Jindagi mere ghar aana - 23 books and stories free download online pdf in Hindi

जिंदगी मेरे घर आना - 23

जिंदगी मेरे घर आना

भाग – २३

स्कूल में तो नेहा बिलकुल व्यस्त रहती पर घर आते ही ख्याल आता कहीं शरद फिर से न आ धमके. वो देर तक साड़ी नहीं बदलती.साड़ी बदलती भी तो पहले की तरह गाउन नहीं पहनती, एकाध बार शीशे में भी झाँक लेती, बाल ज्यादा तो नहीं बिखरे हुए. फिर खुद से ही पूछती वह शरद के प्रति इतनी उदासीन है तो फिर अपने रख रखाव का इतना ख्याल क्यूँ रख रही है और फिर खुद ही जबाब दे देती, सलीके से तो रहना ही होगा...एकदम लद्धड़ सी तो नहीं रह सकती न.

पर शरद नहीं आया, स्कूल में भी पंखुरी के माता-पिता ही आकर उसका एडमिशन करा गये. नेहा को एक हल्की सी कसक भी हुई पर फिर खुद को ही दिलासा दिया, शरद का मिलना यूँ था जैसे किसी प्लेटफोर्म पर दो अलग दिशाओं से आते यात्री मिले, कुछ पल बातें करे और फिर अपने अपने गन्तव्य की ट्रेन पर सवार हो जाएँ.

एक इतवार शैम्पू किये बालों को पीठ पर छितराए, ढीला सा एक कुर्ता पहने हफ्ते भर के अखबार फैलाए लॉन में घास पर बैठी थी. रोज जल्दी में अखबार पर सरसरी निगाह तो डाल लेती थी पर महत्वपूर्ण आर्टिकल जमा कर के संडे को पढ़ा करती थी. जब भी अखबार पढ़ती डैडी जरूर याद आते. भैया को और उसे हिदायत थी कि अखबार पढ़कर उसमे से रोज पांच कठिन शब्द नोटबुक में लिख और उसकी स्पेलिंग और अर्थ याद करें. दोनों खेल कूद में व्यस्त रहते. डैडी के ऑफिस से आने का समय होता तो उन्हें होश आता और फिर दोनों भाई बहन के बीच अखबार की छीना झपटी होती. कई बार इस झगड़े में पेपर फट भी जाता. आज उसे यूँ सर गड़ा कर पेपर पढ़ता देख डैडी कितने खुश हो जाते. वह सर झुकाए पढने में बिलकुल मगन थी.उसे कोई आहट भी ना मिली. जब सोनमती ने आवाज़ लगाईं, ”दीदी जी कुर्सी यहीं ला दूँ या आपलोग अंदर बैठेंगे?’ तब नेहा ने सर उठा कर देखा सामने शरद खड़ा है. इस वक्त??.. अभी तो ग्यारह बज रहे हैं ? इस वक्त कौन किसी के घर आता है? वह कुछ बोलती कि शरद ही बोल पड़ा...”ना ना कुर्सी रहने दो मैं भी यहीं घास पर बैठता हूँ...जाने अंतिम बार कब ऐसे बैठा था.” लेकिन नेहा अखबार सम्भालती खड़ी हो गई...”नहीं नहीं अंदर चलते हैं ना...”

‘तुम जाओ...मैं तो यही बैठूँगा...और हाँ वो अख़बार देती जाओ...नर्म घास पर बैठकर अखबार पढना...वाह ऐसा सुख कभी नहीं मिला..”

नेहा असमंजस में खड़ी रही...’ये शरद ज़रा भी नहीं बदला... उम्र के निशान शरीर पर ज्यादा नहीं दिखते..पर मन पर तो कुछ पड़ते...सेकेण्ड लेफ्टिनेंट से अब कर्नल हो गया है.कुछ तो गम्भीरता दिखाए.

हार कर नेहा भी बैठ गई.

शरद आगे बोला..” ऐसे समय आया हूँ कि चाय से ना टरका सको...खाना खाकर जाउंगा...सोनमती से कह दो “

उफ्फ ये तो गले पड़ने वाली बात हो गई...शरद को क्या पिछला कुछ याद नहीं आता. किस मोड़ पर वे लोग अलग हुए थे...सब भूल गया है.

सोनमती पानी लेकर आई तो नेहा ने कह दिया...” सर लंच यहीं करेंगे ”

“क्या बनाऊं दीदी जी ?” के जबाब में शरद ही बोला, “ जो दीदी जी के लिए बनाती, बस वही थोड़ा सा ज्यादा बना लेना. मेरे लिए कुछ भी अलग से बनाने की जरूरत नहीं.

नेहा ने सर हिलाया. नेहा को पता था, सोनमती तो पार्टी का खाना बना कर रख देगी. उसे नेहा के सादे खाने से बहुत उलझन होती थी. जहां मौक़ा मिले कि वो दस चीज़ें बना कर रख देती है. स्कूल की टीचर्स कभी लंच पर आतीं तो तृप्त हो जातीं. सोनमती की तारीफ़ करते नहीं थकतीं. मम्मी को भी बहुत संतोष था, नेहा को अच्छा खाना मिल रहा है.

नेहा को चुप देखकर शरद ने कहा, “मैंने अखबार पढने में डिस्टर्ब कर दिया ? पढो पढो...एक मुझे भी दे दो “

नेहा गोद में हाथ दिए बैठी रही...” क्यूँ कर रहे हो शरद ऐसा...”

‘क्या..”

“यही एकदम नॉर्मल...जैसे हमलोग कोई पुराने दोस्त हैं, अचानक बिछड़ गए थे...अब अचानक मिल गए हैं “

“ तुम्हें नॉर्मल करने के लिए ही मुझे एक्स्ट्रा नॉर्मल बिहेव करना पड़ रहा है, और इस चक्कर में तुम्हें एबनॉर्मल दिख रहा हूँ. तुम तो ऐसे दिखा रही हो, जैसे मुझे कभी जानती ही नहीं थी. नेहा कुछ पूछो तो, मैं इतने दिन कहाँ रहा...कैसे जिंदगी बिताई.मैं तो सोच बैठा था...तुम शादी करके अपने पति के साथ कहीं होगी...गोलू मोलू से दो तीन बच्चे होंगे और खूब मोटी हो गई होगी“ शरद ने दोनों कोहनियों को फैलाते हुए मोटे होने का इशारा किया और हंस पड़ा..

पर नेहा नहीं हंसी...” मुझे तुम्हारे बारे में पता चलता रहता है..वैल पर्सनल नहीं...प्रोफेशनल लेवल पर “

कश्मीर में एक घर में आतंकवादी छुपे होने की खबर पाकर उस घर को जिस बटालियन ने घेर लिया था.उसका नेतृत्व शरद ही कर रहा था. जब घर के अंदर से गोलियां चलनी बंद हो गईं तो इन्हें लगा था सारे आतंकवादी मारे गए. शरद और उसका जूनियर गन लिए उस घर में घुसे थे. धीरे धीरे चौकन्ने हो कदम बढ़ा रहे थे, तभी दरवाजे के पीछे छुपे एक आतंकवादी ने उनपर गोलियां चला दी थीं, दोनों को गोलियां लगी थीं. आतंकवादी को तो इनलोगों ने वहीँ ढेर कर दिया पर खुद भी बुरी तरह घायल हो गए थे. अखबार की सुर्ख़ियों में ये खबर थी. पूजा-पाठ न करने वाली नेहा ने भी इस शहर के प्रसिद्ध पहाड़ी के देवी मन्दिर में शरद की जिंदगी की मन्नत मांगी थी. खुद को समझाया था कि वह देश के एक सिपाही के लिए मन्नत मांग रही है. शरद के ठीक हो जाने की खबर सुन कर प्रसाद भी चढ़ा आई थी.

नेहा की चुप्पी पर शरद बोला...”हमारी प्रोफेशनल लाइफ की खबर तो सबको होती है. पर कुछ हमारा पर्सनल भी होता है.”

जब नेहा ने फिर भी नहीं पूछा तो शरद ने आगे कहा, ” नेहा...मैं भी बस अब तक भटकता ही रहा हूँ. ज्यादातर बॉर्डर की पोस्टिंग ले लेता था. मेरे लिए कौन इंतज़ार करते बैठा था. उर्मिला भाभी ने आगे पढाई की, टीचर ट्रेनिंग की और अब वे एक आर्मी स्कूल में टीचर हैं. दोनों बच्चे भी माशाल्लाह बहुत अच्छा कर रहे हैं. तुम मुझसे नाराज़ होगी, नाराज़ होना भी चाहिए.पर उस वक्त सचमुच उर्मिला भाभी को मेरी जरूरत थी. उर्मिला भाभी कुछ नहीं जानती थीं, गाँव की भोली-भाली सी लडकी थीं....दुःख में डूबी हुई थीं, कच्ची उम्र थी, उनके साथ कोई नहीं था. मेरा फैसला भावुकता भरा नहीं था वक्त की मांग थी वह. “


“मैं नाराज़ नहीं थी....बस ये दुःख था कि तुमने सारे तार ही तोड़ लिए...हम इंतज़ार कर सकते थे “

“हाँ ये गलती मुझसे हुई....मुझे नहीं पता था तुम इतनी जीवट वाली हो...और तुम कितनी सीरियस हो, ये भी अंदाजा नहीं था “

“ व्हाट डू यू मीन..अंदाजा नहीं था....एंगेजमेंट फिक्स हो गई थी हमारी और मैं सीरियस नहीं थी ??” नेहा ने गुस्से से पूछा.

“ हां मैं गलत था...मुझे लगा तुम नए सिरे से किसी के साथ जीवन शुरू कर लोगी...तुम्हें क्यूँ अधर में रखूँ ? और मुझे भी अंदाजा नहीं था ना कि उर्मिला भाभी इतनी जल्दी सम्भाल लेंगी खुद को. साल भर बाद ही उनके मायके वाले भी साथ आ गए. अब उर्मिला भाभी को पैसे मिले, ये कारण था या कोई और पर उन्होंने उर्मिला भाभी और बच्चों का अच्छा ख्याल रखा और मैं कश्मीर चल दिया. “

“ तुमने शादी नहीं की....?” नेहा ने कुछ डूबती आवाज़ में पूछा.

“ तुमने भी तो नहीं की..” शरद ने नेहा को गहरी नजर से देखते हुए कहा.

“ वो तो मैं स्कूल सम्भाल रही हूँ...”

“हाँ तो मैं भी देश सम्भाल रहा हूँ...”

“क्यूँ देश सम्भालने वाले शादी नहीं करते...?”

“स्कूल चलाने वाले नहीं करते...? ”

“ हाँ नहीं करते...इस स्कूल की शुरुआत से मैं साथ हूँ....ये स्कूल दस वर्ष पहले ऐसा नहीं था...”

“हाँ पता है...जब तुमसे पहली बार मिल कर गया तो सब पता किया....तुमने अपनी मेहनत से स्कूल को सिर्फ अपने पैरों पर खड़ा ही नहीं किया...सरपट दौड़ना भी सिखा दिया...रियली सो प्राउड ऑफ यू “

“ चलो अंदर चलें...अब धूप तेज हो गई है. “ नेहा को इस विषय को और आगे नहीं बढाना था.