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मानस के राम (रामकथा) - 31





मानस के राम
भाग 31


हनुमान की राम से भेंट

किष्किंधा वापस आते ही वानरों का दल महाराज सुग्रीव की वाटिका मधुबन में घुस गया। अपनी सफलता के मद में चूर वानरों ने मधुबन में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। उन्होंने अंगद से अनुमति लेकर मधुबन का मीठा शहद पीना आरंभ किया। हनुमान ने कहा,
"वानर साथियों आज जी भर कर शहद पिओ। मीठे फल खाओ। हमने प्रभु राम का काम कर लिया है। सीता माता का पता लगा लिया है। किसी की परवाह मत करो। जी भर कर शहद और फलों का आनंद लो।"
वानर इस प्रकार मधुबन पर टूट पड़े जैसे कोई नदी अपना बांध तोड़ कर आगे बढ़ती है। उन्होंने वाटिका को तहस-नहस करना शुरू कर दिया। जब वाटिका की रक्षा करने वाले सैनिक उन्हें रोकने आए तो उन्होंने उन पर प्रहार किया।
दधिमुख जो महाराज सुग्रीव का मामा था और मधुबन के रक्षकों का सरदार था वानरों को समझाने गया। किंतु किसी ने भी उसकी नहीं सुनी। उत्पाती वानरों को संभालने में असमर्थ दधिमुख महाराज सुग्रीव के पास शिकायत देकर गया। उन्हें सारी बात बताते हुए बोला,
"महाराज, युवराज अंगद के नेतृत्व में गया दल किष्किंधा वापस आ गया है। किंतु वानरों ने आते ही मधुबन पर धावा बोल दिया। वह किसी की नहीं सुन रहे हैं। वाटिका में उत्पात मचा रखा है।"
दधिमुख की बात सुनकर महाराज सुग्रीव ने मन ही मन सोचा कि अवश्य इस दल को सीता की खोज में सफलता प्राप्त हो गई है। यदि ऐसा ना होता तो भला वानर मधुबन मैं शहद और फल क्यों खाते।
उस समय महाराज सुग्रीव राम तथा लक्ष्मण के साथ सीता की खोज के विषय में ही बात कर रहे थे। सुग्रीव ने कहा,
"लगता है कि दक्षिण दिशा में गया अंगद का दल कोई शुभ समाचार लेकर आया है। अन्यथा वानर इस प्रकार उत्पात ना मचाते।"
सुग्रीव ने दधिमुख से कहा,
"जाओ और जाकर उनसे कहो कि महाराज सुग्रीव ने उन्हें प्रस्तुत होने का आदेश दिया है।"
सुग्रीव का आदेश लेकर दधिमुख चला गया। राम तथा लक्ष्मण उत्सुकता के साथ वानर दल के आने की प्रतीक्षा करने लगे।
कुछ ही समय बाद अंगद के नेतृत्व में वानरों का दल वहाँ आ गया। उन सभी ने महाराज सुग्रीव को प्रणाम किया। सुग्रीव ने पूँछा,
"क्या तुम लोग अपने मनोरथ में सफल हो गए हो। तुम लोग जिस प्रकार से प्रसन्नता दिखा रहे हो उससे तो यही प्रतीत होता है।"
अंगद ने कहा,
"हाँ महाराज आपके आशीर्वाद से हम अपने कार्य में सफल हो गए।"
जांबवंत ने कहा,
"महाराज सीता का पता लगाने में हनुमान ने विशेष भूमिका निभाई है।"
हनुमान की प्रशंसा करते हुए जांबवंत ने कहा,
"हनुमान ने जो कार्य किया है उसकी सहस्त्र मुख से प्रशंसा की जाए तो भी कम है। हम सब तो निराश हो गए थे। समझ नहीं आ रहा था कि उस विशाल सागर को पार कैसे करेंगे। परंतु हनुमान ने एक ही छलांग में सागर पार कर सीता का पता लगा लिया।"
यह बात सुनकर राम तथा लक्ष्मण बहुत प्रसन्न हुए। हनुमान ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा,
"प्रभु आपकी कृपा से मैं सीता माता के दर्शन करके आ रहा हूंँ। दुष्ट रावण उनका हरण कर लंका ले गया है। वहाँ माता सीता राक्षसियों के कठोर पहरे में रावण की अशोक वाटिका में किसी प्रकार दिन गुजार रही हैं। उस आतातायी रावण के अत्याचारों को चुपचाप सहन कर रही हैं। किंतु उनके सतीत्व के कारण वह दुष्ट उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं पा रहा है। प्रभु माता ने कहा है कि अब उनके लिए और प्रतीक्षा करना कठिन है। अतः आप शीघ्रातिशीघ्र उन्हें लेने के लिए लंका की ओर प्रस्थान करें।"
सीता के कष्टों के बारे में जानकार राम की आंँखों में आंसू आ गए। हनुमान ने सीता द्वारा दी गई चूड़ामणि देकर कहा,
"माता सीता ने मुझे इंद्र के पुत्र जयंत की कहानी सुनाई है। किस प्रकार आपने तिनके को बाण बना कर उनकी एक आंँख फोड़ दी थी।"
हनुमान ने वह सारी बातें बताईं जो सीता ने उन्हें बताने को कहा था। सीता की चूड़ामणि देखकर राम और अधिक भावुक हो गए। हनुमान ने आगे कहा,
"माता सीता दिन रात बस आपके नाम का ही स्मरण करती रहती हैं। उन्होंने विशेष रूप से अनुरोध किया है कि यदि उनसे कोई भूल हो गई हो तो उन्हें क्षमा करें। किंतु अब उनसे आपका विरह और अधिक नहीं सहा जा रहा है। आप उन पर कृपा करें और उन्हें उस दुष्ट पापी रावण की कैद से मुक्त कराएं।"
राम ने अपने आसन से उठकर हनुमान को अपने कंठ से लगा लिया। हनुमान के ह्रदय को बहुत सुख मिला। राम ने कहा,
"हनुमान तुमने सीता का समाचार सुनाकर मेरे पीड़ित ह्रदय को जो सुख प्रदान किया है उसके लिए मैं तुम्हारा आभारी हूँ। आज से तुम मेरे लिए भरत के समान प्रिय हो।"
कुछ देर तक राम तथा हनुमान एक दूसरे के आलिंगन में बंधे खड़े रहे। हनुमान को प्रभु राम के आलिंगन में बंधा रहना अच्छा लग रहा था। राम प्रेमवश उन्हें छोड़ नहीं रहे थे। कुछ देर के बाद राम ने कहा,
"हनुमान मुझे सारी बात विस्तार से बताओ। तुम लंका किस प्रकार पहुँचे ? सीता से कैसे मिले ? सब कुछ बताओ।"
हनुमान ने सारी बात विस्तार से बताई। किस प्रकार वह समुद्र लांघकर लंका गए, वहाँ विभीषण से मिले, अशोक वाटिका में सीता से मिले। उन्होंने बताया कि किस तरह रावण सीता को उनकी पटरानी बनने का प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए मना रहा था। किस तरह सीता ने एक तिनके को ढाल बनाकर उसे अपने से दूर रखा। अशोक वाटिका के विध्वंस और लंका दहन के बारे में भी बताया।
सब सुनकर राम ने कहा,
"हनुमान तुम अतुलित बल और बुद्धि के स्वामी हो।"
हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा,
"प्रभु मैं इस प्रशंसा के योग्य नहीं हूँ। मैं जो कुछ भी कर सका आपकी कृपा के कारण ही कर सका हूँ।"
जांबवंत ने कहा,
"अब तो सीता का पता चल गया है। अतः अब हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि आगे क्या किया जाए ?"
जांबवंत का सुझाव सुग्रीव को अच्छा लगा। उसने तुरंत ही आदेश दिया कि सारे वानर और रीछ सेनापतियों को उनके दल के साथ उपस्थित होने की सूचना भेजी जाए।
अनेक वानर और रीछ सेनापति विभिन्न दिशाओं से अपने दल लेकर आ गए। ऐसा लग रहा था कि वह वानर और रीछों का एक विशाल सागर हो। उसमें विभिन्न रूप और आकार के वानर थे।
उस विशाल सेना को देखकर राम के हृदय को तसल्ली हुई। सुग्रीव ने कहा,
"अब हमें आगे की योजना पर विचार करना चाहिए।"
उन्होंने हनुमान से कहा,
"तुमने लंका में रहते हुए अवश्य ही महत्वपूर्ण जानकारियां एकत्र की होंगी। अब विस्तार से सारी बातें बताओ। जिससे आगे की योजना बनाई जा सके।"
हनुमान ने सबसे पहले उन लोगों को लंका नगरी के ऐश्वर्य के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि राक्षस सुखी जीवन व्यतीत करते हैं। उनके घरों की सुरुचिपूर्ण तरीके से सजावट की गई है। नगर की वीथियां साफ सुथरी हैं। नगर में जगह जगह उद्यान हैं। इन उद्यानों में विभिन्न प्रकार के फल और फूलों के वृक्ष हैं। अनेक प्रकार के पक्षी उनमें रहते हैं। लोग गीत संगीत नृत्य गायन और चित्रकारी में प्रवीण हैं।
लंका के वैभव और वहांँ के लोगों के बारे में बताने के बाद हनुमान ने रावण की शक्ति का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि रावण की सेना में एक से बढ़कर एक बलशाली योद्धा हैं। प्रहरी सदैव सतर्क रहते हैं। हनुमान ने रावण के शस्त्रागार और दुर्ग रचना के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारियां दीं।
सारी जानकारी प्राप्त होने के बाद राम ने हनुमान से कहा,
"हनुमान तुमने दूत के साथ साथ एक गुप्तचर की भी भूमिका बड़ी बुद्धिमत्ता और कुशलता के साथ निभाई है। तुमने लंका के बारे में, रावण की सैन्य शक्ति और दुर्ग संरचना के बारे में जो कुछ बताया है वह युद्ध में बहुत उपयोगी साबित होंगी।"
उसके बाद वह सुग्रीव से बोले,
"महाराज सुग्रीव सबसे बड़ा प्रश्न है कि हम इतने बड़े सैन्य दल के साथ विशाल सागर को पार करके लंका कैसे जाएंगे ? हनुमान ने तो एक छलांग में उसे पार कर लिया था। परंतु सबके लिए तो यह संभव नहीं है।"
राम की बात सुनकर सुग्रीव ने विशाल वानर सेना को देखा। सभी बहुत उत्साहित थे। इस बात की प्रतीक्षा कर रहे थे कि उन्हें आदेश मिले और वह कूच करें।


वानर सेना का प्रस्थान

वानर सेना में अंगद, द्विविद, मैंद, जांबवंत, क्राथ, नल, नील, दधिमुख, केसरी, शतबली, पनस आदि एक से बढ़कर एक योद्धा और यूथपति थे। सभी अतुलित बल और बुद्धि के स्वामी थे। उनमें लंका की सेना का सामना करने की पूरी क्षमता थी।
सुग्रीव ने राम से कहा,
"आप चिंता ना करें। एक बार इस विशाल सेना पर दृष्टि डालें। सभी लंका पर चढ़ाई कर सीता को सुरक्षित लाने के लिए उत्साहित हैं। हमें अब एक शुभ मुहूर्त देखकर कूच करने का आदेश देना चाहिए।"
राम ने उत्साह से भरे वानर दल को देखा और शुभ मुहूर्त निकलवाने को कहा। उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में दोपहर के समय राम के साथ वानर सेना ने दक्षिण के समुद्र तट की ओर प्रस्थान किया। सभी वानर और रीछ उत्साह में गर्जना कर रहे थे। वह श्री राम की जय के नारे लगा रहे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि भीषण कोलाहल से वह समस्त पृथ्वी को गुंजायमान कर लंका में यह संदेश भेजना चाहते हों कि अब लंकापति रावण का काल निकट है।
जिस समय राम ने वानर सेना के साथ प्रस्थान किया कई‌ शुभ संकेतों द्वारा प्रकृति ने भी विजय को सुनिश्चित किया।
वानर और रीछों के विशाल दल ने दक्षिण के समुद्र तट पर जाकर डेरा डाल दिया।

जब से हनुमान लंका जलाकर गए थे वहाँ भय और शोक का माहौल था। लंकावासी इस बात को लेकर चिंतित थे कि जिसके दूत ने आकर अजेय समझी जाने वाली लंका का यह हाल कर दिया यदि उसने लंका पर धावा बोल दिया तो क्या होगा।
रावण की महारानी मंदोदरी बहुत व्याकुल थी। जो कुछ हुआ था उसे उसमें आने वाले किसी विनाश की आहट सुनाई पड़ रही थी। लंका दहन के बाद से ही वह बहुत परेशान थी। आज तो उसे कई अशुभ संकेत दिखाई पड़े थे। वह और भी अधिक व्याकुल हो उठी।
उसे रावण का सीता को हर कर लाना आरंभ से ही अनुचित लगा था। ऐसा सिर्फ इसलिए ही नहीं था कि सीता के आने से उसका प्रभाव कम होता। बल्कि वह आरंभ से ही आने वाले विनाश को लेकर चिंतित थी। हनुमान द्वारा लंका दहन से अपनी आशंका उसे सही होती जान पड़ रही थी।
मंदोदरी ने निश्चय किया कि वह रावण को समझाने का प्रयास करेगी।
जब रावण उसके महल में आया तो मंदोदरी ने हाथ जोड़कर अपनी चिंता के बारे में बताते हुए कहा,
"हे नाथ मैं आपसे निवेदन करती हूँ कि आप सीता को सकुशल उसके पति राम के पास पहुँचा दीजिए। मेरा मन भय से व्याकुल हो रहा है। आज मुझे कई ऐसे संकेत मिले हैं जो आने वाले विनाश का संकेत दे रहे हैं।"
मंदोदरी की बात सुनकर रावण ने हंसकर कहा,
"तुम स्त्रियां स्वभाव से ही भीरु होती हो। व्यर्थ की चिंता करके ना स्वयं परेशान हो और ना ही मुझे परेशान करो।"
रावण की बात सुनकर मंदोदरी और अधिक चिंतित हो गई। उसने समझाया,
"हे नाथ आप मेरी बात पर विचार करिए। जो हुआ वह अमंगलकारी था। सीता हमारे कुल पर एक विपदा बनकर आई है। उसका वापस चले जाना ही हमारे कुल के हित में होगा।"
मंदोदरी ने हर तरह से रावण को समझाने का प्रयास किया पर वह नहीं माना। मंदोदरी को शांत करने के लिए हंसकर बोला,
"तुम मेरी महारानी हो। व्यर्थ की चिंता मत करो। यदि वह तपस्वी अपनी वानर सेना के साथ यहाँ आएगा तो बच नहीं पाएगा।"
यह कहकर अभिमान में चूर वह दरबार में चला गया।