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आजादी - 12



विजय ने कहना जारी रखा ” हाँ ! असलम भाई नाम है उनका लेकिन लोग उनको ‘ भाई ‘ कहकर ही बुलाते हैं । हमारी तरह से जितने भी छोटे मोटे जुर्म करनेवाले लोग इस शहर में रहते हैं असलम भाई उनके लिए किसी भगवान से कम नहीं । बाहर की दुनिया वालों की नजर में जितने भी जुर्म और अपराध से जुडी गतिविधियाँ होती हैं सबका संरक्षक अगर कोई है तो वह हैं अपने ‘ असलम भाई ‘ !
कहते हैं उनकी किसी केन्द्रीय मंत्री से बहुत ही करीबी कारोबारी रिश्ते हैं इसीलिए यहाँ आसपास के शहरों में से कहीं की भी पुलीस उसपर हाथ नहीं डालती । अब मैं जो सोलंकी से अकड रहा था वह यूँ ही थोड़े ही न था । अगर वह मुझे जबरदस्ती ले ही जाता तो बस मुझे सिर्फ भाई को खबर ही करना था । भाई का एक फोन जाते ही कमिश्नर ने सोलंकी को कहाँ उठाकर फेंक दिया होता उसका पता ही नहीं चलता । चलो ! हो सकता है मैं तुम्हें एक दो दिन में ही भाई के पास ले चलूँ उनसे मिलवाने के लिए । ठीक है ? ”
सोहन और रईस के साथ ही राहुल भी विजय की सारी बातें ध्यान से सुन रहा था । यह बात और थी कि कुछ बातें उसकी समझ में आई कुछ नहीं भी आई ।
अपनी नासमझी के चलते वह इन चोरों के साथ चोरी करने के लिए निकल तो पड़ा था लेकिन पंप रूम का ताला खोलने से लेकर मोटर खोलकर उसे ऑटो में रखवाने तक उसकी अंतरात्मा उसे धिक्कार ही रही थी । उसे पकडे जाने का डर भी लगातार सता रहा था । विजय की बातें सुनकर उसने तय कर लिया कि वो भी असलम भाई से मिलने जाएगा । शायद वही उसके लिए कुछ अच्छा सा काम बता दें । ‘ आखिर वह बहुतों की मदद करते हैं तो फिर मेरी मदद भी अवश्य ही करेंगे । ‘ यही सोचकर राहुल खुश होने का शानदार अभिनय करते हुए विजय से बोला ” विजय भाई ! क्या तुम मुझे भी असलम भाई से मिलवाने ले चलोगे ? ”
विजय ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ” हाँ ! हाँ ! क्यों नहीं ? तुम भी चलना हमारे साथ । भाई तुमसे भी मिलकर खुश ही होंगे । ”
” ठीक है भाई ! ” कहकर राहुल ने संतोष प्रकट किया था ।
यूँ ही बातें करते हुए चारों पुनः वहीँ आ गए थे जहां से चले थे । सामने ही वृद्धा की झोपड़ी दिख रही थी । विजय ने तीनों से कहा ” चलो ! जब तक रास्ता साफ़ नहीं हो जाता यहीं बुढ़िया माई के पास चलते हैं । माई से पूछ कर थोड़ी देर आराम कर लेते हैं और फिर सुबह असलम भाई के दरबार में चलेंगे । ”
” ठीक है भाई ! ” तीनों ने एक स्वर में कहा । राहुल की आँखें अब नींद से बोझिल हुए जा रही थीं । विजय की बात सुनकर उसे थोड़ी राहत महसूस हुयी ।
दरवाजे पर दस्तक देने के क्षण मात्र में ही वृद्धा ने दरवाजा खोल दिया था । विजय ने हाथ जोड़ते हुए कहा ” माई ! आगे पुलीस की नाकाबंदी है । तब तक हम लोग यहीं रुकना चाहते हैं । आपको कोई तकलीफ तो नहीं ? ”
” अरे नहीं बेटा ! मुझे क्या तकलीफ होगी ? तुम लोग जब तक चाहो यहाँ रह सकते हो । ” कहते हुए उस वृद्धा ने बगल हटकर उनके लिए रास्ता दे दिया था ।
झोपड़े में घुस कर चारों ने झोपड़े में बीछी कच्ची फर्श पर पसरे धान के पुआल पर ही अपने आपको गिरा लिया । थोड़ी ही देर में चारों गहरी नींद में थे ।

अपने कमरे में कल्पना और विनोद गहरी नींद सोये हुए थे । रात काफी देर तक राहुल के बारे में सोचते हुए दोनों कब नींद की आगोश में चले गए थे उन्हें पता ही नहीं चला था । लेकिन अब जबकि सुबह हो गयी थी । उनके जगने का समय हो गया था दोनों घोड़े बेच कर सो रहे थे । नित्य जगाने वाला अलार्म रोज की ही तरह मुस्तैदी से अपना काम करते हुए कई बार बज बज कर खामोश हो गया था और हैरान परेशान था कि आज ये क्या हो रहा है ?
कई बार अलार्म की कर्कश ध्वनि को नजरंदाज करने के बाद आखिर कुछ देर में अलार्म का निरंतर प्रयास फलीभूत हुआ । कल्पना के कानों से बजती अलार्म की ध्वनि टकराई और वह पलंग पर ही उठ कर बैठ गयी जबकि विनोद अनमने मन से करवटें बदलते हुए फिर सेे सो गया ।
कल्पना ने खिड़की से बाहर झांककर देखा । दिन काफी चढ़ आया लग रहा था ।
विनोद के काम पर जाने का सवाल ही नहीं उठ रहा था सो उसे न जगाते हुए कल्पना ने अपने सास ससुर की खबर लेने के लिए हॉल में कदम रखा । हॉल का कमरा पूर्णतया ख़ाली था । कमरे में सारी चीजे जहाँ की तहां व्यवस्थित रखी हुयी थी ।
विनोद के माताजी और पिताजी शायद सुबह की सैर पर गए हों यही सोचकर कल्पना अपनी दैनिक दिनचर्या से निवृत्त होकर उनके नाश्ते वगैरह की तैयारी में लग गयी ।
लगभग दस मिनट भी नहीं बीते होंगे कि उसके सास ससुर ने कमरे में प्रवेश किया । दोनों ही थोड़े भिन्नाये हुए से लग रहे थे । आते ही उसके ससुर ने उसे आवाज लगायी ” बहू ! विनोद कहीं गया है क्या ? दिखाई नहीं दे रहा ! ”
रसोई में से ही कल्पना ने धीमे स्वर में शालीनता से जवाब दिया ” बाबूजी ! वो तो अभी सो रहे हैं । जगा दूँ क्या ? कुछ काम है ? ”
सुनते ही बाबूजी के चेहरे पर नागवारी के भाव गुजरे और कल्पना ने ऊँचे स्वर में कही गयी उनकी बात स्पष्ट सुनी । विनोद के पिताजी शायद उसकी माताजी से कह रहे थे ” अजी सुनती हो भागवान ! श्रीमान जी अभी घोड़े बेच कर सो रहे हैं । देख रही हो इन्हें कितनी फिकर है बेटे के खोने की ? इनकी गत देखकर तो यही लग रहा है कि शायद बगीचे में मिलनेवाले लोगों ने सही ही कहा हो । ”
उनकी बात सुनकर कल्पना हतप्रभ रह गयी । लेकिन ससुर के सामने मुंह खोलने के बारे में वह सोच भी नहीं सकती थी । कल्पना भी उन करोड़ों भारतीय महिलाओं में से ही एक थी जिन्हें ससुराल में अपने पती ससुर और सास के साथ ही उनके सभी रिश्तेदारों का सम्मान करने और उनकी सेवा करने का संस्कार मिला हुआ था । सास और ससुर की सेवा तो उसे अपना माँ बाप समझ कर ही करनी थी चाहे इसके बदले उसे बेटी क़ा दर्जा मिले या ना मिले । संस्कार के चलते ही वह सीधे अपने सास ससुर के समक्ष नहीं आती थी । लेकिन उसी संस्कार के चलते आज उसे अपने पति परमेश्वर के खिलाफ अपशब्द नागवार गुजर तो रहे थे लेकिन वह अपने आपको बेबस महसूस कर रही थी । आगे उसने बाबूजी को और कहते सुना ” वो मेहताजी क्या कह रहे थे सुना था न तुमने ? कह रहे थे यही विनोद ही हमेशा उस नन्हीं सी जान राहुल के पीछे लगा रहता था । हमेशा डांटना ‘ फटकारना कभी कभी हाथ भी उठा देना हमेशा पढ़ने के लिए दबाव बनाये रखना यह भी कोई तरीका है बच्चों को पालने का ? क्या हमने इसे इसी तरह पाल पोस कर बड़ा किया था ? ”


क्रमशः