Fir milenge kahaani - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

फिर मिलेंगे... कहानी - एक महामारी से लॉक डाउन तक - 6

शहर की स्थिति दिन ब दिन और गंभीर होती जा रही थी हर कोई इस कोरोना नाम के वायरस से खौफजदा था और इस लॉक डाउन ने सभी की मुश्किलें और बढ़ा दी थी लेकिन इस लाइलाज बीमारी से बचने का और कोई तरीका नहीं था |

पूरे भारत में लॉक डाउन शुरू हो गया लेकिन जरूरी सुविधाओं के लिए लोगों को परेशानी ना उठानी पड़े इसके लिए सरकार ने पूरी व्यवस्था कर दी |


एक दिन...

मोहित (बैंक में) - "अरे आप लोग प्लीज एक मीटर की दूरी पर खड़े हो और चुपचाप खड़े हो सबका काम होगा, सभी लोग मुंह पर मास्क या कपड़ा जरूर बांध ले और प्लीज जिसके पास मास्क ना हो वह सामने रखें मास्क में से एक मास्क चौकीदार से मांग सकता है" |

सरकार द्वारा भेजी गई कुछ धनराशि निकालने के लिए बैंकों में ऐसा लग रहा था जैसे सबसे ज्यादा भीड़ उमड़ पड़ी हो |

उनमें से कुछ तो ऐसे थे जिनके खातों में हजारों से लाखों रुपए थे लेकिन फिर भी 500 से 1000 रुपए निकालने के लिए वह अपनी जान जोखिम में डालकर बैंकों की लंबी लाइन में खड़े थे मोहित और बैंक का अन्य स्टाफ बार-बार लोगों से विनती कर रहा था कि सरकार द्वारा भेजे गए पैसे कभी भी वापस खाते से नहीं जाते, आप लोगों को जब जरूरत हो निकाल सकते हैं लेकिन इस समय जिसको ज्यादा जरूरी हो वही बैंक आए, लेकिन भला कौन उन लोगों की बात सुनता और भीड़ रोज ज्यों की त्यों रहती |

रात में मोहित घर आया और उसने आफताब को फोन किया |

मोहित-" कैसा है भाई"?

आफताब -" बस यार अल्लाह का फजल है "|

मोहित -" देख भाई घर से मत निकलना और बच्चों का ध्यान रखना" |

आफताब - "अरे यार तू हमारी चिंता मत कर हमें कुछ नहीं हो सकता, हम दिन भर में पांच बार नमाज इसीलिए अदा करते हैं कि अल्लाह हमें इन सब बलाओं से बचाएगा, हमें कोई डर नहीं इस कोरोना वायरस से "|

आफताब कुछ और बोलता इससे पहले जेबा बोल पड़ी," तुम्हारे सारे कपड़े पैक कर दिए, देख लो और यू फोन पर ही बात करते रहोगे क्या? अब्दुल भाई जाने कब से बैठे राह देख रहे हैं "|

जेबा की बात सुनकर मोहित चौक गया और आफताब से पूछने लगा," आफताब... कहीं जा रहा है तू, पागल हो गया है क्या"?

आफताब - "देख भाई मैं तो एक जलसे में जा रहा हूं बस और मैं तुझसे बाद में बात करूंगा "|

मोहित -" अरे भाई ऐसा मत कर वहां मत जा, इस समय कहीं भी जाना मौत को दावत देने जैसा है"|

आफताब ने फोन काट दिया और अब्दुल के साथ गाड़ी में बैठ कर जलसे में चला गया |

मोहित ने यह बात मंजेश को बताई | मंजेश ने तुरंत आफताब को फोन किया मंजेश के बोलते ही आफताब ने कहा," मुझे पता है मोहित ने तेरे कान भरे होंगे पर मेरा मजहब सबसे पहले है, अरे इतनी दूर दूर से लोग आए हैं, विदेशों तक से वहां और हम पास में रहकर भी ना जाए और ये सब कुछ अल्लाह के लिए रखा गया है, अल्लाह की नेमत के लिए रखा गया है, अगर मैं वहां नहीं गया तो कितनी मेरी बदनामी होगी तू नहीं जानता, तू भाई अपना काम देख..
खुदा हाफिज"|

आगे की कहानी अगले भाग में