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आत्मा की आवाज(अंतिम भाग)

गणेश अजीब अंतर्द्वंद में फंस गया।एक तरफ उसके मन में बैठा चोर था।दूसरी तरफ उसकी आत्मा।मन मे बैठा चोर उसे भागने की सलाह दे रहा था।जबकि उसकी आत्मा उसकी मदद करना चाहती थी।
गणेश अजीब उलझन मे फस गया था।उसकी समझ मे नही आ रहा था।मन मे बैठे चोर की माने या आत्मा की बात?
"पानी। पानी
किसी के करहाने कीआवाज फिर आयी।उस आवाज में दर्द था। छटपटाहट थी।बेबसी थी।उस आवाज ने गणेश को अंतर्द्वंद से मुक्ति दिला दी।मन मे बैठे चोर और आत्मा के संघर्ष में जीत आत्मा की हुई थी।गणेश आवाज की दिशा मे चल पड़ा।
गणेश अंधेरे को पार करके एक कमरे में पहुँचा था।कमरे में पलँग पर एक बूढ़ा लेटा था।वह पानी के लिए कराह रहा था।गणेश ने इसे छूकर देखा।वह तेज़ बुखार की वजह से अर्धमूर्छित अवस्था मे था।
गणेश तलाश करके रसोई में से पानी लेकर आया।उसने बूढ़े आदमी को पानी पिलाया था।पानी पीकर उसका करहांना बन्द हो गया।लेकिन तेज़ बुखार की वजह से अब भी बेसुध था।
क्या करना चाहिए?बुखार तेज़ है,अगर जल्दी ही कुछ नही किया गया,तो तबियत बिगड़ सकती है।और उसकि मौत भी हो सकती है।कुछ करना चाहिए।लेकिन क्या?रात में दवा कहा मिलेगी?जब उसे बचपन मे बुखार आता था,तो माँ गीली पट्टी रखती थी।उसने माँ की तरकीब ही करने की सोची।
गणेश एज बर्तन में पानी लाया।कपड़ा ढूंढा और उसके हाथ, पैर और सिर पर गिल्ली पट्टी रखने लगा।और आखिर कार उसकी मेहनत रंग लाई थी।सुबह होने से पहले उसका बुखार उतर गया था।उसने आंखे खोल दी।उसके आंखे खोलते ही गणेश ने पूछा था,"अब आपकी तबियत कैसी है?"
"ठीक हूँ". बूढ़ा आदमी बोला।
"रात को आपको तेज़ बुखार था।"
"रात को मुझे अचानक तेज ठंड लगी थी।और फिर मुझे होश नही।"बूढ़े ने रात की पूरी बात गणेश को बताई थी।
"आपकी कोठी बहुत बड़ी है।इसमें आप अकेले रहते है।"गणेश ने पूछा था।
"मेरे पिताजी अंग्रेजी राज मे कलेक्टर थे।उन्ही ने यह बनवाई थी।मेरा नाम रामनाथ है।मैं भी डिप्टी कलेक्टर से रिटायर हुआ था।मेरे एक लड़का है।भेजा तो मैंने पढ़ने के लिए था।लेकिन वह वही का होकर रह गया।मेरी पत्नी का एक साल पहले देहांत हो चुका है।अब मैं इस कोठी मे अकेला रहता हूँ।"रामनाथ के चेहरे पर अकेलेपन का दर्द साफ झलक रहा था।
"आपकी तबियत अब ठीक है।अब में चलता हूँ।"गणेश बोला।
"तुम कौन हो?रात को मैं बाहर का दरवाजा बंद करके सोया था।फिर तुम अंदर कैसे आ गए?"रामनाथ याद करते हुए बोले थे।
रामनाथ का प्रश्न सुनकर गणेश चुप रह गया।तब रामनाथ बोला,"तुम चुप क्यों हो?बोलो क्या बात है?"
"मेरा नाम गणेश है।मैं चोर हूं।"
"तुम चोर हो?"रामनाथ उसकी बात सुनकर आश्चर्य से बोले।
"हॉ।मैं चोर हूँ।चोरी करना मेरा काम है।रात को चोरी के इरादे से ही दीवार फांदकर आपकी कोठी में चोरी करने के लिए घुसा था।
"चोरी करने आये थे।फिर तुमने चोरी क्यो नही की?"
"रात को आपकी हालात देखकर मेरा इरादा बदल गया।मैने आपकी सेवा करना अपना कर्तव्य समझा।"गणेश ने नज़रे झुकाकर सारी बात सच सच बता दी थी।
"तुमने पकड़े जाने की चिंता न करते हुए,मेरी मदद की।तुम चोर बन जरूर गए हो।लेकिन तुम्हारे संस्कार चोर जैसे नही है,"रामनाथ गणेश को समझाते हुए बोले,"चोरी करना पाप है।इस काम को छोड़ दो।"
"अब मै चोरी नही करूँगा।आपसे वादा करता हूँ।"
"शाबाश"।
और रामनाथ ने उसे अपना बेटा बना लिया