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दह--शत - 55

एपीसोड – 55

“हाँ ,आ गये बोलो?” अभय बेशर्मी से विकेश के घर की पार्टी से लौटकर कहते हैं।

“पार्टी में जाने के लिए उस बदमाश का घर ही मिला था?”

“हाँ....अब तो मैं ऐसी पार्टी में जाया ही करूँगा....रोक कर तो देखना।” ये वहशीपन विकेश के भड़काने पर ही उभरता है।

“नहीं रुके तो इस नर्क में स्वयं ही जलोगे।”

“तुम्हें क्या है?” अभय लापरवाह अंदर के कमरे में चले जाते हैं।

समिधा क्या करे ? कविता का शहर में ही तीन दिन छिपे रहने का नाटक, विकेश के घर की वह पार्टी-एक संकेत है-भयानक खेल कभी भी आरम्भ हो सकता है और भी अपने भयावह रूप में। तब वह द्रुत गति से बह जाते अभय को रोक नहीं पायेगी। क्या करे...क्या करे?

देहली में बैठी विभाग के नये प्रेसीडेन्ट शतपथी जी को वह फिर शिकायत करे ? वह उस शिकायत को वापिस इसी केम्पस में छानबीन के लिए भेज देंगे....हो सकता है समिधा पूरी तरह साइकिक करार दी जाये...लेकिन कुछ तो करना ही होगा।

वह एक लम्बी शिकायत पुराने शिकायत क्रमांक का हवाल देते हुए लिखती है। यह भी लिखती है विकेश ने अमित कुमार को पैसा खिलाया है व वर्मा ने अपनी बेटी देकर सही ‘इनक्वॉयरी’ नहीं होने दी है। किस तरह अमित कुमार के इशारे पर सुरक्षा विभाग के लोग डेढ़ वर्ष से उसका पीछा करते रहते हैं। इस बार उसने सुयश के स्थानान्तर की भी माँग रखी है।

शिरायें तनाव से छटपटा रही हैं, दिमाग़ भारी-भारी है फिर भी दुःख भरे मन से वह पोस्ट ऑफ़िस अपने कदम घसीटते हुए जाती है। हर समय लगता है कि कोई ख़तरा आस-पास ही मँडरा रहा है। पोस्ट ऑफ़िस के काउंटर पर वह  रजिस्ट्री करने के लिए लिफ़ाफ़ा आगे बढ़ाती है। उसे देखकर पोस्ट मास्टर कमरे के बीच में रखी मेज़ के सामने वाली कुर्सी से उठकर काउंटर क्लर्क के पीछे खड़े हो जाते हैं।

लौटते में उसके कदम लटपटा रहे हैं। उस पत्र पर ए.डी. स्लिप ठीक से लगी है या नहीं, याद नहीं आ रहा।

अभी तीन दिन ही बीते हैं कि सुमित उसके दामाद का फ़ोन आ जाता है। उनका स्वर घबराया हुआ है, “मम्मीजी ! नमस्ते ! मैं हॉस्पिटल से बोल रहा हूँ।”

वह घबरा जाती है, “क्या हुआ? रोली ठीक तो है?”

“उसकी तबियत ख़राब है कुछ बी.पी. बढ़ रहा है। आप यहाँ आ सकती हैं?”

“ज़रूर आ जाऊँगी। डिलीवरी तो नवम्बर में ड्यू है। अक्टूबर में मुझे आना ही था।”

“रोली का बी.पी. बहुत ‘हाई’ रह रहा है। उसे बेड रेस्ट बताया है। प्लीज़ ! आप अभी से यहाँ आ जाइये।”

“ज़रूर आ जाऊँगी।” जब तक वह रोली से फ़ोन पर बात नहीं कर लेती उसे चैन नहीं पड़ता।

x    x   x

रोली के घर के सरसराते पर्दे, गमलों में झूमते फूल व पत्तियाँ...बर्तनों की खनखनाहट..... घर का हर कोना नन्हें मेहमान की प्रतीक्षा में पलक पाँवड़े बिछाये...रुई के फाये जैसी एक कोमल छौनी गंध के इंतज़ार में बैठे हैं। यहाँ हफ़्ते भर में बहाना कर अपने शहर अपने घर एक दिन के लिए आती है। अभय ऑफ़िस में हैं। डुप्लीकेट चाबी से घर का दरवाजा खोलती है। दो-चार पत्रों के साथ दरवाजे के सामने पड़ी है देहली भेजे गये पत्र की ए.डी.स्लिप। वह व्यग्रता से उसे उठाकर देखती है। उस पर देहली पोस्ट ऑफ़िस की मुहर नहीं है, न प्रेसीडेन्ट कार्यालय की, बस कुछ गोल हस्ताक्षर किये हुए हैं। वह तुरन्त ही दिल्ली प्रेसीडेन्ट के उनके सचिव से बात करती है। पता लगता है उसका पत्र सच ही वहाँ नहीं पहुँचा है। उसकी आवाज़ क्षोभ व गुस्से से थरथरा जाती है, “मैं दो वर्ष पूर्व भी प्रेसीडेन्ट से शिकायत कर चुकी हूँ। यहाँ केम्पस में शिकायत फ्लॉप कर दी गयी थी। ये दूसरी शिकायत पहुँचने नहीं दी।”

“ वैरी  स्ट्रेन्ज।”

“आपने अख़बार में रीमा भल्ला की आत्महत्या के प्रयास के बारे में पढ़ा होगा.... बस वही मेरा हाल हो रहा है। यहाँ से वहाँ तक भाग-दौड़ कर रही हूँ। कोई मेरी बात पर ध्यान नहीं दे रहा है।”

“मैडम ! आप ई-मेल पर अपनी पूरी बात एक्स्प्लेन कीजिये।”

दूसरे दिन रोली के घर जाना है। अभय ऑफ़िस के लिए निकल रहे हैं। वह एक काग़ज को उनके हाथ में थमाती है। वह चौंकते हैं, “ये किसका ई-मेल आई.डी. है?”

“ये बात तुम्हें विकेश भी नहीं बता पायेगा। अपने सुपर-डुपर आका अमित कुमार से पूछना ये किसका है?”

अभय को इसी तरह डराकर वह कुछ दिनों गुंडों से दूर रख सकती है। इस शिकायत के डर से वह उनसे न रुपये खींचने की कोशिश करेंगे, न ड्रग देने की। अक्षत जब रोली के घर आता है तो वह उससे कहती है, “अक्षत ! मुझे नये प्रेसीडेंट से शिकायत करनी पड़ रही है। उनके बंगले पर मैडम के नाम इसे पोस्ट कर देना। इसमें नकली ए.डी. स्लिप की ज़ेरोक्स भी रख दी है।”

“श्योर।”

दिन आहिस्ता आहिस्ता सरक ही रहे हैं। वह ‘रिलायंस फ़्रेश’, ‘मोर’, ‘स्टार बाज़ार’, ‘बिग बाज़ार’ से सामान ख़रीदने वालों की दुनिया  में  आ गई है। कितना कुछ नया जानते चले जाते हैं, जीवन का हर बदलाव आकर्षक लगता है।

“वुड बी ग्रेनी (दादी) हाऊ आर यू?” फ़ोन पर नीता चहकती है।

“फ़ाइन ! चल तुझे याद तो आई।”

“तू भी तो फ़ोन कर सकती थी। अच्छा ये बता तेरा मन वहाँ लग रहा है?”

“कुछ लग गया है, कुछ लगाना पड़ता है। यहाँ पास की बिल्डिंग में अपने केम्पस के इलेक्ट्रिक हेड सिन्हा जी का बेटा रहता है। तू तो जानती है मिसिज आशालता सिन्हा बहुत मिलनसार व प्यारी महिला है। वह भी बहू की डिलीवरी के लिए यहाँ आई हुई  हैं । ‘इनफ़ेक्ट’ उनके पोते के नामकरण संस्कार में मैं भी गई थी। ”

“ओ ऽ ऽ ऽ.......सो यू आर लिविंग इन ग्रेनी’ज फ़ौज।”

“येस ! आइ एम प्राउड वुड बी ग्रेनी हा....हा...हा....।”

“एक बात तुझे बतानी ज़रूरी है। तुझे बुरा तो नहीं लगेगा?” नीता की आवाज़ झिझकी हुई है।

“डोन्ट हेज़ीटेट, बता ना।”

“एम.डी. मैडम के कहने पर डिप्टी एम.डी.ने अभय के विभाग के एसिस्टेंट मैनेजर द्वारा अभय को बुलवाया था। वहाँ अभय स्टेटमेंट दे चुके हैं कि तुम्हारा मानसिक संतुलन बिगड़ा हुआ है ।”

“इस गैंग व अमित कुमार के भय से वह और कह भी क्या सकते थे?”

“व्हाई आर यू सो लिबरल टु योर पति परमेश्वर?” वह चीखती सी है।

“अभय कुछ भी कहते रहें, मेरा उद्देश्य पूरा हो गया है कि इस ‘इन्क्वायरी’ से गुंडे उनसे दूर रहेंगे। जब मैंने दिल्ली प्रेसीडेंट से शिकायत की थी तब मुझे पता थोड़े ही था कि मुझे रोली के घर जाना है। ये ऊपर वाले का ही चमत्कार है। अभय इस शिकायत से कुछ बचे रहेंगे। मैं श्रीमती सिन्हा से बात करती हूँ कि वे मैडम को बता दें कि मेरी दिमाग़ी हालत  है।”

वह फ़ोन रखकर आशालता सिन्हा जी को  फ़ोन  मिलाकर अपनी समस्या बतानी है।

वह मुलायम स्वर में कहती है,“समिधा ! ये प्रेसीडेंट ऑफ़िस से आई इन्क्वायरी है इसलिए मैं या मिस्टर सिन्हा अपने आप एम.डी. मैडम से कुछ नहीं कह सकते। यदि वे हमसे कुछ पूछती हैं तो उन्हें बता देंगे तुम बिल्कुल नॉर्मल हो।”

“थैंक्स ! इतना ही सही।”

समिधा को चैन नहीं है। वह अपने शहर एम.डी. मैडम से फ़ोन पर बात करती है, “मैडम ! आपने जब अभय से पूछताछ की है तो विकेश, वर्मा व मुझसे तो पूछताछ करवाइए। आप समय बताइए मैं तुरन्त ही यहाँ से आ जाऊँगी।”

“दो दिन बाद जी.एम. साहब आ रहे हैं, मैं बिज़ी हूँ। बेटी की डिलीवरी के बाद यहाँ आ जायें, तब मिलिए।”

“वॉट?”

उधर से फ़ोन कट जाता है।

दुनिया की सारी चिन्तायें अवसाद भूल कर सारा घर रोली की नवजात बेटी की राह में बिछ गया है। सुमित नेट पर देखकर इस नवजात की छठी बहुत शास्त्रीय विधि से सम्पन्न करते हैं। नन्हीं को लाल रंग का झबला पहनाया जाता है। मंदिर के सामने चौकी पक हरे कपड़े पर एक नई डायरी रखकर उस पर एक कलम रखकर पूजा की जाती है विधाता से सभी प्रार्थना करते हैं उस छौनी को दुनिया का हर सुख नसीब हो, ऐसा उसके भाग्य में लिखना।

समिधा फिर बेचैन हो उठी है, केम्पस में धीरे-धीरे बात फैल रही होगी कि समिधा की मानसिक अवस्था ठीक नहीं है। उस केम्पस में कौन जानता होगा कि उसके पति के दिमाग़ को शैतानी ताकतों ने बेबस कर रखा है। नये डिप्टी एम.डी. तक को प्रशासन ने खबर नहीं लगने दी होगी कि समिधा ने दिल्ली तक शिकायत की है। इस शहर से समिधा का कोई पत्र उन तक पहुँचने नहीं दिया जायेगा।

वह अमित कुमार की शिकायत सहित सभी पत्र एक लिफाफे में रखकर अभय के विभाग के एसिस्टेंट मैनेजर को रजिस्टर्ड पोस्ट से भेज देती है। दूसरे दिन ही अभय दो दिन की छुट्टी लेकर दीपावली मनाने रोली के घर आ गये हैं। उनके आते ही उनके ऑफ़िस वालों के  फ़ोन  की झड़ी लग जाती है। समिधा मुस्कराकर नवजात के लिए बधाई स्वीकार कर रही है। लेकिन जब विकेश का  फ़ोन  आता है तो अभय के चेहरे का रंग उड़ जाता है।

विकेश के बेटे की शादी दो दिसम्बर की है। समिधा उसका पिटा हुआ चेहरा याद करके सुकून पा रही है। रोली की शादी से पहले भी तो उसके खौफ़नाक ताँडव खेला था। इसी तिलमिलाहट, विभाग में हुए अपमान से घिरा वह अपने बेटे की शादी की तैयारी कर रहा होगा।

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नवजात के नामकरण संस्कार की पार्टी के बाद अभय व समिधा अपने शहर लौट आये हैं। इन ढाई महीनों के बाद अपना केम्पस अपना घर, अनजाना लग रहा है . विभागीय  फ़ोन  खराब पड़ा है..... लेन्ड लाइन फ़ोन नहीं चल रहा। वह अपने मोबाइल से एस.एम.एस. करने की कोशिश करती है, मोबाइल नेटवर्क नहीं पकड़ रहा। इस घर में कैसी काली ऊर्जा इकट्ठी हो गई है?

एक महीने तक वह प्रतीक्षा करती रहती है। मैडम उसे बुलवायें। जब कोई बुलावा नहीं आता तो वह समझ जाती है कि जाँच की खानापूरी कर दी गई है। ऐसा कर भी दिया हो तो क्या विकेश व सुयश के उसके भेजे पत्र के कारण छक्के छूट गये हैं।

बहुत जल्दी ये बात प्रमाणित हो जाती है। वह अस्पताल जा रही है सामने से विकेश चला आ रहा है ड्रग्स लेने का खुमार व विकृतियाँ उसके मोटे हुए शरीर में बिछी हुई हैं। समिधा ने उसके चेहरे पर अपनी जलती आँखें जड़ दी हैं। वह सकपका कर आँखें बिल्कुल नीचे किये पास से गुज़रने लगता है। समिधा के अंदर तंग की गई औरत ज़ोर से बोल उठती है,“पिग !”

वह घर पहुँचकर अपना अवसाद दूर करने के लिए आशालता जी को  फ़ोन  करती है,“भाभी जी! मैं ज़रा आपसे मिलने आना चाहती हूँ। सुना है आप भी बहू की डिलीवरी करवा कर वापिस आ गई हैं।”

“ओ श्योर ! तुमसे तो मिठाई भी खानी है नानी जी।”

“डेफ़िनेटली।” वह उनके बंगले में बैठकर सारे कागज़ात दिखाने लगती है, “अब आपके पास बात पहुँच गई तो है तो आप व सिन्हा साहब असली बात भी जान लीजिए।”

“मुझे तुम पर पूरा विश्वास है। जब तुम ‘एडमिनिस्ट्रेशन’ से शिकायत कर रही हो तो वह ‘फ़ेमिली’ क्यों नहीं अपनी सफ़ाई देने पहुँची?”

“दे आर क्रिमनल्स, किस मुँह से जायेंगे?”

उसी शाम अभय चाय पीते हुए उसे बताते हैं, “कल सुबह दस बजे एक इंस्पेक्टर तुम्हारे स्टेटमेंट लेने आ रहे हैं।”

“कहाँ के इंस्पेक्टर?”

“अभय चुप है।”

वह चिढ़ाती है,“क्या फ़ूड इंस्पेक्टर बयान लेने आयेंगे?”

वह चिढ़ जाते है, “क्या फ़ूड इंस्पेक्टर बयान लेते हैं?”

“तुम्हें पता है मैं आशालता सिन्हा जी से मिली थी इसलिए अमित कुमार को इंस्पेक्टर को भेजना पड़ रहा है। तुम्हारा विभाग एक ‘सेपरेट यूनिट’ है। श्री सिन्हा मुख्यालय के एक विभाग के प्रमुख है। उन्होंने ‘डॉक्यूमेन्ट्स’ देख लिये हैं तो अमित कुमार की बदनामी तो होनी ही है। वह व एम.डी. मैडम मुझे क्यों साइकिक साबित करने की कोशिश कर रहे हैं ?”

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नीलम कुलश्रेष्ठ

ई -मेल – kneeli@rediffmail.com