Jindagi ke safar me - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

ज़िन्दगी के सफ़र में - 1

भाग -1
दोस्तो ये कहानी है किसी के संघर्ष की, किसी के अटूट विश्वास की, एक ऐसे रिश्ते की जिसमें इज़त ओर स्नेह भरपूर है और इन्हीं सबसे लबरेज़ है हमारी ये कहानी ज़िन्दगी के सफ़र में .....
दिल्ली, दिलवालो का शहर ये तो आपने भी कई बार सुना होोगा या महसूस भी किया है वैसे आज के समय में यहां लोग दिलवाले कम ही मिलते है क्यूंकि सब पैसेवाला जो होना चाहते है और अपने मुनाफे और फायदे के लिए ही रिश्ते जोड़े जाए बस ये धारणा ही मन में बनाए रखते हैं खैर रॉय साहब का यही मानना है कि हमेशा ये सोचिए की कैसे किसी की मदद की जाए बजाय अपना फायदा देखने के ......
अब आप ये सोच रहे होंगे की भई ये रॉय साहब कोंन है तो चलिए ले चलते है आपको रॉय साहब के ज़िन्दगी के सफ़र में लेकिन लेकिन इससे पहले आपको भी हमारी इतनी सी बात माननी होगी कि आप के हाथ में हो गरमा गर्म अदरक वाली चाय ओर थोड़ा से सुकुं के पल बस इतना सा ......
क्यूंकि इस भागती दौड़ती सी ज़िन्दगी में हमारे पास सूकुं के पल ही नहीं है हम अपने कामकाजी ज़िन्दगी में इतने उलझ गए है कि ख़ुदको वक़्त देना ही भूल गए हैं और इसलिए मैं आपसे कुछ सुकूं के पल का बोल रही हूं जिसमें सिर्फ आप हो और आपका समय .......
दोस्तो रॉय साहब एसके यूनिवर्सिटी के प्राचार्य है या यूं कहूं की हजारों छात्रों को सही मार्ग दर्शन देने वाले उन चन्द गुरुओं में से है जो हमें बहुत कम देखने को मिलते है उन्हीं गुरु में से सबसे पहले नाम आता है अमन दीप रॉय का जिन्हें हम सब रॉय साहब कहकर बुलाते थे और छात्र अपने नए अंदाज़ में ए. डी. सर
राय साहब का कद लगभग 6 फूट ओर रंग एकदम गोरा बाल सुनहरे घुंघराले और उनके आंखो में चमक और चहरे पर तेज इतना की आज भी 65 की उम्र में एकदम जवान लगते है और स्वभाव तो इतना सरल की एक बार कोई अंजान भी उनसे मिले तो उसे अपना बनाले । हमेशा सबसे एक चहरे पर स्माइल के साथ मिलते थे हमेशा ख़ुश अंदाज़ में , लेकिन क्यूंकि वे एक प्राचार्य पद पर थे तो अपने स्वभाव में लचीलापन रहता था जहां किसी छात्र को समझाने में कभी-कभी कड़क अंदाज़ में थोड़ा गुस्सा भी आ ही जाता था लेकिन फिर स्टूडेंट्स जानते थे कि सर हम सब से कितना प्यार करते है तो वो मना भी लेते थे क्यूंकि रॉय साहब हमेशा अपने स्टूडेंट्स को सही मार्गदर्शन दिखाते थे हर बच्चे को वो अपने खुद के बच्चे के जैसे ट्रिट करते थे वैसे तो रॉय साहब का परिवार बहुत ही छोटा था जिसमें उनकी पत्नी और दो बेटे थे और दोनों ही विदेश रहते थे साल में एक दो बार ही उनका घर आना होता था और जब वे आते थे तो राय साहब की खुशी का ठिकाना ही नहीं होता था पूरे शहर में पता लग जाता था कि इनका बेटे विदेश से आने वाले है राय साहब की पत्नी तो खाने पीने की इतनी सारे व्यंजन बनाती की एक ही दिन में पूरे साल की कसर निकालनी हो
उनके पैरो में तो मानो घुंघरू बन्ध जाते थे जब भी उनके बेटों के आने का समाचार मिलता ओर हो भी क्यों ना जहां मां बाप अपने बच्चो को एक दिन भी देखे बिना नहीं रह सकते वहीं उनको एक बार देखने के लिए पूरा साल का इंतजार करना पड़ता था ।
रॉय साहब को वैसे तो बच्चो का विदेश रहना कम ही पसंद था क्योंकि उनकी इच्छा थी कि उनके बेटे एस. के .कॉलेज की बागडोर संभाले जैसे रॉय साहब ने संभाली थी अपने पिता के अनुसार और रॉय साहब ने अपने बेटों को भेजा भी इसीलिए था विदेश की वहा अच्छी शिक्षा लेकर आए और वो यहां के सभी युवा को अच्छे से शिक्षित करे लेकिन उनके बच्चो की ख़ुशी विदेश में रहकर काम करने की थी इसलिए रॉय साहब अपने बच्चो की खुशी को ज्यादा महत्व देते थे इसलिए कभी कुछ नहीं बोलते बेटे आते जब उनके वीज़ा की समय अवधी ख़तम होती तब ओर फिर कुछ दिन अपने घर रहकर वापस चले जाते थे ।
बच्चे राय साहब ओर उनकी पत्नी से काफी अलग थे लेकिन इस बार आए तो पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि राय साहब बहुत चिंतित थे जिनके चहरे पर हमेशा स्माइल बनी रहती थी वहीं आज थोड़े नाखुश थे और माथे पर चिंता की लकीरें साफ पता चल रही थी .......

अब रॉय साहब क्यों चिंतित थे और ऐसा क्या हुआ उनके बच्चे और उनके बीच अगर जानना चाहते हो तो जरूर पढ़े मेरी कहानी का अगला भाग ज़िन्दगी के सफ़र में तब तक के लिए बस यही गुजारिश है कि मेरी कहानी का ये पहला भाग आपको कैसा लगा इसकी प्रतिक्रिया मुझतक जरूर पहुंचाइयेगा मिलते है अगले भाग में तब तक के लिए हंसते रहिए मुस्कुराते रहिए और अपना ख़ास ध्यान रखियेगा क्यूंकि आपका कोई ख़ास आपका इंतज़ार कर रहा है 🙏