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आजादी - 14



मन ही मन लगभग अपने आपको धिक्कारता हुआ राहुल उन तीनों के साथ चला जा रहा था । तीनों कुलांचे भरते आगे निकल जाते जबकि राहुल पीछे ही रह जाता । एक तो वह इतना ज्यादा पैदल चलने का अभ्यस्त नहीं था । ऊपर से वह रात भी काफी पैदल चलकर थका हुआ था ।
थोड़ी ही देर में चारों शहर के दूसरे छोर पर बाहरी हिस्से में पहुँच गए थे । उस बुढिया की झोपड़ी भी बाहरी हिस्से में ही थी लेकिन यह लोग उसीके समानांतर दुसरी तरफ जा पहुंचे थे । यहाँ आस पास निर्जन इलाका था । बड़े बड़े खाली मैदान जिनमें कुछ कंपनियों और बिल्डरों के बोर्ड लगे हुए थे । काफी दुर तक मैदानों में फैली घास और कहीं कहीं बेतरतीब बढे वृक्षों के झुरमुट दिखाई पड़ रहे थे । मुख्य सड़क छोड़कर मैदान के बीच बनी पगडंडी से चारों आगे बढ़ते रहे । पांच मिनट भी नहीं लगे होंगे जब वह टिन के चद्दरों से निर्मित एक विशाल और ऊँचे भवन के सामने पहुँच गए थे । ऐसा विशाल भवन कई जगह घास की गट्ठी जमा करने के लिए बनाये जाते हैं ।
इस भवन के बड़े से दरवाजे के समीप ही दो खूंखार से दिखनेवाले शख्स टहल रहे थे और आपस में कुछ हंसी मजाक करते हुए बेतहाशा हँसे जा रहे थे । इन चारों को अपनी तरफ बढ़ता देख दोनों सतर्क हो गए । फिर विजय को पहचानकर मुस्कुराने लगे । उन्हें देखने मात्र से ही राहुल की तो घिग्घी बंध गयी थी । उन दोनों के नजदीक पहुँच कर विजय ने उनमें से एक से हाथ मिलाते हुए बोला ” कैसे हो रहमान भाई ? असलम भाईजान हैं ? ”
” खुदा का शुक्र है विजय भाई ! असलम भाई तुम्हारा ही रास्ता देख रहे हैं । जाओ ! ” उस रहमान नामके गुंडे सी शक्ल वाले व्यक्ति ने जवाब दिया ।
रहमान के मुंह से निकले शब्दों को सुनकर राहुल हैरत में था । ऐसे भयानक और शातिर अपराधी दिखनेवाले भी दुआ सलाम और उपरवाले में यकिन करते हैं यही जानकर वह हैरान था । बड़े दरवाजे में बने संकरे से दरवाजे से चारों ने भीतर प्रवेश किया । राहुल का ह्रदय जोरों से धड़क रहा था । भीतर से वह काफी डरा हुआ था और मन ही मन हनुमान चालीसा का निरंतर जाप कर खुद को हिम्मत बंधा रहा था । अन्दर का दृश्य काफी विचित्र था ।
दरवाजे से दायीं तरफ काफी सारा कबाड़े जैसा ड्रम और गत्ते के खोखे भरे हुए दिख रहे थे जबकि बायीं तरफ का नजारा इससे ठीक उलट था । साफ सुथरे कमरे में लाल रंग की रहस्यमयी रोशनी बिखरी हुयी थी । रोशनी काफी धीमी थी । कुछ आदमी इस तरफ खड़े थे जो इस रहस्यमयी रोशनी के कारण सिर्फ परछाईं जैसा ही प्रतीत हो रहे थे । इस कमरे में ही आखिर में एक भव्य स्टेज जैसा बना हुआ था जिस पर एक आलिशान कुर्सी पर एक शख्स बैठा हुआ था। उस मंच के समीप जाकर विजय ने झुक कर उस शख्स को आदाब किया ” भाई जान ! विजय का आदाब कुबूल फरमाइए । ” उसकी देखादेखी सोहन ‘ रईस और अंत में राहुल ने भी झुककर उस आदमी का जो कि वास्तव में असलम भाई ही था अभिवादन किया । असलम ने हाथ उठाकर उनका अभिवादन स्वीकार करने का संकेत दिया । राहुल उसकी तरफ बारीकी से देख रहा था । अचानक असलम ने एक विशेष अंदाज में ताली बजायी और पुरा कमरा तेज दुधिया रोशनी से नहा उठा । अँधेरे के बाद अचानक इतनी तेज रोशनी के कारण सभी की आँखें चौंधियां गयीं थी । आँखें मसलते हुए राहुल ने मंच पर बैठे असलम भाई की तरफ देखा और बुरी तरह चौंक उठा । उसने जोरों से आँखें मसलते हुए पुनः असलम भाई की तरफ देखा । अब असलम भाई का चेहरा तेज दुधिया रोशनी में बिलकुल साफ़ दिखाई पड़ रहा था । असलम भाई को देखते ही राहुल का मुंह खुला का खुला रह गया था । वह सोच रहा था कहीं कोई फिल्म तो नहीं देख रहा लेकिन फिर तुरंत ही संभल गया और सोचने लगा ऐसा कैसे हो सकता है ?उसकी हैरानी का कारण था असलम भाई का चेहरा । वह यह चेहरा कैसे भूल सकता था ? अभी दो महीने पहले ही तो यह उसके स्कूल में स्वतंत्रता दिवस के सुअवसर पर मुख्य अतिथि बन कर आया था । राहुल के जेहन में दो महीने पुराना वह दृश्य किसी चलचित्र की भाँति घूम गया ।
‘ राहुल के स्कूल में स्वतंत्रता दिवस के सुअवसर पर खेलने के मैदान में ही एक बड़ा सा मंच बनाया गया था । मुख्य अतिथि के तौर पर पंडित राम सनेही जो कि उसके शहर के नगराध्यक्ष निर्वाचित हुए थे मंच पर विराजमान थे । वक्ताओं के ओजस्वी भाषणों से छात्रों के दिलों में देशभक्ति और तिरंगे के सम्मान की भावना बलवती हो गयी थी । ऐसे में पंडित रामसनेही की वह हरकत कोई भी नजर अंदाज कर ही नहीं सकता था ।
दरअसल कार्यक्रम के समापन के लिए सभी ‘ वंदे मातरम ‘ गाने के लिए सावधान की मुद्रा में खड़े थे लेकिन पंडितजी तो कुर्ते की जेब में हाथ डाले अजीब सी हरकतें कर रहे थे और फिर फोन की घंटी बजते ही फोन पर जोर जोर से बतियाने लगे । नागवारी के लक्षण प्रधानाचार्य और अन्य वक्ताओं के चेहरे पर साफ़ झलक रहा था लेकिन सभी विवश से चुपचाप खड़े देखते रहे ।

राष्ट्रगान समाप्त होते ही पंडित रामसनेही उठे और सीधे कार में बैठ कर फुर्र हो गए । सफ़ेद पायजामे पर सफ़ेद कमीज और खादी की कोट में पंडित जी विचित्र लग रहे थे । उनकी यह तस्वीर राहुल के बाल मन में चिपक सी गयी थी और इसीलिए वह हैरत में था कहाँ पंडित राम सनेही और कहाँ यह असलम भाई ? लेकिन फिर भी दोनों में इतनी गहरी समानता ? ऐसा कैसे हो सकता है ? फिल्मों में उसने दो भाइयों के बिछड़ने और फिर मिलने की कहानियां कई बार देखी थी लेकिन हकिकत में भी क्या यह सम्भव था ? वह कोई फैसला नहीं कर पा रहा था ।
उसके चेहरे पर बदलते भावों को महसूस करते हुए विजय ने उसकी तरफ इशारा करते हुए असलम भाई से कहा ” भाई जान ! यह राहुल है । यह पास के ही किसी शहर से रास्ता भटक कर यहाँ आ गया है । आज की चोरी में यह भी हमारे साथ था । इसी वजह से आज हमने बड़ा हाथ मारने की सोची और कामयाब रहे । ” कह कर विजय खामोश हो गया ।
राहुल को घूरते हुए असलम भाई ने उसे सर से लेकर पाँव तक देखा । उसको अपनी तरफ देखते पाकर राहुल के बदन में सिहरन दौड़ गयी । वह पहले से ही सहमा सहमा लग रहा था । उस पर नजरें टिकाये हुए ही असलम भाई की आवाज हॉल में गूंज गयी ” विजय ! तुम कितने साल से हमारे लिए काम कर रहे हो ? ”
” जी ! तीन साल से भाईजान ! ” विजय ने तुरंत ही जवाब दिया ।

” और नालायक ! तुम्हें अभी तक हमारे काम की समझ नहीं आई ? ” अचानक असलम भाई चीख पड़ा । थोड़ी देर के लिए हॉल में ख़ामोशी का साम्राज्य पसर गया ।
कुछ देर की ख़ामोशी के बाद असलम भाई की धीर गंभीर आवाज फिर हॉल में गूंजने लगी ” विजय ! तुम जानते हो हम तुम्हारी कितनी इज्जत करते हैं । तुमसे इस बेवकूफी की उम्मीद नहीं थी । ध्यान रहे ! आइन्दा ऐसी गलती फिर नहीं होनी चाहिए । ”
सोहन ‘रईस और राहुल समझ नहीं पा रहे थे कि राहुल को लेकर विजय से कौनसी इतनी बड़ी गलती हो गयी थी जिसके लिए ‘ भाई ‘ इतना नाराज हो रहे हैं और विजय ! उसकी हालत भी ऐसी थी जैसे काटो तो खून नहीं । बिचारा सीर झुकाए चुपचाप खड़ा सब सुनता रहा ।


क्रमशः
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प्रिय प्रेरक पाठकों ! नमस्कार !
जैसा कि आप लोग जानते हैं कल मंच पर सिर्फ विषय आधारित लघुकथाएं ही पोस्ट की जाएंगी , इस कहानी की अगली कड़ी परसों यानि रविवार शाम पांच बजे पोस्ट की जाएगी । तब तक यदि आप चाहें तो असलम भाई विजय से ईतना नाराज क्यों हुआ था इसका कयास लगा सकते हैं । इसकी वजह प्रतिक्रिया में लिख सकते हैं । वैसे परसों के अंक में इसका खुलासा हो ही जायेगा लेकिन देखें आपके विचार हमसे कितना मिल पाते हैं ।
धन्यवाद !