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कल्पना से वास्तविकता तक। - 1

कल्पना से वास्तविकता तक!!

हमने किसी सुना है कि " इस संसार में जो भी हो रहा है, और जो होने वाला है वो सब पहले से तय है। किसी के कब जन्म होगा ..से लेकर कब मृत्यु की गोद में सोना है ..,सब तयशुदा है।" आपने भी सुना ही होगा ये तो ,क्यूं सही कह रहे हैं ना हम??
लेकिन कभी सोचा है, कि अगर हम किसी दूसरे संसार किसी दूसरी दुनिया में चले गए तब ,तब क्या होगा??नहीं सोचा ना.. हमारी ये कहानी बस इसी कल्पना को छोटी सी उड़ान देती हैं।
हमारी कल्पना की कल्पना ही कीजियेगा क्यूंकि वहां विज्ञान की नहीं भगवान की चलती है। ☺️☺️

नोट:" यह कहानी,और इसके किरदार पूर्णतः काल्पनिक है।"

युवी:" मैं आखिरी बार पूछ रही हूं नेत्रा तुझसे , तू चल रही है या नहीं ??"
उसके हाथ से उसकी मोटी सी किताब छीनते हुए कहती हैं।
नेत्रा:" नहीं ,मुझे तुम दोनो के साथ इस झमेले में नहीं पड़ना ,तुम्हे जाना है तो जाओ। बल्कि मैं तो तुम्हे भी यही सलाह दूंगी की तुम भी मत जाओ , मैंने उस जगह के बारे में पढ़ा हुआ है ,खतरे से खाली नहीं है वो जगह,वहां तो सब दिन में भी जाने से डरते हैं और तुम वहां ट्रीप मनाने की सोच रही हो ।" अपना चश्मा नाक पर दोबारा गड़ाते हुए बोलती है।

कल्कि:" ओह हेल्लो मैडम ,किसी ट्रिप के लिए नहीं जा रहे हैं,ये तुझे भी पता है ।"

युवी:" हां ट्रिप पर जाना होता तो वहां क्यूं जाते हम?,ओर तू खुद भी तो सोच नेत्रा अगर जितनी हमने रिसर्च की है वो सही हुई ,अगर सच में ऐसा कुछ वहां हुआ जो अब तक वहां होते हुए भी उसको लोग नहीं देख पाए हैं ,तो ये कितना बड़ा बदलाव साबित हो सकता है।पूरी दुनिया के बड़े बड़े वैज्ञानिक जो अब तक नहीं कर पाएं है , अगर हम कर दिखाएं ,तो पूरा विश्व भारत का लोहा मान जाएगा। "
नेत्रा:"युवी ,कल्कि ये बात मैं भी जानती हुं यार ,लेकिन हम अभी इतना कुछ भी तो नहीं जानते ,आधे अधूरे ज्ञान के साथ किसी भी काम की शुरुआत करना कोई समझदारी नहीं बल्कि पागलपन है।"
युवी:" किसने कहा हमारा ज्ञान अधूरा है ,नेत्रा यानी साक्षात माता सरस्वती अगर हमारे साथ चलें तब ज्ञान की कमी हो ही नहीं सकती।पूरा दिन इतनी मोटी मोटी किताबें पढ़ती है ,उसका कुछ तो फायदा हमें भी लेने दो देवी जी । प्लीज़ मान जा ,चल ना प्लीज़"
नेत्रा:" नहीं ,तुम कुछ भी कहो मैं नहीं चलूंगी ।"
युवी के हाथ से अपनी किताब छीनकर कमरे से बाहर की ओर जाने लगती है।
कल्कि:"नेत्रा !!"
कल्कि की आवाज सुनकर नेत्रा वहीं रुक जाती है।
कल्कि:" हमने तीन टिकट्स बुक कराई हुई है,कल सुबह 5 बजे की फ्लाइट से निकल रहे हैं हम ,अगर तू हमारी दोस्ती को थोड़ा भी मानती हैं तो अा जाना,और तुझे तो बचपन से ही देखा है हम दोनों ने, बहुत मानती है ना धर्म को तो ये तो पता ही होगा कि, अगर मानवता के लिए कोई कार्य करने के लिए हमें अपनी जान भी देनी पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए।"
नेत्रा बिना पीछे मुड़कर देखे वहां से बाहर चली जाती है।
युवी :" तुम्हे क्या लगता है क्या वो सुबह आएगी ?"
कल्कि:" जहां तक मैं उसको जानती हूं वो जरूर आएगी। तू ज्यादा मत सोच इस बारे में और तू भी जाकर अपना समान पैक कर जल्दी से ,फिर सोना भी है ,क्यूंकि सुबह भी जल्दी उठना है।"
युवी:" हां सही कहा,चल ठीक है ,अब मैं जाती हूं सुबह मिलते हैं।"
कल्कि:" ओके बाय,सुन सुबह मेरे कमरे के बाहर ही अा जाना तू ,और साढ़े चार बजे तक पहुंच जाना ,कभी लेट करा दे।"
युवी:" हां बाबा हां,पहुंच जाऊंगी ,बाय बाय।"

इतना कहकर युवी अपने कमरे में चली जाती है।वो दोनो अपना समान पैक करने में व्यस्त हो जाती हैं।
इधर नेत्रा कमरे से बाहर निकलकर सामने ही बने हुए गार्डन के एक पुराने से बेंच पर बैठ जाती हैं।
एक तरफ जहां उसका दिल दो नाव में सवार हो गया था, वहीं दूसरी ओर दिमाग अपने घोड़े दौड़ा रहा था। उसको समझ नहीं अा रहा था कि वो क्या निर्णय करें। एक तरफ उसको अपनी दोस्ती याद अा रही थी तो दूसरी तरफ उस जगह के बारे में जो भी उसने पढ़ा था वो सब दिमाग को घुमा रहा था। अंत में दिल और दिमाग की लड़ाई में दिल जीत जाता है ,और वो भी अपने कमरे कि तरफ निकल जाती है ,कल की तैयारी करने के लिए।

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ओह सॉरी हम आपको इन तीनों से मिलाना तो भूल ही गए ।
तो नेत्रा,युवी उर्फ़ यश्वी ,और कल्कि तीनों बचपन से साथ ही बड़ी हुई है,रिश्तों के नाम पर ज्यादा कुछ नहीं है इनके पास ,क्यूंकि ये तीनों आनाथ आश्रम में ही पली बढ़ी हैं। तीनों लगभग एक साथ ही आश्रम में अाई थी ,हमउम्र होने की वजह से तीनों की दोस्ती भी जल्दी हो गई ,और समय के साथ गहराती ही गई।
नेत्रा ने फिजिक्स में ,कल्कि ने एस्ट्रोफिजिक्स में ,और वही युवी ने माइथोलॉजी में अपनी पढ़ाई पूरी की थी। पढ़ाई पूरी होते ही उन तीनों ने आश्रम छोड़ दिया था और खुद का एक छोटा सा फ्लैट ले लिया था ,तीनों साथ रहती थी लेकिन कमरे अलग अलग लिए हुए थे,क्यूंकि तीनों का मानना था ,की जब कुछ देर दूर रहेंगे तभी तो एक दूसरे कि एहमियत याद रहेगी ।
तीनों साथ में मिलकर खुद का छोटा सा स्कूल चला रही हैं।और साथ साथ वो तीनो मिलकर आध्यात्मिकता को विज्ञान के तथ्यों से जोड़कर अपनी रिसर्च का काम भी कर रही है।
★★★★★..........

नेत्रा अपना सामान पैक कर रही थी ,सामान कम और किताबे ज्यादा रख ली थी उसने अपने बैग में,अलमारी से कपड़े निकालते वक़्त उसका ध्यान उसके ब्रेसलेट ( हाथ में पहनने का कंगन) पर गया ,जो उसने कपड़ों कि आखरी तह के नीचे सजो के रखा हुआ था।वो उसको हाथ में लेकर गहरी सोच में डूब जाती है और फिर उसको अपने हाथ में डाल लेती हैं। उसको हाथ में डालते ही उसके माथे पर बना वो निशान एक बार चमक उठता है ,जिसको नेत्रा देख तो नहीं पाई ,लेकिन कुछ आलौकिक सा एहसास उसने भी महसूस किया था। उसको बड़ी मां की बातें याद अा जाती है।
जब नेत्रा ,युवी और कल्कि आश्रम को हमेशा के लिए छोड़ कर,खुद के फ्लैट में रहने के लिए निकल रही थी ,तब बड़ी मां ने उसको अकेले में बुलाकर , यह ब्रेसलेट ये कहते हुए सौंपा था कि,
"तू एक सुबह हमें आश्रम के बाहर एक बॉक्स में लेटी हुई मिली थी,और तेरे साथ और कुछ तो नहीं था,बस ये कंगन था,जिसको तूने कसकर अपनी छोटी सी मुठ्ठी में पकड़ा हुआ था।मैंने तब इसको अपने पास तेरी अमानत की तरह रखा था,सोचा था जब तू बड़ी होगी तब तुझे लौटा दूंगी। आज मेरी ये जिम्मेवारी भी पूरी हो गई नेत्रा, ख्याल रखना अपना बेटा।"
अचानक से ख्याल से हकीक़त में जब वो लौटती है ,तब खुद को अकेला देख वो फिर से अपने काम में लग जाती हैं।
सारा सामान पैक करने के बाद नेत्रा अपने फोन में सुबह के 3 बजे का अलार्म लगाती हैं,और बिस्तर पर सोने के लिए चली जाती है। लेकिन वो कंगन जब वो लेट गई थी तब उसको चुभ रहा था ,कुछ देर तो वो लेटी रहती है,लेकिन जब वो सो ही नहीं पा रही थी ,तो वो उठकर पहले ब्रेसलेट को उतारकर अपने बैग की उपर वाली जेब में ही डाल देती हैं। और फिर सोने चली जाती हैं।
अगली सुबह....
साढ़े चार बजने में केवल पांच मिनट बचे हुए थे, कल्कि और युवी दोनो ही बस नेत्रा का इंतजार कर रही थी ,कभी चलते ,कभी बैठ जाते और बार बार नेत्रा के कमरे की ओर जाने वाले रास्ते को देख रही थी। उनको उम्मीद थी कि नेत्रा जरुर आएगी।पांच मिनट बाद युवी कल्कि से कहती है...
" चल चले,शायद वो नहीं आएगी , हम बेवजह ही उसका इंतजार कर रहे हैं।"
" तू पागल है,ऐसा हुआ है कभी की मैं उसको अपनी दोस्ती का वास्ता दूं और वो ना आए,देख लेना तू वो जरूर आएगी,बस दो मिनट रुकते हैं ना।"
" ठीक है चल थोड़ी देर ओर इंतजार कर लेते हैं।"
अगले पांच मिनट भी बीत जाते हैं ,लेकिन नेत्रा नहीं आती । वो दोनो फिर कॉलोनी से बाहर निकल ने लगती हैं ।दोनो ही उतरे हुए से चेहरे लेकर कॉलोनी के दरवाजे से बाहर आकर कुछ कदम चलती हैं।

" क्या हुआ इतना टाइम क्यूं लगा दिया , मैं कबसे इंतजार कर रही हूं तुम दोनो का ??"
पीछे से एक आवाज आती हैं।वो दोनों एक साथ पीछे मुड़कर देकती है ,तो नेत्रा वहीं पास में पड़े हुए बड़े से पत्थर पर अपना बैग लेकर बैठी हुई थी। वो दोनों उसको देखकर बहुत खुश हो जाती हैं,और भागकर उसको गले लगा लेती हैं।
नेत्रा:" अरे क्या हुआ ?"
कल्कि:" हमें लगा कि तुम अाई ही नहीं नेत्रा।"
नेत्रा:" कैसे ना आती ,तुम दोनो के सिवा है ही कौन मेरा।कभी हम अकेले कहीं गए हैं जो अब जाने देती।और वैसे भी अब दोस्ती की है तो निभानी तो पड़ेगी ही।अब भले ही दोस्त जोकर जैसे ही क्यूं ना हो ।"
युवी :" हम तुझे जोकर लगते हैं।"
नेत्रा:" नहीं जोकर नहीं , जोकर जैसे।"
युवी:" अच्छा ,फिर ठीक है।"
नेत्रा:" अब चलो वरना लेट हो जाएंगे।"
इतना बोलकर नेत्रा और कल्कि आगे चलने लगते हैं।
युवी:" क्याा?? क्या कहा तुमने जोकर जैसे ,रुक तू तुझे मैं बताती हुं।"
नेत्रा और कल्कि उसको उनके पीछे आते देख ,धीरे धीरे भागना शुरू कर देती हैं।जब युवी उनके पास पहुंचती है तब नेत्रा को दोनो हाथो से हलका हलका मारने लगती हैं। थोड़ी देर बाद जब वो रुकती है तब तीनों ही मिलकर इस बात पर हंसने लगती हैं। और फिर निकल जाती है अपनी मंजिल के सफ़र में...
15 मिनट में वो हवाई अड्डे के सामने होती हैं,फिर वो तीनों एक दूसरे की तरफ देखती है,थोड़ा मुस्कुराती हैं और एक दूसरे का हाथ पकड़ कर एक साथ लगभग चिल्लाते हुए बोलती हैं...
जो तेरा जो मेरा वो सब हमारा ,
साथ हम तो हसीन हर नजारा ,
देख लो ए भीड़ के मुसाफ़िर..
हमारी दोस्ती का सफर है कितना प्यार ।।।।।।
फिर वो भागते हुए अंदर चली जाती हैं जहां उनकी फ्लाइट की अनाउंसमेंट स्पीकर में चल रही थी।वो जल्दी जल्दी अपनी फ्लाइट वाली तरफ भागती है और फ्लाइट में बैठ जाती हैं।

नेत्रा:" युवी इस जगह के बारे में तूने जो भी पढ़ा है ,उस से हम दोनों को थोड़ा बहुत बता दे उस जगह के बारे में। अब जिस जगह जा रहे हैं उसकी जानकारी होना तो बेहद जरूरी होता है।"
कल्कि:" हां बिल्कुल सही बोला नेत्रा,चल बेटा यूवी शुरू हो जाओ ,क्यूंकि वहां पहुंचने में अभी लगभग 5 घंटे आराम से लगेगें।"
युवी:" ओके,तो सुनो ...
हम नॉर्थ पोल यानी उत्तरी ध्रुव पर जा रहे हैं।यह वह बिन्दु है जहाँ पर पृथ्वी की धुरी घूमती है। यह आर्कटिक महासागर में पड़ता है और यहाँ अत्यधिक ठंड पड़ती है क्योंकि लगभग छः महीने यहाँ सूरज नहीं चमकता है। ध्रुव के आसपास का महासागर बहुत ठंडा है ।उत्तरी तारा या ध्रुव तारा उत्तरी ध्रुव के आकाश पर सदैव निकलता है।यह क्षेत्र आर्कटिक घेरा भी कहलाता है क्योंकि वहां अर्धरात्रि के सूर्य (मिडनाइट सन) और ध्रुवीय रात (पोलर नाइट) का दृश्य भी देखने को मिलता है। यूरोप इस बिंदू के काफी करीब है। नार्वे का आखिरी छोर है, जहां से आगे जाने का रास्ता दुनिया की आखिरी सड़क माना जाता है।
पृथ्वी के छोर और नार्वे को जो सड़क जोड़ती है उसे E-69 कहा जाता है। E-69 को अगर दुनिया की अंतिम सड़क कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा। इससे आगे कोई सड़क नहीं है। बर्फ ही बर्फ छाई है… समंदर ही समंदर। उत्तरी ध्रुव ही आर्कटिक सागर कहलाता है।
सबको ये अंतिम सड़क लगती है।लेकिन इस आखिरी सड़क के ठीक पास से ही एक कच्ची सड़क गुजरती हैं ,जो बर्फ़ की चादर के नीचे दब गई है। यह बहुत कम लोग जानते हैं कि आज बहुत साल पहले एक वैज्ञानिक ने इस रास्ते की खोज की थी,और वो इस रास्ते पर ही कहीं गुम हो गए थे, उसके बाद कोई उन्हें ढूंढ नहीं पाया था।
बस मुझे इतना ही पता है।"
युवी अपनी बोतल से पानी पीते हुए बोलती है।नेत्रा और कल्कि दोनो अब तक युवी की हर बात को बहुत गौर से सुन रहे थे। जब वो चुप होती है तब कल्कि बोलती है।
कल्कि:" आगे का मुझे पता है ,उस साइंटिस्ट का नाम था , रेयोन मैक्सी ( काल्पनिक ), रेयोन् सर का मानना था कि ,अगर ये दुनिया का अंतिम छोर है तो जरूर किसी नई दुनिया का शुरुआती छोर भी यही होगा। हो सकता है हमारे जैसी ही एक दुनिया का रास्ता यहीं से होकर गुजरता हो। "
नेत्रा:" हां और फिजिक्स में भी समांतर भ्र्मांड होने का दावा किया जाता है।"
युवी:" समांतर ब्रह्मांड? मतलब "
नेत्रा:" मतलब ये कि,समानांतर ब्रह्मांड का सिद्धांत हमें यह कहता है की ब्रह्मांड एक नहीं है, बल्कि अंतरिक्ष में बहुत सारे ब्रह्मांड है ,ओर हमारा ब्रह्मांड भी उसका एक हिस्सा है
मेनी इंटरैक्टिव वर्ल्ड थ्योरी के अनुसार हमारा ब्रह्मांड बहुत सारे ब्रह्मांडो में से एक है जो कि एक साथ ही रहते हैं एक ही समय में, समानांतर ब्रह्मांड वह ब्रह्मांड है जो हमारे ब्रह्मांड के साथ ही इसी समय में रहता है पर वह दूसरा ब्रह्मांड हमारे ब्रह्मांड को नहीं देख सकता और ना ही हम उस दूसरे ब्रह्मांड को देख सकते हैं, क्योंकि दोनों अलग-अलग डायमेंशन में रहते हैं ।लेकिन हम सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं,पर समानांतर ब्रह्मांड की बात अभी तक एक रहस्य ही है।"
युवी:" हां ऐसा मैने भी पढ़ा है
पुराणों ने ब्रह्मांड को मूलत: तीन भागों में विभक्त किया है:- (1) कृतक त्रैलोक्य (2) महर्लोक (3) अकृतक त्रैलोक्य।
कृतक त्रैलोक्य-
कृतक त्रैलोक्य जिसे त्रिभुवन भी कहते हैं। इसके बारे में पुराणों कि धारणा है कि यह नश्वर है, कृष्ण इसे परिवर्तनशील मानते हैं। इसकी एक निश्‍चित आयु है। उक्त त्रैलोक्य के नाम है- भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक।
भूलोक : जितनी दूर तक सूर्य, चंद्रमा आदि का प्रकाश जाता है, वह पृथ्वी लोक कहलाता है। सिर्फ हमारी पृथ्वी नहीं और भी पृथवियाँ।
भुवर्लोक : पृथ्वी और सूर्य के बीच के स्थान को भुवर्लोक कहते हैं। इसमें सभी ग्रह-नक्षत्रों का मंडल है। और भी कई सूर्य है जिनकी पृथवियाँ होगी।"
कल्कि:" और इन को आपस में जोड़ने का कोई तो रास्ता होगा ही। अगर वो नॉर्थ पोल हुआ तो ये सच में बहुत बड़ी खोज होगी,मतलब जिसकी हम अबतक बस कल्पना करते आए हैं वो वास्तव में हो सकती हैं।"
नेत्रा:" ये सब तो वहां जाकर ही पता चलेगा ,और जितना आसान ये लग रहा है उतना आसान नहीं है,हम कुछ नहीं जानते कि ऐसा कुछ है भी या नहीं ।या अगर इस से भी भयानक कुछ हुआ तब,तब हम क्या करेंगे ।"
कल्कि:" क्या यार तू,कभी अच्छा भी बोल लिया कर,पढ़ पढ़ कर तेरा दिमाग हिल गया है,कुछ नहीं होगा ,देख लेना तू सब अच्छा ही होगा।"
युवी:" ओर अगर कुछ बुरा हुआ भी ,तब भी मुझे कोई डर नहीं है क्यूंकि तुम दोनों मेरे साथ हो।"
दोनो का हाथ पकड़ते बोलती है।
नेत्रा:"चलो अब तुम दोनो ज्यादा मत सोचो ,जो होगा हम मिलकर देख लेंगे। अब तुम आराम कर लो थोड़ी देर ,वैसे भी रोज 10 बजे उठने वाले सुबह जल्दी उठें थे,मेरे महारथी आज।"
कल्कि:" हां यार आज कुछ अधूरा अधूरा सा तो लग रहा है,चल मैं तो थोड़ी देर सोती हूं,जब पहुंचने वाले हो तो उठा देना।"
युवी:" ओर मुझे भी।"
इतना कहते ही वो दोनो आंखें बंद करके लेट जाती है।और नेत्रा अपनी किताब निकाल कर उसके पन्ने पलटने शुरू कर देती हैं।

to be continue......
आप सबको ये भाग कैसा लगा हमें समीक्षा करके जरुर बताएं।🙏☺️🙏

by:--jagGu parjapati ✍️



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