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अद्भुत प्रेम--(पृथम पृष्ठ)

कहीं दूर एक गांव में,
शाम का समय,सूरज डूबने जा रहा है,सूरज की हल्की रोशनी से आकाश का रंग गहरे नारंगी रंग का हो गया है, पंक्षियो के झुंड भी दिनभर टहलकर अपने अपन आशियाने की ओर लौट रहे हैं,एक नहर के किनारे ,गन्ने के खेत से खुसर-पुसर की आवाजें आ रही हैं।
थोड़ी देर और रूको ना सुलक्षणा, अभी तो आई थी,प्रकाश बोला,
अच्छा, थोड़ी देर, पता है,तीन बजे की घंटी बजी थी,दीवार घड़ी में तब की निकली हूं,घर से!जरा अपनी कलाई में बंधी, घड़ी तो देखो कितना बजा रही है,सुलक्षणा बोली।
प्रकाश ने देखा, घड़ी शाम के छै बजा रही थी,
अरे,तीन घंटे से हम यहां बैठे हैं,पता ही नहीं चला,तुम साथ होती हो तो समय का कुछ भी पता नहीं चलता, प्रकाश बोला।
पता है घर पर झूठ बोलकर आई थी,किरन के साथ,खेत जा रही हूं, मुझसे पहले किरन घर पहुंच गई तो बहुत ही आफत होगी,तुम्हारा क्या?
अरे,चली जाना, और रूको थोड़ी देर,
ऐसा कहकर प्रकाश ने सुलक्षणा का हाथ पकड़कर,गन्ने के खेत में फिर बैठा लिया।
सुलक्षणा उठी, और ये कहते हुए चली गई कि कल मिलेंगे।
शाम का समय, लोगों के घरों में चूल्हे सुलगने लगे हैं,धुंये की सोंधी सोंधी खुशबू हर तरफ़ से आ रही हैं गांव में शाम को जल्दी खाना बन जाता है, जानवरों के झुंड भी खेतों से चरकर, चरवाहों के साथ वापस लौटने लगे हैं, और जानवरों के गले में बंधी घंटियां मधुर ध्वनि उत्पन्न कर रही हैं,पनहारियो के झुंड भी सर पर घड़े रखकर, कुंए पर पानी भरने के लिए जा रहे हैं, बहुत ही लुभावना है सब।
उधर एक बहुत पुरानी सी जर्जर हवेली जिसमें दीनानाथ चौधरी अपने परिवार के साथ रहते हैं,बस खोखली शान-शौकत है,कर्ज ले-लेकर जीवन-यापन हो रहा है, इतनी जमीन थी पुरखों की,सब अय्याशी की भेंट चढ़ गई और सब, टुकड़े-टुकडे कर ,घर खर्च के लिए गिरवी रख दी गई,इतने भी पैसे नहीं हैं कि हवेली की मरम्मत भी हो जाए,बस चल रही है गाड़ी, भगवान भरोसे,सब "ढोल में पोल है"।
दीनानाथ जी के छै बच्चें है,चार बेटियां और दो बेटे,तीन बेटियों की शादी हो चुकी है, सबसे बड़ी बेटी करूणा के पैदा होने के दस साल तक दीना नाथ के यहां संतान नहीं हुई, करूणा जो कि फतेह सिंह चौधरी से ब्याही है लेकिन ब्याह को पन्द्रह साल हो चुके हैं, उनके अभी तक संतान नहीं हुई है, करूणा सुंदर थी, फतेह सिंह को किसी विवाह के अवसर पर मिली थी, उसे देखते ही उसकी सादगी और सुंदरता पर मोहित हो गए, और दीनानाथ चौधरी के पास विवाह का प्रस्ताव भेजा,दीनानाथ चौधरी को भी कोई परेशानी नहीं हुई, बिना दहेज के बेटी जो ब्याह रहीं थीं,बस हो गई शादी, और दो छोटी बहनों के ब्याह करूणा ने, फतेह सिंह से कहकर अच्छे घरों में करवा दिए।
अब दीनानाथ चौधरी के दो छोटे बेटे और एक बेटी बची है जिसका नाम सुलक्षणा है, वो गांव के बनिए के बेटे प्रकाश से प्रेम करती है, उससे छुप-छुपकर रोज खेतों में मिलने जाती है, वो भी सुलक्षणा से प्रेम करता है।
तभी सुलक्षणा ने घर में कदम रखा, उसे देखते ही उसकी मां सियादुलारी चिल्ला पड़ी, कहां थी अब तक, खाना बनाने का समय हो गया है और तेरा कुछ पता नहीं कहां घूमती रहती है दिनभर,चल जा पहले कुंए से पानी भर ला फिर खाना बना लें।
हां.. हां.. जाती हूं....जाती हूं... चिल्लाना बन्द करो,सारा काम मैं ही तो करती हूं, कौन सा यहां नौकर-चाकर लगे हैं, खोखली हवेली के खोखले लोग,बस दिखावा ही दिखावा है,सुलक्षणा पैर पटकते हुए वहां से चली गई।
सुलक्षणा और प्रकाश ऐसे ही निरंतर मिलना जारी रहा, फिर एक दिन प्रकाश ने सुलक्षणा से कहा कि मुझे बाबूजी व्यापार के सिलसिले में शहर भेज रहे हैं, मैं कहां रहूंगा अभी मेरे पास कोई पता ठिकाना भी नहीं है।
सुलक्षणा ने तड़पकर पूछा,कितने दिन के लिए?
बस,एक महीने की बात है पगली, व्यापार जैसे ही वहां व्यवस्थित हो जाएगा, थोड़ा मुनाफा होने लगेगा तो बाबूजी से तुम्हारी और मेरी शादी की बात करने की हिम्मत आ जाएगी, निठल्ले बेटे की कौन बाप शादी करना चाहेगा और तुम्हारे मां बाप भी तो निठल्ला दामाद नहीं चाहेंगे।
ये सुनकर सुलक्षणा चहक उठी और प्रकाश के गले लग गई, फिर दो तीन दिन बाद प्रकाश चला गया।
डेढ़ महीने हो गए,ना तो प्रकाश आया और ना उसकी खबर, फिर एक दिन,किरन घर आई सुलक्षणा की सबसे अच्छी सहेली, उसने बताया कि उसका बड़ा भाई शहर गया था,उसे प्रकाश मिला था, उसने वहां पिता के कहने पर किसी व्यापारी की लड़की से शादी कर ली है और वहीं उसके घर में घर -जमाई बनकर रहने लगा है और तू है कि यहां उसके प्यार में पागल हुई जा रहीं हैं, धोखा दिया है उसने तुझे, अभी समय है सम्भल जा, उसने तेरा फायदा उठाया है, इतना कहकर वो चली गई।
तभी करूणा ने संदेशा भेजा कि बड़ी ननद की बेटी का ब्याह है,सब लोग आएंगे तो अच्छा रहेगा,काम में कुछ मदद हो जाएगी, लेकिन दीनानाथ चौधरी अपनी पत्नी सियादुलारी से बोले,अगर वहां जायेंगे तो कुछ ना कुछ कन्या को देना होगा, और सबके लिए नये कपड़े भी चाहिए, और फिर बड़ी बेटी का घर है खाली हाथ कैसे जायेंगे,ना हमारे पास रूपए ना पैसे,तुम ऐसा करो,सुलक्षणा बस को कुछ नये कपड़े दिलवाकर भिजवा दो, कहलवा देना कि मेरी तबियत खराब है, मेरी देखभाल के लिए तुम रूक रही हो तो हम नहीं आ सकते,सिया दुलारी ने ऐसा ही किया दोनों बहन-भाई चले गए शादी में।
पूरी शादी भर सुलक्षणा परेशान रही लेकिन करूणा के पूछने पर कुछ नहीं बताया, शादी आराम से निपट गई, दुल्हन विदा हो गई,सारे मेहमान भी एक दो दिन में चले गए, करुणा ने भाई को जाने दिया लेकिन सुलक्षणा को रोक लिया, हवेली में अब चार लोग ही बचे थे ,फतेह सिंह, करूणा,सुलक्षणा और करूणा की बड़ी ननद जानकी जीजी।
जानकी जीजी की भी बहुत दुःख भरी कहानी,चौदह साल की उम्र में शादी हो गई,सोलह की होते-होते एक बेटी की मां बन गई,पति की पारिवारिक दुश्मनी में,पति को किसी ने गोली मारी दी, और वो बच्ची को बचाते मायके पहुंच गई,तब से वहीं है, बेटी की भी जिम्मेदारी निपट गई,वो भी पराये घर की हो गई,फतेह सिंह और करूणा जीजी की बहुत इज्जत और सम्मान करते, मां की तरह मानते हैं।
तभी एक दिन सुलक्षणा को उल्टियां होने लगी, करूणा ने पूछा तो उसने कहा कि वो मां बनने वाली हैं और उस लड़के ने किसी और से शादी कर ली है।
जीजी और करूणा ने धीरे से दाईं मां को बुलाया और दाईं ने सुलक्षणा की नब्ज देखी और बता दिया अभी दो महीने पूरे नहीं हुए हैं कोई दवा देनी हो तो बताओ, लेकिन करूणा ने बहुत सारे पैसे देकर दाईं का मुंह बंद कर दिया, बोली सुलक्षणा इस बच्चे को जन्म देगी, जीजी बोली, तू पागल हो गई है करूणा! एक बिन ब्याही लड़की कैसे बच्चे को जन्म दे सकती है, समाज क्या कहेगा।
करूणा बोली, ठाकुर साहब करेंगे सुलक्षणा से शादी,अब इस हवेली का वारिस आएगा, मैं मनाऊंगी, ठाकुर साहब को,इस बच्चे के लिए मैं कुछ भी करूंगी।
नहीं ये नहीं हो सकता, किसी और का पाप तू मेरे भाई के सिर पर कैसे लाद सकती है, जीजी बोली।
जीजी मैंने देखा है , उन्हें सन्तान के लिए पल-पल मरते, उनके आंसू बहते नहीं है, अंदर ही अंदर सूख जाते हैं, जिससे उनके दिल में घाव हो गए हैं, पंद्रह साल से वीरान पड़ी उनकी दुनिया में अब बहार आएगी।

क्रमशः__

सरोज वर्मा___🦃