Dah-Shat - 33 books and stories free download online pdf in Hindi

दह--शत - 33

एपीसोड ----33

एक औरत का पुलिस वालों से सम्पर्क करना किसको अच्छा लगता है? वह जलकर मर जाये तो दिल से आँसू बहाने को तैयार रहती है दुनियाँ। एम. डी. के ऑफ़िस के अंदर जाकर वह सोचती है उसका अनुमान ठीक था, उनके चेहरे पर तल्ख़ी है, “मैं आपसे दो-तीन बार मिला हूँ। मैं सोचता था कि आप बहुत समझदार महिला है लेकिन आपने अपने पति के पीछे पुलिस लगा दी?”

“वॉट? मैं क्यों पुलिस लगाऊँगी? यदि ऐसा करना होता तो पहले ही एफ़.आई.आर.कर देती। आपसे पास क्यों आतीं? आपके पास मेरी ‘कम्पलेन’ थी इसी हिम्मत से उनके पास गई थी कि वह वर्मा के मोबाइल पर ‘कॉल्स कन्फ़र्म’ करके आपको बता दें जिससे आप हैड ऑफ़िस से उनका ट्रांसफ़र करवा सकें।”

“लेकिन पुलिस के पास.....।”

“आपको पता है जब ये उस औरत के प्रभाव में आ जाते हैं तो एकदम पागल गुंडे हो जाते है।”

“मैं मान ही नहीं सकता कि कोई औरत ऐसा कर सकती है।”

“आप मत मानिए, मैं तो आँखों से देख रही हूँ, देख क्या झेल रही हूँ।”

“देखिए ! मैं बहुत ‘स्ट्रेट फॉरवर्ड’ हूँ जो मैं बात कहूँगा आपको बुरी लगेगी।”

“आप कहिये, मैं भी बहुत स्ट्रेट फॉरवर्ड हूँ।”

“मैं पुलिस कमिश्नर से एक पार्टी में मिला था। वह कह रहे थे कि आप सच में साइकिक हो रही हैं।”

“वॉट? उन्होंने मेरे पति के ऑफ़िस में छानबीन करवाई होगी। वहाँ विकेश ने मुझे साइकिक उड़ाया हुआ है।”

“लेकिन विकेश ऐसा क्यों करेगा?”

“गाँवों में किस तरह के लोग औरत को चुड़ैल करार देते हैं? ये शहर है इसलिए यहाँ ‘साइकिक’ उड़ाया जा रहा है।” वह शर्म में कह नहीं पाती कि जो औरत उसके पति को नहीं छोड़ रही, नौकरी के साथ बिज़नेस करते विकेश को क्या अपनी मुट्ठी में नहीं करके रखा होगा?

प्रतिमा व विकेश जीवन भर रुपयों के पीछे भागे हैं। एक अकेली संतान पिछड़ती जा रही है। कविता की सच्चाई जान लेने के कारण अभय व उसके सम्बन्धों को तबाह करने पर तुलें है। वह केम्पस से बाहर रहता है। उसे नौकरीपेशा बीवी चाहिए थी। वह लंच के समय इधर-उधर समय गुज़ारता है। अभय को घर में गर्म लंच मिलता है, आराम मिलता है। जलने-कुढ़ने वाले लोगों के लिए कारण कोई भी हो सकता है।

“आप क्या मनोहर कहानियाँ बहुत पढ़ती हैं?”

“मैंने तो बरसों से उसकी सूरत भी नहीं देखी।” वह कह नहीं पाती, “बिग बॉस ! शेक्सपीयर ने ऑथेलो, जिस पर ‘ओमकारा’ फ़िल्म बनी है, क्या सैकड़ों वर्ष पूर्व` मनोहर कहानियाँ `पढ़कर ही लिखी थी?”

“तो स्टार प्लस के बे सिर-पैर के धारावाहिक देखती होंगी। मेरा बस चले तो ‘तुलसी’, ‘पार्वती’ सब बंद करवा दूँ।”

वह क्या बहस करे एम.डी. साहब से? सारे देश की अधिकतर औरतें इसीलिए इन्हें देख रही हैं क्योंकि, ‘तुलसी’, ‘पार्वती’ ही परिवार की धुरी हैं। घर के मुखिया की तरह ये भी लाइट हाऊस की तरह होती हैं जो परिवार के हर सदस्य को दिशा दिखाती चलती हैं। आपके घर में भी ‘तुलसी’या ‘पार्वती’ है इसीलिए इस पद पर, इस कुर्सी पर बैठे निश्चित हो इतना बड़ा विभाग संभाल रहे हैं। यदि घर पर एक फूहड़ या बदमाश औरत होती तो आपके कंधे झुके हुए होते, आँखों में अपने परिवार के लिए चिन्ता के बादल तैर रहे होते।

वह कहती है, “देखिए ! मुझे पुलिस कमिश्नर साइकिक समझे या पूरा पागल मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मेरे पास व्यस्त रहने के लिए अपना काम है। मैं कोई टाइम पास करने के लिए भाग दौड़ नहीं कर रही हूँ। इस लड़ाई में मेरा सच मेरे साथ है। मुझे अपने पति को बचाना है यदि तमाशा करना होता तो एफ.आई.आर. कर देती या ‘नेशनल वीमन कमीशन’ के......।”

“तो जाइए...... जाइए..... नेशनल वीमन कमीशन के पास ।” वे ज़ोर से बोलते हुए ऐसे ख़ुश होते हैं कि उनकी गर्दन तो छूट जायेगी।

“प्लीज़ ! ट्राई टु अंडरस्टैंड मी।”

“आप चाहे तो वर्मा या आपके पति को बुलाकर फटकार लगा दें।”

“सर ! ये अच्छा नहीं रहेगा। मेरे पास कोई प्रमाण तो हो। अभय लंच के लिए आते हैं तो अक्सर विभागीय फ़ोन की रिंग बजती है। जब मैंने इन्हें विजलेंस में रिपोर्ट करने की बात कही तो वह लगभग बंद हो गई है। अब कभी-कभी आती है। वर्मा के यहाँ फ़ोन नहीं है। वह ऑफ़िस से करता होगा या कविता किसी के घर से। यदि वह ‘ट्रेस’ कर ली जाये तो मेरी बात प्रमाणित हो जायेगी।”

“मैं टेलीफ़ोन विभाग के प्रमुख भल्ला को फ़ोन कर देता हूँ। उन्हें ‘एप्लीकेशन’ दे दीजिए। यदि वे चाहेंगे तो आपकी सहायता देंगे।”

“थैंक यू, वेरी मच सर!” विभागीय फ़ोन यदि ट्रेस हो जाये तो उसके मन का भय निकल जायेगा। मन भी हर समय डरा हुआ सहमा रहता है कहीं पुलिस वाले केस ही उल्टा न कर दें।

वह एम.डी. के चेम्बर के दरवाजे के हैंडिल पर हाथ रखती है। पीछे से आवाज आती है, “एक्सक्यूज मी।”

“जी?”

“आप टी.वी. सीरियल देखना बंद कर दीजिए।”

वह थोड़ी खीज जाती है, “मेरा जीवन ही टी.वी. सीरियल बन गया है। मैं व मेरे पति स्टेशन से किसी से सुबह मिलकर आ रहे थे तो देखा दो पुलिस वाले हमारे पीछे चले आ रहे थे। वे मोटर साइकिल पर थे। पीछे वाले बैठे आदमी के पास शायद डिजिटल कैमरा भी था।”

उनके चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है।

***

किसी भी विभाग के प्रमुख से बतौर महिला समिति की सदस्य समय माँगा जाये तो वे जल्दी से जल्दी समय देने की कोशिश करते हैं। श्री भल्ला अपने ऑफ़िस में बताते हैं, “ब्राँच ऑफ़िसर्स की मीटिंग चल रही थी। आप आने वाली थीं इसलिए मैं जल्दी उठकर चला आया।”

“थैंक्स।” वह संक्षेप में अपनी जरूरत बता देती है।

“वेरी स्ट्रेन्ज! आज तक हमसे किसी ने ऐसी ‘हेल्प’ नहीं माँगी।”

“कोई इतनी विचित्र मुसीबत में फँसा भी नहीं होगा।”

“देखिए माना कि हमारे इंटरनल फ़ोन कम्प्यूटराइज्ड हैं किन्तु मार्च से पहले की आपके यहाँ की ‘इनकमिगं लिस्ट’ मिलनी मुश्किल है।”

उसका चेहरा उतर जाता है।

“आपकी ‘हेल्प’ के लिए हम एक काम कर सकते हैं आपके फ़ोन पर एक सिस्टम लगाकर ‘इनकमिंग कॉल्स’ रिकार्ड कर सकते हैं।”

वह जैसे किसी नदी के तल में से ऊपर उबर आई हो, यदि वर्मा के ऑफ़िस से कोई कॉल ट्रेस हो जाये तो उसका ट्रांसफर हो सकता है।

“हम कल ही ये सिस्टम लगा देते हैं। आप जब भी चाहेंगी हम ‘इनकमिंग कॉल्स’ की लिस्ट आपको दे देंगे।”

“अगेन थैंक्स।”

उसी रात वह घूमकर लौट रही है। वर्मा के लेन के सामने जो नज़ारा देखती है उसे लगता है कोई दीवार हो और वह अपना सिर उस पर फ़ोड ले। वर्मा परिवार सड़क के दाँयी ओर सामान सहित खड़ा ऑटो रिक्शा का इन्तजार कर रहा है उन्हें शहर से बाहर जाना है। वह पेड़ के नीचे खड़ी कविता के चेहरे पर नज़रें गड़ा देती है। कविता ऐसे खड़ी है जैसे उसने उसे देखा नहीं है। पैसे के लिए अपने शरीर का इस्तेमाल करने वाली औरत को देख उसका जी मिचलाने लगता है, वह सड़क पर उसके सामने थूक देती है। समिधा आँसुओं को ज़ब्त करते हुए घर का ताला खोलती है। वह युद्ध का बिगुल बजाने को मजबूर कर दी गई है इसलिए युद्ध लड़ेगी, लड़ती रहेगी, लेकिन कब तक ?

अभय लौटकर आदतन कम्प्यूटर के सामने बैठ गये हैं। एक सी.डी. म्यूजिक सिस्टम में डाल देते हैं। बीन की धुन बजने लगती है। समिधा के कपड़े तह करते हुए हाथ रुक जाते हैं, गले में साँस अटक रही है। ज़हरीली नागिन शहर से बाहर जाने से पहले अभय को रास्ता बता गई है समिधा को खिजाने का, अभय को अपने ज़हर में सराबोर रखने का। बीन की लम्बी धुन के साथ उसे फन फैलाये झूमती, नाचती काली नागिन याद आ रही है। क्या करे वह जाकर स्विच ऑफ करदे? अभय से लड़े? दिमाग़ी रूप से विकलांग किये व्यक्ति से लड़कर वह अपनी क्यों तौहीन करे? लम्बी बीन के बाद गाना शुरू हो गया है, “तन डोले, मेरा मन डोले।”

वह अभय के पास चली आती है। अभय के उनींदे चेहरे पर व्यंग भरी आँखें हैं।

वह ख़ुश होने का नाटक करती है, “ओ अभय ! इट्स ए लवली औल्ड साँग। मैं कब से सुनना चाह रही थी। मुझे रोज़ एक बार तो सुना दिया करना।”

उनींदे से अभय के चेहरे पर एक खिसियाहट है। उनकी आँखें अजीब सी चढ़ी क्यों लग रही हैं ? घर में रोज़ बजती बीन की धुन उसे डसती है, उसे ज़हरीली नागिन कह देने का ये बदला है लेकिन खिसियाकर लता जी के साथ, “तन डोले, मेरा डोले।” गाने के अलावा और क्या कर सकती है ? अपनी अलमारी में उसे दो गुलाब के लाल फूल एक डोरे से बँधे मिलते हैं। वह उन्हें उठाकर चुपचाप फेंक देती है। अपने से वायदा कर चुकी है, रोबोट बना दिए अभय से क्या लड़ना ?

कुछ दिन बाद उस घर की रोशनियाँ जलने लगी हैं। अभय समिधा के लिए बहुत मेहरबान हो उठे हैं। बाज़ार से कुछ न कुछ लाते रहते हैं। अपने हाथ से फ़ल काटकर खिलाते हैं। वह चिंतित है।

उस दिन शाम को चाय पीकर वह कुछ गंदे कपड़े बाथरूम में लाउंड्री बैग में रखने जाती है। दरवाज़े पर खड़ी-खड़ी वह ऐसे सुन्न हो जाती है जैसे कि बिजली के सैकड़ों नंगे तारों पर उसका पैर पड़ गया हो।

पैर में इतने बिजली के झटके लग रहे हैं कि दिमाग़ सुन्न है। वह अपने को कुछ क्षण बाद सम्भाल हाथ के कपड़े फ़र्श पर पटक एक किताब में मन लगाने का प्रयास करती है लेकिन कैसे लगेगा उसका दिल? उस बीभत्स दृश्य से दिल हटा पायेगी ? वह हिम्मत करके बाथरूम की तरफ़ जाती है, सच ही एक कोने में पड़ा है उसका व अभय का पर्सनल नेपकिन बीच में से गीला, जानबूझकर ऑफ़िस से आकर वहाँ फेंका हुआ। उसे चोट देने से इससे बड़ी हद क्या हो सकती है ? इस बाज़ारू औरत को वह इतना पहले कैसे पहचान गई थी ? उसे इस तरह प्रताड़ित करने की बात न अभय सोच सकते हैं, न विकेश । अभय के पास जाकर क्या लड़े? वो कुछ सोचने लायक बचे ही नहीं है। न वह रोयेगी, न तड़पेगी, न लड़ेगी, उस भयानक औरत की मंशा कैसे पूरी हो जाने दे ? हो सकता है उसे तड़पाने के लिए उसने अभय को निर्देश दिये हों कि उसे नल से गीला करके बाथरूम में डाल दो या..... कुछ भी हो सकता है। समिधा अपने दिमाग़ को सुन्न नहीं होने देती वह फ़र्श पर पड़े कपड़े लाउंड्री बैग में ड़ाल देती है और नेपकिन को कोने से उठाकर बाहर के डस्टबिन में डाल आती है। बड़ी मुश्किल से ये सब करने की हिम्मत जुटा पाई है। ये कौन सी दुनिया की औरत है?

तीसरे दिन अभय बहुत व्यंग के साथ मुस्करा कर सीधे उसकी आँखों में देखते हुए पूछते हैं, “अपना नेपकिन कहाँ गया?”

वह उनकी आँखों में देखती उत्तर देती है, “मुझे क्या पता?”

अभय का चेहरा चाबी भरे खिलौने सा लटक गया है। समिधा इस चोटों का जवाब एक साथ देगी उसे धीरज के साथ समय का इंतज़ार करना ही होगा। अपने घबराये हुए दिल पर काबू पाने के लिए वह पुलिस कमिशनर को फ़ोन कर बैठती है, “सर ! नमस्कार ! कोई फ़ोन कॉल्स ट्रेस हुई ?”

“नहीं, कुछ पता नहीं चल पा रहा। मोबाइल पर बातें भी सीधी व स्पष्ट नहीं हैं। आप इन लोगों के मिलने की जगह क्यों नहीं बता रही हैं ?”

“नो सर ! मुझे कोई तमाशा नहीं करना है।”

“वो ‘प्लेस’ तो बताइए।”

“नो सर।” वह फ़ोन रखकर रुआँसी हो जाती है। इन पुलिस वालों के पास जाने का मतलब है एक दूसरी मुसीबत मोल लेना।

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इतवार को रोली की आँखें डबडबाई हुई हैं, “मॉम ! क्या सच ही औरत की कोई इज़्जत नही होती?”

“क्यों?”

“उसे पढ़ी-लिखी होने के बावजूद एक बेअक्ल जूती ही समझा जाता है ? ``

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नीलम कुलश्रेष्ठ,

ई -मेल –kneeli@rediffmail.com