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एसिड अटैक - 4

एसिड अटैक

(4)

वो बस सेलेना के मन की थाह लेना चाहता था। वो गम्भीर बात उसने यूं ही चलताऊ लहजे में पूछी’’ सेलेना, मान लो तुम्हे कल को पता चल जाये कि तुम्हारे चेहरे पर तेजाब किसने फेंका था। तब तुम उस शख्स का क्या करोंगी’’। सेलेना इस सवाल के लिए कतई तैयार न थी। उसके चेहरे पर कई भाव आये-गये, हालांकि शांत पूरी तरह से तैयार था सेलेना के चेहरे के भावों को पढ़कर उसके मन की थाह लेने को। अगर चेहरा सामान्य होता तो उसे कुछ अता-पता भी लगता। मगर उस वीभत्स चेहरे के भावों को शांत समझ नहीं पाया था, या शायद सेलेना बड़ी आसानी से अपने चेहरे की वीभत्सतता की आड़ में चेहरे के भावों को छुपा ले गयी थी। वैसे भी महज चेहरे को देखकर ही स्त्री के मनोभावों को समझाना शायद किसी के लिए भी आसान नहीं होता। अलबŸा सेलेना ने जवाब जरूर दिया था। हालांकि वो जवाब भी अपने आप में एक सवाल था और शांत के सवाल का जवाब भी था। सेलेना ने कहा ‘‘शांत, अगर तुम मेरी जगह पर होते और वो शख्स तुम्हें मिल जाता, जो इस सब का जिम्मेदार है, तो तुम क्या करते। दूसरी बात, मेरी हालत ऐसी नहीं है कि मैं किसी का कुछ कर सकूं। कदम-कदम पर मुझे दूसरों की मदद लेनी पड़ती है, मैं खुद लोगों की मोहताज हूँ। फिर अभी उस शख्स का पता तो लगा नहीं है। जब पता लग जायेगा, तब की तब देखेंगे। जो हुआ नहीं है, उसके बारे में बात करने से क्या फायदा। जो हुआ, सामने है। जो होगा, देखा जायेगा’’। सेलेना ने भी सभी बातों की घालमघाल करके चलताऊ ढंग से शांत के सवाल का जवाब दिया। शांत, सेलेना से जल्द ही किसी बड़ी खबर का इंजतार करने को कहकर, हल्दी से लौट आया। इस बार काफी कुछ नयी बातें जान लेने के बावजूद शांत को निर्णय लेने में कोई विशेष दिक्कत नहीं हुई। तीसरे ही दिन वो सेलेना के पास पहुँच गया और उसने वो बड़ी खबर, बगैर किसी भूमिका के सपाट स्वर में कह दी। उसने स्पष्ट स्वर में, मगर दृढ़ता से कहा ‘‘सेलेना, मैं अपने पहले के प्रपोजल पर आज भी कायम हूँ। प्रेम तो मैं तुमसे करता ही था विवाह भी हर हाल में तुम्ही से करूँगा’’। सेलेना इस हमले के लिए तैयार न थी। पहले तो वो आश्चर्यचकित हुई, फिर असहाय भाव से बोली ‘‘तुम बडे़ घर के हो, सुन्दर हो, स्मार्ट हो। तुम्हारे सामने पूरी जिन्दगी पड़ी है। मुझ जली-कटी और कानी से शादी करके क्यों अपनी जिन्दगी बर्बाद करने पर तुले हो। बड़ी जग हँसाई होगी तुम्हारी। मेरा क्या है, अब इससे बुरा मेरे साथ कुछ नहीं हो सकता’’। देवधर ने जब ये सुना, तो वे सिवाय रोने-बिलखने के अलावा कुछ न कर सके। हालांकि इन हालात में, इससे इतर और इससे बेहतर उनके लिए कुछ हो भी नहीं सकता था। शांत के दबाव और सेलेना की उहापोह के बीच ही कोर्ट मैरिज हो गयी। सेलेना के उहापोह का एक नुक्ता ये भी था कि एक बार शांत अपनी माँ से उसे मिलवा कर, दिखाकर, उनकी रजामंदी लेकर ही, शादी जैसे अहम फैसले को अमली जामा पहनाये। मगर शांत ने इन सारे मसलों और हालातों पर पहले ही गौर कर लिया था। और एक बार फिर शांत ने वही किया था, जो उसने करना चाहा था। डॉ0 शीला ने जब ये सब सुना तो मानों उनके पैरों के तले से जमीन खिसक गयी। उन्होंने सेलेना को देखा, तो वे अवाक रह गयीं। अपने उच्च शिक्षित बेटे की पसंद पर वे क्रुद्ध होते हुये बोलीं ‘‘शांत, मैंने आज तक तुम्हारी हर बदतमीजी बर्दाश्त की। तुम्हारी हर जायज-नाजायज माँग को बगैर सोचे समझे पूरा किया। तुम्हें पूरी-पूरी आजादी दी, तुम्हारे ढंग से जीने की, रहने की। तुमने मेरी इजाजत के बगैर शादी कर ली। मैं इस बात को भी नजर अंदाज कर देती। मगर एक मामूली स्टोर कीपर की जली, कटी और कानी लड़की मेरी बहू बन कर इस घर में हर्गिज नहीं रह सकती’’। डॉ0 शीला को महसूस हुआ कि वे कुछ ज्यादा ही तल्ख बोल गयी थी। इसलिए वे पुनः समझाते हुये बोली ‘‘देखो शांत, देश-विदेश में मेरे सम्पर्क के लोग तुमसे रिश्ता लगाना चाहते हैं। तुम्हे हम लोगों की हैसियत का अंदाजा ही नहीं है। वैसे भी तरस आता है मुझे तुम्हारी अक्ल पर। लड़की अगर सही सलामत होती, तो इस बाबत एक बार मैं सोच भी सकती थी। मैं फैसला ले चुकी हूँ, अब तुम्हें फैसला करना है। तुम्हें अपनी जिन्दगी अपने हिसाब से बिताने की आजादी है। इस लड़की के साथ तुम मेरे घर में नहीं रह सकते और अगर तुम्हें इसके साथ ही रहना है तो खुद कमाओ और अलग रहो। तब तुम्हे आटे दाल का भाव और जिन्दगी की कड़वी सच्चाइयों का पता चलेगा। आज की रात तुम और ये यहां रह सकते हो, मगर याद रखना मैं तुम्हे अपना फैसला सुना चुकी हूँ’’। डा0 शीला इतना कहकर शांत को कयासें लगाते छोड़कर चली गयी। शांत कब दबने वाला था, वैसे भी ऐसा कुछ होने का अंदेशा पहले से ही था। वो मानसिक रूप से इस हमले के लिए तैयार था। वास्तव में वो योद्धा खिलाड़ी इस बात को जीवन युद्ध का एक हिस्सा मानकर चल रहा था। उसने सेलेना को लेकर तत्काल हल्दी कूच कर दिया। दूसरी तरफ सेलेना पर एक किस्म का अपराध बोध हावी हो रहा था। वो व्यथित थी कि जन्म हुआ तो मां से जुदाई और विवाह हुआ तो सास से अलग होना पड़ा। उसे जीवन के दो महत्वपूर्ण पड़ावों पर ममता की छांव नहीं मिली थी। मगर इस अपराध बोध से उसे जल्द ही राहत मिली गयी थी। क्योंकि हफ्ता भी न बीता था और डॉ0 शीला को अपना वजूद आधा होता महसूस हो रहा था। वो सख्त, अनुशासन प्रिय, जिद्दी एवं विदुषी महिला, माँ की ममता से हार गई। डॉ0 शीला, शांत को उसी की शर्तों पर सेलेना के साथ हल्दी से लिवा लायी। शर्तों पर हुई सुलह में सब कुछ मनमाफिक नहीं हो सकता था। यों तो बाहर से सब कुछ सामान्य ही दिखता था। मगर डॉ0 शीला के मन की गहराइयों में ये बात पेवस्त थी कि सेलेना के कारण ही शांत के सामने उन्हें झुकना पड़ा था। डॉ0 साहिबा के मुताबिक शांत के विद्रोही बनने के बाबत सेलेना ही जिम्मेदार थी। बेशक ममता अपनी जगह हिलोरे मार कर हावी हो गयी थी, मगर डॉ0 साहिबा के अहं के भी अपने तर्क थे, जो उन्हें अक्सर याद आते थे। काफी जतन करने के बावजूद, सेलेना अपनी सास को शीशे में उतारने में पूरी तरह सफल न हो सकी। एक आदर्श बहू बनने की उसने सारी कोशिशे की, जिसमें सास के हाथ-पांव दबाना भी शामिल था। मगर डॉ0 शीला, सेलेना को अपने पास तक फटकने नहीं देती थीं। दरअसल उन्हें घिन आती थी, अपनी कानी, बदसूरत बहू से। वे अक्सर बड़बड़ाती रहतीं ‘‘नाम सेलेना यानी चादँ, चेहरा देखो तो बडे़-बूढे़ भी डर जायें बच्चों की क्या बिसात’’। हालांकि वे इतना तल्ख भी नहीं होती थीं कि, शांत बिफर पडे़ या फिर सेलेना आत्म-ग्लानि से कोई ऐसा-वैसा कदम न उठा ले जो उनके और शांत के बीच की दूरी का सबब बने। जिन्दगी के खट्टे-मीठे अनुभवों से गुजरती हुई, सेलेना समय बीतने के साथ गर्भवती हुई। दूसरी तरफ इस सबसे अंजान शांत ने, सेलेना को लेकर कुछ और ही मंसूबे पाल रखे थे। अपनी माँ के सामने शांत ने अपना प्रस्ताव रखा तो इस बार वे तमतमाकर नहीं, मगर सीधे सपाट स्वर में बोलीं ‘‘देखो शांत, दिन-रात, मर खप कर ये पैसे मैंने जुटाये हैं। मेरा बुढ़ापा मेरे सामने है और तुमसे मुझे अब कोई उम्मीद नहीं रह गयी है। न जाने कहां से ये आवारा, कुलच्छनी मेरे ही पास आ गयी। कई लड़कों के फेर में रही होगी ये, उन्हीं में से किसी खार खाये आशिक ने इसका ये हाल किया होगा। ‘प्रेम’ हुँह, दुनिया देखी है मैंने। बेटा, पहले से ही इसने तुझे फाँस रखा रहा होगा। बेटा, न जाने किसका पाप तुमने अपने माथे पर मढ़ लिया। मेरे पास तुम्हारे धरम-करम के लिए पैसे नहीं हैं। खुद कमाना, तब इसकी सर्जरी करा के इसे हूर परी बनाना। मैं तुम्हें और उसे पहले से ही, बैठे बिठाये खिला रही हूँ’’। इतना कहकर शांत हो गयीं डॉ0 शीला। उस बिदुषी महिला ने अपनी सारी भड़ास भी निकाल ली, और ये सब करने के दौरान अपने चेहरे के भावों को संयत भी रखा था। डॉ0 साहिबा ने चेहरे के भावों को बदलने नहीं दिया था, तॉकि शांत उन्हें क्रोधित देखकर अचानक उबल न पडें़। मगर शांत वाकई उबल पड़ा था। वो तैश में आते हुये बोला ‘‘माँ, मेरे पास पैसों के और भी विकल्प मौजूद हैं। ये बात तुम भी बेहतर जानती हो। लेकिन तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, मेरी पत्नी के बारे में ऐसा कहने की। जबकि खुद तुम भी...........’’। शांत अपना वाक्य भी पूरा नहीं कर पाया था कि, सेलेना उसे लगभग घसीटते हुये वहाँ से लेकर चली गयीं। नैनीताल में हुई बर्फ बारी से पंतनगर भी कांप रहा था। मगर बाहर से सन्नाटे में डूबे डॉ0 शीला के घर में, घरवालों के जेहन विचारों की गर्मी में आकंठ डूबे हुये थे। हालांकि कमरे में काफी अंधेरा था, मगर शांत का तमतमाया हुआ चेहरा सेलेना को भयाक्रान्त कर रहा था।

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