Ek Duje ke liye - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

एक दूजे के लिए - (भाग 1)

"कुंवारे मर्द को मैं मकान किराये पर नही देती।"
इतना कहकर उस बुढ़िया ने दरवाजा बंद कर लिया था।
उमेश की मुम्बई मे एक कंपनी में नौकरी लगी थी।दस दिन पहले ही वह मुुमंबई आया था।इस महानगर में उसका कोई दोस्त या रिश्तेदार नही था।होता भी तो?यहाँ के लोग किसी को अपने यहाँ ठहराने की भूल नही करते।दोष उन लोगो का भी नही है।वे स्वयं ही कम जगह में जैसे तैसे गुज़रा करते है।ऐसे मे किसी रिस्तेेेदार या परिचित को अपने घर मे कैसे ठहरा सकते है।

उमेश एक होटल में रह रहा था लेकिन वहाँ कब तक रह सकता था।उसने कम्पनी जॉइन करते ही किराये के मकान की तलाश शुरू कर दी थी।लेकिन जहाँ भी गया।उसका कुंवारापन आड़े आ गया
पहले विवाहित मर्दो को देखकर वह सोचता।शादी एक बंधन है और वह इस बंधन मे नहीं बंंधेगा।लेकिन यहां आने के बाद उसकी सोच बदल गई थी।उसे समझ मे आ गया था कि समाज में रहने के लिए शादी जरूरी है।पत्नी आदमी की सचरित्र का प्रमाण है।मन ही मन मे यही सोचता हुआ वह चर्चगेट आ गया था।
"तुम?"प्लेटफार्म पर उमेश और रचना का आमना सामना हुआ तो दोनों के मुंह से एक साथ निकला था।किसने किसे पहले पहचाना कहना मुश्किल था।
"लाइन में आइये"युवती को अलग लाइन बनाते देखकर उमेश ने टोका था।
"मैं लाइन मे ही हूँ।" उमेश की बात सुनकर वह युवती बोली थी।
"लाइन इधर है।आप मेरे पीछे आइये"
"मैं लड़की हूँ।लड़को की लाइन में क्यो लगू"?
"यहाँ लड़का लड़की नही है।हम सब स्टूडेंट है। सबके लिए एक ही लाइन है"उस युवती की बात सुनकर उमेश बोला,"वेसे औरते मर्दो से बराबरी की बात करती है।लेकिन लाइन मे लगना पड़े,तो अलग लाइन चाहिए।"
उस युवती का नाम रचना था।कॉलेज में एड्मिसन का फॉर्म जमा करते समय उमेश की रचना से तीखी बहस हो गई थी।पहले दिन दोनो के बीच तलवार खिंची तो अंत तक खिंची रही।
उमेश अम्बाला से और रचना कानपुर से कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए आई थी।दोनो का एडमिशन हो गया था।
कॉलेज में उमेश लड़को का और रचना लड़कियों की नेता बन गई।दोनो का बात करना तो दूर,आमना सामना होने पर दोनों एक दूसरे को ऐसे देखते मानो कच्चा चबा जाएंगे।दोनो एक दूसरे को नीचा दिखाने की ताक में रहते।कॉलेज में कोई भी कार्यक्रम होता।दोनो भाग जरूर लेते और एक दूसरे के विपरीत बोलते।दोनो को देखकर सब कहते,"विपरीत ध्रुव के"
और कॉलेज में दो साल का समय दोनों के बीच नोक झोंक और उल्टा सीधा बोलने में बिता।कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने पर दोनों अपने अपने घर लौट गए।
दोनो एक दूसरे को पसंद नही करते थे।दोनो के बीच छत्तीस का आंकड़ा था।इसलिए कॉलेज से निकलने के बाद एक दूसरे को याद रखने का सवाल ही नही था।उन्होंने सोचा भी नही था कि भविष्य में वे दोनों कभी मिलेंगे।
लेकिन दो साल बाद आज अचानक उनका आमना सामना हो गया था।
"तुम यहाँ कैसे?"कॉलेज में उमेश ने कभी भी तहजीब से बाते नही की थी।लेकिन आज वह इस तरह पेश आया मानो पुरानी बातों को भूल गया हो।
"मेरी यहां सर्विस लग गई है"रचना ने भी शालीनता का परिचय देते हुए अपने बारे में बताते हुए बोली,"और तुम यहाँ कैसे?"