Rahashyo se bhara Brahmand - 3 - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड - 3 - 7

रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड

अध्याय 3

खंड 7

लगभग कोस भर की दूरी तय कर हम्जा को उस स्त्री का घोड़ा मिला, जो अब जीवित नहीं था उसकी मृत्यु बड़े ही निर्दयता से उसकी गर्दन मरोड़ कर की थी। जिसके लिए अपार बल की आवश्यकता थी। ये देख कर हम्जा को चिंता और भय ने घेर लिया। हम्जा को उस स्त्री की चिंता होने लगी। साथी उस का भय भी था जिसने घोड़े की गर्दन को मरोड़ा, क्योंकि जो घोड़े की गर्दन को मरोड़ सकता है। उतना अधिक बल रखने वाले को मारना हम्जा की क्षमता से बहार था।

हम्जा अजीब कशमकश में फंसा उस स्त्री को खोजने लगा, साथ ही कही से हमला ना हो इसके लिए भी सतर्कता बरत रहा था।

तभी उसकी नज़र एक विशाल वृक्ष पर पड़ी, जिसके आड़ में छुपती उस स्त्री की झलक हम्जा को दिखी, उसे देख कर हम्जा थोड़ा असावधान हो गया था। वो स्त्री की ओर बड़ा तभी उस स्त्री ने हम्जा पर धोके से एक नोकीले तेज खंजर द्वारा सीने पर वार कर दिया।

जब उस ने हम्जा को देखा तो वो घबरा गई उसको देख कर स्पष्ट था कि उसने हम्जा के होने की अपेक्षा नहीं कि थी।

पर अब वार हो चुका था स्त्री इस पर कोई प्रतिक्रिया देती उससे पहले कोई दैत्य आकार राक्षस उसके बालो को अपने हाथों से पकड़ कर खिंचने लगा। वो भीमकाय आकर का था जिसके सर पर दो सींग भी थे उसके जबड़ों से राल टपक रही थी। उसका पंजा स्त्री के सर से भी दुगना था।

स्त्री की दयनीय स्थिति ने हम्जा के भीतर कर्तव्य की असाधारण शक्ति का विकास कर दिया। वो अपनी पूरी ताकत के साथ खड़ा हुआ। और उस विशाल राक्षस पर अपनी तलवार से एक जोरदार प्रहार किया। मगर उस राक्षस की चमड़ी बड़ी विचित्र थी जैसे पत्थर हो इसलिये तलवार के प्रहार से उसको एक खरोंच तक नहीं आई, उलटा उस तलवार की धार खुदड़ी हो गई। राक्षस को हम्जा के वार से क्रोध आ गया। उसने स्त्री को छोड़ कर हम्जा की गर्दन एक हाथ से दबोच ली और फिर हम्जा को उसी हाथ से उठाने लगे। उस राक्षस की मजबूत पकड़ के कारण हम्जा से सांस नहीं ली जा रही थी हम्जा को कुछ सुझा नहीं तो उसने अपने सीने में लगे खंजर को निकाल कर एक और बार असफल प्रहार किया जो इस बार चमत्कारी रूप से सफल हुआ। हम्जा ने तेजी से उसके कानों में खंजर को घोंपा और निकाल लिया। जिससे उस राक्षस को पीड़ा होने लगी और उसने हम्जा को एक ओर फेंक दिया। हम्जा को लगा जरूर इस राक्षस की कमजोरी उसका सर है। और इसी को मान कर उसने पास के एक वृक्ष पर फुर्ती से चढ़ कर उस राक्षस पर एक छलांग लगाई और उसके सर को अपना लक्ष्य साधा तभी वो राक्षस हम्जा को देख कर वहाँ से हटा और हम्जा का लक्ष्य चूक गया और उस राक्षस के सर की जगह उसका सीना सामने आ गया।

मगर ये क्या हम्जा का खंजर इस बार उसके सीने में भी जा धसा और हम्जा खंजर की तेज धार और अपने वज़न के बल से उस खंजर को झटका दे कर नीचे खिंच कर ले आता है। जिसके कारण राक्षस के सीने से पेट तक एक बड़ा सा चीरा लग गया।

और उसका सारा रक्त हम्जा के ऊपर आ गिरा वो तो शुक्र था ईश्वर का की राक्षस के मरते ही वो हम्जा के ऊपर नहीं गिरा बल्कि उसके विपरीत गिरा जहाँ। अब तक हम्जा के घाव से भी काफी रक्त बह गया था। जिसके कारण बिना किसी चेतावनी के वो भी मूर्छित हो कर धरती पर गिर पड़ा।

जब हम्जा को होश आया तो वे खुद को झाड़ियों से बनी अस्थायी झोंपड़ी में पाता है। जिसको शायद उस स्त्री ने ही बनाया था उसके शरीर पर ऊपरी वस्त्र भी नहीं थे और चेहरे पर गिरा रक्त भी साफ किया जा चुका था उसके घाव पर कुछ जड़ी बूटियों को मकड़ी के जालो की सहायता से चिपकाया हुआ था। इन सब को देख कर हम्जा को समझते देर ना लगी कि ये सारी व्यवस्था उस कन्या द्वारा ही कि गई होगी।

थोड़ी देर बाद हम्जा को झोंपड़े के बाहर किसी की आहट सुनाई दी तो हम्जा वहाँ से बाहर आ कर देखता है। वो युवती भोजन की व्यवस्था कर रही थी।

अब तक जब भी हम्जा का उस युवती से सामना हुआ वो अजीब हालातों में था जिसके कारण वो युवती के सौंदर्य को ढंग से देख ही नहीं पाया, मगर अब वो एक नए रूप का अनुभव कर रहा था। उस स्त्री की सुंदरता सच में अत्यंत मनमोहक थी जिसके समक्ष संसार की कोई सुंदरी न टिक पति। हम्जा भी उसकी सुंदरता और उसके दया भाव का प्रेमी हो गया था। न जाने क्यों उस स्त्री के प्रति उसका मन एक प्रेमी की भांति चंचल होने लगा, उस सुंदरी को किसी के अपने पीछे खड़े होने का एहसास हुआ और झट से खड़ी हो कर अपनी तलवार एक कुशल योद्धा की तरह हम्जा की गर्दन पर ला रोकती है। और अगले ही क्षण हम्जा को देख कर तलवार पीछे कर लेती है। फिर बिना कुछ बोले अपने काम में दोबारा लग गई।

" मैं कितने समय से मूर्छित हूँ। हम्जा आदरपूर्वक पूछता है।

" दो दिनों से, युवती बेरुखी से बोली।

" यानी आप पिछले दो दिनों से मेरे लिए कष्ट उठा रही हो। भगवान ने आपको बाहरी और भीतरी दोनों प्रकार की सुंदरता प्रदान की है। मैं आपके उपकारों का आभारी हूं। वैसे मैं वसुंधरा राज्य का नरेश राजा हम्जा राणा हूँ और आपका परिचय।

इससे आगे हम्जा और कुछ बोल पाता उस से पहले वो कन्या क्रोधित हो कर फुर्ती से हम्जा की गर्दन पर अपना खंजर लगा कर तीखे स्वर में बोली " मैं गजेश्वर राज्य के महा नायक और तुम्हारे शत्रुघ्न स्वर्गवासी राजा भानु उदय की तुम्हारे कारण एक लोती बची संतान अम्बाला हूँ। माना मेरे पिता द्वारा कई पाप हुए लेकिन उससे अधिक बड़ा पाप मुझसे हुआ जो अपने पिता के शत्रु और अपने भाई के हत्यारे पर दया की, किन्तु अब मुझमें और अधिक धैर्य नहीं है। जो मैं तुम्हारी बकवास को सुन सकूँ। तो तुम्हारे लिए यही सही होगा कि आज और चुप बैठो नहीं तो सदैव के लिए चुप्पी साध लोगे, कल तक तुम खुद की देखभाल करने योग्य हो जाओगे उसके बाद मैं अपने रास्ते और तुम अपने रास्ते,

ये सब बोलते समय भले ही उसके मुख पर क्रोध था मगर उसकी आँखों मे एक अजीब सी चमक थी जो उसके मन का भेद किसी ओर ही रूप को दर्शा रही थी जो हम्जा से न छुप सका।

असल में अम्बाला के भीतर भी हम्जा के प्रति एक आकर्षण पैदा हो गया था जो अम्बाला को हम्जा से भी अधिक भय दे रहा था। वो डर रही थी कही उसको हम्जा से प्रेम न हो जाए, इसलिये खुद को बार बार इस बात को याद कराती की हम्जा कौन है। और सदियों से उन दोनों के परिवारों के संबंध क्या है।

इसी बीच हम्जा के मधुर शब्द उसके कानों पर पड़े जिससे उसका खुद पर से नियंत्रण जाने सा लगा। और वो इस अपेक्षा में हम्जा की गर्दन पर नोकीला खंजर रख कर उसको कठोर वचन सुनाती है। कि इसके बाद हम्जा शांत होकर बैठ जाएगा और वो आसानी से खुद पर नियंत्रण कर लेगी।

लेकिन इसके विपरीत हम्जा खुद के प्राणों का समर्पण अम्बाला के चरणों पर करता हुआ बोला " यदि तुम्हारे समक्ष मेरा मूल्य केवल तुम्हारे भाई के हत्यारे जितना है। जिसके प्राण हर तुम्हारे भीतर सुख पैदा होगा, तो इससे अधिक सौभाग्य की बात मेरे लिये और कोई नहीं हो सकती कि मेरे प्राण तुम्हारी प्रसन्नता के लिए तुम्हारे द्वारा निकाल लिए जाए।

हम्जा की बातों ने अब अम्बाला को पूरी तरह से खोल दिया और वो जान गई कि केवल वही नहीं हम्जा भी उससे उतना ही प्रेम करता है। वो हम्जा के गले लग गई। और ऐसा करने से वो खुद को ना रोक पाई। इसके बाद दो पवित्र प्रेमियों का मिलन हुआ। जिनका मिलना भाग्य ने पहले से रच रखा था जिनका मिलना प्रकृति का एक कल्याण मार्ग था। जिनके मिलने पर भविष्य के संसार की सुरक्षा का भार था।

उनका मिलन एक पवित्र मेल था जिसमें दो पावन आत्माओं का संगम हुआ।

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