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एक उम्मीद - भाग - 1

दरवाजा खुलता है !
आइए आइए स्वागत है आपका ! पधारिए हमारे इस आंगन में ।
बेटी तुझे देखने लड़के वाले आए हैं उसकी मां उसे बताती है और तैयार होने को बोलती हैं ।
यह कविता है कहानी की मुख्य पात्र, बहुत ही सुंदर और संस्कारी है अपने कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर चुकी है उसका जीवन उसकी नाम की तरह कविता, कहानियों और अन्य रसों से भरा हुआ है । सरलता तो जैसे उसके स्वभाव में है ।
जल्दी ही वो तैयार होकर अपनी छोटी बहन स्नेहा के पास किचन में आ जाती है और जल्दी से चाय का ट्रे उठा कर बाहर बैठक में आती है सबको चाय नाश्ता परोस ती है तभी उसकी होने वाली सास उसे अपने पास बुलाकर बैठने को बोलती है ।
भाई साहब हमें तो लड़की बहुत पसंद है उसकी सास ने कहा । तभी उसके ससुर भी उसकी हां में हां मिलाते हैं। थोड़ी देर की बात के बाद कविता और उसकी बहन अंदर कमरे में आ जाती हैं और हंसी मजाक की बातें चलती रहती है । तभी उसके ससुर मिस्टर मेहता कहते हैं कि अब हमें आगे की बात कर लेनी चाहिए। ये सुनकर कविता के पापा मिस्टर कुजूर थोड़ा सहमते हुए बोलते हैं जी जी बताइए आपकी क्या सेवा कर सकते है ।
तभी टपाक से उसकी सास बोल पड़ती है आपकी बेटी हमारे घर पर रानी बनकर रहेगी । बस हमारी थोड़ी ही मांगे हैं कहकर एक लम्बी चौड़ी लिस्ट उन के हाथ में थमा देती हैं । जिसे देखकर उनकी आंखे फटी रह जाती हैं । चिंता मत करिए यह सब तो बस आपकी बेटी के लिए ही ले रहे हैं । बैसे हमारे घर में कोई कमी नहीं है सास एकदम बोली । हां बात भी सही थी आलीशान बंगला था घर में इर्द गिर्द घूमने के लिए नौकर चाकर भी थे । पर फिर भी उन में लालच था ।
बड़ी हिम्मत करके मिस्टर कुजूर बोलते हैं बहन जी थोड़ा बहुत कम हो जाता तो हमें आसानी होती । अपनी बेटी के लिए अच्छे से अच्छा करने की कोशिश करेंगे । ये सब बातें कविता और उसकी बहन छुपकर सुन रहे होते हैं और दोनों का खून खौल रहा होता है ।
जी हम बाकी बातें सोचकर फोन से बता देंगे जैसा भी होगा इतना कहकर वो लोग विदा ले लेते हैं ।
तभी कविता और उसकी बहन स्नेहा बाहर आते हैं और इस रिश्ते को भी मना करने को बोलते हैं । पर बेटी कितने रिश्ते मना करेंगे अब संस्कार से ज़्यादा तो रुपए पैसे की कीमत है बेटा और फिर तेरा व्याह भी तो करना ही है । तू परेशान ना हो सब अच्छे से होगा, पिताजी कहते हैं । कविता बोलती है ठीक है लेकिन एक शर्त पर पापा कि अगर वो कुछ कमी करते हैं इस लिस्ट में तो वरना नहीं और इतना कहकर दोनों बहनें अंदर चली जाती है ।
इधर मां बाप को इतनी व्यवस्था करने की चिंता सता रही होती है । लेकिन कर भी क्या सकते हैं सब कुछ भगवान के भरोसे ही था । दो दिन ऐसे ही बीतते हैं । लगभग तीसरे दिन सुबह सुबह - फोन बजता है !
हेलो प्रणाम समधी जी, उधर से आवाज आती है ।
इधर से प्रणाम समधन जी ।
आप उस लिस्ट को फेक दीजिए और जो आपसे बन पाए वो ही दे अपनी बेटी को । हमें आपकी बेटी बहुत पसंद है रिश्ता तो हम यही करेंगे । वे बहुत ही खुशी से उनका धन्यवाद करते हैं और फोन कट जाता है ।
सब बहुत खुश होते हैं । कुजूर जी बोलते हैं देखा उन्हें हमारी बेटी पसंद आ गई । तभी उन्होंने हमारी सारी बातें मान ली और कोई दबाव नहीं है अब हम पर ।
शायद ये उन्होंने अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण किया हो क्योंकि पहले तो उन्होंने लिस्ट दी थी ना, कविता बोली ।
जो भी है बेटी हम सब बहुत खुश इस रिश्ते से ।
अगर आप लोग खुश हैं तो मैं भी खुश हूं कविता बोलती है । तब तक उसकी बहन मिठाई लेकर आती है और सब एक दूसरे का मुह मीठा कराते हैं । कुछ दिनों बाद बड़े धूमधाम से कविता की शादी संपन्न होती है और कविता अपने ससुराल पहुंच जाती है ।
अब देखते हैं कविता की आगे की जिंदगी मुश्किलों से भरी होगी या फिर खुशियों से ।जानने के लिए पढ़े कहानी का भाग- 2