kshatrani - kunti ki vyatha - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

क्षत्राणी--कुंती की व्यथा - (भाग 1)

"मुझे राज्य के छिन्न जाने का दुख नही है।पुत्रो के जुए मे हार जाने और वनवास जाने का भी बिल्कुल दुख नही है।परंतु भरी सभा मे मेरी पुत्र वधू का जो अपमान हुआ है और रोते हुए द्रौपदी ने कौरव सभा मे जो कटु वचन सुने,वही मेरे लिए महान दुख का कारण बन गया है।"
शकुनि की सलाह पर दुर्योधन ने पांडवों को जुआ खेलने का निमन्त्रण दिया था। पांडव जुए में अपने को, अपने राज को औऱ पत्नी द्रोपदी को भी हार गए थे।तब भरी सभा मेे दुर्योधन अट्टहास करके विदुुुर से बोला"तुम पांडवो की प्रियतमा द्रोपदी को यंहा ले आओ।वह दासियों के साथ रहकर हमारे महल मेंेेझाड़ू लगााएगी।"
विदुर ने दुर्योधन का आदेश मानने से इनकार कर दिया।तब भरी सभा मे विदुर को धिक्कारते हुए प्रतिकामी से बोला,"पांडवों से डरने की जरूरत नही है।तुम जाकर द्रोपदी को ले आओ।"
प्रतिकामी, भाई के आदेशानुसार द्रोपदी के पास जाकर बोला,"युधिष्ठर आपको जुएँ में हार गया है।अब आप दुर्योधन की जीती वस्तु है।"
"लगता है कौरवों का सर्वनाश निकट आ गया है,"प्रतिकामी से पूरा समाचार सुनकर वह बोली,"तुम वहाँ जाओ और सभा मे मौजूद लोगों से पूछो।मुझे ऐसे अवसर पर क्या करना चाहिए।,
द्रौपदी का प्रश्न सुनकर प्रतिकामी सभा मे वापस लौट आया और सभासदों से पूछा कि द्रौपदी को क्या उत्तर दे।?लेकिन दुर्योधन के डर से कोई नही बोला।पांडव असहाय थे और खिन्न हो रहे थे।दुर्योधन, प्रतिकामी को फटकारते हुए कटु वचन सुनाकर दुशासन से बोला,"प्रतिकामी,भीमसेन से डर गया है।इसलिए तुम जाकर द्रौपदी को ले आओ।उसके प्रश्न का उत्तर यही दे दिया जाएगा।पांडवो से डरने की जरूरत नही है।हारे हुए पांडव तुम्हारा कुछ भी नही बिगाड़ सकते।"
बड़े भाई का आदेश मिलते ही दुशासन पांडवो के महल मे जाकर द्रौपदी से बोला,"हमने तुम्हे जुए मे जीत लिया है।अब तू पांडवो की नहीं दुर्योधन की है।अब तू मेरे साथ सभा भवन चल और कौरवों के साथ रहना उनकी सेवा करना।"
दुशासन के कटु और अपमानजनक वचन सुनकर द्रौपदी का हृदय व्यथित हो गया।उसका गोरा सूंदर मुखड़ा डर से सफेद पड़ गया।दुशासन से बचने के लिए घृतराष्ट्र के रनिवास की और भागी।दुशासन को द्रोपदी का यह कर्म अपना अपमान लगा।वह उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भागा।द्रौपदी फूल सी नाजुक कोमलंगनी नारी और दुशासन बलिष्ठ पुरुष। उसने भागती हुई द्रोपदी के बल पकड़कर उसे ज़मीन मे गिरा लिया।वह उसे ज़बरदस्ती सभा मे घसीटता हुआ सभा मे ले जाने लगा।द्रौपदी डर से थर थर कांपते हुए शर्म से झिझकते हुए संकोच से धीरे से बोली,"मैं इस समय रजश्वला हूँ।एक वस्त्रीय हूं।ऐसे में मुझे वंहा ले जाना बिल्कुल अनुचित है।"
द्रौपदी की बेस्ट सुन कर दुशासन ने उसके केशो को और ज़ोर से पकड़ लिया और ज़बरदस्ती उसे खिंचते हुए बोला,"तू रजश्वला हो,एक वस्त्रीय हो या नंगी हो।हमने तुझे जुए में जीत लिया है।अब तू हमारी दासी है।अब तुझे दासियों के साथ रहकर हमारी सेवा करनी होगी।"
दुशासन,द्रौपदी को जबरदस्ती सभा में घसीट कर ले आया।उसके बाल बिखर गए थे और आधे शरीर से कपडे खिसक गए थे।वह धीरे से बोली,"इस सभा मे मेरे गुरुजन और बुजुर्ग भी बैठे है।तेरे घसीटने की वजह से मेरे शरीर से सारे वस्त्र खिसक गये है।ऐसी अवस्था मे कैसे उनके सामने खड़ी रह सकूंगी?भरत्वसंश को धिक्कार है।इन कपूतो ने क्षत्रियत्व को कलंकित कर दिया है।सभा ने बैठे कौरव अपनी आँखी से अपने कुल की मर्यादा का नाश होते देख रहे है। भीष्म,द्रोण, विदुर का आत्मबल कहा गया?सभा मे मौजूद बूढ़े इस अधर्म को क्यो देख रहे है।"

(कृमशः(