई चिंता ही नहीं है। न जाने कहाँ चला गया है। मैं बेचेंन सी होकर, उसे यहाँ वहाँ ढूँढने कि निरर्थक कोशिश करने लगती हूँ।

वह मेरे सामने आता है, लेकिन उसके चेहरे पर एक मुखौटा है। मैंने पूछा यह क्या है, वह बोला लो कर लो बात तुम्ही तो चाहती थी न कि मैं तुम्हारे सामने आऊँ, तो लो मैं आ गया। हाँ मैं यही चाहती थी। लेकिन तुम्हारे अपने चेहरे के साथ। इस मुखौटे के साथ नहीं, वह फिर बोला अच्छा तुम बैठो मैं आया। मैं उसके यूं बार-बार गायब हो जाने वाले रवैये से तंग आ चूकी थी इस बार मैंने उससे पूछ ही लिया। क्या है...? यह बार बार कहाँ गायब हो जाते हो।

सब ठीक तो है ना? उसने कहा हाँ सब ठीक है। बस दो मिनिट उसके बाद हमने साथ कॉफी पी जिसका स्वाद आज तक मेरी जुबान पर है।

हालांकि मैं आज भी यह समझ नहीं पायी हूँ कि उस रात घने काले जंगल से लेकर उस कॉफी शॉप तक सफर पूरा कैसे हुआ था। खैर अब कॉफी पीकर हम खुद को तारो ताजा महसूस कर रहे थे। और अभी हम बात कर ही रहे थे कि फिर अचानक अंधेरा हो गया। ठीक वैसा अंधेरा जैसा बिजली चले जाने के बाद एकदम से हो जाता है और मैं वापस खुद को उसी जंगल में खड़ा पाती हूँ। मैं घबराकर एक बार फिर खुद को छूकर देखती हूँ। मुझे ऐसा महसूस होता है जैसे मैं अब तक कोई सपना देख रही थी और अभी मेरी आँख खुली है। मगर यह क्या कॉफी का स्वाद तो अब भी मेरे होंठों पर विद्यमान है। उफ़्फ़....! यह क्या हो रहा है।

मैं सच में पागल हो जाऊँगी।

तभी वो आवाज मेरे पीछे से आती हुई मुझसे यह कहती है। तेरे ही कारण दुखा मेरा पेट। आज कई सालों बाद मेरे पेट में ऐसा दर्द हुआ जो इतनी आसानी से नहीं हुआ करता। निशा यह क्या किया तूने मैं छोड़ूँगा नहीं तुझे....इस बात का बदला में तुझसे ज़रूर लूँगा। तेरे पेट में भी यदि मैंने ऐसा ही दर्द ना करवाया तो मेरा नाम नहीं...नाम ? वही तो मैं जानना चाहती हूँ कि तुम्हारा नाम क्या है बसंती...कहते हुए मेरे होंठों पर भी हंसी आ गयी।

बड़े भोलेपन से मैंने उससे कहा अरे मैंने क्या किया है ? वह बोला, हाँ बेटा....तुझे भी पता है कि तूने क्या किया है। ज्यादा भोली बनाने की जरूरत नहीं है। फिर वह बोला क्या अब तुम्हें कुछ याद आया ? यह सुनकर मेरे खिले चेहरे पर अचानक उदासी के बादल घिर आते है और मैं ना में सिर हिलाते हुए गुमसुम सी एक पत्थर पर बैठ जाती हूँ।

फिर धीरे से वहाँ से उठते हुए मैं उससे कहती हूँ। वही तो बात है न यार, लाख चाहने पर भी मुझे कुछ याद नहीं...कुछ याद नहीं...कहती हुई मैं टहलने लगती हूँ। यूं चलते चलते मैं एक ऐसे स्थान पर पहुँच जाती हूँ। जहां बहुत सारा पानी भरा है, जैसे कि वहाँ कोई झील है या शायद बारिश के कारण जमा हुआ पानी भी हो सकता है। मुझे नहीं पता वास्तव में वह क्या जगह है। पर मेरे मन में तो कुछ और ही विचार चल रहे है। मैं यह सोच रही हूँ कि आखिर कौन हो सकता है यह, कहीं यह मेरा कोई अतीत तो नहीं? जो मेरा पीछा कर रहा हो और मुझे ही याद नहीं।

ऐसा सोचते –सोचते मैं उस भरे हुए पानी के पास लगे एक ऊंचे से पत्थर पर जा बैठती हूँ और अपना ही चेहरा उस ठहरे हुए पानी में बहुत ध्यान से देर तक देखते हुए उस आवाज को फिर एक बार महसूस करके देखना चाहती हूँ। लेकिन ना जाने क्या हो गया मुझे, लगता है मेरी आँख में कुछ चला गया है शायद, मुझे कुछ भी साफ दिखायी नहीं दे रहा है।

सब कुछ अचानक धुंधला सा हो गया है। जैसे तेज़ बारिश में अकसर किसी गाड़ी का काँच हो जाया करता है, मैं परेशान होकर आँखों को मलते हुए साफ करने कि नाकाम कोशिश करने लगती हूँ। हाथों से उस भरे हुए पानी को टटोलते हुए मैंने अपनी आँखों को पानी से साफ करने कि भी कोशिश की किन्तु कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। मुझे अब भी सब कुछ धुंधला ही नजर आ रहा है। तभी मुझे ऐसा एहसास होता है कि जैसे मैं किसी गाड़ी के अंदर बैठी हूँ और मेरे सामने वाली गाड़ी के पीछे लगी लाल बत्ती बारिश के कारण मुझे फैली हुई से दिखायी दे रही है।

काँच पर पड़ रही तेज बारिश कि बूंदों की वजह से न मुझे कुछ सुनाई दे रहा है ना ही दिखायी दे रहा है। पल भर में मेरी जगह, मेरा स्थान कब कैसे बदल गया मुझे खुद भी समझ नहीं आता है। इसके पहले कि मैं कुछ सोच सकूँ। अचानक बारिश में भीगा हुआ कोई चेहरा मेरे सामने एकदम से आ जाता है। जिसे देखकर मैं बहुत ज़ोर से चौंक जाती हूँ। वो कहता है सुनो तुम कौन हो और इतनी रात गए इस तेज़ बारिश में यहाँ क्या कर रही हो।

मुझे कुछ ठीक से सुनाई नहीं दे रहा है। तेज़ बारिश के कारण मैं गाड़ी के अंदर से उस व्यक्ति का चेहरा ठीक से देख नहीं पा रही हूँ। अभी में कुछ सोच समझ पाऊं कि उसके पहले ही एक आवाज आती है, हे निशा चलेगी क्या आंटी की चाय पीने...बोल आंटी की चाय इस वक़्त तुम पागल हो क्या कभी कॉफी, कभी चाय और ऐसी कौन सी आंटी है जो आधी रात को तुम्हारे लिए चाय बनाने वाली है। अरे हैं एक आंटी....जिसकी चाय सिर्फ रात के मुसाफिरों को ही नसीब होती है।

हाँ....चाय में दम नहीं है। लेकिन आंटी में बहुत दम है। अच्छा फिर यदि चाय में ही दम नहीं है तो हम जाएंगे ही क्यूँ ? क्यूँ मतलब, मैं चाहता हूँ इसलिए और क्यूँ ? एक अजीब सी ज़िद के साथ एक दोस्ताना हक था उस आवाज में, जिसे में ना नहीं कह पायी। कितना अजीब है सब कुछ, समझ ही नहीं आ रहा है किस और जा रही है ज़िंदगी। क्या सच है, क्या झूठ, क्या हकीकत है, क्या फसाना है, कुछ समझ नहीं आ रहा है। ऐसी जादू भरी महसूस हो रही है ज़िंदगी जिसका कोई जवाब नहीं। कुछ ही पलों में, मैंने खुद को लड़कों के एक समूह के बीच खड़ा पाया।

जहां के सारे लड़के आंटी को घेरे खड़े थे। आंटी बहुत बूढ़ी सी थी। कोई उनकी स्टोव जलाने में सहायता कर रहा था, तो कोई कुछ कुछ सामान लाकर देने में, बहुत से ऐसे भी थे जो आंटी से उस वक़्त सिगरेट माचिस आदि मांग रहे थे।

थोड़ी देर तो मुझे समझ ही नहीं आया कि आखिर चल क्या रहा है। एक सादी सी चाय के लिए आखिर इतनी भीड़ क्यूँ है। जवाब जानने के लिए भीड़ को चीरती हुई जब में आंटी के निकट पहुंची और मैंने देखा फटी साड़ी बिखरे बाल पास में एक स्टोव और कुछ चाय बनाने का सामान इसके अतिरिक्त तो मुझे उस बूढ़ी आंटी में ऐसा कुछ नजर नहीं आया जिसके लिए यह लड़के पागल हुये जा रहे है। मैं सोच में पड़ गयी। आखिर इस अधपकी चाय में ऐसी कौन सी खास बात है, जिसके लिए यह सभी लड़के आंटी की चाय पीने को मरे जा रहे हैं। हर कार्य को पूर्ण होने के लिए एक निश्चित समय अवधि कि जरूरत होती है। यह सभी जानते है।

लेकिन महज एक चाय जैसी मामूली चीज के लिए आधी रात को इतना उतावलापन उस वक़्त मेरी तो समझ के बाहर था। कि फिर उसने मुझसे कहा, देख क्या रही हो। एक चाय लो ना और सुनो पूरी मत पीना। बस पीकर बताओ कैसी लगी। अब इसमें पीने वाली बात क्या है, देखकर ही तो पता चला रहा है, कच्ची चाय है। नहीं देखो मत, पियो पहले, और बताओ तुम्हें क्या लगता है। ऐसा क्या खास है, इस चाय में जो यह सब लोग इस चाय को पीने के लिए क्यूँ मरे जा रहे हैं। मैंने जरा देर सोचकर कहा पता नहीं...अरे पता कैसे नहीं कोई तो कारण होगा। तुम जैसे बुद्धि जीवी लोग ही नहीं बता पाएंगे, तो कौन बता पाएगा भला? तू तो लिखती है न क्या लिखेगी इस बारे में? मैंने जैसे उसकी सारी बातों को नजर अंदाज़ करते हुए कहा प्यार का अभाव।

प्यार का अभाव, वो कैसे? वो ऐसे कि यहाँ जितने भी लोग खड़े है, वह सभी विद्यार्थी है। जो यहाँ अपने घर से दूर रहकर पढ़ने आए हैं। जब भी कभी उन्हें अपनी माँ की याद आती है, तो आंटी की चाय उन्हें यहाँ अपने पास खींच लाती है। क्यूंकि आंटी के स्वभाव में ममता है, प्यार है, माँ वाली डांट डपट, झिड़की, टपली सभी कुछ तो है। जिसके कारण यह लोग अपनी माँ को आंटी में ढूँढने कि कोशिश करते हैं। इसलिए तो यहाँ आते है, ताकि उन्हें वो प्यार मिल जाये और आंटी को उनके हक का पैसा।

तुम्हें पता है प्यार सब को चाहिए होता है। शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा, इस धरती पर जिसे प्यार की भूख न हो। पर मुझे ऐसा लगता है न कि हम औरतें इस मामले में थोड़ी अजीब होती है। मायके में भरपूर प्यार मिलने के बाद भी, जब विवाह उपरांत नए लोगों से रिश्ता जुड़ता है। तब भी हमारे अंदर प्यार और सम्मान दोनों पाने कि चाह होती है।

यदि हमें प्यार बेशुमार मिले किन्तु सम्मान न मिले तो भी हम खुश नहीं रह सकतीं और यदि सम्मान भरपूर मिले और प्यार औपचारिक हो, तब भी हम खुश नहीं रह पातीं। सब कुछ मिलकर भी यदि उम्र का अंतर ज्यादा हो तब भी हमें दिक्कत ही महसूस होती है। इसलिए शायद हम कभी खुद को पूरा महसूस ही नहीं कर पाते। मैं भावनाओं में बही न जाने कितना कुछ कहती चली जा रह हूँ। सब भूल चुकी हूँ कि मैं कौन हूँ, कहाँ हूँ, बस निरंतर बोले जा रही हूँ। यह भी पता नहीं है कि मुझे कोई सुन भी रहा है या नहीं, बस इस बारिश के पानी को जरिया बनाकर मैं अपने अंदर का सारा जहर धो देना चाहती हूँ। किसी भी औरत को सिर्फ पैसों की या जिस्म की भूखी नहीं होती। हर अलग समय पर उसकी अलग जरूरत होती है। पति के समय पति चाहिए होता है। तो कभी कभी एक दोस्त के रूप में दोस्ती भी चाहिए होती है। किन्तु वास्तव में ऐसा हो नहीं पाता। एक औरत और एक आदमी एक ही छत के नीचे रहते हुए माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, सब बन जाते हैं। लेकिन कई साल एक साथ गुजारने के बाद भी वह दोनों आपस में वैसे दोस्त नहीं बन पाते, जिसकी एक औरत को तलाश रहती है।

हक, अधिकार यह सब ऐसे शब्द है, जो कभी कहे नहीं जाते। यह या तो समझे जाते है, या फिर थोपे जाते हैं। लेकिन जब कोई आपसे प्यार करता है और आपके प्यार में इन शब्दों का प्रयोग करता है। तब मैं नहीं जानती कि उस वक़्त एक पुरुष को कैसा लगता है किन्तु मैं यह ज़रूर जानती हूँ कि एक स्त्री जो उस पुरुष को प्यार करती है उसे ज़रूर बहुत अच्छा लगता है। यह सब कहते कहते मैं जैसे ही अपना चेहरा घूमती हूँ....

***