hiraman karasdev - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

हीरामन कारसदेव - 2

हीरामन कारसदेव २

लेखक के उपन्यास मुखबिर का अंश

पंडित बोल रहे थे-ये बच्चा पुष्य नक्षत्र में जनमा है , असका पुण्य प्रताप पूरे जग मे फैलेगा , तुम्हारा बेटा अवतारी पुरूष है । इसका नाम कारसदेव प्रसिद्ध होगा । इसे हीरामन भी कहा जायेगा । ढोर-बछेरू के रोग बीमारी इसका नाम लेते ही दूर भाग जायेगी । राजू भैया, समझ लो तुम्हारे बुरे दिन बहुर गये, ये बेटा तुम्हारे सारे बैर बहोरेगा । जाओ खूब खुशी मनाओ ।

फिरक्या था, राजू के घर अल्ले पल्ले धर बरसा । वे फिर सेराजा हो गये । लुइहार राजा उनकी शरण मे आये ओर अपना राज पाट उन्हे सोंप दिया । कुंवर दिन दूने और रात चौगुने हो गये ।

उनके पास मेंगुल कुम्हार का बनाया हुआ मिटटी का घोड़ा खेलने के लिये लाया गया तो वह सांचउ का उड़न्तरी घोड़ा हो गया, जो जमीन पर कम चले आसमान मे ज्यादा कुलांचे भरता था ।

कारसदेव ने एक मोर पाली जो मानुस की भासा में बोलती थी । कुंवर जहां भी जायें, मोर का पिंजरा सदा उनके साथ रहता था ।

बारह बरस के कुंवर हा गये तो कारसदेव ने एक दिन मन में विचार किया कि अब गड़राजोन चलके जाट राजा जनवेद से बदला निकालना है । उसने मेरी बहन से जबरदस्ती ब्याह का हुकम दिया था , अब मैं उसकी लड़की को ले आता हॅू उससे जबरदस्ती अपने घर की बहू बनाऊंगा । आठ दिन पहले यह खबर राजा जनबेद को एक खबरिया के हाथों कारसदेव ने भेज दी और आठ दिन का समय दिया कि वह जैसा चाहे वैसा बंदोबस्त कर ले ,अब कारसदेव उसकी लड़की का पलना तो झांझ ले जाकर ही सांस लेंगे ।

जिस दिन पंडित ने मुहूरत बताया उस दिन मां के हाथ से दही बूरा खाके कारसदेव हाथ में पिंजरा, कमर में देवतानी सेला (तेगा) लिये, मेहुल के घोडे पर सवारी करके बात की बात में गड़राजोन जा पहुंचे और देखा कि नगर के सिंहद्वार पर बड़े-बड़े योद्धााओं की भीड़ खड़ी है, नगर के परकोटे के बाहर एक खूब चौड़ी खाई खुदवा दी गई है । कारसदेव ने अपने घोड़े को ऐड़ लगाई तो अपने पंख पसार के घोड़े ने छलांग भरी तो वह एक ही उछाल में परकोटे के ऊपर जा पहुंचा । दूसरी छलांग मारी तो घोड़ा राजा जनबेद के बगीचा में उस जगह जा खड़ा हुआ था जहां पलना मे बैठी जनबेद की बेटी झूला झूल रही थी । कारसदेव ने पलना रोका और हाथ पकड़ कर ज्यों ही जनबेद की बेटी को नीचे उतारा वह सहसा बोल उठी-भैया तुम कौन हो, हमे कहां ले जा रहे हो ?

इतना सुनना था कि कारसदेव ने अपना सिर धुन लिया-हत्तेरे की ! ये कया हुआ ! आये थे काहे के लिऐ और बन क्या गये । अब जुबान वापस थोड़ी लौटती है । इस लड़की ने सब कुछ बदल दिया । वे उस लड़की से बोले- हम किसी और उददेश्य से लिये जा रहे थे पर तूने भैया कह दिया सो आगे से तुझे बहन बना कर ही रखेंगे , लेकिन तुझसे हम वे सब काम करायेगे जो एक सामान्य घर की बहन करती है । तू मेरी मां के साथ चखिया पीसेगी, पानी भरेगी , घर को लीपेगी-पोतेगी ।

घोड़े पर लड़की को अपने पीछे बैठा कर जब कारसदेव गड़राजोन से चले तो जनबेद की पूरी फौज उनके पीछे लग गयी , लेकिन हीरामन कारसदेव के घोड़े को पाना इतना आसान न था, सो वे बिना किसी हानि के बात की बात मे ं झांझ पहुंच गये ।

एलादी ने घोड़े से उतरती एक युवती को देखा तो वह कुछ बोलना ही चाहती थी कि कारसदेव ने कहा कि बहन संभालो, जे एक और बहन आ गई है, इसे अपनी छोटी बहन की तरह रखना ।

कारसदेव ने एक एक करके अपने बाप के सारे के सारे बदले बहोर लिये और उन दुश्मनों का सफाया कर डाला जो कभी उनके बाप को परेशान करते रहे थे ।

‘‘ फिर समय आया तो एलादी का ब्याह हुआ, बरस महीना के भीतर एलादी की गोदी में नैना नाम का सुंदर और देवतानी सा दिखता बच्चा पैदा हुआ ,जिसे कारसदेव अपने प्राणों की तरह प्यार करते थे ।‘‘ कहते हुए वह बुजुर्ग गड़रिया बोला-‘‘ ऐसे तो कारसदेव की सात चढ़ाई हैं, और उनकी कथा इतनी लम्बी कि दस-दस रात तक रोज कथा कहते रहो ,मगर कथा पूरी ही नहीं हो पातीं ।‘‘

लल्ला पंडित बोले-‘‘ दाऊ, हमे कम से कम एक चढ़ाई तो सुनाओ ।....आप कह रहे थे कि एलादी का एक भैया पहले से था , क्या नाम बताया था आपने....अरे हां शायद सूरपाल नाम था उनका । उनकी कोई कथा सुनाओं दाऊ, हम चाहे रात भर जग लें आज एक कथा तो पूरी सूनेंगे ।‘‘

दाऊ फिर शुरू हो गये-सूरपाल भी अपने भानेज नैना से बड़ा प्यार करते थे उसकी जरा सी इच्छा के लिए दुनिया का हर काम करने तेयार थे ।

एक दिन नैना अपने मामा से बोले-मामा आप के रहते हुए भी हम अपने बाप के घर दूध-घी को तरसते हैं । हमे अपने देउता के चौंतरा पर दिया जलाना है । मामा हमे करियल लान दो, जिससे हम जी भर के घी-दूध खा सकें ।

लल्ला पंडित बड़े ध्यान से कथा सुन रहे थे, उनने दाऊ को टोका-‘‘ दाऊ आप बार बार करियल कहि रहे हो, ये करियल माने कहा चीज है ?‘‘

बुजुर्ग कथा वाचक अपने पोपले मुंह से हंसे -‘‘ पंडित तुम बड़े भोरे हो, अरे पागिल इतने दिन से गूजरों के इलाके में रहके न जान पाये कि करियल माने कया है। अरे भले आदमी करियल माने -भैंसे ! कारी -कबरी दुधारू भैसे ।‘‘

कृपाराम ने लल्ला को डांटा-‘‘ तुम बीच मे टोक काहे रहे लल्ला पांडे़। कथा चलन दो नेक आगे । बहुत लम्मी कथा है ।‘‘

लल्ला पंडित ने अपने कान पकड़े -‘‘ ठीक है, हमे अपने बाप की सौगंध जो बीच में बोलें, आपतो सुनाओ आगे की कथा ।‘‘

दाऊ ने कथा का वहीं से सिरा पकड़ लिया जहां से छोड़ा था ।

फिर क्या था, सूरपाल ने देखा कि उसके भैया हीरामन कारस देव तो छेै महीने की एक रात करके सो रहे हैं जिम्मेदारी उन्ही की है । सो बात की बात में सूरपाल ने अपने साथी महिरा को तैयार होने का हुकुम दिया और खुद भी अपने त्रिशूल और तेगा के साथ हथियार सजाने लगे । महिरा पहले तो पांचों हथियारो ंसे खुद लैस हुआ फिर सूरपाल के घोड़े बछेरा को सोने की जीन ओर चांदी की विछाबन बिछा के तैयार किया । दही खा कर वे लोग महादेव को स्मरण करके चलने ही वाले थे कि बहन एलादी भीतर से पुकारती हुई चली आई- भैया जे मोर का पिंजरा ले जाओे, भैया ने इसे बड़ें जतन से पाल पोस कर पढ़ाया है, कोई विपता मुसीबत में यह मोर चिल्ला कर आपको सावधान कर देगी ।

मोर का पिंजरा महिरा ने लिया, सूरपाल अपने घोड़ा पर बैठे और बातकी बात में झाझ छांेड़ कर जटवाड़े की धरती पर जा पहुंचे । ..........सामने बड़ा घना जंगल था । हिंसक प्शुओं से भरे जंगल को सामने देख कर भी निडर सूरपाल सीधा धंसता चला गया । आगे जाकर देखा कि वे घमसान जंगल के बीचों बीच खड़े है, जिसके न आगे रास्ता है न पीछे । बीच में फंस गये हैं ।

हवा में करियल के गोबर की बास सूंघी तो सूरपाल ने महिरा से कहा -महीरा जरा पहाड़ पर चढ़ के तो देख कै कही आसपास ढोर बगरे दिख रहे हैं क्या ? और भूरे का राज कितनी दूर है ? उससे बदला बहोरना है, उसने मेरे बाप की करियल छुड़ाई थी आज हम उसकी भैस छुड़ायेंगे ।

महिरा ने हाथ जोड़े-महाराज मेरी परिच्छा काहे ले रहे हो, ऐसा घना जंगल है कि हाथ को हाथ नहीं सूझता । ऊपर एसे सघिन गाछ है कि पखेरू तक उलझ कर मर जाते हैं, ऐसे मे मैं कहां से निकल पाऊगां ........ जे मोरा सारे को कौन से दिन के लाने पाल पोस रहे हो इसे ही उड़वा कर दिखाओ, कि आसपास कहां पे ढोर दीख रहे हैं ।

सूरपाल ने मोर का पिंजरा हाथ में लिया , उसकी पलकिया खोली और मोर को बाहर निकाल कर उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा-देख मोरा, आज अटकी है सो मदद करि, तनिक ऊपर उड़ कर देख तो कै कहां करियल चर रही हैं ।...इतनो ध्यान रखिये कि जंगल में अपनी विरादरी की मोर मोरनीयो कोे देख कर तू फंस कर मत रह जाना ।

मोर ने कहा-राजा आपने मुझै बचपन से दाख-छुहारे खवाये, दूध पिलाया और नागो के उम्दा भोजन से मेरी इच्छा पूरी करी, मै इतनी नमकहराम नही ंकि आपका काम भूल कर अपने विरादरी के पखेरूओं में उलझ जाऊ।

इतना कह के मोर ने सीधी उड़ान भरी और पेड़ों को दांये-बांये करती हूई आसमान को चीर कर बहुत ऊपर पहुंच गई । उसने देखा कि बगल की घाटी में यहां से वहां तक भैंसे ही भैंसे चरती दिख रही है। उनकी गिनी तो पाया कि पूरी डेढ़ हजार भैंसे अथाह पानी के किनारे हरी हरी घास चर रही हैं । उन्हे चराने वाले पूरे नौ सौ नवासी ग्वाले फुरसत में खेलत कूदते दिख रहे हैं। मेार मड़राती रही फिर उतर के नीचे आई और सूरपालज के कंधे पर बैठ गई । सूरपाल ने पूछा कि तूने क्या देखा मोर जल्दी बता दे ?

मोर ने गा कर जवाब दिया’-

ओंझर झोझर पोखरे, वहीं कुरई की काछ

वही डाबर मे मल्हारो करिया ले रई

पार पे नीम निबोरी घना पीपरी वही बरी को पेड़

डूड़े पिपाईस पार में मकड़ी पूरी जाल

बात करके बैठे गवाले नौ सौ नवासी टिकीलो डेड़ हजार

हींस करोदा जार लोदी बड़ी मकोड़

वामें मानुस की का चली पंाखेरू उरझ मर जायें

महिरा से कहियो सेला से गेैल बना दे

सूरपाल ने महिरा से कहा कि अपने सेला ( तेगा ) से झाड़-झंखाड़ काट के रास्ता बना दो, अपन उसमे ंसे निकलेंगे । मोर ने मार्ग दिखाया, महिरा ने रास्ता बनाया ओर बछेड़ा पर बैठे सूरपाल ने उस रास्ता को गहिके उस घाटी का रास्ता पार किया और वहां जा पहुंचे जहां यहां से वहां तक भैंसे इस तरह भरी पड़ी थी जैसे करियल पानी हिलोरे ले रहा था ।

महिरा ने भैसों को हांक कर एक तरफ करना शुरू किया तो उनके ग्वाले महिरा पर ऐसे टूट पड़े जैसे लवा बटेर टूटता है । सूरपाल ने कहा-महिरा क्या देखता है, लवोदी तोड़ ले और इन वरेदियो ंको सबक सिखा दे ।

महिरा ने एक हरी बनस्पति से लबोदा तोड़ी और बेरहम होकर उन बरेदियो ंकी पिटाई शुरू कर दी ,उसकी पिटाई देख कर लगता था कि जैसे कोई ढीमर बेरी झराता है ।

बरेदियो ंकी खाल उधड़ने लगी तो बे रोते गाते महिरा के पांव पड़ गये । बोले-हमे छोड़ दो , हम तो मजदूर आदमी हैं जैसे बगरैत के ढोर चराते हें वेसे ही तुमहारे चरवाहे बनेे रहेंगे ।

सूरपाल ने एक चिट्ठी लिख कर बरेदियो ंको दे दी जिसमें लिखा कि हम गड़राजोन वाले राजू के लड़का हैं, हमारा भाई शिव का अवतार हीरामन कारसदेव है, हम अपने बाप का बैर बहोरने आये हें । तुमने हमारी करियल छुड़ाई थी, हम तुम्हारी करियल लेवे आये हैं । हिम्मत हो तो आकर छुड़ा लो ।

बरेदी चले गये तो सूरपाल बोले-महिरा नई भैंसे नबेर लो ।

महिरा ने दस बाखरी नबेरी, दस लावरी नबेरी और दस के पड़ेला घेर लिये ।

उधर भूरे ने चिट्ठी पढ़ी तो हाल के हाल खबर करी और आसपास के संगी साथी राजा इकटठी होने लगे ।सबके मन में एक ही डर था कि केवल एक घुड़सवार इतने बड़े राजा की भैंसे चुरा रहा है,ऐसा हो गया तो यह बात पूरे जहान में फैल जायेगी और बदनामी से जीना मुश्किल हो जायेगा ।

भूरें के रिश्तेदारों का दल इकट्ठा हुआ । दल भी ऐसा वैसा नही, हजारों-हजार मर्द योद्धा इकटठे हुए । जिनकी रेल-पेल से डांग के पेड़ टूट कर छिपटी बन गयीं । चट्टान घिस कर कंकर बने ओर कंकर की धूल हो गई्र । पांव की ठोकर से धूल उड़ी और आसमान मे छा गई । धूल से सूरज और चंदा ढंक गये । सारा जग अंधियारे में डूब गया ।

सूरपाल ने असमय घिर आये अंधेरे को देखा तो महिरा से बोले-महिरा सूरजनाराण असमय कैसे अस्त भये हैं ?

महिरा बोला आपतो सब जानते हो । भैंसों के मालिक आपसे लरिवे के लाने इकट्ठे हो कर आ रहे हेैं।

सूरपाल ने कहा- इनते लड़ें या वैसे ही भगा दें ।

महिरा बोला-महाराज बेकार का खून काहे को बहाते हो । कछू माया फैेलाओं अपनी ।

सूरपाल ने अपनी माया फेंकी , तो कया देखते हैं कि सारी की सारी करियल के मुंह से गिरती लार मोती बनके जमीन पर फैल रही है और जमीन पर यहां से वहां तक मोती ही मोती बिखरे पड़े हें ।

भूरे के साथ आ रहे कटक के लोगो नंे जमीन पर यहां से वहां तक मोती फैले देखे तो बड़े खुश हुये, और काहे की लड़ाई, काहे का बैर, वे सब के सब मोती बीन-बीन कर अपने खीसों मे ंखोंसने लगे ।

कुूछ ही देर में क्या नजर आया कि सारी की सारी फौज मोती बीन ने में जुट गयी, अकेला भूरा खड़ा रह गया । धूल मे ंनहा उठीं भेसों को देख कर उसकी भी बुद्धि भी फिर गई और वह अपनी ही करियल नहीं पहचान पाया ।

विवश हो वह वापस लौट गया तो सूरपाल और महिरा ने अपने घर का रास्ता पकड़ा और सारी की सारी भैंसे हांक कर वहां से चल पड़ें ।

आगे एक चौराहा था, वहां रूक कर सूरपाल ने पूछा-बताओ महिरा ये रास्ते कौन-कौन जगह को जाते हेै ?

महीरा बोला’ यह रस्ता अरचोली-बरचोली को गया है , यह रास्ता हरियाने को गया है, और तीसरा रस्ता परसोंदा को गया है ,सामने चौथा वाला रास्ता अपने घर को जाता है। हरियाने वाला रस्ता भी अपने घर को जाता है लेकिन इस रासते में भूरे बगरैत की बेटी और दमाद रहते हें । दामाद बड़ा वीर हैं वह हाल ही अपने ससुर की भैस पहचान जायेगा और लड़ाई लड़ने लगेगा ।

सूरपाल को बड़ा गुस्सा आया, बोले-क्षत्रिय होकर रण से क्या डरना ? बार-बार मनुज की जोनि नहीं मिलती, बार बार मां की कूख नहीं मिलती और बार बार इस देश में आना नही होयेगा । चलो महिरा उसी रास्ते से चलें जिधर भूरे का दामाद रहता है । हरियाने में धोरी गाय मिलती है, अपन ने कारी ले लीं , धोरी के बिना वे सब अधूरी है, चलो हरियाने से कारी -धोेरी की जोड़ी बना लेंगे ।

महिरा ने कहा -राजा उधर की औरते जादू जानती हैं,वे रास्ता बांध देंगी , अपने को रास्ता ही नही दिखेगा ।

सूरपाल बोले -अपनी सेला पर कोई जादू नहीे चलता । चलो उधर ही चलोे।

मजूबूर महिरा ने उसी रास्ते करियल हांक दी जिधर का रास्ता हरियाने को जाता था । वे लोग हरियाने के बाहर ही थे कि सूरपाल ने देखा कि हरियाने के चारों ओर बड़े बडे़ पहाड़ सिर उठाये खड़े हैं,जिनके बीच से हरियाने मे ंजाने और आने का एक ही छोटा सा रास्ता हैं। सूरपाल ने महीरा से कहा-तू अपने सेला की अनिया (धार) से इन पहाड़ों में चोट कर देख जे पहाड़ अपन को एक और रास्ता दे देंगे । हां, इतनो ध्यान रखिये कि रास्ता चोड़ा बनाना नही तो करियल आपस में रगड़ खा जायें और गाभिन भैंसों के बछड़ा फिक जायें ।

महिरा ने अपनी सेला निकाली और पहाड़ की चटटानों मे अनिया से चोट मारने लगा । बात की बात में ऐसा चमत्कार हुआ कि चटटान टूट कर कर बिखरने लगी ओर पहाड़ कटने लगा । बीच पहाड़ मे ंसे खूब चौड़ा रस्ता निकल आया । महिरा ने अपनी भैसे बेल ( पंक्ति ) बांध कर उसी रास्ते से हरियाने मे प्रवेश करने को हांक दी ।

करियल को लेकर वे लोग एक गांव के पास से गुूजरे तो पनिहारिनें उन करियल को बड़ी ललचायी नजरो ंसे देखने लगीं । एक युवती ने तो बिलकुल निककट आकर वे भैसे देखी और लौट कर अपनी सखी पनिहारिनो ंसे कहा कि ये आगे वाली पड़िया तो चिरे कान की है,दूसरी लम्बथनी ( लम्बे थन वाली ) है और तीसरी भूरी भैंस की पड़िया दिखती है ।

सख्ीयों ने उसे रोका कि अन्जान आदमियों को उनके माल के बार में काहे टोकती हों, लेकिन वह न मानी औा आगे वढ़ के सूरपाल से पूछने लगी-ये करियल कहां से ले आय राहगीर,! मैं भूरे जाट की बेटी हूं ! ये तो हमारे बाप की भैंसों सी दिखती है ।

महिरा बोला- हम तो हाट से थैली भर-भर के दाम चुका कर लायें हैं , तुम्हारे बाप की है ंतो पहचान लों ।

भूरे जाट की बेटी बोली- हमने तो पहचान ली,ं यह पड़िया भौंर नाम की भैंस की है । यह भूरी की और यह लम्बथनू तो मै बचपनन से देखती आई हूं । तुम जरूर मेरे बाप के यहां से करियल चुरा लाये हो, तनिक रूक जाओ । मेरा घरधनी आ रहा है, वो तुम्हे सबक सिखायेगा ।

सूरपाल ने कहा हम ठाड़े हैं बूला लाओ , किसको बुला के लाती होे ।

भूरा जाट की लड़की अपने घर गई और पति से बोली-सुनो, तुम जरा गांव के गेंवड़े जाकर उस घुड़सवार को तो सबक सिखा दो जो मेरे बाप की भैंसे चुरा के लाया है और निडर हो के खड़ा है । कहता है तुम जिसे चाहो बुला लाओ ।

उसका पति बोला- काहे को रस्ता चलते आदमी से बैर बढ़ाती हो । जानेदो ।

पत्नी बोली - अरे उठो तो , तनिक ये तो सोचो कि अपन जब मेरे बाप के यहां जायेंगे तो बिना करियल के दूध के रूखा-सूखा भोजन करना पड़ेगा ।

पति बोला मैं हर तरह का खाना खा लूंगा ।

पत्नी ने उसे चेताया- हमारे पिता ने सुना था कि हरयाने में कुंवर उपजे है, सो सगाई कर दी । उन्हे क्या पता था कि ऐसे कुंवर से कुंवरानी अच्छी थी । तुम तो लड़की होते तो अच्छे रहते ,घाघरा-फरिया पहनते ,भर भर हाथ चूढ़िया पहनते । इससे तो अच्छा था कि तुम्हारी मां की कूख में पतरा पड़ जाते ।तुमने काहे को जनम लिया ।

पत्नी का ऐसा तीखा ताना सुन कर पति का जोश जाग उइा । उसने अपने विरादरी भाइयो ो बुलाया और कहा कि मेरी ससुराल की करियल चुरा के कोई इसी गांव के सामने से भाग जा रहा है, चलो चल के रोक लें ।

सारे योद्धा इकट्ठे हुऐ ओर उसके साथ गांव के बाहर चले आये, जहां कि सूरपाल और महीरा खड़े उनका इंतजार कर रहे थे । भूरे का दामाद आगे आकर अकड़ा कि तुम मेरी ससुराल से भैंसे ले आये हो क्या ?

सूरपाल बोले तुम पहचान तो लो ।

महिरा बोला-हम तो हाट से भर भर थैली दाम चुकाये हैं ,चोरी बोरी नहीं की ।

भोले महादेव की महिमा कि भूरे के दामाद ने एक भी भैस नही पहचान पाई । वे लोग वापस चल पड़े और महिरा ने भैसे अपने घर की तरफ हांक दी ।

गांव -गांव में तमाशा करते महिरा और उनकी भैसे अपने गांव तरफ चलीं ,और रास्ते में ही सूरपाल ने धौरी गायों का एक झुण्ड देखा तो अपने करियल के साथ मिला कर कारी-धौरी की जोड़ी बना ली । वे लोग चम्बल के किनारे पहुंच कर रूके ।

सूरपाल ने महिरा से कहा -महिरा, वहां यह भैंसे हरा चारा चर रही थीं, अछाह पानी में लोर रही थुी । हमारा देश तो सूखा रेगिस्तान है, वहां पहुंच कर ये तो भूखे ही मर जायेंगे ,और ये निरीह जानवर मुझे शाप देगे तो हमारी बंस की हानि हो जायेगी । अब अपन इन्हे चामिल (चम्बल) पर राखेंगे । अभी दो महीना अपने देश में घास नहीं है, तब तक हम यही रहेंगे ।

महीरा ढोरों को आगे हांक कर चम्बल में पानी पिलाने लगा तो सूरपाल ने कहा कि भैंसो का स्वभाव पानी पीकर लोर जाना है, इसलिये गाय उनके साथ पानी नही पियेंगी । भैसों को एक तरफ करो और गायो ंको दूसरी तरफ । पानी पी लें तो गायो को बर के नीचे चराओ ओर भैसो ंको चामिल की कछार मे ंचराओ ।

महिरा ने ऐसा ही किया तो करियल ओर धौरी दोनो सुखी हो गईं ।

सूरपाल ने महिरा से कहा कि मुझै आठ दिन नौ रात सफर करते हो गये हैं । न मैने नहाया ,न भोले बाबा की पूजा करी । तुम कहो तो नहा धो लूं ।

महिरा ने कहा प्रेम से असनान करो ।

सूरपाल ने अपने हथियार उतार कर संभाल कर रखे , और कपड़ा उतारने लगे तो महरा ने बछेड़ा की जीन खोली और उसे पानी में उतारकर रगड़-रगड़ के नहलाया । फिर उसके बदन में खौर करके बदन की थकान उतारी ।

सूरपाल ने चामिल में छलांग लगाई और मल मल कर नहाना शुरू किया । पहले उनने बांये हाथ में पानी लेकर दांयी भुजा पर हाथ फेरा, फिर दांये हाथ में पानी लेकर बांयी भुजा पर फेरा । अपने केश पानी में डुबा कर झकोरे और सात डुबकी लगाकर ठीक से असनान किया । फिर पानी से बाहर निकल कर शरीर का पूरापानी पोंछ डाला । लोटा मांजा ओर चामिल के पानी से भर लिया । पहला लोटा सूरज देव को चढ़ाया दूसरा वासकदेव ( नाग राज ) को और तीसरा लोटा अपने गुरू के नाम का चढ़ाया । चंदन मूठा घिसा और सूरज नारायण, वासक देव और मां के नाम का चंदन चामल मे ंछिड़क कर अपने माथे पर लगा लिया । असली चंदन माथे पर लगा तो चारों ओर मलयागिरि के चन्दन की खुशबू फैलने लगी । सूरपाल ने रूद्राक्ष की माला ली और शिवजी का जप करने लगे । उनने ज्यों ही ध्यान लगाया ,त्यों ही क्या देखते हैं कि कहीं दूर मोती झील दिख रही है , जिसमें मोती ही मोती पानी मे ंतैर रहे है। आस पास कहीं एक मनिहारा सांप बस रहा है, जिसकी मनि से चारेां ओर उजारा फैल रहा है ।

ध्यान टूटा तो सूरपाल ने महिरा से कहा-तुम एक मदद और करना कि मेरे गोपीग्वाल बन जाना । जब तक मैं न लौटूं इन गौओं और भैसों को चराना । मैं मोती झील देख कर आता हूूं ।

महिरा ने समझाया कि अकेले कही की यात्रा मति करो मैें भी साथ चलूंगा , और एक बार घर तक हो आये ंफिर तुम मोती झील चले जाना । लेकिन होनी की पुकार हुई थी सो कौन रोक सकता था । सूरपाल न माने और उनने दुबारा अपने घोड़ा को तैयार किया हाथ में मोर का पिंजरा लिया और घोड़े को ऐड़़ लगा दी ।

बछेड़ा सौ दो सौ कदम ही चला था कि उसने देखा कि उसके सवार सूरपाल राजा उसके ऊपर झुक झुक जा रहे है । बछेड़ा ने सूरपाल से पूछा-आपको मां बाप की सुधि आई है,या आपका मन भजन-ध्यान में लग रहा है कि आप मेरे ऊपर झुके जा रहे हो ।

सूरपाल ने कहा कि हम आठ दिन नौ रात के जगे हैं सो आलस आ रहा है । बछेड़ा ने कहा कि आपने मुझे बचपन से भैंस का निखालिस दूध पिलाया , हरी-हरी नर्म दूब खिलाई है, जिसके कारण मेरी पीठ चौड़ी हो गई है ,इतनी चौड़ी कि आप निश्चिंत होकर सो सकते हैं । आप तो मेरी पीठ पर चैन से सो जाओ, मै इस तरह धीरे-धीरंे चलूंगा कि आपकी नींद में खलल नही पड़ेगा ।

यह सुन कर सूरपाल आराम से घोड़े की अयाल से सिर टिका कर सोगये, घोड़ा आराम से दुलकी चाल से चला और दौड़ा भी तो इस तरह से अपनी टापें उछाल कर दौड़ा कि उसके सवार राजा सूरपाल को नींद मे किसी तरह की कोई बाधा नही आई ।

घोड़ा मोतीझील पहुंचा तो पूर्व दिशा से काला बादल उठता दिखा, मीाती झील से कमलों की खुशबू आती महसूस हुई और राजा सूरपाल जग गये ।

उनने घोड़ा रोका और बोले-बस कुछ दूरी पर मोती झील होंगी । वहां पहुंचने के पहले अपन लोग थोड़ा सा आराम कर लें । घोड़े की सहमति जान कर उनने घेाडे की लगाम पेड़ से बांधी और उसकी अगाड़ी-पिछाड़ी खींच कर जमीन में सूरा गाड़ कर बांध दी फिर जमीन केे पत्ता-पतोला झाड़े, घोड़े की पीठ से कमरिया उतार के जमीन में बिछा दी फिर अपने हाथ का मोर का पिंजरा सेमर के पेड़ पर टांगने लगे।

मोर बोला- सेमर की डार करकरी होती है,मेरे वजन से टूट जायेगी और मेरे प्रान अधर में निकल जायेंगे । इस सेमर के बजाय आप मुझे इस पेड़ के चपेटा में लग के खड़े पेेेड़ुआ की डार पर टांग दो ।

सूरपाल ने पिन्जंरा पिडुआ की डार पर टांग दिया ।

कमरिया पर लेटते-लेटते सूरपाल बोले -बेटा बछेड़ा हम सो रहे है, तुम चौकस रहियो।

बछेड़ा बोला-आपने मेरी अगाड़ी पिछाड़ी बांध दी हैं अैार लोहे की लगाम मुंह मे डाल के आपने पेड़ से बांध दी है, मै तो विवश हॅूं मैं सिर्फ सामने से देख पाऊंगा । आप मोरा को चेता दो ये ऊपर टंगा हुआ देखता रहेगा, इससे कह दो कि यह दुश्मन को देखे तो चीख-चिल्ला के टेर लगा के आपको जगा दे ।

सूरपाल ने मोरा को समझायस दी और सो गये । सूरपाल के साथ लगातार चलते रहने से थके-मांदे मोर और बछेड़ा भी नींद के झकोरे में सो गये ।

गहरी नींद में सोये सूरपाल को पूरा दिन बीत गया । सूरजनारायण का रथ पूरब से चल कर पश्चिम दिशा में आ गया , सूरपाल के मुंह पर पसीना आया तो चंदन की गंध को गीला कर गया ओर आसपास की हवा मे ंचंदन की सुंगंध दौड़ने लगी ।

सूरपाल जिस जमीन पर सोये थे उस जगह पर जमीन के नीचे उस क्षेत्र के राजा नाग देवता की बांबी थी । वहां मनिहारा राजा नाग अपनी नागिन ओैर बच्चों के साथ रहता था । सूरपाल का पसीना बहकर बांबी में गया तो खुशबू से बांबी भर गई । इस खुशबू का सूघकर सोता हुआ नाग जग गया । उसने सोचा- या तो मेरी बांबी पर चंदन का पेड़ उग आया या फिर किसी ने चंदन के फूल की डलिया बांबी के ऊपर रख दी है या फिर किसी गंदीगर (इत्रवाले) ने अपने इत्र की शीशी बंाबी के मुंह पर रखदी है ।

खुशबू से खिंच कर वह बाहर आया तो क्या देखता है कि उसकी बांबी पर एक सुंदर राजकुमार सोया है । नाग ने उसका मंह देखा तो सुंदरता को देखता ही रह गया । राजकुमार के मंह पर पड़ रही धूप को देख नाग राज ने अपने सातों फन फैेला लिये और सूरपाल के मुह पर छांव कर दी। कुछ देर बार पिडूला की छांव आई तो नाग अपनी बांबी में चला गया । नागिन के पूछने पर नाग बोला कि रघुनाथ जी की कृपा हुइ्र है कि अपनी बांबी के ऊपर किसी अवतारी पूुरूष ने डेरा डार दिया है । उनके दर्शन करके मेरा तो जीवन धन्य हो गया अब मेरी मुकति हो जायेगी । चलो तुम भी दर्शन कर लो ।

नागिन बोली -मै अकेली कैसे पराये पुरूष के दर्शन करने जाऊ । मेरा तो पतिव्रत धरम नष्ट हो जायेगा । हे नाथ आप साथ चलंे।

लेकिन नाग न माना उसने नागिन को अकेली जाने का हुकुम दिया ।

बेबस हो कर नागिन अकेली ऊपर आयी और उसने सूरपाल को निहारा तो मुगध हो गई । लेकिन नागिन बडी चंचल थी , उसकी निगाहें चारो ओर फिरने लगीं । क्षण भर में आसपास की चीजे ंदेख कर उसने मन ही मन सोचा कि पति भोले हैं इस छलिया को नही पहचान पा रहे । ये तो बहाने मार के हमारी बांबी पर आ बैठा है , जिससे मोका देख कर मेरे पति को मार के इनकी मणि छीन ले और दुनिया मे सबसे बड़ा धनवान हो जाये । ये कोई अवतारी पुरूष नही है, जिसका ़ित्रशूल हमारी बांबी पर गड़ा है, जिसके कि तीनों शूलो पर खून लगा हुआ हे । इस आदमी के साथ हम सांपो काल मोर एक पिंजरा में टंगा है।

वह झटपट भीतर बांबी मे गई ओर पति से बोली-तुम तो भोले भाले हो पति देव, वो कोइ्र अवतारी पुरूष नही है, छलिया है, वो सजधज के तैयारी से आया है जिससे तुम्हे मार के तुम्हारी मणि छीन ले ।

नाग बोला-ऐसा सुदंर राजकुमार तो सपने में भी ऐसा छलिया नही कहो सकता ।

नागिन बोली- तुम तो निरे बेवकूफ हो । वो तुम्हे मारे उसके पहले चल के उसे डंस लो ।

नाग बोला-ईश्वर की बनाई मूरत काहे मिटरवाती हो। तुम ही डंस लो जाकर।

नागिन बोली-तुम्हारे रहते मै डंसूगी तो तुम्हारी बदनामी हागी कि पति के रहते पत्नी लड़ने पहुंची । तुम ही डंस लो ।

नाग न माना तो नागिन तरह तरह से उसे उत्तेजित करती रही और डंसने के लिये मनाती रही ।

अंत में ंविवश होकर नाग ऊपर आया तो नागिन ने आसपास का सारा माहौल यानी कि खूल सना त्रिशूल और तेगा दिखाया ,फिर तो नाग को भी विश्वास हो गया , और उसने सूरपाल के दाहिने पांव के अंगूठे के पास मंुह लगा कर राजा को डंस लिया । आदमी के नमकीन खून के नशे में मस्त हो कर वह आहिस्ता से बांबी मे ंप्रवेश करने लगा ।

सहसा बछेड़ा जगा ओर नाग को देख कर घबरा गया , वह मोर से बोला-देख मुरलिया, हम और तुम राजा के दुश्मन बन गये । तू भी सो गई ओर मै भी सो गया । महराज को नाग ने डंस लिया है, तुम कुछ करो,। देखो मेरे तो चारों पांव बंधे है , मेंगुल कुम्हार ने जब मुझे बनाया था तभी मेरे चार पांव के साथ पीठ पर दो हाथ बना देता तो आज मैं महाराज के काम आ जाता । तुम कुछ करो ।

मोर बोली-पिंजरा में बंद में क्या कर सकती हॅू ।

बछेड़ा बोला-तुम अपनी चोंच से पिंजरा की सांकल खोल लो ओर मेरी अगड़ी पिछाड़ी भी खोल दो । फिर तुम जल्दी से उड़ कर एलादी के पास जाओ उससे कहना ‘एलादी का भतैया, राजू के ललना ओर कारसदेव की बांह टूट गई ।‘

मोर ने ऐसा ही किया ।

अगाड़ी-पिछाड़ी से मुक्त होकर घोड़ा ने बांबी के चार द्वारों पर अपने चार सुम्मे रख दिये । मोर तेजी से उड़ी और झांझ नगर की ओर चल दी ।

मोर उस बंगला के छप्पर पर जाकर उतरी जहां एलादी सो रही थी । उसकी आवाज सुनकर एलादी जग गई ओर मोर को देख कर उसे लगा कि कुछ गलत हो गया है , वह बोली -ये मोरा तू तो मेरे भैया की मोर लगती है, अगर तू वन की मोर है तो वन में जा और मेरे भैया की मोर है तो आ मेरी बांह पर बैठ जा ।

मोर एलादी की बांह पर बैठ गयी ।

एलादी ने पूछा -तुझे मेरे भैया ने काहे भगा दिया मुरलिया ! क्या चुन खत्म हो गया , या तुझसे नाराज हो कर भैया ने भगा दिया ।

यह सुून कर मोर रो पड़ी और बोली- बहन ऐलादी न चुन खत्म हुआ न राजा ने भगाया, महाराज तो हमको दुश्मन बना के जमीन पर सो गये और दुश्मन नीद के मारे मैं और बछेड़ा भी सो गये कि बांबी में से एक नाग आया और महाराज को डंस कर बांबी मे ंचला गया । आप चलो या महाराज कारसदेव अपने भैया को पहुंचाओ ।

एलादी बोली कि मेरे भैया कारसदेव तो छै महीना का एक दिन और छै महीना एक रात करते हैं । वे तो अभी सो रहे है , जो घ्भी उन्हे जगायेगा, वे उसको बैरी मानके मार डालेंगे ।

मोर बोली’-वे अपने भानेज नैना से बहुत प्यार करते हैं, उस पर हाथ नही उठायेंेगे । ऐसा करो कि खेलने के लिए नैना को उनके ऊपर छोड़ दो ।

नन्हे से नैना को सोते कारसदेव के ऊपर खेलने को छोडा तो उसने खेल खेल मे ही कारसदेव को जगा दिया ।

कारसदेव जागे तो बड़े गुस्सा हुए , उनका हाथ अपने तेगा पर गया तो एलादी ने उन्हे चेताया -क्या करते हो भैया, अपने भनेज को मारने हाथ उठाते हो ।

कारसदेव चेते और पूछने लगे कि ऐसी क्या आफत आ गई जो मुझे सोते में जगाया है !

एलादी बोली-आफत बहुत बड़ी है भैया तुम्हारी बांह टूट गयी । एक नाग ने तुम्हारे भैया सूरपाल को डंस लिया । जाओ उसकी देह को संभालो । नही तो वो माटी की हो जायेगी ।

कारसद देव ने पूछा- खबरउआ कौन है ।

मोर रोती हई सामने आई और कारसदेव के पांव में गिर पड़ी । फिर उसने कारसदेव को सारा किस्सा कह सुनाया ।

कारसदेव बोले -इतनी जल्दी मे कैसे वहां जाऊंगा ।

मोर बोली7महाराज चिंता मत करो, मैं ले चलुूंगी ।

कारसदेव बोले- मै तुमहारी पीठ पर ब्ैठने के लिये फूल सा हल्का हो जाऊंगा ।

मोर ने पंख फड़फड़ाये तो कारसदेव फूल बनकर उसके पंखों में प्रवेश कर गये ।

मोर उड़ी और आकाश मार्ग से चलती हुई मोती झील तरफ बढ़ने लगी कि एकाएक जाने क्या हुआ िक वह उलटी सीधी होने लगी ।

मोर के पंखो ंको पकड़ के बैठे कारसदेव ने पूछा कि मोर तुम ऐसी उल्ठी सीधी काहे होती हो ! तो मोर बोली कि नीच संपेरो की बस्ती है वे मुझे अपनी बैरिन मानते है, और इस बख्त वे गुलेल तान कर मुझ पर पत्थर मार रहे हैं । उनसे बचने मै ऐसा कर रही ह ू ।

करसदेव गुस्से मे ंबोले सबसे पहले वही चलो।

मेार नीचे उतरी ।

कारसदेव ने जमीन पर खड़े हो कर अपना रूप बढ़ाया तो संपेेरे डर गये और उनक पांव में गिऱ गये ।

फिर वे अपने डेरों पर जलपान करने के लिये कारसदेव से आग्रह कने लगे । उन कपटियों ने भांग में विष की जड़ी घोंट कर कारसदेव के पीने के लिये जलपान तैयार किया और बड़ी श्रद्धा प्रदर्शित करते हुये करसदेव को दिया । मोर के आगे विष की डूबी दाख-चिरोंजी घर दी । कारसदेव एक प्याला भर के विष का कटोरा पी गये और तुरंत ही उन्हे फुरहरी आ गयी ।

मोर ने उन्हे चेताया कि महाराज क्या करते हो , यह दुश्मन आपको मारना चाहता है । यह सुन कर कारस देव ने डंडा उठाया और उन सबकी पिटाई्र लगाना शुरू की ।

बे सब चीख्ने लगे कि हम गरीबो को बिना कसूर मति मारो ।

कारसदेव वोले तुम सब मेरे भैया के दुश्मनों को ढूढने के वास्ते चलो ।

वे सब तेयार हुये ओर मोती झील आ पहुंचे उन सबने बीन बजाना शुरू किया और बात की बात में जंगलन से हजारों सापों को वहां इकटटा कर लिया लेकिन वह नही आया जिसने डंसा था ।

वे लोग बोले-महाराज क्षमा करो, हमारे बस मे वह नाग नही आ रहा जिसने डंसा था। तो कारसदेव बोले-तुम सब तमाशा देखो और सारे सांपों को रोके रखो । मै उस नाग को ले के आता हूूं ।

वे फिर छोटे रूप मे बाल बराबर पतले ंहो गये और बांबी के सिरे पर उगे कांस को हाथ में लेकर भीतर बांबी मे प्रवेश कर गये ।

नीचे नाग सो रहा था । कारसदेव को देखकर नगिन ने कहा कि तेरी मति खाराब हो गयी क्या । तेरी सूरत के आदमी को डंस के अभी मेरा नाग सोया है,,अब तू भी मारा जायेगा ।

कारसदेव ने सेाते नाग की पूंछ पर पांव रखा तो गुस्से मे भरा नाग जग गया । कारसदेव ने अपने सिर का एक बाल निकाला और उससे सांप के सातों फनों के भीतर से निकाल कर उसे नाथ लिया और घसीट कर बांबी के बाहर ले आये ।

नागिन डारी सहमी सामने आर्इ्र तो वे बोले में इसे अभी मार डालता हूं। इसके छोटे टुकड़े करता हूं । नागिन बोली मेरे बच्च्चे मरि जायिेेगे । आप इस को मति मारिये । महाराज आप जो कहें हम करने को तैयार हैं ।

नाग भी हाथ जोड़के बोला कि मेरी गलती हो गयी । आप जो कहें, मै वह करूंगा ।

कारसदेव बोले- मेरे भार्इ्र का विष वापस खीच ।

नाग ने इंदुल गााय का दूध मंगाया और एक नाद मे भरवा के एक तरफ र,खा दिया । फिर वैसा ही दृश्य उपस्थित किया जैसा कि डंसते वखत किया था ,और सूरपाल के दांये पांव के अंगूठे से लग के जहर चूसते गये और नांद के दूध में छोडते गये । दूध हरा होता गया और बात की बात में सूरपाल उठकर खडे हो गये । सब कारसदेव की जयजय कार करने लगे ।

नाग बोला अब में जाऊ महाराज !

कारसदेव बोले तनिक ठहर जा !

फिर अपने भैया से बोले - जा तनिक से केंचुआ के डंसवे से आप समाधि में चले गये ।

सूरजपाल हंसे बोले- अपना बदन तो देखो कारसदेव ।

कारसदेव ने देखा कि नाग की फुसकार से वे खुद काले पड़ गये है। गुस्सा मे आकर उनने उस नाग को पूछ से पकड़ा और अपनेी मुटठी से उसका जहर निचोड़ते हुये उसकी थूथरी तक ले आये कि सांप हाथ जोड़ने लगा कि महाराज दया करो बिना विष का हो जाऊगां तो लोग मुझे पथ्थर से मारेंगे ।

कारसदेव ने उसे इस वायदे के साथ छोडा कि सोते मे किसी को नही डंसना।

नाग बोला - जो आदमी जूते पहन के खटिया में चढ़ के सोयेगा मैं उसे जरूर डसूंगा, और जो बिना जूते के खटिया सोयेगा, उसको नही डसूंगा ।

कारसदव वोले -तू किसी बरेदिया को नही डंसना । कंडा पाथने वाली को मत डंसना ।

नाग बोला कि जो बरेदिया अपने हाथ का डंडा जमीन पर ठोंकता चलेगा और जेवरिया को अपने नीचे दबाके नही बैठेगा मैं उसे नही डसूंगा । जो कंडा वारी सबसे पहले एक कंडा जमीन पर ठोक देगी उसे नही नही डसूंगा ।

इतना वायदा लेकर कारसदेव ने सारे संपेरां ओर सांपों को अपने घर जाने का हुकम दिया और भेया के साथ महिरा के पास चल गये जहां से अपनी करियल-धोरी लेकर अपने घर को लौटे । बोलो कारसदेव की जय!

गिरेाह के सब लोगों ने जय जय कार की तो पकड़ के लोग भी जय जयकार करने लगे ।