MIKHAIL: A SUSPENSE - 8 - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

मिखाइल: एक रहस्य - 8 - योजना १

वर्तमान समय
उत्तर प्रदेश राजधानी,
लखनऊ
कालिदास मार्ग, रामदास पासवान का घर।
"बेटी के ब्याह की शुभकामनाएं" अजित भोंसले ने उत्तर प्रदेश के एम.एल.ए रामदास पासवान को गिफ्ट थमाते हुवे कहा।
"आइये, आइये अजित साहब। आप का ही इंतेज़ार था, आइये आपको किसीसे मिलवाना है" रामदास ने अजित के कंधे पर हाथ रखते हुवे कहा और अजित ने मुस्कुराहट से उसका जवाब दिया।
"भागवान, तुम ज़रा संभालना हम अभी हमारे अतिथि को किसीसे मिलवाकर आते है" रामदास ने अपनी बीवी को अपने जाने की खबर देते हुवे कहा जिस पर रामदास की पत्नी ने हामी भर दी।
"अजित साहब, इनसे मिलिये, यह है लखनऊ के जाने माने बिज़नेस मेन शुभम तिवारीजी।" रामदासने अजित का तिवारीजी से परिचय कराते हुवे कहा।
"आपसे मिलकर अच्छा लगा, तिवारीजी" अजित ने तिवारी से हाथ मिलाते हुए कहा।
"दरअसल, तिवारीजी को आपसे कुछ काम था" रामदास ने बात को आगे बढ़ाते हुवे कहा।
"जी, जी, बेशक कहिये, क्या खिदमत कर सकता हूँ मै आपकी" अजित ने कहा।
"अजित साहब अब आपको क्या बताएं, आप तो जानते है कि मुम्बई कितना बड़ा शहर है, हम बस वहां पर अपना कंस्ट्रक्शन का बिज़नेस करना चाहते है।" तिवारी ने अपनी बात रखते हुवे कहा।
"तो फिर सोचना क्या! आ जाइये मुम्बई, आप जहा पर कहोगे आपको जगह दिला देंगे" अजित ने अपनी वाइन का गिलास तिवारी की ओर बढ़ाते हुवे कहा।
"चियर्स, आपने तो मेरे मन की बात सुन ली अजित साहब! लगता है आपकी ओर हमारी दोस्ती गहरा रंग लायेगी।" तिवारी ने अजित के बढ़ाये हुवे गिलास के साथ अपना वाइन का गिलास टकराते हुवे कहा।
"चलिये, बातें वातें तो होती रहेंगी। खाना टेबल पर लग चुका है। फिर आराम से करते रहना बातें।" रामदास की पत्नी ने उनकी महफ़िल में खलेल पहुंचाते हुवे कहा।
"चलिये भाबीजी, हम आ रहे है!" तिवारी ने हामी भरते हुवे कहा।
"सच कह रहा हूँ तिवारी साहब! अगर ज़िन्दगी में खुश रहना चाहते हो तो बीवी की बात बिना को तर्क-वितर्क के मान लेनी चाहिए" अजित ने माहौल को मज़ाकिया बनाते हुवे कहा।
"बेशक! बेशक! अजित जी" खाने की ओर बढ़ते हुवे रामदास ने अजित की बात को समर्थन किया और सब हंसते हुवे डिनर की ओर चल पड़े।
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"जिस पल का मुझे इंतेज़ार था आखिरकार अब वो आ गया है" अपना खुद का हुलिया बदलते हुवे मिरर में देखते हुवे उसने खुद से कहा। उसने एक बड़ा सा चेक्स वाला रुमाल लिया और अपने हरे रंग के लबादे पर क्रॉस करते हुवे रखा। फिर उसने अपने माथे पर सफेद रंग की टोपी पहनी और फिर अपने गंतव्य की ओर निकल पड़ा।
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फरहाद और ज़फर के साथ हुवे हादसो का सदमा रहीम को इतना गहरा लगा था कि उस सदमे से बाहर निकलने के लिए उसे तीन साल लग चुके थे, और अब भी वो पूरी तरह ठीक नही हो पाया था। किसी हिन्दू व्यक्ति का नाम सुनकर वो बेहद ही डर जाता था, कभी कभी तो वो इतना डर जाता था और उसी डर के कारण वो उन निर्दोष आदमियो पर हमला भी कर देता था। निर्दोष आदमियो पर हमला करने के कितने केस रहीम पर लखनऊ पुलिस स्टेशन में दर्ज थे। पुलिस द्वारा उसकी गिरफ्तारी के बाद जब उसे कोर्ट ले जाया गया तब यह बात साबित हो गयी थी कि रहीम का दिमागी संतुलन ठीक नही है और वो मानसिक बीमारी से झूझ रहा है, इसी कारण लखनऊ कोर्ट ने उसको ३ साल रिहेब सेंटर में भेज दिया।
रिहेब सेंटर से ठीक होकर आने के पश्चात रहीम ने लखनऊ से और अपनी पुरानी ज़िन्दगी से रिश्ता तोड़ लिया और मुम्बई में अपनी नई गृहस्थी बसा ली। अन्य शहरों की तुलना में मुंबई में पैसो के मामले के अलावा जात-पात का भेदभाव काफी कम था, और रहीम को मुंबई ने अपना भी लिया था। अभी तक रहीम की ज़िंदगी सुकून से कट रही थी।
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देर रात हो चुकी थी, लगभग रात को १ बजने वाला था, रहीम अपनी खोली में अपने बिस्तर पर इधर उधर घूम रहा था, नींद उसकी आँखों से कोसो दूर थी। उसकी खोली में उसके अलावा एक रेडियो था जो बहुत ही धीमी आवाज़ पर पुरानी फिल्मों के गाने बजा रहा था। कुछ देर बाद रहीम ने अपने दरवाजे पर किसीको ठोकते हुवे सुना।
"इतनी रात कौन हो सकता है भला" रहीम ने मन ही मन सोचा कि तभी दूसरी बार दरवाज़े को ठोकने की आवाज़ सुनाई पड़ी। रहीम अपने बिस्तर से उठा और कौन बोलता हुवा दरवाज़े की ओर बढ़ने लगा।
हरे रंग का लबादा, आंखों में सुरमा लगाए हुवे और माथे पर टोपी पहने हुवे एक शख्श रहीम के सामने खड़ा था। "आप कौन?" रहीम ने उबासी लेते हुए पूछा।
"बंदे को अब्बास रिज़वी कहते है। रहीम से मिलना था, क्या उनसे मुलाकात हो सकती है?"
"जी, मैं ही हु रहीम, बताइये क्या काम है मुझसे? और इस वक़्त भला क्या काम हो सकता है?" रहीम ने थोड़ा शक करते हुवे पूछा।
"क्या हम अंदर बैठ कर बात कर सकते है?" दरवाज़े पर खड़े उस आदमी ने पूछा।
"आइये" रहीम ने उस आदमी को अपनी छोटी सी खोली में बुलाया।
"मुझे तुम्हारा ही काम था" अब्बास ने रहीम की चारपाई पर बैठते हुवे कहा।
"अच्छा, लेकिन मैं तुम्हे नही पहचानता" रहीम ने सिद्ध सवाल किया।
"कोई बात नही, मैं तुम्हे अच्छे से जानता हूं, और एक तुम ही हो जो मेरा काम कर सकते हो।" अब्बास ने अपना कैनन का कैमरा रहीम की चार पाई पर रखते हुवे कहा।
"देखिए, आप जो कोई भी है, महेरबानी करके कल मुझे मेरे कसाई खाने पर मिल लीजिये। माफ करना इस वक़्त में आपसे कोई बात नही कर सकता।" रहीम को अब्बास का बर्ताव अजीब लग रहा था इसीलिए उसने अब्बास को अपने घर से निकल जाने के लिए कहा।
"मैं समझ सकता हूं तुम क्या सोच रहे हो" अब्बास ने रहीम की बात को नज़रअंदाज़ करते हुवे कहा।
"आपने सुना नही अभी मैंने क्या कहा? प्लीज़ आप कल मिल लीजिये मुझसे, अभी आपको जाना होगा।" रहीम ने अब्बास के कंधे को पकड़ते हुवे और दूसरे हाथ से दरवाज़े की ओर इशारा करते हुवे बाहिर का रास्ता दिखाते हुवे कहा।
"मैं जानता हूं फरहाद और ज़फर के साथ क्या हुआ था, मैं जानता हूं तुम किस दौर से गुज़र रहे हो। मुझे खुद से अलग ना समझो, मेरे साथ भी उतना ही ग़लत हुवा है जितना कि तुम्हारे साथ, लेकिन मुझमे और तुम में एक फर्क है, मैं तुम्हारी तरह उस हादसे को कभी भूला नही पाया, मैं बदला लेने में यकीन रखता हूँ।" अब्बास समझ चुका था कि अभी उसका काम नही बनने वाला है और इसीलिए उसने अपना आखिरी तीर कमान से छोड़ दिया।
"तुम क्या जानते हो मेरे बारे में, कुछ नही। तुम नही जानते कि किस तरह उन लोगो ने ज़फर और फरहाद को मेरी नज़रो के सामने ही मार डाला, मैं उनसे बच कर निकल गया लेकिन अब दरिंदो ने मेरे परिवार को भी नही छोड़ा, मेरी अम्मी, अब्बू, बहन सबको मार डाला" रहीम अब्बास का गिरेबान पकड़ के रोते हुवे बोला। बरसो से जो आंसुओ का दरिया उसकी आँखों मे क़ैद था वो फिर से बहने लगा था, जिस वक्त से वो दूर भाग रहा था वही वक़्त फिर से उसके सामने आ खड़ा था।
"मेरा इस दुनिया मे मेरी बहन के अलावा और कोई नही था, मेरे लिए वही मेरी सब कुछ थी। एक दिन भैयाजी की नज़र मेरी बहन पर पड़ी और फिर उन कमीनो ने मेरी बहन को अगवा कर लिया। जब मुझे पता चला कि भैयाजी मेरी बहन को कहा ले गया है तब में वहां पहुंचा तो उन्होंने मेरी बहोत बुरी तरीके से पिटाई की और मेरी ही आंखों के सामने मेरी बाहन कि इज़्ज़त लूट ली और फिर मेरी नज़र के सामने उसे ज़िंदा जला दिया। मैं सिर्फ देखता रहा और कुछ नही कर सका। जब मैंने भैयाजी और उसके आदमियो के खिलाफ कोर्ट में केस किया तब वे कुछ दिनों में बाइज़्ज़त बरी हो गए क्योकि उनके पीछे रामदास पासवान का हाथ था।" अब्बास ने झूठे आंसू निकालते हुवे एक नकली कहानी सुनाते हुवे रहीम से कहा।
"मैं चाहता था कि मेरा और तुम्हारा दुश्मन एक ही है, और हम दोनों मिलकर उनसे अपने साथ हुवे अत्याचार का बदला ले।" अब्बास ने रहीम को अपने प्लान का हिस्सा बनने के लिए उकसाते हुवे कहा।
"यह लो पानी पी लो।" जब अब्बास रो रहा था तब रहीम ने उसको पानी का गिलास थमाते हुवे तसल्ली देते हुवे कहा।
"ठीक है, मुझे क्या करना होगा।" जब अब्बास ने पानी का गिलास लौटाया तब रहीम ने गिलास वापस लेते हुवे कहा।