Insaaniyat - EK dharm - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

इंसानियत - एक धर्म - 8

दयाल बाबू की बातें सुनकर राखी को यह अंदाजा तो हो ही गया था कि उसके ससुर को उसका फैसला नागवार गुजर रहा है लेकिन उसे पता था इंसानियत की राह इतनी आसान भी नहीं होती । मुश्किलें तो आएंगी ही सो वह अपनी सास सुषमाजी से बोली ” माँ जी ! बाबूजी यह क्या कह रहे हैं ? अब अगर मेरी वजह से उस बहादुर और भले सिपाही की जान बचती है तो इसमें हमारी सामाजिक मान मर्यादा कैसे कम हो जाएगी ? क्या इंसानियत की राह पर चलना गुनाह है ? क्या इंसानियत दिखाने की कीमत उस गरीब सिपाही को अपनी नौकरी व रोजी रोटी की बलि चढ़ाकर चुकानी होगी ? माँ जी ! आप ही समझाइये न बाबूजी को ! अगर लोग हमारी ही तरह स्वार्थी बनते रहे तो कौन भला आदमी भविष्य में इंसानियत के राह पर चलने की कोशिश करेगा ? लोग उसकी खिल्ली नहीं उड़ाएंगे ? फिर कौन सिपाही किसी गैर के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगायेगा ? “कहते कहते राखी उत्तेजना की अधिकता से कांपने लगी थी ।
उसे अपने नजदीक लेकर गले से लगाते हुए सुषमा जी ने उसे प्यार से समझाया था ” नहीं बेटा ! तू बिल्कुल सही कह रही है लेकिन तेरे बाबूजी तुझसे बहुत प्यार करते हैं न ! वो इसीलिए ऐसा कह रहे हैं । वो नहीं चाहते कि उनकी बहू एक पल को भी उनकी नजरों से दूर हो । वो ये भी नहीं चाहते कि उनकी बहू को अदालतों के चक्कर लगाने पड़ें और वकीलों के भद्दे भद्दे सवालों का जवाब देने को बाध्य होना पड़े । और फिर लोग जब कहेंगे ‘ वो देखो ! वो दयाल बाबू की लाडली बहु जिसपर हत्या का इल्जाम है । ‘ तब क्या हमारा सिर शर्म से नहीं झुक जाएगा ? नहीं बहु ! यह तो हमसे भी नहीं बरदाश्त हो पायेगा कि कोई हमारे सामने ही हमारी बहु के बारे में अनापशनाप बयानबाजी करे । और जब मुकदमा चलेगा खबरें नमक मसाला लगाकर छापी जाएंगी । लोग चटखारे ले लेकर ऐसी खबरों की चर्चा करेंगे । अपने ख्याली घोड़े दौड़ाएंगे । तिल का ताड़ बनाएंगे । क्या तू बरदाश्त कर पायेगी यह सब मेरी बच्ची ! ” कहती हुई सुषमाजी भी फुट फुट कर रोने लगीं लेकिन अपना कहना जारी रखा ” मैं तो कहती हूँ मेरी बात मान ले और जो कुछ हुआ उसे भूल जा । पुलिस खुद ही सारे मामले से निबट लेगी । उस सिपाही के लिए हमारे दिल में भी हमदर्दी है । हम भी चाहेंगे कि उसे कोई सजा या तकलीफ न हो लेकिन आखिर कानून से खिलवाड़ करना भी तो ठीक नहीं है न ? अब तू अपनी जुबान बंद रखेगी और खुद को नहीं फँसायेगी । बहु ! माना कि तुम्हें अपनी कोई फिक्र नहीं है लेकिन फिर भी तुम्हें हमारे खानदान की मान मर्यादा का लिहाज तो करना ही पड़ेगा । ” लगातार बोलते हुए सुषमाजी शायद अब थक गई थीं ।
दयाल बाबू और सुषमा के मन की बात समझ कर राखी सुषमा जी के बदले हुए रवैये पर हैरान हो रही थी लेकिन वह अपनी सास को जानती थी । वह जानती थी कि उसकी सास आज भी उन्हीं पुरानी पारिवारिक व्यवस्था में विश्वास रखती हैं जिसमे कुटुम्ब के मुखिया का फैसला ही अन्तिम होता है और इस लिहाज से दयाल बाबू का फैसला ही सभी को मानना है फिर अपनी खुद की मर्जी चाहे जो हो । वह भली भांति समझ रही थी कि उसकी सास ने अपने ससुर का आशय समझकर ही अपना विचार बदला है सो अब बहस या प्रतिरोध करके कोई फायदा नहीं होनेवाला है । मजबूर राखी वहीं खामोशी से कुर्सी पर बैठी शून्य में कुछ घूरने लगी ।
अब रात के लगभग ग्यारह बजनेवाले थे । दयाल बाबू के साथ आये गुप्ताजी जो अब तक खामोशी से सबकी बातें सुन रहे थे वापस जाने का इशारा करने लगे । उनके इशारे को समझ कर दयाल बाबू ने सुषमा जी से कहा ” तुम चाहो तो घर वापस चली जाओ । यहां रहकर तकलीफ उठाने से क्या लाभ ?
राखी ने आगे बढ़कर सुषमा जी से कहा ” माँ जी ! आप घर जाइये । आराम कीजिये । बाबूजी को भी साथ ले जाइए । अब आप उनकी बिल्कुल भी फिक्र नहीं करिए । में हूँ ना ! में सब संभाल लुंगी । कोई जरूरत पड़ी तो आपको फोन कर लुंगी । अब आप लोग जाइये । गुप्ताजी भी कब से परेशान हो रहे हैं । “
उसके बेहद जिद्द करने पर दयाल बाबू और सुषमाजी गुप्ताजी जी की कार से वापस अपने घर को लौट गए ।
बाहर अस्पताल के बरामदे में कुर्सी पर बैठे बैठे ही राखी की कब आंख लग गयी उसे पता ही नहीं चला । अस्पताल में सफाई कर्मियों द्वारा हो रहे शोरगुल की आवाज से राखी की नींद खुली । सुबह के सात से कुछ अधिक का समय हो रहा था ।
राखी ने बैठे बैठे ही अपने आसपास का जायजा लिया । तभी उसे याद आया रमेश को अंतिम बार उसने मध्य रात्रि में एक बार उठ कर देखा था और उसके बाद ही आकर यहां कुर्सी पर बैठी थी । और अब उसकी नींद खुल रही है ।
तुरंत ही उठकर वह तेज कदमों से सघन चिकित्सा कक्ष में पहुंची । रमेश को बेड पर पड़े देख उसे संतोष हुआ । एक नर्स उसके जिस्म से लगी मशीनों के तार निकाल रही थी । राखी को देखते ही बोली ” अब ये बिल्कुल ठीक हैं । अभी थोड़ी ही देर में इन्हें सामान्य कक्ष में भेज दिया जाएगा जहां आप इनके साथ रह सकती हैं । अभी आप फिलहाल बाहर जाइये । “
राखी उसकी बात मानकर बाहर आ गयी । अस्पताल में स्थित प्रसाधन का इस्तेमाल करके राखी हाथ मुंह धोकर वापस आकर उसी कुर्सी पर बैठ गयी । कुछ ही देर बीते होंगे कि दरोगा पांडेयजी आते हुए दिखे । वह सीधे उसी के पास आकर रुके और उसे रात की घटना की पूरी संक्षिप्त जानकारी दी और रमेश की सेहत जे बारे में पुछा । ” जी अब वो पहले से काफी बेहतर हैं । नर्स बता रही थी कि अब उन्हें सामान्य कक्ष में शिफ्ट कर दिया जाएगा । इसका मतलब अब सब कुछ ठीक है । लेकिन असलम भाई कहां हैं ? “
नायब दरोगा पांडेयजी ने ठंडी सांस ली और कहा ” अब वह हमारी हिरासत में है । क्या करूँ ? उसे गिरफ्तार करने और सजा दिलाने का मेरा दिल तो नहीं कर रहा लेकिन उस बेवकूफ ने पत्रकारों और उच्च अधिकारियों के सामने ही अपने जुर्म को कबूल किया है । इकबालिया बयान दिया है जो उसके खिलाफ सजा दिलाने के लीये काफ़ी है । नहीं तो मैं उसे जरूर बचा ने की कोशिश करता । चाहे कोई भले ही मुझ पर उंगली उठाता या जांच करवाता लेकिन जांच की दिशा मोड़कर उसे बचाने का अधिकार तो मेरे पास था ही । लेकिन अब मैं चाहकर भी उस भले आदमी के लिए कुछ नहीं कर पाऊंगा । “
राखी ने एक पल सोचा और फिर पांडेय जी से बोली ” अगर आप चाहें तो अब भी उसे बचा सकते हैं । इसके लिए आपको मेरा सहयोग करना होगा । बोलो मंजूर है ? “

क्रमशः