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स्टॉकर - 33




स्टॉकर
(33)



शिव जब छुट्टियों में आया तो घर में एक नए सदस्य को देख कर उसे हैरानी हुई। अभय ने भी उसे सब बता दिया। अब वह किशोर हो गया था। बहुत सी बातें समझने लगा था।
शिव के लिए सब कुछ एकदम से स्वीकार करना कठिन था। लेकिन बिट्टू का आना उसे एक तरह से अच्छा भी लगा था। माँ ने जन्म देने के बाद उससे अधिक संबंध नहीं रखा। वह कभी कभी ननिहाल उनसे मिलने जाता था। वह भी अधिक से अधिक दो दिनों के लिए। पिता अपने जीवन में व्यस्त थे। उसे बोर्डिंग भेज दिया था।
जब वह छुट्टियों में घर आता तो यहाँ कोई ऐसा नहीं होता जो उसके साथ कुछ वक्त बिताता। पर नन्हें बिट्टू ने पूरी कोशिश की कि वह शिव का ध्यान अपनी तरफ खींच सके। वह मुस्कुराता हुआ उसके पीछे पीछे घूमता। कभी कभी उसे भैया कह कर पुकारता। वह कोशिश करता था कि शिव उससे बात करे।
आखिरकार शिव का दिल पिघल ही गया। उसने बिट्टू से बात करना शुरू कर दिया। वह उसे बाज़ार घुमाने ले जाता। अपनी पॉकेट मनी से उसे तोहफे दिलाता। घर पर उसके साथ खूब खेलता था। देखते ही देखते गर्मी की छुट्टियां खत्म हो गईं। पहली बार बोर्डिंग वापस जाते हुए शिव उदास था। क्योंकी बिट्टू उसके जाने से रो रहा था।
बिट्टू भी स्कूल जाने लगा था। स्कूल में उसका नाम निशांत टंडन लिखाया गया था।
समय बीतने लगा। शिव छुट्टियों में घर आता। बिट्टू और वो अच्छा वक्त बिताते थे। फिर बिट्टू भी इस लायक हो गया कि उसे भी बोर्डिंग भेजा जा सके।
बिट्टू को दूसरे बोर्डिंग स्कूल में भेजा गया। शिव अब स्कूल समाप्त कर कॉलेज में पहुँच गया था।
शिव को अपने ननिहाल से बहुत सी संपत्ति प्राप्त हुई थी। कॉलेज के बाद शिव ने अपने पिता का प्रिंटिंग प्रेस संभाल लिया। अभय का स्वास्थ ठीक नहीं रहता था। अतः सारी ज़िम्मेदारी शिव पर ही थी।
अभय की अस्वस्थता का कारण शारीरिक कम मानसिक अशांति अधिक था। बोर्डिंग से निशांत की अनुशासन हीनता की शिकायतें आती रहती थीं। वह गलत संगत में पड़ गया था। पढ़ाई से उसका मन पूरी तरह उचट गया था। वह कुछ ना कुछ ऐसा करता रहता था जिससे बोर्डिंग का अनुशासन भंग होता था।
निशांत और उसके कुछ दोस्तों का ग्रुप अक्सर रात में चोरी छिपे हॉस्टल से बाहर निकल जाते थे। वह शहर के एक पब में जाकर नशा करते थे। पब भी कानून को ताक में रख कर उन्हें शराब परोसता था।
एक दिन घर पर खबर आई कि निशांत को बोर्डिंग से निकाल दिया गया है। अभय और शिव जब वहाँ पहुँचे तो पता चला कि निशांत और उसके दोस्तों ने एक पब में नशे की हालत में खूब हंगामा किया था। जिसके कारण स्कूल ने उसे रेस्टिकेट कर दिया था।
निशांत अपने पिता और भाई के साथ घर आ गया। वह पूरी तरह से उद्दंड हो गया था। किसी भी नसीहत का उस पर कोई असर नहीं पड़ता था। यही कारण था कि अभय अब बीमार रहने लगे थे।

शिव ने शहर के एक स्कूल में निशांत का दाखिला बारहवीं कक्षा में करवा दिया। जैसे तैसे निशांत ने वह परीक्षा पास भी कर ली। पर उसके बाद पढ़ने को वह तैयार नहीं था। इसलिए शिव ने उससे कहा कि वह प्रेस के संचालन में उसका हाथ बटाए।
निशांत काम पर जाता तो था पर जब मौका मिलता वहाँ से निकल कर शहर में आवारागर्दी करता फिरता था। वह देर रात को नशे की हालत में घर आता था।
अभय की तबीयत ठीक नहीं रहती थी। अतः शिव नहीं चाहता था कि उन्हें निशांत की इन हरकतों का पता चले। वह अपने स्तर पर निशांत को समझाने का प्रयास करता था। लेकिन निशांत सुधरने को तैयार नहीं था।
शहर में एक बड़ी डकैती हुई थी। सब तरफ उसकी खूब चर्चा थी। पुलिस तफ्तीश में निशांत का नाम डकैतों में शामिल था। यह खबर अभय के लिए घातक साबित हुई। उनकी तबीयत बहुत बिगड़ गई। उन्हें बस एक ही चिंता सता रही थी। उन्होंने समाज में जो अपनी इज्ज़त बनाई थी वह अब धूमिल होने वाली थी।
शिव ने दौड़ धूप कर अपनी तथा अभय की जान पहचान का प्रयोग कर निशांत का नाम डकैती के केस से निकलवा दिया। अभय को कुछ हद तक तसल्ली तो मिली पर अब वो निशांत से कोई संबंध नहीं रखना चाहते थे। उन्होंने निशांत को डांट कर घर से निकाल दिया।
निशांत घर छोड़ कर चला गया। पर उसकी हरकतों में सुधार नहीं आया। वह एक बार फिर एक जुर्म में पकड़ा गया। इस सदमे को अभय सह नहीं पाए। कुछ ही दिनों में वह चल बसे।
कई सालों तक निशांत का कोई पता नहीं चला।
शिव ने प्रिंटिंग प्रेस का काम बंद कर दिया। उसे अपने ननिहाल से बहुत सी जायदाद मिली थी। उसने प्रिंटिंग प्रेस के व्यापार से भी बहुत सा पैसा बनाया था। निशांत की हरकतों के कारण अभय ने उसे अपनी जायदाद से बेदखल कर दिया था। अब सब कुछ शिव का था।
शिव ने प्रिंटिंग प्रेस बंद करके कार डीलरशिप लेने का विचार किया। इस तरह से शिव सेल्स एंड सर्विस सेंटर की शुरुआत हुई।
शिव सेल्स एंड सर्विस सेंटर की स्थापना से कुछ महीने पहले शिव का विवाह अमृता से हुआ था। अमृता के साथ शिव का वैवाहिक जीवन अच्छा बीत रहा था। उनकी कोई संतान नहीं थी। लेकिन दोनों को ही इस बात का कोई मलाल नहीं था। उन्होंने किसी बच्चे को गोद तो नहीं लिया था पर अपने शहर के एक अनाथालय के कई बच्चों की ज़िम्मेदारी उन्होंने उठा रखी थी।
अमृता ने शिव के मन के सूनेपन को अपने प्यार की रौशनी से भर दिया था। वह बहुत ही खुशमिजाज़ थी। उसके आने के बाद शिव के जीवन में खुशियों की बहार आ गई थी।
शिव को अमृता का साथ अधिक समय तक नहीं मिल सका। महज छह साल के सुखी वैवाहिक जीवन के बाद अमृता अचानक ही गंभीर बीमारी के कारण चल बसी। उसके जाने के बाद शिव ने खुद को अपने व्यापार में व्यस्त कर लिया। उसके लिए किसी और को अमृता का स्थान देना संभव नहीं था।
दस साल तक अकेले रहने के बाद शिव अब किसी अपने की कमी महसूस करने लगा था। उसने अपना बचपन अकेले ही बिताया था। जवानी के भी कई साल अकेला ही रहा था। लेकिन अमृता ने जीवन में प्रवेश किया तो उसे लगा कि जीवन में एक हमसफर की कितनी आवश्यक्ता होती है। उसके जाने के बाद वह फिर अकेला हो गया था।
पर वह अब अधेड़ उम्र का था। धीरे धीरे बुढ़ापे की ओर बढ़ रहा था। उसकी कोई संतान नहीं थी। वह अकेले बुढ़ापा काटने के विचार से डरने लगा था।
शिव एक आवश्यक काम से दिल्ली गया था। अपने एक दोस्त की ज़िद पर वह ओडिशी नृत्य का कार्यक्रम देखने गया। नृत्यांगना मेघना ही थी। उसका दोस्त मेघना को जानता था। उसके माध्यम से हुई कुछ ही मुलाकातों में शिव मेघना को चाहने लगा।
एक सादे समारोह में उन दोनों ने दिल्ली में ही विवाह कर लिया।
मेघना से शादी के बाद शिव और मेघना का वैवाहिक जीवन बिना किसी अड़चन के चल रहा था। लेकिन ऊपर से देखने में जो सामान्य लग रहा था भीतर ही भीतर उस रिश्ते में उथल पुथल थी।
सारा के मेघना बनने की कहानी में कुछ ही सच था बाकी बहुत कुछ झूठ।
सारा गोम्स ओडिशी नृत्य के कारण बहुत प्रसिद्ध हो चुकी थी। इस प्रसिद्धि के चलते उसके इर्द गिर्द कई पैसे वाले मर्द मंडराने लगे थे। सारा भी अपने प्रति मर्दों के आकर्षण का पूरा फायदा उठाती थी।
सारा के पिता जैकब गोम्स धार्मिक ईसाई थे। साथ ही उन्हें हिंदू धर्मग्रंथों व हिंदू दर्शन में भी बहुत दिलचस्पी थी। वह बैंक में क्लर्क थे। उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा पुस्तकों की खरीद या धार्मिक सभाओं को सुनने जाने में खर्च हो जाता था। घर में अधिकतर पैसों की किल्लत रहती थी।
सारा का जीवन अपनी इच्छाओं का गला दबाते ही बीता था। जब भी वह अपनी कोई इच्छा जताती तो उसकी माँ का जवाब होता कि हाथ तंग है। अभी तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं हो सकती है। उस माँ खुद भी अपनी इच्छाओं को दबाए दुनिया से चली गई।
सारा ने तय कर लिया था कि वह अपने जीवन की बागडोर अपने हाथ में लेगी ताकि अपनी इच्छाओं के लिए किसी के सामने हाथ ना फैलाना पड़े।
उसकी ज़िंदगी में सिर्फ एक ही चीज़ थी जो उसके मन के मुताबिक थी। अपनी मौसी ऐंजेला के कारण वह ओडिशी नृत्य सीख पा रही थी। ऐंजेला जो खुद इस कला में माहिर थी डांस क्लास चलाती थी। सारा उसी के डांस क्लास में जाती थी।

बाद में यही सीखी गई कला उसके सपने पूरे करने के काम आई।