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कल्पना से वास्तविकता तक। - 2

नोट:-- इस भाग को समझने के लिए ,आप पहला भाग अवश्य पढ़ ले।

आगे .......
नेत्रा अपनी किताब पढ़ने में मशगूल थी,शुरुआत से ही नेत्रा को किताबों से एक अलग ही लगाव था,उसको पढ़ना इतना ज्यादा पसंद था कि, अगर कोई किताब उसको दिख जाती थी तो भले ही वो दूर दूर तक उस किताब को समझ ना पाए ,फिर भी उसके पन्ने पलट कर देखने से वो खुद को रोक नहीं पाती थी । उसको जब भी खाली समय मिलता वो उसको अपनी किताबों के साथ बिताती।
किताब पढ़ते समय कुछ शब्दों को पेंसिल से रेखांकित करने की आदत भी उसकी अलग ही थी।
आज भी जब नेत्रा को पढ़ते हुए एक अलग सा शब्द दिखता है तब उसको ध्यान आता है कि वो अपनी पेंसिल निकालना आज भूल ही गई। वो अपना बैग उठाती है जो उन्होंने जिस जगह वो बैठे थे उस से उपर वाली सीट पर रखा हुआ था। जैसे ही वो पेंसिल निकालने के लिए हाथ जेब के अंदर डालती है,तभी अनायास ही कंगन उसके हाथ में अा जाता है मानो वो कंगन खुद भी नेत्रा के करीब आने को आतुर हो। फिर से नेत्रा अपने पूरे शरीर में एक अजीब सी हलचल महसूस करती है। लेकिन नेत्रा इसको अपने मन का वहम समझ कर, अपने हाथ को पेंसिल ढूंढने में मशगूल कर लेती है। अगले ही पल पेंसिल उसके हाथ में होती है,और एक बार फिर वो अपनी किताब में खो जाती है।
नेत्रा अपनी कलाई पर बंधी घड़ी में देखती है, जिसकी सुइयां दोपहर के एक बजने की ओर इशारा कर रही थी।नेत्रा यात्रा पूरी होने में लगने वाले समय का अंदाजा लगाती है ,तब उसको लगता है कि, वो सब अब अपनी मंजिल पर पहुंचने ही वाले थे ।
नेत्रा:" कल्कि ,यूवी उठो दोनो ,देखो हम पहुंचने वाले है।"
कल्कि नेत्रा की एक आवाज से ही उठ जाती है लेकिन यूवी के उपर तो जैसे कोई असर ही ना हुआ हो।
नेत्रा:" यूवी ,यूवी उठ ना ,वरना हम तुझे यहीं छोड़ कर चले जाएंगे फिर सोती रहियो। ये लड़की भी ना सोते हुए पता नहीं कौनसी दुनिया में चली जाती है।"
कल्कि:" जितने प्यार से उसको उठा रही है ना तू इसको ,इसने कल तक भी नहीं उठना ऐसे । मुझे पता है ये कैसे उठेगी ,तू देख मैं उठाती हूं इसको ।"
इतना कहकर कल्कि यूवी के एक हाथ की उंगली पकड़ती है और उसको अपने दोनों दांतो के बीच में रखकर हल्का सा दबा देती है। यूवी एकदम से चिल्लाकर उठ जाती है। कल्कि अपने हाथ से उसका मुंह बंद कर देती है।
कल्कि:" पागल है क्या तू , नौटंकी करनी ज़रूरी है,इतनी जोर से तो मैंने तुझे काटा भी नहीं ,जितना तू चिल्ला रही है,देख सब कैसे देख रहे हैं हमारी तरफ।"
यूवी अपने चारों ओर नजरें घुमाती है तब उसको याद आता है की वो अपने घर नहीं है,और उनके आसपास बैठे सब लोग उनको ही देख रहे थे। यूवी कल्कि का हाथ अपने मुंह से हटाते हुए गुस्से में बोलती है।
यूवी:" तुझे ये नौटंकी लगती है , ऐसे कौन उठाता है तू आराम से भी तो उठा सकती थी मुझे।"
कल्कि:" ओ हेल्लो मैडम ,पहले आराम से उठाया था ,पर जब तेरे कान पर जूं तक नहीं रेंगी तो क्या करें।"
यूवी:"ओह तू ,और वो भी मुझे आराम से उठाए ,हो ही नहीं सकता।"
कल्कि:" देख अब तू कुछ ......"
नेत्रा:" तुम दोनो बच्चों की तरह लड़ना बन्द करोगी अब ,हम पहुंचने वाले है अपना अपना सामान देख लो दोनो। और अब नो बेहस बाजी ओके।"
"ओके" कल्कि और यूवी दोनो एक साथ बोलती है।
कुछ ही देर में उनकी फ्लाइट लैंड करती है।वो तीनो अपना अपना बैग पहियों के सहारे लुढ़काते हुए नीचे उतर जाती हैं। एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही कल्कि बोलती है.....
कल्कि:" यार यहां तो बहुत ठंड हैं।" अपने एक हाथ से दूसरी बाजू को सहलाते हुए बोलती है।
यूवी:" क्यूंकि ये दिल्ली नहीं है,यहां का सबसे ज्यादा तापमान भी दिल्ली के सबसे कम तापमान से भी कम होता है।"
कल्कि:"ओह ,मतलब यहां तो कुल्फी जम जानी है हम सबकी ।"
नेत्रा:" क्या बेवकूफों वाली बातें कर रही है यार , हमने सर्दी के कपड़े सजाने के लिए बैग में नहीं डाले थे ,उनको डालना भी है , और वैसे भी सर्दी का तो अपना ही मजा है।"
यूवी:" नेत्रा जी आपको सर्दी पसंद है इसका मतलब ये नहीं है कि सबको ही पसन्द है,मुझे तो सर्दी से बहुत डर लगता है यार।"
नेत्रा:" मुझे पता है तभी तेरे लिए एक एक्स्ट्रा जैकेट अपने बैग में लेकर अाई हूं मैं,अब बातें बाद में मिलाना पहले स्वेटर डाल लो, नई जगह है,उपर से हमें कुछ हिसाब है नहीं,और अगर कल्कि को जुखाम हो गया तो वापिस ही जाना पड़ जाएगा हम सबको। "
यूवी:" नेत्रा शुभ शुभ नहीं बोल सकती तू , मैं तो पहले ही बोल रही हूं अगर इसको जुकाम हुआ तो मुझसे दूर ही रहियो तू।"
कल्कि:" अच्छा तुझे मुझ से इतनी प्रॉब्लम है तो पहले ही दूर रहा कर ना मुझसे, और ये मत भूल मुसीबत में तू मेरे पास ..."
नेत्रा:" तुम दोनो फिर से शुरू हो गई ,मैंने क्या बोला सुना नहीं ।"
बीच में ही कल्कि को रोकते हुए बोलती है।
कल्कि:" हां सुन गया ,डाल रहे हैं।"
तीनों ही सड़क किनारे बने एक बेंच पर अपने बैग रख देती हैं, और बैग में से मोटे कपड़े डालना शुरू कर देती है।
यूवी:" नेत्रा जो जैकेट तू मेरे लिए लेकर आयी है वो दियो,वही डालूंगी मैं।"
नेत्रा:" यार बैग से निकाल ले ।"
अपनी जैकेट पहनते पहनते हुए नेत्रा बोल देती है।
यूवी:" ओके"
यूवी नेत्रा के बैग से जैकेट निकलाने के लिए उसका बैग खोलती है।
यूवी:" यार कौनसी है ,और कौनसे क्लर की है, मुझे तो मिल नहीं रही है।"
नेत्रा:" उपर ही तो रखी हुई है , ब्लू क्लर की है। तू रुक एक मिनट मैं ही देखती हूं।"
यूवी तब तक बैग की सारी जेब खोल देती है ,सबसे उपर वाली जेब में उसको वो कंगन दिखता है। वो उसको जेब से बाहर निकाल कर , उल्ट पलट कर देखते हुए नेत्रा से बोलती है।
यूवी:" वाओ नेत्रा ये कंगन कितना सुंदर है ,तू इन सबका शौक कबसे रखने लगी ?? तुझे तो ये सब पसन्द नहीं था।"
इतना कहते हुए वो कंगन अपने हाथ में डालना शुरू कर देती है।
कल्कि:" दिखाना मुझे भी ।"
यूवी की बात सुनकर कल्कि भी कंगन को देख ने लग जाती है।
नेत्रा:" ये वो जब लास्ट डे हम आश्रम से जा रहे थे ना,तब मुझे बड़ी मां ने दिया था,और तुझे जब तक हर चीज खोल कर ना देखले चेन नहीं मिलता क्या ? "
यूवी:" क्या बड़ी मां ने?? हमें तो कुछ भी नहीं दिया। मुझे तो शुरू से ही पता है कि बड़ी मां हमसे ज्यादा तुझसे प्यार करती है।"
नेत्रा:" ऐसा कुछ नहीं है मेरी मां,ये मेरा ही था ,जब मुझे कोई आश्रम के बाहर छोड़ कर गया था ,तब मेरे साथ ये कंगन भी था, समझी ।" उसके सिर पर हलकी सी थपकी लगाते हुए बोलती है।
यूवी:" लेकिन ये मुझे अा क्यूं नहीं रहा है ?? "
यूवी कबसे कंगन डालने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो उसके हाथ में अा ही नहीं रहा था।
कल्कि:" खा खा कर मोटी हो गई होगी इसलिए नहीं अा रहा होगा, मुझे दिखा तू ।" उसके हाथ से छीनते हुए कहती है।
यूवी:" मैं तुझे मोटी लगती हूं।"
कल्कि कंगन को अपने हाथ में डालने लगती है लेकिन वो उसके हाथ में भी छोटा रह जाता है।
कल्कि:" ये तो मुझे भी नहीं अा रहा है।"
यूवी:" ही ही ही ,अब बता कौन मोटा मैं या तू ?"
नेत्रा:" ऑफो ,लो मुझे दो।"
कल्कि के हाथ से कंगन लेते हुए बोलती है,और अपने हाथ में डाल लेती है।नेत्रा को वो कंगन बहुत आसानी से अा जाता है।
नेत्रा:" देखो ,अा गया मुझे।"
यूवी:" हे,तुम्हारे माथे के इस निशान से लाइट निकली ।"
नेत्रा:" क्या?? " अपने माथे पर हाथ लगाते हुए बोलती है।
यूवी जब दोबारा देखती है तब उसको ऐसा कुछ नहीं दिखता।
यूवी:" शायद मेरा वहम था।"
नेत्रा:" ये ले जैकेट, मुझे लगता है ठंड में तेरा दिमाग जम गया है।" जैकेट उसको थमाते हुए बोलती है।
यूवी:"हां शायद, थैंक्स फॉर द जैकेट , और वैसे भी अब तेरा कंगन है तो तुझे ही तो आएगा ।"
कल्कि:" लेकिन मेरे हाथ का साइज़ नेत्रा के हाथ से छोटा है ,फिर जब ये मुझे छोटा था तो इसके हाथ में कैसे अा सकता है ।"
नेत्रा:" देवी जी अपना सीआईडी वाला दिमाग ना चलाएं, और चलने की तैयारी करें।"
(अजीब बात है ,ऐसा कैसे हो सकता है ,पर हो सकता है मैंने अच्छे से डाला ही ना हो , मैं कुछ ज्यादा ही दिमाग चला रही हूं शायद.) कल्कि खुद से ही मन ही मन में बातें करती हुए बोलती है।
यूवी:"क्या सोच रही है,चलना नहीं है क्या,या आज यहीं रुकने का इरादा है तेरा??"
कल्कि के आगे चुटकी बजाते हुए बोलती है।
कल्कि:" हां, हां नहीं ,चलो " ख्यालों से बाहर निकलते हुए कहती है।
यूवी:" क्या बोल रही है ,चल अब ।"
वो तीनो वहां से निकल जाती हैं , और वहां से ही कुछ दूर पैदल चलने के बाद उनको एक होटल दिखता है वो उसी में एक कमरा बुक कर लेती हैं।तीनों कमरे में पहुंच कर थकान की वजह से कुछ देर सो जाती है , लेकिन सोते सोते उनको शाम हो जाती है। कल्कि जब उठ कर घड़ी देखती है तब वो दोनो को उठाती है ।
कल्कि:" नेत्रा ,यूवी उठो देखो 5 बज गए हैं ,हम कबसे सो ही रहे है।"दोनो के चेहरे से कम्बल हटाते हुए बोलती है।
यूवी:" बस 10 मिनट ओर सोने दे यार प्लीज़।"फिर से चेहरा ढकते हुए बोलती है।
कल्कि :" यूवी ,प्लीज़ उठ ना ,मुझे भूख भी लगी है,चल ना कुछ खा कर आते हैं बाहर से। "
यूवी और नेत्रा दोनो अपना मन मार कर उठ जाती है। फिर वो तीनो कुछ खाने के लिए बाहर चली जाती हैं। वहां का मौसम बहुत ठंडा होने की वजह से अंधेरा भी जल्दी हो जाता था। जब वो बाहर गए तब इका दुका लोग ही वहां से गुजरते दिख रहे थे।
कल्कि:" यहां इतने कम लोग क्यूं दिख रहे हैं। अभी तो पांच ही बजे हैं।"
तीनों को ही दिल्ली कि भीड़भाड़ में रहने की आदत थी। अब पूरी दिल्ली तो रात को भी उल्लू की तरह जागती रहती है,और यहां शाम को भी इतने कम आवा जावी उनको ख्टकनी लाज़मी थी।
नेत्रा:" शायद यहां के रहने वाले जल्दी आपने घरों में लौट जाते होंगे।"
यूवी:" हां,और यहां की आबादी भी बहुत कम है। बहुत ठंडा इलाका होने की वजह से यहां बहुत कम संख्या में लोग रहते हैं।"
नेत्रा:" ओह अच्छा, चलो इस दुकान में चलते हैं।" सामने बनी एक दुकान की तरफ इशारा करते हुए बोलती है ,जो की एक घुमावदार झोंपड़ी जैसी लग रही थी। बस फर्क इतना था कि ये झोपडी घास फूस की बजाय मॉडर्न ज़माने के ईंट सीमेंट से बनाई हुई थी, और दरवाजा भी सेंसर युक्त कांच से बना हुआ था ,जो इतना साफ था कि उसके आर पार आसानी से देख सकते थे।
तीनों उस दुकान के अंदर चली जाती हैं।
"वेलकम मैम , प्लीज़ कम इनसाइड।"( आपका स्वागत है ,कृपया अंदर आइए।)
वहां पर काम करने वाला एक मेहनत कर्मी उनसे कहता है।
वो तीनों वहां बनी कुर्सियों पर बैठ जाती है।
"व्हाट वुड यू लाइक टू ऑर्डर मैम??" ( आप क्या लेना पसंद करेंगी ?)
यूवी:" व्हाट इज देयर टू ईट हेयर ?" ( यहां खाने में क्या क्या मिलता है ?)
"व्हाट वूड यू लाइक तो ईट, वेज ऑर नॉन वेज मैम ??" ( आप किस में खाना पसंद करेंगी ,वेजिटेरियन और नॉन वेजिटेरियन ?)
कल्कि:" ब्रिंग समथिंग देट कैन फिल आउर स्टोमक , ऑर येस इट शुड बी वेज़ ओके" ( कुछ ऐसा ले आओ जिस से हमारा पेट भर सके ,और हां वो शाकाहारी खाना होना चाहिए,ठीक है ।)
" स्योर मैम ,वेट फॉर 20 मिंट्स " ( क्यूं नहीं मैम,आप बस 20 मिनट रुकिए।)
वो उनका ऑर्डर लेकर चला जाता है।वहां एक व्यक्ति ओर था जो उसकी वेशभूषा से उस दुकान का मालिक लग रहा था। नेत्रा उस व्यक्ति से पूछती है।
नेत्रा:" व्हाय डू सो फ़्यू पिपुल शोइंग हेयर ? व्हाइल इट्स स्टिल इनफ टाइम फॉर नाइट " ( यहां इतने कम लोग क्यूं दिख रहे हैं?जबकि अभी रात होने में बहुत समय है)
दुकानदार :"मैम, द व्हदर हेयर डज़ नोट गेव वेन चेंजिंग, थट्स वाई पिपुल प्रेफर हेयर टू स्टे एट होम अंटिल नॉट नेक्सेसरी। ." ( मैम ,यहां का मौसम बदलते समय नहीं लगता है,इसलिए यहां लोग जब तक जरूरी ना हो अपने घर में ही रहते हैं।)
नेत्रा:" ओके"
तब तक उनका खाना भी अा जाता है । वो तीनों अपना खाना खाने के बाद अपने रूम पर लौट आती है।
नेत्रा:" यूवी तुम फोन या लैपटॉप से उस जगह के बारे में जितनी भी जानकारी मिले इकठ्ठा करो ,मतलब कहां है,कैसे पहुंचेंगे ,कितना समय लगेगा वगैरह वगैरह ।"
यूवी:" ओके बॉस ।"
नेत्रा:" और तुम कल्कि ,तुम इस होटल के स्टाफ से बात करो, उनसे उस जगह के बारे में पूछो क्यूंकि किसी भी जगह के बारे में वहां रहने वालों को ज्यादा पता होता है, लेकिन थोड़ी सावधानी से ओके ।"
कल्कि :" ओके जी ।"
नेत्रा:" गुड,तब तक मुझे एक किताब पढ़नी है, मैं वो पूरी कर लेती हूं।"
कल्कि:" क्या ,तू किताब पढ़ेगी अब ,यहां पर भी । ये सही है तेरा हमें तो इतने काम बता दिए और खुद आराम से बुक पढ़नी है मैडम को ।"
नेत्रा:" अरे बाबा ,गुस्सा क्यूं कर रही है, मैं ऐसी वैसी कोई किताब नहीं पढ़ रही हूं ,बल्कि परलेल यूनिवर्स से रिलेटेड ही पढ़ रही हूं ,क्यूंकि हमें कुछ तो पता होना ही चाहिए , तुझे तो पता ही है मुझे जब तक किसी बात का पूरी तरह ना पता हो ,उस बात में दखलंदाजी भी पसंद नहीं है और ये तो हम फिर भी बिना जाने ही कल्पना को ढूंढ़ने निकले है, जो वास्तविकता से पहले ही बहुत दूर है।"
कल्कि:" ओह अच्छा, सॉरी यार , मैं बिना जाने ही कुछ भी बोल गई , मुझे लगा तू अपना कोई सो कॉल्ड नॉवेल पढ़ेगी बैठकर ,ठीक है तू पढ़ तब तक हम ये सब निबटा कर आते हैं।"
नेत्रा:" अरे कोई बात नहीं ,अब तुम दोनो जाओ,और अपना अपना काम करो ।"
"ओके"
कल्कि रूम से बाहर चली जाती है। यूवी रूम के साथ में बनी बालकनी में रखी एक चेयर पर अपना लैपटॉप खोल कर बैठ जाती है। पूरी बालकनी चारों तरफ़ से शीशे से बन्द की हुई थी ,लेकिन उस से बाहर आसानी से देख सकते हैं,और पास में चल रहा रूम हीटर वहां के वातावरण को गरमाहट दे रहा था।
और इधर नेत्रा फिर से अपनी किताब के पन्नो पर लिखे शब्दों को आंखो के रास्ते से दिमाग में उतारने की कोशिश में लग जाती है।जब तक तीनों अपना अपना काम पूरा करती हैं,तब तक बाहर का उजाला शाम को अपनी रात की चादर तले छुपा लेता है। कल्कि भी वापिस अा जाती है।
यूवी:" कुछ नया बताया इन्होंने ?"
कल्कि:" नहीं यार , ये तो कहते हैं कि यहां ही इतनी ठंड लगती है और उस जगह का तो तापमान ही इतना कम है कि कोई वहां जाने से पहले सौ बार सोचेगा। लेकिन हां ,एक था उसने बताया कि उसके पापा ने उसको एक बार बताया था कि , बहुत साल पहले उस जगह से बहुत से लोगों ने कुछ अलौकिक सी रोशनी को आते देखा था। लेकिन इस बात का कोई ठोस सबूत किसी को नहीं मिला था। तो ये बात भी समय के साथ पुरानी हो गई ,और शायद इसलिए ही गूगल बाबा पर ऐसी कोई बात हमारे सामने नहीं आई थी।"
नेत्रा:" हां हो सकता है, चलो अब जो भी है ये तो कल वहां जाने के बाद ही पता चलेगा।यूवी तूने देखा कुछ की कैसे जाना है ।"
यूवी:" हां, तुम फिक्र ना करो सुबह सुबह यहां से आसानी से कुछ भी व्हिकल मिल जाता है ,लेकिन आगे एक किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ेगा।"
नेत्रा:" कोई बात नहीं,ठंड में पैदल जाना हमारे लिए फायदेमंद ही होगा , सर्दी का असर कम लगेगा।"
कल्कि:" सही कहा,चलो अब सो जाते हैं,कल से एक नया सफर भी तो शुरू करना है अपुन को ।"
यूवी:" ओह अब बिहारी जाग गया तेरे अंदर का ।"
कल्कि:" तो क्या हुआ,इंसान को हर लैंग्वेज बोलनी और समझनी आनी चाहिए,क्या पता कब कौनसी भाषा काम अा जाए ।"
यूवी:" जी धन्य हो आप। चले अब सोने अपुन "
कल्कि:" हां जी चलो"हंसते हुए कहती है।
तीनों ही बिस्तर पर बातें करते करते सो जाती है।
अगली सुबह....
वो बहुत जल्दी उठ कर E-69 सड़क ( आख़िरी सड़क ) के सफ़र पर निकल जाती हैं। वहां से बहुत आसानी से उन्हें एक इलेक्ट्रॉनिक रिक्शा वाला मिल जाता है जो उन्हें वहां से थोड़ा पीछे ही एक मोड़ पर उतारते हुए एक सड़क की तरफ इशारा करते हुए कहता है।
" मैम, दीज़ इज़ द वे व्हेयर यू हेड टू कम " ( मैम , यही वो जगह है जहां आपको आना था।)
" ओके थैंक्स , हाउ मच डिड यू रेंट?"( शुक्रिया,आपका कितना किराया हुआ?)
"90 यूरो"
रिक्शावाला किराया लेकर वहां से चला जाता है।वो तीनो आगे पैदल ही उस रास्ते पर निकल जाती हैं।दूर दूर देखने पर भी उन्हें उस रास्ते पर एक इंसान भी नहीं दिख रहा था। चारो तरफ दिख रही थी तो बस बर्फ़ में लिपटी हुई सी सड़क ,और वो तेज हवाएं जो बर्फ़ की वजह से इतनी ठंडी हो गई थी कि उबलते पानी को भी पल भर में शीत कर सकती थी ।वहां की ठंड कुछ देर बाद ही उनपर भी भारी पढ़ने लगती है।
नेत्रा:" यार माना की मुझे ठंड पसन्द है लेकिन यहां तो कुछ ज्यादा ही है,ऐसे तो हम यहीं जम जाएंगे ।"
कल्कि:" हां यार सही बात है।" दोनो हाथो को एक दूसरे से मसलकर सर्दी को खुद पर हावी होने से रोकने की कोशिश में लगी हुई बोलती है।
यूवी:" मुझे पता था ऐसा ही कुछ होने वाला है,इसलिए मैं ये पहले ही ले आई थी,ये लो।" अपने बैग से किसी पेड़ की पत्तियां और ड्राई फ्रूट्स का डिब्बा उनकी ओर करते हुए बोलती है।"
कल्कि:" ये क्या है?"
यूवी:" ये तुलसी और मनी प्लांट के पत्ते हैं,इनकी तासीर गर्म होने की वजह से ,अगर इनको खाते हैं तो हमारा शरीर खुद ब खुद गरमी उत्पन्न करता है।और ड्राई फ्रूट्स तो सर्दी से राहत देते ही हैं।"
नेत्रा:" अरे वाह,लेकिन तुझे ये सब कैसे पता है??"उसके हाथ से डिब्बा लेते हुए पूछती है।
यूवी:" वो जब कल मैं इस जगह के बारे में सारी इंफॉर्मेशन ढूंढ रही थी ,तब जब यहां का टेंप्रेचर देखा तो मैं बहुत डर गई थी,अब तुम्हे तो पता ही है ना मुझे ठंड से कितना डर लगता है, इसलिए मैंने ठंड से बचाव के लिए भी एक आर्टिकल पढ़ लिया था।तो वहीं से पता चला था। वैसे कुछ और भी है जो हमें ठंड से बचा सकता है,मैंने वो भी ले ही लिया था ।"
कल्कि:" और वो क्या है ??"
यूवी:" एल्कोहोल"
नेत्रा:" तेरा दिमाग तो ठीक है,पग्ला वग्ला तो नहीं गई है ना तू ।"
यूवी:" यार सिर्फ लेके अाई हूं साथ में,पी नहीं है मैंने ओके,तभी मैंने तुम दोनों को बताया नहीं था। अब ये खाओ और आगे चलो ।"
नेत्रा:" लेकिन तू लेकर तो अाई है ना ?"
यूवी:" गलती हो गई देवी जी, सॉरी, अब चले ?"
वो तीनो थोड़े बहुत ड्राई फ्रूट्स खाकर आगे रास्ते पर चलना शुरू कर देती हैं।अब उन्हें सच में ठंड पहले से कम लग रही थी। वो धीरे धीरे आगे बढ़ने लगती हैं और कुछ देर बाद वो उस रास्ते पर पहुंच जाते हैं। यूवी उन दोनों वहां पर मौजूद कच्चे रास्ते की डायरेक्शन के बारे में बताती है,वो दोनो उसी दिशा में चलना शुरू कर देते है। आधा घंटा चलने के बाद वो उस रास्ते के अंतिम छोर पर पहुंच जाते हैं। जहां से दूर दूर तक समुंदर और बर्फ से ढकी वादियों के अलावा कुछ भी नहीं दिख रहा था। वो वहां के हर कोने हर मोड़ को बहुत गहराई से समझने की जिद्द में हर जगह को चारों ओर से घूम घूम कर देख रहे थे। अंत में वो सब वहीं एक किनारे पर थक हार कर बैठ जाते हैं।
कल्कि:" क्या यार हम बेवजह ही यहां आए हैं शायद ऐसा कुछ है ही नहीं यहां।"
यूवी:" हां यार सही कह रही हो तुम।" चेहरे पर उदासी बिखेरते हुए कहती है।
नेत्रा:" मैं तो तुम दोनों को पहले ही बोल रही थी कि बिना पूरी जानकारी के कोई भी कदम उठाने का कोई मतलब नहीं होता है।अब जो हो गया सो हो गया। ये कार्टून जैसे चेहरे बनाना छोड़ो और ये देखो कितना प्यारा नजारा है,ये भी तो हमें हमेशा देखने को नहीं मिलेगा ना ,तो अब बस इस को महसूस करो।"सामने ही बने समुंदर की ओर इशारा करते हुए कहती है।
इतना कहते हुए वो वहीं पीठ के बल,अपनी बाहें दोनो तरफ फैला कर लेट जाती हैं,और वहां के नजारों को अपनी आंखों में कैद करने लगी।तभी अनायास ही उसके बाएं हाथ में पहना हुआ कंगन वहां की धरती से छू जाता है।
कंगन के धरती के संपर्क में आते ही कुछ अजीब सी सिरहन नेत्रा महसूस तो करती है लेकिन उसपर ध्यान नहीं देती,लेकिन धीरे धीरे वहां का वातावरण पहले से अपने आप ही थोड़ा गरम होने लग जाता है ।उन सबको ये बात थोड़ी सी अजीब लगती है। देखते ही देखते ठीक उनके पीछे ही एक जगह से बर्फ़ बिल्कुल गायब हो जाती है। और धीरे धीरे एक रोशनी चारो और फैलना शुरू हो जाती है।वो सब जब मुड़कर देखती है तो हैरान हो जाती हैं।
क्यूंकि उनके पीछे एक अजीब सा चक्र घूम रहा था ,जिस के चारो तरफ रोशनी निकल रही थी ,और बीच में से वो एक गोल आकार का गहरे अंधरे से ढका हुआ प्रतीत हो रहा था जो अगर ध्यान से देखें तो अंदर की तरफ जाता हुआ लग रहा था। वो तीनों डरते डरते एक दूसरे का हाथ पकड़ कर उसकी तरफ बढ़ना शुरू कर देती हैं। उनका एक कदम उसकी ओर बढ़ते ही उसमें होती हलचल शांत होना शुरू कर देती है।
जब वो उसके पास पहुंचती है तब वो चक्र एक जगह रुक जाता है। वो तीनों उसको समझने के लिए उसके थोड़ा अंदर की ओर झांकती है तो एक अजीब सी शक्ति उनको एक एक करके उसके अंदर खींच लेती है। तीनों उसमें अंदर ही उपर नीचे उछलते उछलते बहुत गहराई में पहुंच जाते हैं और अंत में एक जगह बेहोशी की हालत में गिर जाती हैं। जब उनको होश आता है तो वो हैरानी भरी आंखों से चारों ओर देखती है और फिर एक दूसरे की तरफ देखती है।
इधर आखिरी सड़क के उस किनारे पर खिली हुई वो रोशनी अब गायब हो चुकी थी.......

to be continue.......

(दोस्तों हमें उम्मीद है आप सबको हमारे साथ इस कल्पना की दुनिया में जीने का बहुत आनंद आएगा।जिसके सफर की पहली कड़ी इस भाग में जुड़ चुकी है। आगे क्या क्या होगा ये तो अगले भाग में ही पता चलेगा। )
और हां,आप सब को ये भाग कैसा लगा हमें समीक्षा करके जरुर बताएं।
by:--jagGu parjapati ☺️✍️