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तोड़ के बंधन - 9

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मयंक के साथ अनचाही स्थिति भोगने के बाद मिताली ने तय कर लिया था कि वह रिश्तों को संतुलित ढंग से निभाने की कला सीखेगी. लोकेश हो या मयंक… बॉस हों या जेठानी... वह सबसे बहुत ही संतुलित व्यवहार रखेगी.

अनावश्यक फोन तो मिताली पहले भी किसी को नहीं करती थी. लेकिन हाँ! अब जरूरत पड़ने पर वह अपने सब परिचितों में भी सबसे अधिक उचित पात्र को चुनकर ही फोन करने लगी. लोकेश से जहाँ सामान्य दोस्ताना व्यवहार रहता वहीं जेठानी तथा बॉस से बातचीत करते समय उसका लहजा बहुत ही सम्मानजनक होता था. मयंक अवश्य कभीकभार छेड़छाड़ पर उतर आता था लेकिन तब मिताली बहुत ही समझदारी से अपनी बातों का रुख नीतू की तरफ मोड़ देती. मयंक समझा जाता कि मिताली का मूड इस तरह की बातचीत में नहीं है तो वह भी जरूरत जितनी ही बातचीत करता.

आउटगोइंग कॉल्स का सिलसिला थम जाये तो आने का सिलसिला भी उसी अनुपात में कम होने लगता है. मिताली के फोन पर भी अब बहुत आवश्यक कॉल्स ही आने लगी थी. ऐसा ही एक आवश्यक फोन आज मिताली के मोबाइल पर आया. फोन विशु के स्कूल से था.

“हैलो मिताली जी! मैं विशु के स्कूल से बोल रही हूँ. प्रिंसीपल मैडम आपसे मिलना चाहती हैं. आज दोपहर बाद तीन बजे का समय आपके लिए तय किया गया है. यदि कोई असुविधा हो तो आप अपना समय बताएं ताकि उसे श्येड्यूल में डाला जा सके.” फोन सुनते ही मिताली सोच में पड़ गई.

“विशु के स्कूल से फोन? बिना किसी बड़े कारण के यहाँ से फोन नहीं आता. यूँ भी हर महीने पैरेंट्स-टीचर मीटिंग में मिलना होता ही है. फिर आज ये फोन? क्या किया होगा इस लड़के ने. कहीं कोई लड़ाई-कुटाई तो नहीं कर बैठा.” इन प्रश्नों को दरकिनार करके उसने फिलहाल बातचीत पर फोकस किया.

“ठीक है. मैं आती हूँ तीन बजे. लेकिन हुआ क्या है?” कारण जानने के लिए मिताली हैलो-हैलो करती ही रह गई. दूसरी तरफ से फोन कट चुका था.

ठीक तीन बजे चपरासी ने उसे सूचना दी कि मैडम आपका इंतज़ार कर रही हैं तो मिताली धड़कते दिल से प्रिंसीपल के चैंबर की तरफ चल दी. मैडम के चैंबर में जाने का उसका यह पहला अवसर था. इससे पहले तो वह सारी मीटिंग्स स्कूल के जनरल हॉल में ही अटेंड करती आई है.

“क्या मैं अंदर आ सकती हूँ?” कहती हुई मिताली ने दरवाजे पर लगा मोटा पर्दा खिसकाया. प्रिंसीपल ने नजर उठा कर देखा और गर्दन के इशारे से उसे भीतर आने की परमीशन दी. साथ ही बैठने के लिए हाथ के इशारे से कुर्सी भी निर्धारित की. कुछ पल चैंबर में शांति पसरी रही. मिताली उनके बोलने की प्रतीक्षा कर रही थी. मैडम के चेहरे का गंभीर भाव मामले की गंभीरता को बयान कर रहा था. मैडम ने हाथ में पकड़ा हुआ पेन मेज पर लगे होल्डर में डाला. अपना चश्मा उतार कर मेज पर रखा और बातचीत के लिए भूमिका बनाने लगी.

“मिताली जी! विशु के पापा के न होने का दुख हम सबको है. मैं जानती हूँ कि सिंगल मदर के लिए बच्चों की परवरिश करनी कितनी कठिन है लेकिन जो चला गया उसके साथ ही उसकी ज़िम्मेदारी भी समाप्त हो जाती है. अब आपको ही ये ज़िम्मेदारी उठानी थी. मुझे यह कहते हुये बहुत अफसोस हो रहा है कि आप इसे ठीक से निभा नहीं पा रही.” प्रिंसीपल ने अपनी निगाहें मिताली के चेहरे पर गड़ा दी. आरोप सुनकर मिताली सकते में आ गई.

“मैं कुछ समझी नहीं.” मिताली ने अचकचा कर पूछा. जवाब में मैडम ने अपने मोबाइल की स्क्रीन मिताली के सामने खोल कर रख दी. ये किसी ग्रुप चैट के स्क्रीन शॉट्स थे जिसमें विशु अपने कुछ दोस्तों के साथ शामिल था. मिताली ने आँखों पर चश्मा लगाया और पढ़ने लगी.

“उफ़्फ़! इतनी अश्लील चैट... यकीन नहीं होता कि विशु भी इसमें शामिल है. सामने होता तो कस कर दो लगाती कपाट के नीचे. वह तो अब तक यही समझती आई थी कि विशु को तो अभी तक शरीर के अंगों के नाम तक भी ठीक से नहीं पता होंगे लेकिन यहाँ तो हर अंग के इतने पर्यायवाची लिखे हुये हैं कि शायद खुद वह भी नहीं जानती थी.” मिताली जैसे-जैसे उन्हें पढ़ती जा रही थी वैसे-वैसे उसके कान लाल होते जा रहे थे. शर्म के मारे उसकी आंखे ऊपर नहीं उठ रही थी. उसने नीची नजरें किए ही मोबाइल प्रिंसीपल की ओर बढ़ा दिया.

“मुझे आपसे पूरी हमदर्दी है लेकिन हर स्कूल के अपने नियम होते हैं. आप तो जानती हैं कि हमारे स्कूल की कितनी प्रतिष्ठा है. हमें अपनी इमेज बनाए रखने के लिए कई बार कड़े फैसले भी लेने पड़ते हैं. हमने इन सभी लड़कों को एक सप्ताह के लिए सस्पेंड करने का निर्णय लिया है. यदि इसके बाद भी कोई शिकायत आती है तो मजबूरन हमें इन्हें स्कूल से निकालना पड़ेगा.” प्रिंसीपल ने अपना निर्णय सुना दिया. मिताली के पास कहने के लिए कुछ भी नहीं था. वह सिर्फ “जी” कहती हुई चैंबर से बाहर आ गई.

“सही ही तो कहती हैं मैडम. यदि विशु की जगह कोई दूसरा बच्चा होता तो वह खुद भी मैडम के इस निर्णय का स्वागत करती लेकिन अपनी कढ़ी को बासी कहना उसे बहुत बुरा लग रहा था. हालाँकि इसमें विशु की कोई गलती नहीं है. सही दिशा ना मिले तो बच्चा बेचारा भटकेगा ही ना! किशोरवय लड़कों को पिता के संरक्षण की आवश्यकता होती ही है. लेकिन मैं पिता कहाँ से लेकर आऊँ. कहीं का नहीं रखा ईश्वर आपने मुझे. इस मध्यवय में पति का साथ छीन लिया. क्या करूँ. घर संभालूँ या बच्चे?” मिताली चुपचाप अपनी आँखें नीचे किए हुए गाड़ी की तरफ बढ़ रही थी. गाड़ी का दरवाजा खोल कर उसने एसी चला लिया और स्टेयरिंग पर अपना सिर टिका लिया. किसी तरह से रोकी हुई रुलाई अब बाहर आ गई. रोकर हल्की हुई तो सोचने लगी कि क्या किया जाये. विशु की परवरिश के बारे में किससे सलाह ली जाए.

मायके में तो कोई बड़ा है ही नहीं. माँ तो कब की चली गई. पापा हैं. वो भी भाई-भाभी के साथ परदेस जाकर बस गए. बेटी मरे या जीए उन्हें क्या फर्क पड़ता है. जेठानी को पता चलेगा तो वह जले पर नमक छिड़के बिना नहीं मानेगी. तो क्या लोकेश, सिन्हा साब या फिर मयंक से सलाह ली जाए? मिताली अभी विचार कर ही रही थी कि कार की पिछली सीट पर बैठा वैभव मुस्कुराया.

“इतना क्या सोच रही हो मीतू! तुम्हें याद है मैंने बताया था कि किस तरह अपने स्कूली दिनों में मैं अपने बाबा की पी कर फेंकी हुई बीड़ी के टुकड़े को सुलगा कर कश फूँका करता था. कैसे हम सारे दोस्त पैसे जमा करके चटपटी किताबें खरीदते थे और सबसे छिपकर बारी-बारी से उसे पढ़ते थे. और तुमने भी तो बताया था कि बचपन में तुम अपने भाई की चड्डी को देखकर सोचा करती थी कि इसमें फटी हुई जेब क्यों लगाई जाती है. और वो बात तुम कैसे भूल गई जब किशोरावस्था की तरफ बढ़ती तुम अपने शारीरिक परिवर्तनों को देख-महसूस करके कितने रोमांच से भर उठती थी और अभिनेत्रियों के उघड़े हुये अंगों की तुलना अपने अंगों से किया करती थी. किशोरावस्था में इस तरह की जिज्ञासाएँ स्वाभाविक हैं. समय के साथ सब ठीक हो जाता है. अब देखो! हम-तुम सुधरे कि नहीं. ये भी सुधार जाएगा. “ वैभव ने ठहाका लगाया.  मिताली हल्के से मुस्कुराई.

“अपनी चप्पल के काँटे हमें खुद ही निकालने पड़ते हैं मिताली. तुम्हें इतना कमजोर तो मैंने नहीं समझा था.” वैभव ने आगे कहा. मिताली ने पलटकर देखा. सीट पर तो कोई नहीं था लेकिन उसे समझ में आ गया कि अपनी मदद उसे खुद ही करनी होगी. स्टेपनी के भरोसे गाडियाँ नहीं चला करती. मिताली ने गाड़ी घर की तरफ घुमा ली.

विशु सामने ही दिख गया. शाम ढले इमली की पत्तियों की तरह खुद में सिकुड़े विभु को सिर झुकाये बैठा देखा तो मिताली समझ गई कि इसे उसके स्कूल जाने के बारे में पता चल गया है और ये भी कि मम्मी को इसकी करतूतों के बारे में भी सब पता चल गया है. विशु का मुरझाया हुआ चेहरा देखकर मिताली को बेटे पर प्यार उमड़ आया.

“नाहक ही वैभव को कोस रही थी. विशु अकेला ही तो इस कांड में शामिल नहीं था. बाकी बच्चों के पापा तो उनके साथ थे ना. फिर उनकी परवरिश पर कोई सवाल क्यों नहीं उठा रहा. ठीक है कि विशु से गलती तो हुई है और इस बात से भी इंकार नहीं कि वयसन्धि के इस दौर में उसे अभी विशेष मार्गदर्शन की जरूरत है लेकिन गलती को अपराध बनने से पहले इसे सुधारा भी तो जा सकता है.” मिताली ने विशु के सिर पर हाथ रख दिया. विशु माँ से लिपट गया.

“तो! अब क्या करोगे इन सस्पेंशन के दिनों में?” मिताली ने माहौल को सहज करने की कोशिश की. विशु का सिर शर्म के मारे उठ नहीं पा रहा था. मिताली ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और आँखों में आंखे डाल दी. विशु की पलकें झुक गई.

“मैं जानती हूँ कि स्कूल में जो कुछ हुआ वह अस्वभाविक तो नहीं था लेकिन तुम समझने की कोशिश करो कि इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा उंगली जिसकी तरफ उठेगी वो तुम हो. मेरा खयाल है कि कारण भी तुम समझ ही रहे होंगे.” मिताली ने कहा. विशु ने सिर्फ सहमति में गर्दन हिलाई.

“मैं अपनी तरफ से तुम्हें कोई सजा देने के पक्ष में नहीं हूँ लेकिन इतना जरूर कहूँगी कि सारी शरारतें- शैतानियाँ जायज हो सकती हैं बशर्ते कि पढ़ाई-लिखाई में कोई कोताही ना बरती जाये. यदि तुम्हारा ध्यान अपने लक्ष्य से नहीं भटकता तो मेरी तरफ से तुम्हारी सारी शरारतें माफ हैं.” मिताली ने आगे कहा. माँ का आश्वासन और भरोसा पाकर विशु का आत्मविश्वास लौट आया. उसने भी माँ से भविष्य में किसी शिकायत का मौका नहीं देने का वादा किया. वातावरण में फिर से हँसी घुल गई.

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