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जो घर फूंके अपना - 32 - एक छोटी सी मुलाक़ात की लम्बी दास्तान

जो घर फूंके अपना

32

एक छोटी सी मुलाक़ात की लम्बी दास्तान

तो फिर उस दिन कपूर की मांग पर हम सब फैक्टरी से दोपहर तक वापस अपने होटल आ गए. हम तो खा पीकर सोना चाहते थे पर कपूर मुझे और गुप्ता को बार बार हमारे कमरे में आकर डिस्टर्ब करता रहा. पहले उसने दुबारा दाढी बनायी (ये महज़ मेरा ख्याल है, हो सकता है तिबारा बनाई हो) फिर देर तक अपने जूते में पालिश करता हुआ उनमे जवान आँखों की सी चमक पैदा करने की कोशिश में लगा रहा. फिर उसने तीन चार शर्ट्स और पैंटें निकालीं और बारी बारी से उन्हें पहन कर फैशन परेड करते हुए मेरी और गुप्ता की राय माँगता रहा. मैंने कहा “सूट क्यों नहीं पहन लेता?” तो बोला “वह बहुत फॉर्मल लगेगा. अब दिन ही कितने बचे हैं. मैं तो नादया से शुरू से ही इनफॉर्मल हो जाना चाहता हूँ. ” बमुश्किल तमाम उसकी तय्यारियाँ ख़तम हुई और छः बजे शाम से ही वह सज धज कर बैठ गया. अपने कमरे में नहीं बल्कि हमारे कमरे में क्यूंकि मेहमानों के आ जाने से पहले वह मुझसे रूसी भाषा का वह “रास्विताली याव्ली ना इक्रूश्की --------“ वाला गीत सीखना चाहता था. गाना शुरू करने के पहले उसने फायर प्लेस के ऊपर रखी मेरी स्काच की बोतल उठायी, तीन ग्लासों में मेरे, गुप्ता और स्वयं अपने लिए थोड़ी-थोड़ी स्काच ढाली, कमरे में रखे मिनीफ्रिज से आइसक्यूब निकाल कर ग्लासों में डाले और बोला ‘मेरा मूड तो पहले से ही रोमांटिक है, इसकी ज़रुरत सिर्फ इसलिए है कि यदि गुप्ता भी मेरे गाने में अपने सुर लगाए तो मैं बर्दाश्त कर सकूं. ” गुप्ता वाकई बहुत बेसुरा था फिर भी गाने का शौक़ीन था और बहुत स्पोर्टिंग भी. वह बोला “ तू क्या, मैं खुद अपना गाना दारू पीकर ही सुन पाता हूँ. एक दिन थोड़ी देर तक “रोसिया रोदिना मया ---- “वाला गाना गुनगुनाया था तो अपने ही कानो में दर्द हो गया,”

कपूर खुश हो गया. बोला “ओह,बैंचो,अच्छी याद दिलाई. ये वाला गाना भी तो इन रूसियों के बीच बहुत लोकप्रिय है. वर्मा, तुझे तो आता होगा, ये भी सिखा दे”. फिर दोनों गानों की बाकायदा प्रैक्टिस हुई. अन्य कोई रूसी गाने किसी को नहीं आते थे तो कपूर ने ‘ ईचक दाना, बीचक दाना, दाने ऊपर दाना’ वाला हिन्दी गीत सोलो गाना शुरू कर दिया. जैसे ही वह ‘छज्जे ऊपर लडकी नाचे,लड़का है दीवाना’ वाली लाइन तक पहुंचा कि इंटरकोम की घंटी बज पड़ी. रिसेप्शन ने सूचित किया कि मिस्टर वोरोशिलोव आ गए हैं. कपूर उछलकर खडा हो गया, जाने से पहले बाथरूम में घुसकर अपनी टाई की ठीकठाक लगी गाँठ को दुबारा पुचकारा, शेल्फ से मेरे आफ्टरशेव लोशन की बोतल उठाकर आधी अपने ऊपर उलट ली और चलता बना.

उसके जाने के बाद मुकर्जी और बिश्वास साहेब आ गए और हम चारों रेस्तौरेंट में डिनर के लिए गए. वहाँ पियानो पर एक वादक कोई रूसी धुन बजा रहा था. उसके साथ काले ईवनिंग गाउन में सजी-धजी एक गायिका कोई अर्ध-शास्त्रीय सा गीत गा रही थी. गाते हुए कभी कभी वह मुंह ऊपर उठाकर बहुत लम्बी सी तान खींचती थी जिससे हाल गूंजने लगता था. मुख़र्जी और बिस्वास साहेब दोनों बहुत तन्मय होकर संगीत सुनते रहे और मैं और गुप्ता चारों तरफ बिखरा हुआ रूसी सौन्दर्य आँखों से पीते रहे. गाने के समाप्त होने पर मुकर्जी ने कहा “हमारे यहाँ (बंगाल में )जब शादी की रसम संपन्न होती है तब ऊ-लू-लू-लू की जो ध्वनि सब लोग मुंह से निकालते हैं इस गाने की तरह होती है. मैंने और गुप्ता ने कपूर के अभियान की तय्यारी में उसके साथ पहले ही दो-दो पेग स्कोच के लगा रखे थे, अब बिस्वास साहेब और मुकर्जी का साथ देने के लिए एक-एक छोटा पेग और ले लिया तो मुझे जल्दी ही नींद आने लगी और गुप्ता को अपनी मंगेतर की याद आने लगी. इन दोनों ही स्थितियों में आदमी का दिमाग सही ढंग से काम करना बंद कर देता है. ऊपर से ये दोनों बंगाली ऊ-लू-लू-लू ध्वनि की याद करके भावुक हो रहे थे. अत: हमने बिना और समय नष्ट किये खाने का आर्डर दे दिया जिसमे सस्ती सुन्दर और टिकाऊ चीज़ों पर जोर दिया गया था. इसके बाद हम अपने कमरों में आकर सो गए. सोते समय ध्यान आता रहा कि कैसे हमारी शाम इतनी सादी और बेकार सी बीती थी. जश्न-ए-रोमांस तो कपूर मना रहा होगा.

मैं शायद कोई बहुत मीठा सपना देख रहा था तभी दरवाज़े के जोर जोर से भडभडाये जाने से नींद टूट गयी. कारण ठीक से कुछ समझ नहीं आया. लेकिन बिस्तर छोड़ सकूं इतना होश आने तक दरवाज़े पर बजता कालबेल का संगीत बंद नहीं हुआ. लाईट ओन करके आँखें मिचमिचाता हुआ दरवाज़ा खोला तो देखा विक्टर दोनों हाथों से कपूर को संभालने की कोशिश में लगा हुआ था और कपूर आँखें आधी बंद किये हुए कोरिडोर की कारपेट पर पसर जाने की पूरी कोशिश कर रहा था. साथ ही शाम को अधूरा छोड़े गाने ‘छज्जे ऊपर लडकी नाचे, लड़का है दीवाना’ को बुदबुदाते हुए पूरा करने की कोशिश कर रहा था. विक्टर ने अपराधी की तरह बिना नज़रें मिलाये कहा “संभालिये इनको, मुझे इस समय आपके होटल में आने की अनुमति नहीं है. ” और रिसेप्शन से ली हुई कपूर के कमरे की चाभी मुझे पकड़ाकर, ’स्पोकोयनॉय नोच’ (शुभरात्रि) बोलकर चलता बना. कपूर का कमरा साथ वाला ही था पर मैं आशंकित था कि उसे अकेले उसके कमरे में कैसे छोडूं अतः कपूर को अपने बिस्तर पर लिटाकर उसके जूते उतारे. तभी उसने मुंह को गोल सा बनाते हुए ओ-ओ किया तो मैं तुरंत उसे टॉयलेट लेकर भागा. वहाँ उसने डब्ल्यू सी में झांकते हुए शाम के महंगे रेस्तौरेंट के महंगे डिनर को बड़ी सी उल्टी में परिवर्तित करके अर्पित किया जिसमे ठोस पदार्थ बहुत कम और तरल याने व्हिस्की, वोदका और शैम्पेन का मिश्रण अधिक था. फिर मैंने उसे कम्बलों में लपेटकर दुबारा अपने बिस्तर पर लिटाया और उसके कमरे से कम्बल वगैरह लाकर अपने कमरे के फर्श पर बिछाकर स्वयं उसपर सो गया. बिस्तरों की अदला बदली का हम दोनों के व्यक्तित्व पर प्रभाव रहा होगा कि कपूर सोते हुए बीच बीच में नाद्या का नाम ले-लेकर जाने क्या क्या बुदबुदाता रहा और मैं कारपेट के बावजूद कड़े और बहुत ठंढे लगने वाले फर्श पर करवटें बदलते हुए कपूर का तकियाकलाम ‘ओ बैंचो !’ दुहराता रहा.

अगले रोज़ सुबह नौ बजे विक्टर का फोन आया कि कपूर और मैं चाहूं तो फैक्टरी न आऊँ, वो संभाल लेगा. बिस्वास साहेब मुस्कराकर बोले “छोडो भाई, आज हम चारों ही छुट्टी कर लेते हैं. बैठकर कपूर की कहानी सुनते हैं,मज़ा आएगा” फिर ब्रेकफास्ट के बाद कपूर को हम चारो ने घेर लिया. उसने एस्पिरिन की दो गोलियां गटकीं, फिर बिस्तर में बैठ कर ब्लैक कोफी की चुस्कियां लेते हुए हमें ये कहानी सुनायी.

विक्टर जिस टैक्सी में बैठकर हमारे होटल के पोर्टिको में कपूर की प्रतीक्षा कर रहा था उसमें दो महिलायें भी बैठी हुई थीं. कपूर को उन महिलाओं का परिचय देते हुए विक्टर ने पहले अपनी पत्नी मीशा से मिलवाया जो किसी स्कूल में शारीरिक व्यायाम की टीचर थी. उसे देखते ही उसके व्यवसाय का परिचय मिल जाता था. दूसरी एक तरुणी थी जिसके गुलाब जैसे कपोलों पर एक लजीली सी मुस्कान थी. उसकी शारीरिक बनावट में वह सब कुछ था जिसका वर्णन महाकवि कालिदास कपूर से कहीं बेहतर कर सकते थे. कपूर के श्रोताओं की दिलचस्पी पात्रों के बजाय वारदात का विवरण सुनने में अधिक थी. कपूर तो सिर्फ मुंह में भर आया पानी गटकते हुए कह पाया “ अरे,वो क्या चीज़ थी यार !!!. ” और हम सब ‘थोड़ा कहा जियादा समझना’ वाले अंदाज़ में बेसब्री से सर हिलाने लगे. मुझे लगता है आप भी इस तरीके से ही बेहतर समझेंगे. तो ये थी नादया! परिचय कराने पर दोनों महिलाओं ने कार में बैठे बैठे ही कपूर से हाथ मिलाये. कपूर प्रतीक्षा कर रहा था कि विक्टर सामने ड्राइवर के बगल वाली सीट से उठकर पीछे आ जाये ताकि वह आगे बैठ सके पर भगवान की तरह विक्टर का भी वसूल निकला कि जब देना है तो छप्पर फाड कर दो. वह अपनी सीट पर जमा रहा और कपूर को पीछे वाली सीट पर बैठने को कहा. नाद्या बाहर निकली और कपूर को मीशा के बगलगीर करके स्वयं उसके दूसरी बगल बैठ गयी. मीशा के डीलडौल के कारण जगह की जो कमी पड़ रही थी उसका मुआवजा नादया ने कपूर से चिपक कर बैठ कर दिया, और टैक्सी चल पडी. कपूर की प्रार्थना भगवान पूरी तरह सुनता तो टैक्सी चलती ही जाती,चलती ही जाती और फुल टैंक पेट्रोल ख़तम होने के बाद रुकती. पर नास्तिक मार्क्सवादी रूस में भगवान इतनी देर रूकने को तय्यार नही थे. सो टैक्सी रुकी जाकर मिन्स्क के सबसे शानदार होटल के पोर्टिको में. मीशा को उतरने में समय लगा. पर नाद्या बहुत अदा के साथ उतरी. सहारा देने के लिए कपूर की तरफ उसने अपनी लम्बी लम्बी कलाकारों जैसी उँगलियों वाली गोरी कलाई बढ़ाई. कपूर ने नाद्या के शरीर की सुगंध से अपने मन मस्तिष्क पर छाई बेखुदी से लड़ते हुए चम्पा की डाली जैसी उन नाज़ुक बाहों को सहारा दिया तो वह टैक्सी से बाहर निकली. कपूर टैक्सी का किराया देने को अपनी पर्स निकालने लगा तो विक्टर ने उसे रोक दिया और कहा “ कम से कम टैक्सी का तो पेमेंट मुझे करने दो” फिर विक्टर ने मीशा की कमर में हाथ डाल दिया और बोला “चलो चलें”. कपूर नाद्या की कमर को ललचाई नज़र से देखते हुए ठिठका पर नाद्या की सिर्फ मुस्कान शर्मीली थी, बाकी के तौर तरीके नहीं ! उसने पहल की. कपूर के दाहिने हाथ में अपना बायाँ हाथ दिया और चारों लोग होटल की आठवीं मंजिल पर स्थित शानदार रेस्तौरेंट में पहुँचने के लिए लिफ्ट में घुसे. लिफ्ट इन चारों के लिए बहुत बड़ी नहीं थी पर उतनी छोटी भी नहीं थी जितना उसे समझ कर नाद्या कपूर से लगभग चिपकी रही. उन कुछ क्षणों में ही नाद्या के शरीर से आते सुगंध के झोकों से कपूर के दिलो दिमाग काबू से बाहर होने लगे.

क्रमशः ------------