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दह--शत - 59

एपीसोड –59

धार्मिक गुरू मीता शाह की कार चलने को है। वह अपनी परेशानियों का पुलंदा एक लिफ़ाफ़े में रखकर  लाई है। उनके हाथ में देते हुए कहती है, “मुझे आपकी सहायता चाहिए।”

वह मुस्कराकर उससे लिफ़ाफ़ा ले लेती हैं, “ठीक है।”

उनकी कार चल दी है, समिधा के दिल में आशा की ज्योत जलाकर। इनके ट्रस्ट के स्कूल के बच्चे भी समिधा के पास पढ़ने आते हैं। ट्रस्ट से अनेक अस्पताल व महिला योजनायें संचालित हो रही हैं।

कोचिंग संस्थान से कार्यक्रम के फ़ोटोज़ मीता बेन को पहुँचाने का काम उसे सौंपा जाता है। वे मंदिर के प्रांगण में बने एक छोटे से मकान में रहती हैं। समिधा एक दिन उनसे समय लेकर उनके घर के सोफ़े पर बैठकर उनसे पूछती हैं, “आपने मेरा वह पत्र पढ़ा?”

“कल मेरी रेडियो टॉक थी। मैं उसकी तैयारी करती रही, पढ़ नहीं पाई। मैं आपको कैसे बताऊँ, मैं क्या सहायता कर सकती हूँ।”

“कुछ तो रास्ता दिखाइये।”

“अभी पढ़ा ही नहीं है तो क्या बताऊँ?”

समिधा के विवर्ण चेहरे को देखकर वह ठहरी और गंभीर आवाज़ में कहती हैं, “जब हम मुसीबत में हों और सारे चेतन प्राणियों से सहायता माँगकर थक चुके हों। कहीं से सहायता न मिल रही हो तो हमें जड़मूर्ति में चेतना का संचार करके प्रभु से प्रार्थना कर सहायता माँगनी चाहिये। ये सामने कृष्ण की मूर्ति मानों तो जड़ है, मानो तो चेतन।”

चारों तरफ़ से मुसीबत में फँसी समिधा हाथ जोड़कर कमरे के संगमरमर के विशाल मंदिर में बाँसुरी बजाती कृष्ण की मूर्ति के सामने तकलीफ़ से तड़फड़ाते सहायता माँगने लगती है, “कुछ तो रास्ता दिखाइये ईश्वर !”

प्रार्थना के बाद वह मीता बेन को नमस्कार करके चल देती है। मन व्याकुल है, कदम बोझिल हो घिसट रहे हैं।

एक सप्ताह बाद ही उसे परिवार के दो विवाहों में अलग-अलग शहर जाना है। ये निराश उन सामूहिक आह्लाद में घुल गई है। अपने शहर बड़ी उम्मीद से लौटती है शायद उसकी प्रार्थना फल गई हो लेकिन कहीं कोई संकेत दिखाई नहीं देता। अभय ऑफ़िस से लौटकर बताते हैं, “कल से मेरी कम्प्यूटर ट्रेनिंग शुरू हो रही है, लंच पर देर से आया करूँगा।”

केम्पस में पहले से शैतान कम थे, अब उनका बॉस बन बैठा है महाशैतान अमन। अभय को घर देर से आने का बहाना तैयार किये बैठा है। समिधा झुँझला उठती है ऊपर वाला बेमुरव्वत कहाँ छिपा बैठा है ?

अभय की ट्रेनिंग के दूसरे दिन ही उसके मोबाइल पर एक अनजानी आवाज़ है, “मैडम ! आपने जो ‘कम्प्लेन’ की थी। उन बदमाशों में से दो के मोबाइल नम्बर मिल गये हैं, आप नोट करिये।”

समिधा जल्दी-जल्दी एक काग़ज़ पर उन्हें नोट कर देती हैं फिर हैरानी से पूछती हैं, “लेकिन आप हैं कौन?”

“आपका वैल विशर, पहले मुझे नहीं पता था कि ये लोग ड्रग ‘सप्लाई’ करके लोगों को ‘एडिक्ट’ बना रहे हैं।”

“लेकिन आप....। ”

फ़ोन कट जाता है। वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। बाहर जाकर एसटीडी बूथ से पहला नंबर डायल करती है। अधूरे से नशीली लेकिन परास्त आवाज़ है, “हलो ऽ ऽ ऽ ....।”

“कहिये ज़हरीली महापिशाचिनी जी! आपके क्या हाल हैं?” 

उधर से “खट्” आवाज़ आती है।

डायल किये दूसरे मोबाइल नम्बर पर विकेश की आवाज़ सुन कर वह कहती है, “ज़हरीली नागिन के पिम्प जी ! क्या हाल-चाल है?” 

उसे एक और “खट” सुनाई देती है। वह अभय को एस एम एस कर देती है, “राक्षसों के ये मोबाइल नंबर मुझे मिल गये हैं।” 

रात को इसकी प्रतिक्रिया सड़क पर देखने को मिल जाती है। अमित कुमार के बंगले के सामने दो ख़ाकी वर्दी वाले बाइक लिये खड़े हैं। अभय व वे थोड़ा आगे बढ़ते हैं तो एक परिचित इंस्पेक्टर अभय को जोशीला सलाम ठोंकता समिधा को व्यंग से मुस्करा कर देखता पास से निकल जाता है। लौटते में दो वर्दी वाले साइकिल पर समिधा के पास से निकल गये हैं। समिधा मुस्करा उठती है, उसके हाथ जैक पॉट लग गया है।

दूसरे दिन वह अभय को एक झूठा एसएमएस कर देती है, “शहर के पुलिस विभाग की आई.पी.एस. अधिकारी गीता दास को मैंने मीताबेन की सहायता से ‘डाक्यूमेन्ट्स’ पहुँचा दिये हैं। गीता दास से अच्छे-अच्छे अधिकारी काँपते हैं।”

रात आठ बजे टहलते समय की हवायें बहुत नम व मस्ती से चल रही हैं। अमित कुमार के बंगले का गेट शांत है। वह जानबूझकर गर्दन मोड़कर बंगले के अंदर देखने की कोशिश करती है, उसे कुछ नहीं दिखाई देता, न रास्ते में कोई ख़ाकी वर्दी नज़र आती है।

समिधा को एफ.आई.आर. करनी नहीं है जो इन मोबाइल्स के कॉल मॉनीटर हो सके। क्या करे वह ? शायद वर्मा को ये बात पता न लगी हो कि समिधा के हाथ मोबाइल्स नंबर लग गये हैं। पत्र डालने के सिवाय कोई चारा नहीं है। लेकिन वह कहाँ रहा रहा होगा बाजवा या कॉलोनी के घर ?वह कविता के केम्पस के व बाजवा के घर के पते पर वर्मा के नाम दो पत्र लिखती हैं, “तुमने मेरा घर बर्बाद कराना चाहा, तुम्हारा अपना घर दो घरों में व अड्डों में बँट गया। तुम्हारी भयंकर बीबी लोगों को गाना सुनवाती थी, ‘ये भोग भी एक तपस्या है। तुम त्याग के मारे क्या जानो।’ तो तुम्हारी बेटी ‘कीप’ बन गई व बेटा ‘पिम्प’। ये दो मोबाइल नंबर्स  मुझे मिल गये  हैं.  यदि अब भी अक्ल हो तो हथकड़ी लगने से पहले शहर छोड़कर चले जाओ।”  

तीसरे दिन ही पत्रों का परिणाम सामने  आ जाता है। रात को घूमते समय अभय व वह चलते-चलते चौराहे के निकट पहुँच रहे हैं कि अमित कुमार की गाड़ी हॉर्न बजाती.....न....न....चीखती स ऽ ऽ ऽ  र्र से गुज़र जाती है। वह लौटते में देखती है कविता बालकनी में गहरे रंग की मैक्सी में खड़ी है। इस क्रोध से फनफनाती काली आकृति को देखकर कौन कहेगा कि इस शैतानी खेल की शुरूआत इस औरत ने की है। 

कुछ भी कर लो....वातावरण कुछ दिन ही सहमा रहता है। 

दूसरे सुबह पीछे कम्पाउन्ड में वह कविता की बाई कोकिला की आवाज़ सुनती है जो रक्षाबेन से कह रही है, “रक्षा बेन! आज हम पोताने (अपने) मकान में जा रहे हैं।”

“सारू ! कॉलोनी वालों को भूल मत जाना।”

“ऐसा क्यों बोलती है?”

“अपना सरनामा (पता) आपी जा।”

“मकान का नंबर भूल में पड़ गया है बाद में बताऊँगी।”

“सारू।”

समिधा उस घर के आऊट हाउस के अंधेरे को देखकर ही खुश होती रहती है। उस पूरे घर को अँधेरे में डुबो देने का संकल्प हिरण हो जाता है। होता ऐसा है किसी परिचित की बीमारी से मृत्यु होने के कारण अभय सुबह दस बजे ऑफ़िस से घर आ गये हैं। वे दोनों अभी अस्पताल के पास पहुँचे ही हैं कि उसके गेट से अमन व प्रभाकर आते दिखाई दे जाते हैं। दोनों के चेहरे पर सुरूर भरी चिकनाहट है। अमन अपनी चढ़ी आँखों से बेशर्मी से झुककर हाथ जोड़कर कुछ व्यंग से नमस्ते करते हैं, “भाभी जी ! नमस्ते। कहिये आपकी शिकायत काक्या हुआ ?”

नमस्ते तो उसे लेनी ही पड़ेगी। “नमस्ते !” कहते हुए उसका मुँह टेढ़ा हो गया है। 

 आगे जाकर हड़बड़ी में अभय कहते हैं, “बिचारे का ऑफ़िस के तनाव के कारण बी.पी. बढ़ गया है।”

“उसका कौन सा बी.पी. बढ़ा है, मुझे पता है।” मातमपुर्सी में जा रही है वह चीख भी नहीं पाती.....तो गोया मुम्बई ज़ोन वालों व देहली ऑफ़िस वालों के पास विकेश व अमित कुमार ने दोनों नशों को डालकर सही रिपोर्ट पहुँचने नहीं दी होगी। वे सारे लोग गला फाड़कर घोषणा कर रहे होंगे कि एक साइकिक औरत शिकायत कर रही है। अमन की बात तो और भी मानी जायेगी क्योंकि वह तो समिधा के यहाँ दो तीन बार लंच लेकर गया है।

वह छटपटाकर अमन की बीवी को उसके शहर गोधरा फ़ोन मिलाती है, “ऊषा ! तुम मिलने नहीं आई?”

“भाभी ! मैं दो तीन बार आई थी लेकिन आप हमेशा शहर से बाहर गई हुई थीं।”

“मैं बाहर गई हूँ ये झूठ अमन तुमसे कहते होंगे।”

“जी?”

अमन अभय का अब बॉस है। वह खुलकर कुछ नहीं कह पाती बस संक्षिप्त में बात बता कर कहती है, “अमन जी से कह देना हॉस्पिटल के अड्डों की बात बहुत लोगों को पता लग गई है। कभी भी छापा पड़ा तो अमन जी के एडमिनिस्ट्रेशन की बदनामी होगी।”

“मैं इनसे कह दूँगी।”

तीन चार वर्ष पहले वह समझती थी कि कविता अपना फ़्लैट  बंद किये अंदर डरी सी पड़ी रहती है। उसकी कितनी बड़ी ग़लतफहमी थी। वह सुबह से जाकर उस अड्डे पर पड़ जाती थी। वह सुबह छः बजे वर्मा के साथ ड्यूटी पर निकल जाती होगी। अस्पताल में जाने के लिए बहाने की आवश्यकता नहीं है। कोठे वालियाँ भी अपना धंधा शाम को आरम्भ करती हैं और ये.... हे भगवान ! पैसे के लालची व्यवसायी विकेश ने उस ड्रग बेचने वाले एजेंट से सम्पर्क किया होगा जिससे कविता ड्रग ख़रीदती होगी। विकेश उस एजेंट से ड्रग माफ़िया तक पहुँचा होगा। अपने विभाग के, अपने सम्पर्क के, अपने व्यवसाय के जाने कितने लोगों को उसने ड्रग एडिक्ट बनाया होगा .तभी कविता ने कॉलोनी की कुछ बदचलन  औरतों का नैट वर्क बना लिया होगा। 

        जंग के मैदान में ‘तलाक’ रटाने वालों को जवाब दे चुकी है। उसके घर में दो प्यारे सदस्य बढ़े हैं तो अब वह तनाव क्यों बढ़ाये? चलने से पहले अभय की डायरी में से उसको ऑफ़िस के बदमाशों के घर का नम्बर डायल कर उनकी पत्नियों को सच्चाई बता देती है या उनके घरों में फ़ोन बम फोड़ देती है।

रिटायरमेंट के कुछ महीने पहले वे वे लोग अक्षत व मोनिशा के पास अपना सामान समेटकर मुम्बई आ गये हैं. पाँच वर्ष के घाव,  वे घातक वार समिधा कैसे भूल जाये ? अभय का उद्विग्न  रहना धीरे-धीरे बंद होता जा रहा है। दिन गुज़र ही रहे हैं।

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मुम्बई में रोली सुमित सहित उसकी बर्थडे के दिन आ धमकती है। अभय ने जिस क्लब की मेम्बरशिप ली है, उसी में परिवार समिधा की बर्थ डे मनाने जाता है।  दूसरी सुबह रोली उसके गाल में बाँहें डालकर झूम उठती है। वह हैरान है, “अरे ! सुबह-सुबह ऐसी क्या बात हो गई?”

वह आज का अंग्रेज़ी अख़बार उसके सामने फैला देती है, “देखिए क्लब ने अपने एड में दो और फ़ैमिलीज़ के साथ हमारी फ़ैमिली की फ़ोटो दी है।”

“ वाऊ ।” अपने हँसते मुस्कराते परिवार को देखकर उसकी आँखें नम हो आई हैं। रोली उसे अपनी बातों में जानबूझकर उलझा देती है, “माई ब्रेवो मम्मी ! आज एक और पार्टी मेरी तरफ़ से।”

इसके दूसरे दिन एक फ़ोन बम अचानक फूट पड़ता है। विकेश की मोबाइल पर तुर्श आवाज़ है। वह अभय के पास बैठी सुन रही है, “भाभी को फ़ोन दो,उन्होंने मेरी फैक्ट्री में, मेरे घर पुलिस भिजवा दी....मैं उन पर मानहानि का मुकदमा करूँगा।”

अभय  सफ़ाई दे रहे हैं, “वो ऐसा क्यों करेंगी?”

इस बार प्रतिमा की आवाज़ है, “अपनी बीवी को फ़ोन दीजिये.....हमारी इज्ज़त मिट्टी में मिला दी। फैक्ट्री व घर पर पुलिस छानबीन करने आई थी।”

अभय ने उसे मोबाइल देने की कोशिश की, “लो बात करो।”

समिधा क्रोधित हो उठी, “मैं इन क्रिमिनल्स पिग्स से बात करूँगी? दो वर्ष वो शहर छोड़े हो गये फिर भी जीने नहीं दे रहे।”

अभय असमंजस में प्रतिमा से कहते हैं, “वो बात नहीं करना चाहती।”

“कैसे बात नहीं करेंगी? मैं उन्हें कॉर्ट में घसीट दूँगी...ऐसा मज़ा चखाऊँगी कि जेल में चक्की पीसेंगी।”

“ओ.....अभय अब समझ में आया। ये अंग्रेज़ी अख़बार हर शहर में जाता है....पिग्स का कलेजा काला होना ही है। उसमें हमारे परिवार की हँसती मुस्कराती फ़ोटो जो है।”

“क्या बक रही हो?”

वह जानबूझकर ज़ोर से बोल रही है, “उसमें उस औरत का फ़ोटो है जिसे धमकी दी जाती थी कि अकेली औरत क्या कर लेगी? तुम्हें  ‘तलाक’,  ‘तलाक’ रटाया जाता था। मुझे पुलिस भिजवानी होती तो दो वर्ष पहले ही भिजवा देती।”

उधर से फटाक से फ़ोन कट जाता है।

लेकिन वह कैसे भूल सकती है- अमन की बीबी डिप्रेशन मे चली गई थी। उसे गुंडे पागल साबित कर रहे हैं विकेश की पत्नी हर  ग़लत  काम में साथ दे रही है इसीलिये उसकी छवि अच्छी है ?

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नीलम कुलश्रेष्ठ

ई -मेल – kneeli@rediffmail.com