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तोड़ के बंधन - 10

10

कहने को तो मिताली ने विशु से कह दिया था कि स्कूल वाली घटना में अकेला वही दोषी नहीं है लेकिन कहीं न कहीं वह घटना मिताली तो भीतर तक आहत कर गई थी. वह अपने बच्चों को बेहतर परवरिश देने के लिए दृढ़ संकल्प थी ऐसे में यह घटना उसके प्रयासों पर प्रश्न चिन्ह लगा रही थी. बहुत सोच-विचार करने के बाद मिताली को सबसे सलाह लेना उचित लगा. शायद कोई नई राह सूझे यही सोचकर उसने इस घटना का जिक्र उसने सबके सामने किया. सबसे पहले उसने सिन्हा साब को अपनी समस्या बताई.

“मुझे दो बच्चों की परवरिश का अनुभव है. मेरे अनुसार प्लानिंग करोगी तो देखना एक दिन याद करोगी मुझे. मेरे बच्चों को देखो. कितने बढ़िया निकले.” सिन्हा साब ने अपने बच्चों पर गर्व करते हुये कहा.

“जी सर! क्या करना चाहिए मुझे? आप तो जानते ही हैं कि मैं हर समय बच्चों की चौकीदारी करना मेरे लिए संभव नहीं.” मिताली ने अपनी निगाहें बॉस के चेहरे पाए गड़ा दी.

“बच्चों की चौकीदारी करनी भी नहीं चाहिए लेकिन उन पर निगाह अवश्य रखनी चाहिए. अनावश्यक किसी की कही-सुनी बातों और बिन मांगी सलाहों से बचना चाहिए. सबसे पहले तो आप अपने हितैषी... वो क्या नाम है उसका... हाँ! लोकेश! उसकी सलाहों से दूर रहो. उसे कहाँ बच्चों को लेकर कोई अनुभव है.” सिन्हा साब ने नापसंदगी से कहा. उनकी शर्त सुनकर मिताली रोष में आ गई. उसे सिन्हा साब की यह प्रतिक्रिया उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर लगी.

शाम को उसने लोकेश को घर बुलाया और विशु की समस्या पर बात चली.

“बढ़ते बच्चों की अपनी समस्याएँ होती हैं. निधि की परेशानियाँ तो आप स्त्री होने की नाते समझ सकती हैं लेकिन विशु के मन को एक पुरुष ही पढ़ सकता है. मैं उससे बात करने की कोशिश करूंगा. मैं प्रयास करूंगा कि छुट्टी वाले दिन उसके साथ कुछ समय बिताऊँ. उसकी समस्याएँ पूछूँ, उसे सलाह दूँ.” लोकेश ने उसे आश्वस्त किया. बातचीत बहुत ही खुशनुमा माहौल में चल रही थी.

“मयंक से भी बात करके देखती हूँ. शायद उसके पास भी कोई आइडिया हो.” मिताली ने बातों-बातों में कहा तो लोकेश का मूड उखड़ गया. मयंक का जिक्र आते ही उसके चेहरे पर तनाव की लकीरें खिंच गई.

“किसी को अपने व्यक्तिगत मामलों में इतना ज्यादा दखल देने की अनुमति नहीं देनी चाहिए.” लोकेश के स्वर में मयंक को लेकर कड़वाहट साफ महसूस की जा सकती थी.

“वो दोस्त है मेरा. हम अपने हर मुद्दे पर खुलकर बात करते हैं. घरेलू और व्यक्तिगत मुद्दों पर भी.” कहते हुये मिताली आश्चर्य से उसकी तरफ देखने लगी. उसे लोकेश की यह चेष्टा अनधिकृत लगी.

“चाय बनाती हूँ.” कह कर मिताली उसे नजरंदाज करते हुये चाय बनाने के लिए उठने लगी तभी मयंक का फोन आ गया. मिताली फिर से बैठ गई. मिताली ने मयंक के सामने भी अपनी समस्या रख दी. मिताली के कान फोन पर और आंखें लोकेश के चेहरे पर आते-जाते भावों पर लगी थी. लोकेश की अप्रिय प्रतिकृया को कोई भाव न देते हुये उसने मयंक से अपनी बात जारी रखी. खीजते हुये लोकेश ने टेबल पर रखा सुबह वाला अखबार उठा लिया और बासी खबरों पर नजरें दौड़ाने लगा. मिताली फोन लेकर रसोई में आ गई.

“क्यों न विशु को किसी बोर्डिंग में भेज दिया जाये.” मयंक ने सलाह दी लेकिन मिताली को उसकी ये सलाह पसंद नहीं आई. मयंक उसे कुछ दूसरे सुझाव देने लगा. बात लंबी चल रही थी. चाय बन चुकी थी. मिताली चाय की ट्रे थामे मयंक से बाते करती-करती ही ड्राइंगरूम में आ गई.

“लीजिये! चाय लीजिये.” मिताली ने लोकेश से आग्रह किया. फोन चालू था.

“कौन है? कोई है क्या घर में?” मयंक ने फोन पर पूछा. मिताली फोन लेकर दूसरे कमरे में आ गई.

“हाँ! लोकेश जी हैं. हम लोग अभी विशु वाले मुद्दे पर ही बात कर रहे थे.” मिताली ने बताया.

“यार तुम भी ना! अपने गीत हर किसी के सामने क्यों गाती रहती हो?” मयंक झल्लाया.

“वो हमारे परिवार के शुभचिंतक हैं. मैं अपनी हर परेशानी उनके साथ शेयर करती हूँ.” मिताली ने सहजता से कहा.

“तुम औरतों की यही तो समस्या है. जो कोई भी दो शब्द प्यार से बोल ले, बस! बहने लगती हो. लोगों के चेहरे ही नहीं दिमाग भी पढ़ने की कोशिश करो मैडम. इतनी छूट दोगी तो लोग कब तुम्हारी लगाम कस लेंगे तुम्हें पता भी नहीं चलेगा. ” मयंक गुस्सा हुआ. मिताली को उसका इस तरह से बात करना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा.

“बाद में बात करती हूँ.” कह कर मिताली ने फोन काटा और लोकेश के पास आकर बैठ गई.

“आपके दोस्त का फोन था ना. क्या कह रहे थे? शायद मेरा यहाँ होना उन्हें अच्छा नहीं लगा.” लोकेश ने कहा. उसके शब्दों में छिपी चिढ़ मिताली से छिपी नहीं रह सकी. मिताली ने देखा कि लोकेश ने चाय का कप छुआ तक नहीं था. मिताली को लोकेश का भी व्यवहार पसन्द नहीं आया. वह चुप ही रही. चुपचाप एक कप लोकेश की तरफ खिसका कर दूसरा अपने हाथ में ले लिया. लोकेश ने चाय के साथ कमरे में पसरी कड़वाहट को पीने की कोशिश की और एक ही घूँट में कप खाली करके ट्रे में रख दिया. मिताली को लगा मानो कप को गुस्से में पटका गया है.

लोकेश चला गया. जाते-जाते मयंक के प्रति अपनी नापसंदगी भी दर्ज करवा गया. मिताली चाय के घूँट सुड़कती रही.

दो-तीन दिन बाद जेठानी का फोन आया. पता नहीं कैसे विशु की स्कूल वाला किस्सा उन तक भी पहुँच गया था.

“अरे! मैंने सुना है कि विशु को स्कूल से निकाल दिया गया है.” जेठानी लाख चाह कर भी अपने स्वर का उत्साह छिपा नहीं सकी. मिताली किस्से की जुगाली करने के मूड में नहीं थी. वह उन्हें “स्कूल से निकाले जाने और सस्पेंड करने” के अंतर को समझाने में अपनी एनर्जी खराब नहीं करना चाह रही थी. विशेषकर तब जब कि वह जानती है कि जेठानी ये बात उसे सिर्फ इसलिए कह रही है ताकि उसकी परवरिश पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाया जा सके.

“हाँ! वो कुछ दिक्कत हुई थी लेकिन अब सब ठीक है. आप बताइये घर में सब ठीक है ना.” मिताली ने बातचीत का विषय बदलने की कोशिश की लेकिन जेठानी कहाँ इतनी जल्दी हथियार डालने वाली थी. वह वापस उसी मुद्दे पर आ गई.

“सुना है कुछ ऐसा-वैसा करते हुये पकड़ा गया.” मिताली की बात को अनसुना करते हुये जेठानी फुसफुसाई. मिताली का मन कर रहा था कि फोन को पटक दे लेकिन उसमें भी नुकसान खुद का ही था. उसने अपने आप को संयत किया.

“अपनी उम्र में सभी बच्चे कुछ न कुछ ऐसा-वैसा करते ही होंगे. बच्चे बड़े हो जाते हैं तो सब लोग ये सारी बाते भूल जाते हैं. बच्चे भी... और उनके माँ-बाप भी.” मिताली ने इस बार अपनी कड़वाहट को जुबान पर आने से नहीं रोका. जेठानी शायद समझ गई थी लेकिन फिर भी अपनी बात कैसे कटा दे.

“अब तुम्हें पता चल रहा होगा ना कि बिना बाप के बच्चों को पालना कितना मुश्किल है. जब तुम्हारे जेठजी ने तुम लोगों से साथ रहने को कहा था तब तो सब बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे. अगर बच्चे कुरास्ते निकल गए तो सब हमारे ही सिर पर ठीकरे फोड़ेंगे. तुम तो बेचारी बन जाओगी लेकिन दुनिया तो हमें ही दोष देगी ना कि हमने छोटे भाई के परिवार का खयाल नहीं रखा. किस-किस को समझाते फिरेंगे कि आजकल खयाल रखना किसी को सुहाता नहीं है. आजादी में खलल लगता है. ” जेठानी ने अपनी भड़ास निकाली. “बेचारी” शब्द सुनते ही मिताली के कान अपमान और बेबसी से लाल हो गए. गुस्से में आकर उसने फोन काट दिया.

“मिताली ना हुई सोशल मीडिया का प्लेटफॉर्म हो गई जिसे देखो वही ज्ञान पेल रहा है.” मिताली बड़बड़ाई.

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