Dah-Shat - 49 books and stories free download online pdf in Hindi

दह--शत - 49

एपीसोड – 49

मम्मी के पास जाने का रिज़र्वेशन हो चुका है। वह यात्रा के दो दिन पहले ठंड के कोहरे भरी सड़क पर घूमकर अकेली लौट रही है। सामने से आती सुरक्षा विभाग की वायरलेस लगी काले काँचों की खिड़की वाली जीप जानबूझकर उसके पास धीमी होती है फिर फ़र्राटे भरती तेज़ निकल जाती है। उसके पीछे है एक साधारण जीप जो हॉर्न बज़ाती तेज़ निकल जाती है। भयभीत करने के इन संकेतों को वह खूब समझती है, उसे डर बिल्कुल भी नहीं लगता। वह कायर नहीं है लेकिन जानबूझ कर ख़तरा मोल लेने में कोई अक्लमंदी नहीं है। वह ‘ड्रग’, ‘ड्रग’ का शोर मचा रही है। कहीं ट्रेन में यही सुरक्षाकर्मी उसके सामान में ड्रग डालकर उस पर ही केस न बना दें। पता नहीं, कैसे एक सूक्ति वाक्य सा उसके दिमाग़ में उभर आता है, ‘रंडी के साथ फौज़ होती है, अच्छी औरत के साथ सिर्फ़ भगवान।’

वह पूछना चाहती है, “सुन्दर सजीली, लियाकत वाली क्लब में घोषित ‘मिसिज केम्पस’ के पति अतुल कुमारजी ! आप एक वर्ष पहले से उसे डराने में लगे हैं। ये सिर्फ़ रुपये का कमाल नहीं हो सकता। आप व सुयश उम्र के हिसाब से इतने छोटे हैं....तो.....क्या कविता ने इस भयानक लड़ाई की आग में बेटी भेंट कर दी है ?”

वह आरक्षण रद्द करवा कर मम्मी को समझा देती है आवश्यक कार्य के कारण वह उनके यहाँ आ नहीं पायेगी। अभय व्यंग से पूछता हैं,“तुम गई क्यों नहीं?”

“देख नहीं रहे हो इस कड़ाके की ठंड में टेम्प्रेचर कितना कम हो रहा है।”

वह मन को समझा लेती है कि शिव कायर नहीं थे लेकिन भस्मासुर के भय से ग़ुफ़ा में जा छिपे थे। बाद में छल से भस्मासुर का सर्वनाश किया था। उसके लिए नित नये भस्मासुर पैदा हो रहे हैं फिर भी उसकी आत्मा में एक ओजपूर्ण विश्वास है।

एक पार्टी में कविता की पड़ोसिन मिसिज पांडेय मिलती हैं। महीनों बाद उनसे मिलना हुआ है। बड़ी बातूनी हैं। महीनों पहले हुई दुर्घटना पर अपनी प्रतिक्रिया दे रही हैं,“बस ये समझ लीजिए वर्मा भाई साहब बाल, बाल उस एक्सीडेंट से बच गये थे। क्योंकि कविता हर आठ दस दिन में उपवास रखती है। कहती भी है पति के अलावा सब मुझे भाई जैसे लगते हैं। उसी के पुण्य से बचे हैं।”

“इस एक्सीडेंट में मर जाते तो अपने पापों को कैसे भोगते?”

“मतलब?”

“कुछ नहीं, बस वैसे ही। ये एक्सीडेंट हुआ कैसे था?”

“कविता बता रही थी कि रास्ते की गौ माता को बचाने के चक्कर में स्वयं घायल हो गये थे।”

***

हवाओं में एफ़ आई. आर. न कर दी जाये का भय तो है ही। गुंडा पार्टी का मोबाइल डर से बंद होना ही है। समिधा के घर के कम्प्यूटर की स्क्रीन पर उभर आई है याहू डॉट कॉम की विंडो ‘वाई’ शब्द सहित है। समझती समिधा भी है, संदेश का आदान-प्रदान इससे होता होगा लेकिन अभय का कम्प्यूटर का ज्ञान इतना अधिक नहीं है तो? ये ‘वाई’ शब्द स्क्रीन पर कैसे आया? वह हंगामा तो करेगी लेकिन समय आने पर।

एक समाचार अभय देते हैं, “विकेश की पत्नी प्रतिमा का एक्सीडेंट हो गया है।”

“कैसे?”

“ऑटो से ऑफ़िस जा रही थी। एक ट्रक ऑटो से टकरा गया। सारा रिक्शा चकनाचूर हो गया है। उसकी हड्डी तो नहीं टूटी लेकिन शरीर पर अंदरूनी चोट है। वह लम्बी छुट्टी पर है।”

“देखो न ! विकेश के कर्मों के कारण उसका एक्सीडेंट हुआ है, अपने अच्छे कर्मों से वह बच गई।”

“तुम्हें तो एक ही बात याद रहती है। तुम साइकिक हो रही हो।”

“अभय ! इन सब गुंडों से हम उम्र में बड़े हैं। ऊपर वाले की सीधी दृष्टि है, हमारे जीवन में इतने तूफ़ान आ रहे हैं, हमें कुछ नहीं हो रहा। ये अस्पताल पहुँच रहे हैं। तुम कुछ महीने पहले बता रहे थे विकेश के पैरों में सूजन आ गई है।”

“इस उम्र में कुछ न कुछ तो होता ही रहता है।”

“हमारी उम्र तो उनसे अधिक है।”

वह जिस बात को टालती आ रही थी, वह कदम उठा ही लेती है। अपने एक छात्र के चाचा की डिटेक्टिव एजेंसी जा पहुँचती है। वहाँ की मैनेजर रशिता को वही कहानी सुना रही है।

रशिता पूछती है,“आप क्या सहायता चाहती है?”

“जनवरी के प्रथम सप्ताह में सुबह नौ बज़े से रात के नौ बज़े तक उस घर पर वॉच रखें। वह घर सुरक्षा विभाग की नज़र में है इसलिए उस पर नज़र रखना आसान नहीं होगा। अलग-अलग समय पर अलग-अलग लोग निगरानी करें।”

“ओ.के.।”

पूरी ललक पूरी उम्मीद से वह नये वर्ष के सातवें दिन फ़ोन करती है, “कुछ ट्रेस हुआ?”

“नहीं, वह पाँच दिन बिल्कुल बाहर नहीं निकली।”

“ओ नो, जो सरगर्मियाँ मैंने देखी है, ऐसा हो ही नहीं सकता।”

“हो सकता है आपको शक हो।”

“मैं थोड़े-थोड़े समय बाद किसी न किसी षड्यंत्र की शिकार बन रही हूँ। मेरे सामने एक-एक बात स्पष्ट है, बस प्रूफ़ चाह रही थी।”

“कभी-कभी इस तरह के लोग त्यौहारों या विशेष अवसरों पर बाहर नहीं निकलते।”

“उसकी हरकतें बंद नहीं हुई हैं। हम लोग जनवरी के अंत में बाहर जा रहे हैं तब आप कविता पर नज़र रखिए।”

“ओ.के.।”

जनवरी के अंत में पारिवारिक विवाह में जाना है। आरक्षण हो चुका है। अचानक समाचार आता है अभय के मामा की मृत्यु हो गई है। वह कहती है, “त्रयोदशी संस्कार में हम जा रहे हैं। तभी उनके घर जाकर मिल लेंगे।”

“हाँ, ये बात ठीक है।”

दूसरे दिन ऑफ़िस से आकर अभय बताते हैं,“मैंने देहली की ड्यूटी ले ली है। तेरहवीं में शामिल होकर देहली चला जाऊँगा।”

“अभय इतनी भागदौड़ करने की क्या ज़रूरत है? देहली वाले भाईसाहब वहाँ जा ही रहे हैं।”

“ड्यूटी मिल गई है तो हो ही आता हूँ।”

“अभय मैं राशि, अपनी चचेरी बहन को फ़ोन कर देती हूँ। मेरे लिए दो स्वेटर्स भिजवा दे उसका कोई आदमी अगस्त क्रांति पर तुम्हें दे जायेगा।”

“हो सकता है मैं देहली जाऊँ ही नहीं। फ़ोन पर काम कर लूँ।”

“क्योँ?”

“बस वैसे ही।”

“अभय ! तुम्हें और भी अलर्ट रहना चाहिए ‘प्लास्टिक ग्रेन्यूल्स’ की ‘इनक्वॉयरी’ चल रही है।”

“तुम क्या समझती हो मुझे चिन्ता नहीं है।”

समिधा का दिमाग तेज़ी से दौड रहा है। पिछले एम.डी. व ये एम.डी. मैडम उसे समझा-समझा कर थक गये कि वह अभय का ट्रांसफ़र करवा ले। उसकी दलील यही होती है,“वह क्यों ट्रांसफ़र करवाये? जिस औरत का पति (अब तो और गुंडे भी) उसके साथ हैं। वह दूसरे शहर भी अभय के पास बीच-बीच में जा सकती है। नये शहर में समिधा अभय की कैसे रक्षा करेगी?”

उस दिन अभय रात में घूमने जाने के लिए ज़रूरत से अधिक लेट हो रहे हैं। समिधा रसोई में काम आरम्भ कर देती है। तभी बाहर का दरवाजा खुलता है। वह तेज़ी से आकर देखती है। अभय स्पोर्ट्स शूज़ पहनकर घूमने निकल रहे हैं।

वह पीछे से कहती है, “मैं भी घूमने चल रही हूँ।”

“तुम? टाइम तो काफ़ी हो गया है।”

“तो क्या हुआ चलती हूँ।”

वे दुकानों से थोड़ी दूर ही आये हैं। सामने से बबलू जी व कविता चले आ रहे हैं। तो घूमने का ये समय पहले से तय था । गुस्से से उसका सर्वांग जल उठता है। वह दांयीं तरफ मुड़कर सड़क पर खड़े होकर उन्हें कड़ी निगाहों से बेधती रहती है। उसे खुशी हो रही है उनके चेहरे सकपकाये हुए हैं, आँखें नीचे झुकी हुई हैं।

वह घृणा से काँपती चिल्लाने लगती है,“देखो धंधे वाले जा रहे हैं.... धंधे वाले।”

वे दोनों तेज़ कदमों से चलने लगते हैं।

अभय क्रोध में हैं, “तुम्हें क्या हो जाता है?”

“जैसे तुम्हें कुछ नहीं पता?”

“यदि रास्ते में ऐसी ऊटपटांग हरकतें करनी हो तो मेरे साथ मत आया करो।”

उसकी घूमने जाने की इच्छा नहीं है। वह मुड़ जाती है, “लो मैं वापिस जा रही हूँ।”

वह क्रोध में अपने ही धुन में तेज़ चली जा रही है, तभी सामने से आवाज़ आती है, “समिधा जी! कैसी हैं?”

सामने भूतपूर्व डिप्टी एम डी की पत्नी श्रीमती चतुर्वेदी को देखकर अचकचा जाती हैं,“ आप ? नमस्ते मैडम।”

“नमस्ते, बरसों बाद मिलना हो रहा है।”

“जी हाँ, आप यहाँ कैसे?”

“चतुर्वेदी जी तो ट्रांसफ़र के कारण चले गये हैं मुझे बेटे की मेडिकल की पढ़ाई के कारण यहाँ रहना पड़ रहा है। मैं बीस नम्बर बंगले में रह रही हूँ। आप कभी आइए।”

“श्योर ! एक ही कॉलोनी में रहते हुए भी मुझे पता नहीं था कि आप यहीं पर हैं।”

“सभी अपने चक्करों में व्यस्त रहते हैं। ज़माना उल्टा भी चल रहा है।”

“क्या हुआ?”

“चतुर्वेदी जी को दिल्ली प्रेसीडेंट जी से शिकायत करनी पड़ गई है।”

“वॉट? किस बात की?” वह उत्तेजित हो गई हैं।

“उनकी ग़लती इतनी थी कि उन्होंने पाँच लाख की विभागीय चोरी को बचा लिया। बस इसी बात के लिए विभाग के कुछ लोग उन्हें हैरान कर रहे थे। दिल्ली से प्रेसीडेंट साहब ने उन्हें आश्वासन दे दिया है कि वे स्वयं इस केस को देखेंगे।”

चतुर्वेदी जी इतने ऊँचे पद पर है, उन्होंने उतनी ही ऊँचाई पर शिकायत की है लेकिन अदना सी समिधा को कहाँ ऽ ऽ ऽ तक शिकायत पहुँचानी पड़ी है।

X X X X

दिल्ली जाने के एक दिन पहले अभय कहते हैं, “कल सुयश मुझे स्टेशन अपने साथ ले जायेगा। स्टेशन उसके घर के रास्ते में हैं।”

“वॉट? सुयश तुम्हें क्यों ले जायेगा? बरसों से हम इस कॉलोनी में हैं। तुम दिल्ली टूर पर भी जाते रहे हो, आज तक तो तुम्हें वह स्टेशन नहीं ले गया।”

अभय का उतरा मुँह देखकर वह जो समझना चाहती है, वह समझ गई है। ये तीन दिन बाहर जाने का कार्यक्रम ऐसे ही नहीं बना है। ये गुंडों की कोई योजना ही हो, दोहरे आरक्षण करवाये हों। वह चिल्ला उठती है, “अभय ! ये बात तय है कि सुयश भी ‘क्रिमनल पिग’ है। वह भी इस ‘कॉन्सपिरेसी’ में शामिल है।”

“क्या बकती रहती हो?”

“मैंने नवम्बर में ही अक्षत को बता दिया था। इस षडयंत्र में सुयश भी शामिल हैं। यही बात मेरी समझ में नहीं आ रही थी कि तुमने तीन दिन का प्रोग्राम क्यों बनाया है। मैंने एम.डी. मैडम को तुम्हारे टूर के बारे में बता दिया है।”

“तुम हर बात पर शक क्यों करती हो?”

“क्योंकि गुंडों ने तुम्हें घेरकर कुछ सोचने लायक ही नहीं छोड़ा है।”

उसका शक नहीं विश्वास है। वह मैडम के पी.ए. को फ़ोन करती है, “मैं मैडम से दो दिन पहले मिली थी न।”

“जी हाँ, आप आई थीं, मुझे याद है।”

“आपने मेरे दिए पेपर्स उन्हें दे दिए थे?”

“जी हाँ।”

“थैंक्स।”

वह जानती है वह अपने मॉनीटर होने वाले फ़ोन का फ़ायदा उठा रही है। वह तो महिला समिति के होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम के सिलसिले में उनसे मिली थी।

ट्रिक काम कर गई है। अभय के स्टेशन के लिए चलते समय वह पूछती है, “अभय ! सुयश तुम्हें नहीं लेने आ रहा?”

वह अजीब सी हड़बड़ी में है,“उसे मुम्बई जाना पड़ गया है।”

दूसरे दिन वह ऑफ़िस में फ़ोन करके पूछती है,“मैं सुयश से बात कर सकती हूँ।”

“मैडम ! उन्हें आज मुम्बई जाना है इसलिए नहीं आये हैं।”

“क्यों कल रात नहीं निकले हैं?”

“नहीं, आज सुबह गये हैं।”

रिटायरमेंट के करीब पहुँचे दम्पत्ति को तंग करने वाला एक और ‘क्रिमनल पिग’ उसे अब तीन चार वर्ष बाद नज़र आया है? तो क्या अभय की समिधा को दी गालियों में.... धमकियों में..... `तलाक`, `तलाक` , वी आर एस रटाने में, रोली की शादी में दिये `अज्ञात ` नाम के उपहार में, घिनौनी सीडी अभय को मुहैया कराने में, `अकेली औरत क्या कर लेगी?`-इस-धमकी में इस गुंडे का भी हाथ था? वह भी भोले चेहरे वाला सॉफ़्ट स्पोकन गुंडा !

अभय के विभाग में सबसे अधिक रुपया कमाने वाली पत्नियों के पति विकेश व सुयश अंदर से इतने खोखले व घिनौने हैं? उनकी अय्याशियों के बीच समिधा आ खड़ी हुई है, सबसे बड़ा कारण तो यही है। विकेश के पिता अक्सर टूर पर रहते थे। वह घर की ज़िम्मेदारी, यहाँ तक कि अपनी व अपनी बहनों की शादियों तक की ज़िम्मेदारी निबाहता रहा है। सुयश टूटे परिवार का चाचा के यहाँ पला लड़का है। उनसे अभय का प्यार से गुंथा परिवार देखा नहीं जा रहा, ये दूसरा कारण है फिर अकेली औरत को उसकी औकात बताने की ज़िद भर है ?

---------------------------------------------------------------------------

नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail---kneeli@rediffamil.com