Kaisa ye ishq hai - 42 books and stories free download online pdf in Hindi

कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 42)

ये देखो यहां कोई इतनी चोट खाने पर मुस्कुरा रहा है।मतलब हर बात मजाक लगती है खुद को आयरन मैंन समझ रहे है आप......!क्या सच मे दर्द नही हो रहा।अर्पिता ने प्रशान्त से पूछा तो प्रशान्त न में गर्दन हिला देते है।ओह गॉड!कहते हुए अर्पिता प्रशान्त का फोन निकालती है और खुद से उसका हाथ उठा लॉक खोलती है।ये देख प्रशान्त थोड़ा हैरानी से उसे देखते हैं।अर्पिता परम को कॉल लगाते हुए प्रशान्त से कहती है इतना हैरान होने की जरूरत नही है हमे इतना तो हक़ है न..!तो वही किया है अपने हक का इस्तेमाल!समझे आप तो यूँ टुकुर टुकर देखना बंद करो।तो प्रशान्त ने हां में सर हिलाया।

परम का फोन व्यस्त जा रहा है ये देख वो सोचती है कहीं ऐसा न हो कि किरण होल्ड पर हो।ऐसा हुआ तो ठीक नही होगा।लेकिन परम् जी से कहना भी जरूरी है नही तो इन्हें बाइक राइड करने में बहुत दिक्कत होनी है।

हेलो!हेल्लो!भाई क्या हुआ आप कुछ बोल काहे नही रहे हैं हैलो!परम की आवाज सुन अर्पिता सोच से बाहर आते हुए कहती है।हेल्लो!हम बोल रहे हैं...!
परम समझ जाते है कि फोन पर अर्पिता है वो कहते हैं,हां लेकिन भाई का फोन आपके पास..?

जी!वो दरअसल हमे पूछना था कि क्या आप अपनी गाड़ी लेकर परिवर्तन चौक पर आ सकते हैं?

परम :- हां मैं ले तो आऊंगा लेकिन क्या हुआ भाई तो अपनी बाइक से ही कहीं जाना पसंद करते हैं न फिर गाड़ी..क्यों?

वो हम आपको क्या बताए इन्होंने शर्त लगाई थी कि आप हमारे कहने पर गाड़ी लेकर नही आएंगे तो हमने भी तैश में आकर कह दिया क्यों नही लाएंगे हमारे होने वाले जीजाजी हैं तो भला हमारी बात कैसे टालेंगे।

अर्पिता की बातें सुन प्रशान्त अपने मुंह पर हाथ रख हंसने लगते हैं।उन्हें इस तरह हंसते हुए देख अर्पिता आंखे तरेरते हुए उन्हें देखती है और अपने होठों पर अंगुली रख चुप रहने का इशारा करती है।

ये देख प्रशान्त अपने कान पकड़ पीछे मुड़ जाते है।और हंसने लगते है।
परम :- अच्छा ऐसी बात है फिर तो मैं अभी गाड़ी लेकर आता हूँ आखिर दो दो रिश्ते होने है आपके साथ और दोनो में मैं रहूंगा तो आपकी ही तरफ..!ओके तो बस मैं अभी दस मिनट में आया। कह वो हँसते हुए फोन रखता है।

दो दो रिश्ते...हम कुछ समझ.. ओह हो रख दिया।अब हमें फिर से उलझन में डाल दिया ।जब तक हमे पूरी बात पता नही चलेगी तव तक हमारे पेट मे ऐसे ही गुड़ गुड़ लगी रहेगी।।ये सुन प्रशान्त मन ही मन कहते है लगता है किसी दिन ये छोटे मेरी वाट लगवा कर ही मानेगा।अब बताओ क्या जरूरत थी उसे ये कहने की कि दो दो रिश्ते..!अब उसे क्या पता जब तक ये बाल की खाल नही निकाल लेगी चैन से नही बैठेगी।

अर्पिता फोन वापस उसकी पॉकेट में रख देती है।और दुपट्टे को वापस से सम्हाल कर कांधे पर रखते हुए आगे वहीं पास ही में पड़ी बेंच पर जाकर बैठ जाती है।उसके पीछे प्रशान्त भी चुपचाप आकर वहीं बैठ जाते हैं।अब जाकर अर्पिता का मन थोड़ा शांत होता है तो वो प्रशान्त से कहती है सॉरी प्रशान्त जी, हमने कुछ ज्यादा ही गुस्सा कर दिया।वो हमें इतना गुस्सा नही करना चाहिए था आय एम सॉरी!
ओफ्फो!सॉरी क्यों।गलती तो मेरी भी रही न गुस्से में पीट दिया।और खुद के जख्म लगा बैठा।और अनजाने में सही तुम्हे दर्द दे बैठा।पता नही इतना गुस्सा क्यों आया मुझे।वैसे बंदा मैं बहुत कूल हूँ।

लेकिन न जाने क्यों ...कह वो चुप हो जाते है और मन ही मन कहते है इसका कारण तो उनका तुम्हारे प्रति गलत नियत रखना रहा।अगर कोई भी ऐसा करेगा तो मैं ऐसे ही पीटूंगा।
अर्पिता कुछ नही कहती बस एक बार उनके चेहरे की ओर देख खामोश हो जाती है।और सोचती है मतलब कितना दर्द बर्दाश्त करेंगे आप?और क्यों?

तब तक परम गाड़ी लेकर आ जाता है।प्रशान्त बेंच पर बैठे बैठे ही गाड़ी देख लेते है और अर्पिता से कहते है तुम्हारे होने वाले जीजाजी आ गए हैं।अर्पिता कुछ नही कहती है बस सड़क की ओर देखती है जहां गाड़ी खड़ी होती है।गाड़ी देख वो खड़ी हो जाती है और आगे कदम बढाती है।

लेकिन हर बार की तरह फिर उसे रुकना पड़ता है।
वो पीछे मुड़ती है और बिन कुछ कहे दुपट्टा निकालने के लिए हाथ आगे बढाती है तो प्रशान्त हाथ पीछे कर लेते हैं।हौले से..प्रशान्त जी।कहते हुए अर्पिता मुड़ती है और धीरे धीरे चलने लगती है तो प्रशान्त भी उसके पीछे चले आते है।

अर्पिता की खामोशी उन्हें अच्छी नही लग रही वो सोचते है अब ये इतनी चुप क्यों है मैं कैसे समझू।यहां तो सब ठीक हुआ।अभी तो इसने सॉरी भी कहा था और अब ये खामोशी...इसकी वजह कैसे पता करूँ..?हर बार तो मैं समझ लेता हूँ लेकिन इस बार ये खामोशी क्यों है...?और इसने पलट कर कुछ कहा भी नही क्यों..?क्या चल रहा है इसके मन में!

परम अर्पिता को देख मुस्कुराते हुए कहते है तो आप शर्त जीत गयी न।

परम की बात सुन अर्पिता कहती है, सॉरी परम जी हमे झूठ बोल कर आपको यहां बुलाना पड़ा।लेकिन अगर हम सच कहते तो आप परेशान होते हुए यहां तक पहुंचते।आप अपने भाई को देखिए न कितनी चोट लगा कर बैठे हैं...!सब हमारी वजह से..!इनके हाथ की अंगुली में रिंग फंसी हुई है जिस कारण ये इतने दर्द में होने पर भी मुस्कुरा रहे है जैसे इन्हें दर्द का एहसास हो ही नही रहा है।

अर्पिता की बात सुन प्रशान्त हैरान हो अपने हाथ की ओर देख अंगुलियां मोड़ता है तब जाकर उसे दर्द का एहसास होता है।वो तुरंत ही उसके दुपट्टे का छोर हटा खुद को शांत करने की कोशिश करता है लेकिन जव दर्द का एहसास हो ही गया है तो क्या उसे छुपाना मुश्किल होता है नही न सो वो भी अब छुपा नही पाते हैं।

ओह गॉड!क्या हुआ भाई को परम ने घबराकर प्रशान्त की ओर देख कर पूछा तो प्रशांत बोले कुछ नही छोटे वो बस यूँही बाइक राइड करते हुए लग गयी।
दोनो की बातचीत का ये मंजर देख अर्पिता ने परम् से कहा ओह हो, आप को हम घर पहुंच सारी बात बताएंगे लेकिन अभी के लिए हम निकले यहां से इन्हें दर्द हो रहा है पहले रिंग निकलवाते है फिर पट्टी करवा कर घर पहुंच आराम से बातचीत करते हैं।

ठीक है लेकिन फिर बाइक कौन लाएगा।परम ने पूछा।तो अर्पिता बोली कौन क्या..? आप लाएंगे..?हमे बाइक चलानी नही आती गाड़ी चलानी आती है।सो हम गाड़ी ड्राइव कर के ले जाएंगे।वैसे भी बस कुछ ही मिनटों का तो रास्ता है यहां से।ये तो शुक्र है कि इतना बड़ा हॉस्पिटल यहीं रास्ते मे ही है! आप वहीं मिलिएगा हमे ठीक है।

परम :- ठीक है।और बाइक की चाबी ले बाइक के पास जाकर खड़े हो जाते है।वहीं अर्पिता प्रशान्त से बैठने के लिए कहती है और खुद जाकर ड्राइविंग सीट पर जाकर बैठ जाती है।प्रशान्त भी गाड़ी में बैठ जाते है तो अर्पिता ड्राइव कर वहां से निकल जाती है।गाड़ी में बैठे हुए प्रशान्त सोचते है मतलब ये हमारी चोट ...नही मेरी चोट के कारण परेशान थी।और मैं जान भी नही पाया कि मुझे चोट लगी है।

अर्पिता के जाने के बाद परम भी बाइक ले वहां से चले आते हैं।अर्पिता को इतनी अच्छी तरह से गाड़ी चलाता देख वो कहते है तो तुम्हे गाड़ी भी चलानी आती है।

अर्पिता :- जी!पापा ने सिखाया था।हमारे घर पर थी गाड़ी तो बस तभी जिद कर के सीख ली और देखो आज काम भी आ गयी..! कह वो चुप हो जाती है।

प्रशान्त :- हम सो तो है?वैसे और क्या क्या आता है तुम्हे..?

प्रशान्त की बात सुन अर्पिता कहती है हमे क्या आता है ये हम आपको कैसे बताएं क्योंकि अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना नही आता न।बाकी जरूरत पड़ने पर सब कार्य कैसे न कैसे तिकड़म लगा कर ही लेते हैं।

मतलब सेल्फ डिपेंड पसन्द है आप।चाहे कोई साथ हो या न हो प्रशांत खुद से ही बड़बड़ाते हुए कहते है जिसे सुन अर्पिता कहती है ..! बाकी कोई हो या न हो आप होने चाहिए..!

प्रशान्त हैरानी से :- मतलब?मैं समझा नही?
अर्पिता :- कुछ नही ..?वो बस यूं ही..! कह बात खत्म कर देती है।और मन ही मन कहती है कोई साथ हो या न हो बस आप हमेशा साथ होने चाहिए हमारे..!वो कहते है न हर किसी की लाइफ में कोई स्पेशल वन होता है हमारे लिए वो स्पेशल वन आप है शान..!और अब तो हमारा हृदय इस बात को कहता है कि आपकी हमारे लिये ये परवाह यूँ ही तो नही है..?काश हमारे दिल की ये बात सत्य हो जाये...!सोचते हुए वो शान की ओर देखती है जो खिड़की से बाहर की ओर देख रहे हैं।

हॉस्पिटल देख वो गाड़ी रोकती है।और दोनो गाड़ी से नीचे उतरते हैं।जहां वो दोनो बाहर ही खड़े परम से मिलते है और तीनों जाकर डॉक्टर से मिलते हैं।
अर्पिता :- आप लोग इसे निकलवाये हम बाहर जाकर बैठते हैं..!

प्रशान्त :- काहे..?
अर्पिता कुछ नही कहती बस चुप रह जाती है।तो प्रशान्त उससे कहते है ठीक है बैठो जाकर यहां परम है हमारे पास!

थैंक यू। कह वहां से निकल आती है और डॉक्टर के बाहर आने का इंतजार करते हुए सोचती है।प्रशान्त जी आप तो केवल अंगुली की मरहम पट्टी करा चले आओगे और जगह जो छोटे मोटी चोटें लगी है उसका क्या..!सर्दी का सीजन है चोट को इग्नोर नही करना चाहिए।।बाद में यही लगी हुई छोटी सी चोट कब मुसीबत बन जाये पता भी नही चलता।

कुछ ही देर में डॉक्टर अंदर रूम से निकल कर आते है तो अर्पिता उनसे मिल कर ऑइंटमेंट पूछ लेती है और नीचे स्टोर से ले भी लेती है।तब तक परम् और प्रशान्त रिंग निकलवा कर चोट पर मरहम पट्टी करा बाहर आ जाते है और तीनो वापस घर के लिए निकलते हैं।

अर्पिता :- सुनिये!एक बात हमारे मन मे उलझन् मचाये है पूछे आपसे..?
प्रशान्त :- हां!और तुम्हे मुझसे इस तरह कुछ पूछने की जरूरत कब से पड़ गयी अप्पू.!
अर्पिता :- जरूरत नही वो बस एवे ही।और एक खामोशी पसर जाती है।
प्रशान्त :- क्या हुआ चुप हो गयी?
नही कुछ सोच रहे थे।अर्पिता ने कहा।
क्या?प्रशान्त ने पूछा।तो अर्पिता बोली कुछ महीनो पहले हमने सोशल मीडिया पर एक पेज देखा था..दिल की कलम से उस के क्रियेटर का नाम शान है उसकी सोच काफी हद तक आपसे मिलती है?
प्रशान्त :- हो सकता है?
अर्पिता :- तो सच सच बताइये, क्या शान आपकी ही दूसरी पहचान है सोशल मीडिया पर?
प्रशान्त (स्पष्ट विश्वास पूर्वक) -: हां।
अर्पिता :- इस नाम की कोई खास वजह?
प्रशान्त - वजह बस इतनी ये मेरे नाम के ही कुछ अक्षर है जो मेरी पहचान छुपा कर भी उजागर कर जाते हैं।
अर्पिता :- और अपनी पहचान उजागर न करने की कोई विशेष वजह?
प्रशान्त :- वजह, इंतज़ार ! इन्तज़ार किसी ऐसे खास का जो मेरी इस रंगीन दुनिया मे मेरे साथ रंगे।जो मेरे साथ मेरे हुनर की वजह से नही हो, बस हो।जो मेरे गुस्से में भी छुपे बेइंतहा इश्क़ को समझ सके।

अर्पिता - तो इंतजार पूरा हुआ?
प्रशान्त - हां.!कहते हुए वो अर्पिता के चेहरे की ओर देखने लगते हैं।

उनकी इस बात पर एक बार फिर अर्पिता की धड़कने बढ़ जाती है।जिन्हें महसूस कर वो सोचती है काश उस इंतजार की वजह हम हो..!

प्रशान्त :- बस बस गाड़ी रोको अप्पू हम घर आ गए।।आ हां कह अर्पिता गाड़ी रोक देती है तो प्रशान्त गाड़ी से उतर ऊपर चले आते हैं।दोनो के मन मे एक ही ख्याल आता है काश कुछ पल और मिल जाते तो .. आज बात स्पष्ट हो जाती।।

अर्पिता गाड़ी पार्क कर ऊपर आती है।प्रशान्त और परम जो हॉल में होते है दोनो अपने कमरे में जाते है जहां कुछ देर रुक कर चेंज कर बाहर रसोई की ओर बढ़ते हैं।और दोनो के कदम दरवाजे पर ही जाकर रुक जाते हैं।
अंदर का नजारा देख दोनो एक दूसरे की ओर हैरानी से देखते हैं।"अंदर श्रुति और अर्पिता दोनो बातचीत करते हुए कार्य कर रही होती हैं।

श्रुति :- देख लो अप्पू!आज तुम्हारी मदद के लिए मैं पहली बार रसोई में कार्य कर रही हूं वैसे तो सारा कार्य भाई लोग ही करते हैं।

अर्पिता :- हां जानते है हम तुमने बताया था एक बार।लेकिन कोई न कोई कार्य हमे जीवन मे पहली बार शुरू करना ही होता है न।तो ये समझ लो कि आज से तुमने भी इस कार्य को करने की शुरुआत कर ही दी।

श्रुति (हंसते हुए) :- हम सो तो है।।वैसे तुम साथ हो तो इतना तो यकीन है कि ये पक्का खाने लायक तो बन ही जायेगा।

श्रुति की बात सुन अर्पिता भी खिलखिला देती है।हंसते हुए उसकी नज़र सामने खड़े हुए परम पर पड़ती है तो वो एकदम से खामोश हो जाती है और श्रुति से कहती है ये वाला काउंटर साफ कर दिया है हमने अब बस तुम इसे सर्व कर बाहर ले आना और हां हम ये चाय ले जा रहे है ठीक है...!अर्पिता की बात सुन प्रशान्त मुस्कुराते हैं और परम से कहते है छोटे मैं अभी आया।

परम् भी शरारत से हौले से प्रशान्त से कहता है ..कहाँ चले चाय पीने..?

परम की बात सुन प्रशान्त हां छोटे कह मुस्कुराते हुए वहां से चले जाते है और हॉल में जाकर बैठ जाते हैं।अर्पिता प्रशान्त को देख उनके लिए चाय निकाल देती है।तब तक पास्ता ले श्रुति भी वहीं चली आती है।वो प्रशान्त के हाथ पर पट्टी देख उसकी चोट के बारे में पूछती है तो प्रशान्त उससे कहते हैं,ऐसी चोट तो लगती ही रहती है श्रुति!तुम चिंता न करो जल्द ही ठीक हो जाएगी।
ओके भाई श्रुति ने कहा।

प्रशान्त जैसे तैसे मैनेज कर चाय का घूंट भर उसे फिनिश करते है और उठकर कमरे में चले जाते हैं।

उनके जाने बाद अर्पिता कश्मकश में पड़ जाती है प्रशान्त के ऑइंटमेंट लगाने के लिए श्रुति से कहे या नही।अगर कहा तो उसके सवाल शुरू हो जाने है फिर हम क्या कहेंगे उससे।जब शान ने ही उसे कुछ नही बताया तो..!परम जी से कहें या नही..!या खुद ही ..?परम् जी से कह कर देखते है ऑइंटमेंट लगाना जरूरी भी है..!निर्णय कर वो रसोई में पहुंचती है और परम् से कहती है, " वो हमें आपसे ये कहना था कि उनके और भी जगह खरोंचे और थोड़ी बहुत चोटें भी आई है तो अगर आप ऑइंटमेंट लगा देते तो उन्हें दर्द से थोड़ी राहत मिलती और जख्म भी जल्दी ठीक हो जाते।

अर्पिता के मन मे प्रशान्त की परवाह देख परम् कहता है आप तो जानती ही है कि मुझे रसोई में किसी और के हाथ का खाना पसंद नही और अभी काम हुआ नही तो अभी मैं श्रुति को बोल देता हूँ।

न न नही!श्रुति को नही!वो उन्होंने श्रुति को कुछ नही बताया है अब अगर उससे कहा तो पहले सवाल पूछने लगेगी हम उसे क्या जवाब देंगे।अर्पिता ने परम से कहा तो परम अर्पिता से कहते है तो आप ही लगा दीजिये न जाकर।

अर्पिता (झिझकते हुए) :- हम!कैसे..?
परम :- वैसे ही जैसे अभी आपने भाई के बिन कहे उनके लिए चाय बनाई।अधिकार से..!

परम की बात सुन अर्पिता सवालिया निगाहों से उनकी ओर देखती है तो परम कहते है,हैरान होने की जरूरत नही है किरण ने मुझे बताया था प्रशान्त भाई के लिए आपके मन मे छुपी भावनाओ के बारे में।इसीलिए मैंने कहा था कि आपसे दो दो रिश्ते है मेरे...!

मतलब आप सब जानते हैं।अर्पिता ने बैचेनी के साथ हैरान हो कहा तो परम बोले जी, लेकिन अनजान बना बैठा था।वैसे मैं आपके साथ हूँ छोटी भाभी...!परम् के छोटी भाभी कहने पर अर्पिता कहती है हमे लगता है कि आपने जल्दबाजी कर दी है..!उनके मन मे क्या है ये तो हम अब तक जानते भी नही और आप...!कह वो चुप हो जाती है।

परम :- न बिल्कुल नही!जब आप दोनो ही एक दूजे को पसंद करते हैं और बेइंतहा इश्क़ करते है तो क्यों न कहूँ मैं।और वैसे भी इतने दिनों में इतना तो आपको जान गया हूँ कि मेरे भाई की पसंद साधारण नही है।तो अब से आप मेरे लिए मेरी छोटी भाभी।अब आप दोनो के इश्क़ को मुकम्मल कराने में मैं हमेशा आप दोनो के साथ रहूंगा और अपनी।तरफ से हर संभव कोशिश करूंगा छोटी भाभी..!

क्रमशः...