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आत्मविश्वास भाग - 1

आत्मविश्वास कितना सरल शब्द है... ये सरल जितना सुनने मे लगता है उतना कही ज़्यादा उसे अपने पास रखना ईतना ही कठिन होता है.. कभी कभी ऐसा बन जाता है की हम कई बार दुसरो को ये बात सिखाते है और कहते है की आप धीरज से काम लो और अपने आप पर विश्वास रखो सब ठीक होगा.. ये हम बोलते है पर यहाँ मेरे अनुभव से आपको ये बात कह शक्त्ति हूँ की जो हम खुद पर विश्वास रखेंगे तो जो हम चाहते वो अवश्य पूर्ण होगा !

ऐसी ही ऐक कहानी है "ऐक बालक का आत्मविश्वास "

ऐक छोटा से परिवार मैं ऐक बालक का जन्म हुआ..उसके गाँव का नाम राणावाव था ! वहा उनका घर था. बहूत छोटे परिवार से था.. उनके माता - पिता भी थोड़ा कुछ बच्चे के लिए काफ़ी सारी मेहनत करते थे.. क्यूंकि उनको भावी की चिंता थी.. इसलिए वो पहले से ही सब कुछ इकठे करने लगे ताकि उनके बच्चे को आगे जा कर कोई विपत्ति ना हो.. पर हाँ था छोटा सा परिवार लेकिन उनमे बहूत ख़ुश थे.. काफ़ी कुछ चीज़े भी नहीं थी घरमे पर पूरा दिन निकल जाता था.. ऐसी परिस्थिति थी...उस बालक के माता पिता के नाम शांति बहन और पिता का नाम राम भाई था.. और उनके बेटे का नाम आरव था... वो बचपन मे बहूत शरारती था.. और ज़िद्दी भी था... पर उनके माता पिता ने कभी भी उनको ये अहसास नहीं दिलाया की हम कुछ नहीं कर शकते.... हमेंशा की तरह उसे प्यार ही प्यार मिला था...

5 साल बाद.....

आरव को पढ़ाने का सवाल आया और उसे बाल मंदिर मै भेजा गया... वहा उसे बहूत मजा आता था... फिर उनकी पाठशाला मैं पढ़ाई करने का तय किया... फिर आरव के घर से थोड़ी नज़दीक ही उनकी पाठशाला थी वही उन्हों ने पढ़ाई की... और उनके माता पिता को भी खुशी मिली की आरव पढ़ने लगा है.. और काफ़ी कुछ उनके माँ पापा ने आरव के बारे मैं सोचा था.... आरव पढ़ने भी बहुत अच्छा था... और पूरी लगन से और मन लगाकर पढ़ाई करता था.. सोचो ज़रा इतनी छोटी उम्र मै ही उनको ईतनी रूचि थी और पढ़ाई के साथ लगाव भी था..... फिर ऐसे ही वक़्त बीत गया...
5 साल बाद......

फिर आरव 5 वी कक्षा मैं आया और ध्यान से एक दिन पढ़ाई कर रहा था तब उनकी शाला मैं उनके दोस्त भी काफ़ी सारे थे और आरव के साथ ही होता रहता था... फिर ऐक दिन उनके ही वर्ग मैं ऐक लड़के ने आरव से पूछा तुम कही दूसरे क्लास मैं जाते हो... मतलब की किसी और जगह कही पर कुछ सिखने के लिए जाते हो या नहीं? आरव ने कहा नहीं... मैं शाला मैं पढ़ाई कर के घर पे ही होता हूँ.... पर ये सब तुम क्यों पूछ रहे हो आरव ने उस लड़के को कहा....
उस लड़के ने फ़ौरन उतर दिया की नहीं तुम ईतना काफी देर तक पढ़ाई ही करते हो... और बहुत समझ भी है तुम मे... इसलिए बस मन किया तब मैंने ऐसे ही पूछ लिया..... फिर आरव ने कहा ठीक है... कोई बात नहीं.... तुम भी अच्छा पढ़ाई करो... तब आगे आरव का हिंदी विषय मै पढ़ाई शुरू होने वाली थी और वो थोड़े घंटे के बाद उनका पढ़ाई फिर शरू हुआ और उसमे से ऐक कविता आयी ......

" नन्हा मुन्ना रही हूँ देश का सिपाही हूँ.... बोलो मेरे संग जय हिन्द..... जय हिन्द....... "

वो कविता उनके गुरूजी ने समझाइ और इनके साथ पुरे वर्ग मैं वो कविता को ऊँची आवाज़ मे गा रहा था. ... उस वक़्त आरव को बहुत मजा आया और उसे भी और रूचि लगी की बहुत बढ़िया है... और उसी वक़्त उन्हों ने ये मन मैं ही कह दिया की कुछ तो मैं भी बड़ा करूंगा ऐक दिन...

बड़ी समझने वाली बात ये है की उसने ऐसी छोटी उम्र मैं ही आगे का निर्णय किया था वो भी उनका बड़ा विश्वास ही था.. फिर उन्हों ने घर जा कर उनके माता पिता को भी बताया और ये कविता गा के सुनाई... फिर उनके माता पिता भी ख़ुश हो गए और आरव को शाबाशी दे कर कह दिया की बेटा..... ! तुम ऐक दिन ऐसा ही करोगे उसका हमें पूरा विश्वास है.... तुम सब कुछ कर शकते हो.... ऐसा आरव की माँ ने भी कहाँ..... फिर तो आरव भी खुश हुआ और उनको भी लगा... चलो अच्छा है मै कर शकता हूँ.... और थोड़े दिन बीत गए फिर आरव की परीक्षा आई और वो भी वार्षिक थी.... और वो परीक्षा मैं भी अव्वल आये.... और ये समचार सुनकर उनके माता पिता तो खुशी खुश हो गए.. आरव के पिता भी धन्य है जो परिस्थिति को नहीं देखते पर फिर भी उनके बेटे को पढ़ाने का मकसद ही कामयाब करना था.... और वो चाहते थे की मे मेरे बेटे को हर तरह से कामयाब और उनकी मेहनत देखना चाहता हूँ ताकि वो कभी भी कोई बात के लिए उन्हें कोई दिक्क़त ना हो... मैं जिस परिस्थिति की दौर से गुजर रहा हूँ... उसे ये सब ना दिखना पड़े ऐसा मैं चाहता हूँ....

फिर क्या मोड़ लाएंगी आरव के विश्वास की.....

ये देखने के लिए फिर मिलेंगे भाग : 2 के साथ..

( क्रमश : )
- Honey Lakhlani