आपकी आराधना - 18 (12) 285 618 1 अग्रवाल हाऊस का ये गेट जहाँ आराधना ने अपना पहला कदम रखा था और उसे तो ऐसा एहसास हुआ था जैसे उसके आने पर ये गार्डन के फूल-पत्ते उसके स्वागत मे ही खिले हों और अपनी खुशियाँ बिखेर रहे हो। पर आज इस गेट पर लगे ताले को देखकर तो काटों की चुभन सी महसूस हो रही है। चौकीदार ने यहाँ भी तो वही खबर सुनाया जो ह्रदय को चीर कर किसी जहरीले बाणों की तरह निकल गये हो। कितने सुनहरे सपने सजाए थे उसने और इंतजार बस उस दिन का था जब मनीष के साथ वह अपने ससुराल मे कदम रखे। लेकिन हवा का एक झोंका न जाने कहाँ से आया और उसके सारे सपने ताश के पत्ते की तरह बिखर गये। वह जोर से रोना चाहती थी और बयाँ करना चाहती थी अपने ह्रदय मे उठती तूफान सी लहरों को जो पल-पल उसकी आत्मा पर अपने वेग से प्रहार करते जा रहे थे। लेकिन अब रोने से क्या फायदा? ये तो उसकी किस्मत का ही खेल है, न जाने क्यों उसे भ्रम हो गया गया और वह मनीष को अपना मान बैठी। क्या ऐसा भी हो सकता है? किसी अनाथ लड़की की जिन्दगी अचानक बदल जाये। " चलिये आराधना जी, अब यहाँ क्या बचा है?" अमित ने आराधना का हाथ पकड़ते हुए कहा। " यहाँ से कहाँ जाऊँगी अमित जी, मेरी जिंदगी तो यहीं से शुरू हुई थी और मैं चाहती हुँ कि अब यहीं खत्म हो जाये " " आर यू मैड? आराधना जी यहाँ कोई अपना नहीं है आपका फिर भी .. और अकेली कहाँ रहेंगी आप? " " अकेली..... मै अकेली तो बचपन से हूँ अमित जी। मेरा कोई नहीं है इस दुनिया में आप मुझे अपने हाल पर ही छोड़ दीजिये " आराधना की बातों मे दर्द था। " आप ऐसी बातें क्यों करती हो? आराधना जी मैं तो हुँ ना आपके साथ " " आपने मेरा बहुत साथ दिया अमित जी, पर अब मै नही चाहती कि मेरी वजह से आप..." " बस आराधना जी.. बस.. मै तो आपको अपना मानता हुँ और आप.... कैसे देख सकता हुँ मै आपको इस हाल मे? मेरी माँ कहती है किसी की परेशानियों को हल न कर पाओ पर उसके साथ रहकर कम से कम उसका सहारा तो बन सकते हो न। हमसफर न सही एक दोस्त बनकर तो आपका साथ दे ही सकता हुँ मै " अमित के इन बातों मे आराधना के लिए चिंता साफ झलक रही थी और वह उसकी ओर प्यार भरी नजरों से देखता रहा। आराधना ने अपने आप को सँभालते हुए कहा कि वह जैसे-तैसे अपनी जिन्दगी गुजार लेगी। अमित को भले ही उसने लौट जाने को कहा पर अंदर ही अंदर वह टूट कर बिखरती जा रही थी। लेकिन वह नही चाहती थी उसकी वजह से अमित को भी परेशानियों का सामना करना पड़े। अमित का मन मानने को तैयार ही नही था, कैसे आराधना को वह अकेला छोड़ सकता था? जिसकी कोख अभी सूनी हो गयी हो और जिसे सुनहरे सपने दिखाकर ठुकरा दिया गया हो। वह एकाएक बढ़ा और आराधना का हाथ पकड़ते हुए बोला- " अगर आपको कोई ऐतराज न हो तो मै आपको अपनाना चाहता हुँ आराधना जी, आपकी सूनी जिन्दगी मे खुशियों के रंग भर दूँगा मै, एक बार मुझ पर यकीन करके देखिए आपके सारे दर्द मिटा दूँगा, इसे मेरा ऐहसान न समझना बल्कि ये मेरी खुशनसीबी होगी अगर आप मेरा हाथ थामे तो " इन बातों से आराधना सहम सी गयी, उसने झटके से अमित का हाथ छुड़ाया। उसकी अंतरात्मा को गहरा आघात सा लगा और कुछ समझ ही न आया आखिर अमित ने ये क्या कह दिया? अभी तो उसका दिल प्यार के इस दर्द से उबर ही नही पाया और फिर से उसके सामने ये प्रस्ताव... वह बेचैन सी हो गयी और एक पल तो उसे ऐसा लगा जैसे अमित की जगह कोई और रहता तो वह उसे तमाचा जड़ देती। लेकिन अमित की अच्छाई इतनी ज्यादा है कि उसे तो सारी उमर उसका एहसान मानना चाहिए। गरियाबंद जैसे अनजान शहर मे अमित न होता तो क्या होता? कोई अपना भी इतना नही करता फिर ये तो वह शख्स है जो पराया होकर भी अपनी पूरी जिन्दगी उसके नाम करना चाहता है। भले ही मनीष ने उसे बीच राह पर छोड़ दिया पर जरूरी तो नही कि अमित भी ऐसा करे। अब उसकी जिन्दगी मे बचा ही क्या? अमित आराधना पर कोई दबाव नही बनाना चाहता था इसलिए उसने सामान से भरे बैग मे कुछ रुपये छुपा कर रख दिये और उसे सौंपते हुए जाने लगा। वह कुछ दूर तक ही चल पाया था कि आराधना दौड़ते हुए उसके पास आई और कहा- " जिन्दगी ने इतने रंग दिखा दिये कि अब कोई ख्वाहिश नही है मेरी, पर आपकी बातों को ठुकरा कर मै खुद अपनी नजरों मे गिर जाउँगी, मै अपनी पूरी जिन्दगी आपके नाम कर दूँगी अमित जी " आराधना के ये बोल फूटते ही अमित ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए प्यार भरा स्पर्श किया और जीवन के हर संघर्ष मे उसका साथ निभाने का वादा किया। अमित उसे अपने साथ गाँव ले कर गया और घरवालों के आशीर्वाद से ही उसको अपनी जीवनसंगिनी के रूप मे स्वीकार किया। अमित की कोई बहन नही थी शायद इसलिए आराधना को उन्होंने घर की रानी बना कर रखा। शादी के बाद अमित ने गरियाबंद छोड़ दिया और कुछ सालों तक गाँव मे ही रहकर अपने भाई के साथ मिलकर खेती बाड़ी का काम सँभालता रहा। और फिर उनकी जिन्दगी मे उनका बेटा वंश आया जिसकी किलकारियों को सुनकर ही आराधना ने खुद को ढाँढस बंधाया कि शायद उसने अपने खोये हुए पहले बच्चे को फिर से पा लिया। वंश की अच्छी परवरिश और एजुकेशन के लिये उन्होने कोरबा शहर मे बिजनेस करने का फैसला किया और फिर नीव रखी वंश क्लॉथ सेंटर की। ............................................. अतीत की इन यादों मे खोये हुए कब उसकी आँख लग गई थी पता ही न चला। एक खूबसूरत सुबह ने दस्तक दी एकाएक आराधना की आँख खुली उसने अमित को भी जगाया और वंश के माथे पर हाथ फेरते हुए कहने लगी- " मेरी बसी बसाई जिन्दगी पर मै किसी की नजर लगने नही दूँगी अमित जी, अब तक कि सारी बातें मुझे नींद मे भी सोने नही देते पर अब मै पीछे मुड़कर नही देखना चाहती " अमित ने भी उसे गले से लगा लिया और मुस्कुराते हुए कहा- " ये हुई न बात आराधना, अब कमला आंटी का जिक्र भी मत करना। चलो अब अच्छी सी चाय मिल जाये तो क्या बात हो? " क्रमशः.... ‹ Previous Chapter आपकी आराधना - 17 › Next Chapter आपकी आराधना - 19 Download Our App Rate & Review Send Review Pratibha Prasad 2 months ago Dayawnti 2 months ago Indu Talati 2 months ago S Nagpal 2 months ago Ranjan Rathod 2 months ago More Interesting Options Short Stories Spiritual Stories Novel Episodes Motivational Stories Classic Stories Children Stories Humour stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Social Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Pushpendra Kumar Patel Follow Novel by Pushpendra Kumar Patel in Hindi Social Stories Total Episodes : 21 Share You May Also Like आपकी आराधना - 1 by Pushpendra Kumar Patel आपकी आराधना - 2 by Pushpendra Kumar Patel आपकी आराधना - 3 by Pushpendra Kumar Patel आपकी आराधना - 4 by Pushpendra Kumar Patel आपकी आराधना - 5 by Pushpendra Kumar Patel आपकी आराधना - 6 by Pushpendra Kumar Patel आपकी आराधना - 7 by Pushpendra Kumar Patel आपकी आराधना - 8 by Pushpendra Kumar Patel आपकी आराधना - 9 by Pushpendra Kumar Patel आपकी आराधना - 10 by Pushpendra Kumar Patel