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तलाश... एक औरत के अस्तित्व की - 1

आज फिर, खिड़की पर बैठी, रिमझिम बारिश में खेलते बच्चों को निहारती, सुहानी कुछ सोचने लग पड़ी थी । वक़्त गुज़रते देर कहाँ लगती है ?? उसकी शादी को आज पूरे 27 साल हो चुके थे,पर लगता है जैसे कल ही कि बात हो ।
समय... जैसे सब कुछ सिर्फ इस एक शब्द में सिमट हुआ है। हम ज़िन्दगी जीते चले जाते हैं । रोज़ नई चुनौतियों को झेलते, हर दिन एक नई कशमकश से उलझते, हंसते रोते, रुकते ठहरते , गिरते संभलते पर वक़्त के साथ बस बढ़ते हुए ... ज़िन्दगी के दिये नियत कार्यों को करते, उम्मीदों के सहारे बस गुज़र करते जाते हैं।
कुछ यही तो किया था सुहानी ने भी इन सत्ताईस सालों मैं । जैसे खुद को तो वो भूल ही गयी थी, दूसरों के लिए सब करते करते, बस दूसरों के लिए जीते जीते । वो भूल ही तो गयी थी कि उसकी खुद भी एक ज़िन्दगी थी जो उसने जी ही नहीं । सास ससुर की सेवा , उनकी एक आवाज़ पर दौड़ जाने वाली सुहानी ने कब सोच था कि उसे खुद के लिए जीने का वक़्त ही नही मिलेगा..?? कब उसने सोचा था कि अपने बच्चों के भविष्य की फिक्र करते करते वो अपनी फिक्र करना ही भूल जाएगी ..?? कहाँ पता था उसको, की अपनी पति की ख्वाहिशों को पूरा करते करते वो ये भी भूल जाएगी कि उसकी खुद की भी कुछ ख्वाहिशें हैं..!! आज जब सोचती है तो लगता है जैसे, सब कुछ कर दिया, बस खुद के लिए जीना ही बाकी रह गया ।
इन सत्ताईस सालों में कब उसने सुकून से बैठ कर खुद को निहारा था आईने में ?? कब फुरसत में बैठ कर खुद को बोला था, "सुहानी, सुंदर तो हो तुम..!! उसको तो ये भी नहीं याद कि कब आखिरी बार उसने अपने लिए कुछ खरीदा था..।। रेस्तरां के खाने का स्वाद तो वो भूल ही गयी थी। सिनेमा की तो शक्ल तक उसे याद नही राह गयी थी । याद था तो बस घर के हालात, ओर मजबूरियाँ । सबके बीच उसका भी एक अस्तित्व है .. उसे कब याद रहा..?? याद रहा तो बस सास ससुर की फरमाइशें, बच्चों की ख्वाहिशें, पति की बेरुखी और सबको खुश रखने की कोशिश । यही तो वो करती आई है.. खुद को भूल कर सबको खुश रखने की कोशिश ही तो करती रही है वो आज तक।
भगवान ने लड़कियों की किस्मत भी न जाने किस कलम से लिखी है । जिस घर में पली बढ़ीं होतीं हैं, अचानक एक दिन सब छोड़ कर एक नए घर को चलीं जातीं हैं । एक नया संसार, नए लोग, नया माहौल, जिसको वो जानतीं भी नहीं , एक ही पल में सबको अपना लेती हैं । एक ही दिन में एक लड़की , औरत बन जाती है । हर ज़िम्मेदारी को बखूबी निभा सकने वाली... सबको साथ लेकर चलने वाली, जोड़ कर रखने वाली, मकान को घर बनाने वाली... "गृहलक्ष्मी" कहलाने वाली.. औरत । सुहानी ने भी कब सोच था कि एक पल में ही वो इतनी समझदार हो जाएगी । छोटी छोटी बातों पर ज़िद करने वाली खुद को भूल जाएगी । उसको तो अंदाज़ा भी नहीं था कि घर की सबसे लाडली बिटिया एक ही पल में इतनी बड़ी ओर समझदार हो जाएगी ।