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एलओसी- लव अपोज क्राइम - 1




नशे से बोझिल नंदिनी की आंखों में थोड़ी चैतन्यता नज़र आने लगी। फाइव स्टार होटल के बार में बैठी नंदिनी के कानों में गीत संगीत की स्वर लहरियां धीरे धीरे गूंजने लगी-
तेरे वादे की आस पलती रही,
कोई शै दिल को यूं ही छलती रही।
बेकरारी में कटी शामो- सहर-
रात उम्मीद लिए ढलती रही।
अपने होंठों पर कभी ला न सके,
बात आंखों में ही मचलती रही।
कभी गुलशन, कभी सहरा सी लगी,
जिंदगी कितने रंग बदलती रही।
कोई आहट सी आसपास रही,
कोई रूह साथ साथ चलती रही।
फिर सजी महफ़िल दीवानों की-
फिर सरे शाम शमा जलती रही।
नंदिनी ने अपने हाथ में जाम उठा लिया। यह बोतल का आखिरी जाम था। उसे उसने इस तरह से अपने हलक से नीचे उतारा जैसे कल से पूरी दुनिया की शराब खत्म हो जाने वाली है। यह सिर्फ आज की ही बात नहीं थी। वह हमेशा ऐसे ही करती थी। पिछले दो साल से वह शराब को इसी तरह से पीती थी। उसे किसी बात की कमी नहीं थी। दौलत भी थी और शोहरत भी। कहते हैं कि दौलत और शोहरत के नशे के बाद किसी और नशे की जरूरत नहीं रह जाती। पर नंदिनी इसका अपवाद थी। उसे एक और नशा चाहिए। रोज चाहिए। जी भरकर चाहिए। शराब का नशा। वह रोज एक अजीब से जुनून के साथ शराबनोशी करती थी। वो ऐसा क्यों करती थी इसका जवाब उसने आज तक किसी को नहीं दिया था। जवाब उसके पास नहीं था या वह देना नहीं चाहती थी, यह बात नंदिनी खुद भी नहीं समझ पाती थी। जब भी कोई इस बारे में उससे पूछता था तो उसके होंठों पर एक मासूम सी चुप्पी तैरने लगती थी। कई लोगों ने कई कई बार नंदिनी को समझाने की कोशिश की। समझाने का सिलसिला लगातार चला, पर वो बातें नंदिनी को व्यर्थ, बकवास और आउटडेटेड लगती थी। वह समझाइशों को एक कान से सुनती और दूसरे कान से निकाल देती।
रीनी इस विषय पर नंदिनी से असंख्य बार डांट खा चुकी थी। रीनी नंदिनी की पीए। उसकी हमसफ़र, हमराज, हम निवाला। परछाईं की तरह, साए के जैसे उसके साथ रहने वाली रीनी जब भी इस बारे में जबान खोलती.... नंदिनी... मैम... यह गलत करती हैं आप! बात पूरी होने के पहले नंदिनी भड़क जाती। " शटअप...माइंड योर बिजनेस।" पर रीनी थी कि मानती नहीं। कुछ समय बाद फिर कोशिश करती। " नंदिनी..प्लीज! मैम अब बस करो। बहुत हो गया आज...।"
" बकवास बंद करो, रीनी।" रीनी को मजबूरन कुछ पल के लिए चुप हो जाना पड़ता।
रीनी अपनी दोस्त की तबाही- बर्बादी अपनी आंखों से नहीं नहीं देख सकती थी। एक रीनी ही तो थी जो नंदिनी को कुछ बोलने की, रोकने- टोकने की हिम्मत व हक दोनों रखती थी और नंदिनी भी एक शराब के अलावा रीनी की सभी बातें एक छोटी बच्ची की तरह, चाभी वाली गुड़िया की तरह मान भी लेती थी।
आज भी रीनी नंदिनी की हालत देखकर दुखी हो गई। उसने नंदिनी से कहा-
" मैम! नंदिनी। चलो बस करो। अब घर चलते हैं। सब इंतजार कर रहे हैं। कई बार फोन आ चुका है।"
नंदिनी ने बात को अनसुना कर दिया। रीनी ने नंदिनी की ओर देखा। हुश्न और नूर का शाहकार नंदिनी। हर लिहाज से मुक़म्मल। सौंदर्य से परिपूर्ण। साक्षात एलिजाबेथ टेलर। बड़ी सुंदर आंखें- अमावस की रात के आसमान से भी ज्यादा काली। किसी अक्षत योनि कन्या सी भोली। उसकी हांथों की उंगलियां पतली, लंबी, बांहें गोल, लंबी और भरी भरी व गर्दन सुराहीदार थी। सर के बाल बड़े ही आकर्षक ढंग से पीछे की ओर उठे हुए जूड़े में कैद थे। सेक्सी होंठ, बड़े बड़े उरोज पर उसका भोला भाला चेहरा इतना सुंदर कि बड़े बड़े देवता भी उसके रूप को देखकर भटक जाते। उसे इंद्र के महल की कोई अप्सरा समझना ज्यादा उचित होगा।
रीनी ने फिर आवाज दी, " नंदिनी।" इस बार नंदिनी ने नजरें ऊपर उठाई। उसकी नजरों में गुस्से के साथ शराब, दौलत व शोहरत का नशा भी झलक रहा था। रीनी को चुप कराने के लिए उसकी गुस्सैल आंखें काफी थी। दस सेकेंड के बाद नंदिनी ने अपनी उंगलियों से 'बिल' का इशारा किया। रीनी ने वेटर को संकेत दिया। वह जादूगर की तरह बिल के साथ प्रकट हुआ। रीनी ने बिल चुकाया। नंदिनी अपनी जगह से उठने की कोशिश में लड़खड़ा गई। रीनी ने उसे संभाला। उसे कार तक ले आई। शोफर ने दरवाजा खोला। नंदिनी पिछली सीट पर बैठी। कार का दरवाजा खुला ही रखा था। उसने अपनी पर्स से लकी स्ट्राइक का पैकेट निकालकर एक सिगरेट जलाई। सिगरेट के धुएं को बाहर छोड़ते हुए उसने कहा, " कल का क्या शेड्यूल है?" उसकी जुबान लड़खड़ा रही थी।
" दोपहर 2.30 पर आर पी नायर से मीटिंग।"
" ओह ! नायर!! यह... मीटिंग.. तो करनी... ही पड़ेगी।....स्टार वर्ल्ड... अवार्ड फंक्शन!"
" हां, नंदिनी।" रीनी का स्वर सहमति में हिला।
'अवार्ड'! नंदिनी में अचानक स्फूर्ति की लहर दौड़ गई। उसकी आँखों में खुशी कौंधी। नंदिनी ने खुशी की चमक को छुपाने की कोशिश तो की परन्तु तब तक रीनी ने उसे भांप लिया था।
सिगरेट खत्म होते ही नंदिनी ने उसे बाहर उछाल कर कार का दरवाजा बंद किया। फिर कार घर की ओर दौड़ पड़ी।

* * *

" और कितनी देर लगेगी घर पहुंचने में? ड्राइवर गाड़ी तेज चलाओ।" नशीली आवाज में नंदिनी ने कहा।
" जी मैडम! बस पहुंचने ही वाले हैं।"
" नंदिनी....।"
रीनी कुछ और बोलती उसके पहले ही नंदिनी ने अपनी उंगली होंठों पर रखकर उसे चुप रहने का इशारा किया। रीनी थोड़ा सहम सी गई। नंदिनी की नजरें कार के बाहर के दृश्यों पर लगी हुई थी। रात के 12 बजे हुए थे। सड़कों पर खूब चहल पहल थी। रंगीनी और मस्ती के नजारे चारों तरफ छाए हुए थे। दुनिया भर के लोगों को सपने देखने और उन्हें पूरा करने की प्रेरणा देने वाली मुंबई की जीवंतता और मस्ती ही उसकी खासियत है। यह शहर सोता नहीं। कभी नहीं सोता। हमेशा जागता रहता है। शायद नींद इसकी किस्मत में नहीं है या फिर ये खुद जागने की आदत पाले हुए है।
लेकिन नंदिनी एक साथ दोनों स्थितियों में है, वह सो भी रही है और जाग भी रही है। शराब का सुरूर उसे नींद की ओर अग्रसर करता तो घर पहुंचने की जल्दी उसे आंखें खोले रहने पर मजबूर करती।
...लीजिए घर आ गया। कार रुकी। ड्राइवर ने फुर्ती से दरवाजा खोला, नंदिनी उतरी और वह मेनगेट की तरफ बढ़ने लगी। रीनी ने पीछे से आकर नंदिनी का हाथ पकड़ने की कोशिश की। नंदिनी ने उसका हाथ हटा दिया।
नंदिनी ने दरवाजे पर रखे हुए गमले में लगे पौधे की ओर देखा और मुस्कुराई। यह उसकी रोज की आदत थी। वह जब भी घर पहुंचती, इस पौधे को मुस्कराहट के साथ 'ग्रीट' जरूर करती। बदले में पौधा भी जवाब देता। हवा के झोंके से हिलते हुए उसके पत्ते एक दूसरे से टकराते तो नंदिनी को लगता कि जवाब मिल रहा है, यह पौधा उसकी घर वापसी को रिकग्नाइज कर उसका अभिवादन कर रहा है।
ट्रिंग... ट्रिंग....ट्रिंग.... घर के अंदर गूंजती कालबेल की आवाज नंदिनी भी सुन रही थी। दरवाजा खुला। सामने नंदिनी की माँ ममता खड़ी थी। उसके चेहरे पर गुस्से के भाव थे।
" नंदिनी.. क्या है ये सब...? रोज रोज, इस हालत में?" फिर वे रीनी से मुखातिब हुई-
" रीनी, तुम्हे कहा था न। आज जल्दी घर आ जाना। मेहमान आने वाले हैं।"
" बस....।" नंदिनी ने अपनी उंगली होंठों पर रखकर मां को इशारा किया। मां तुरंत चुप हो गई। लड़खड़ाते हुए कदमों से नंदिनी ने घर में प्रवेश किया। इतनी रात हो जाने के बावजूद मेहमान घर में ही थे। सभी की नजर नंदिनी पर गई।
'माई फुट!' नंदिनी के खूबसूरत होंठ बुदबुदाए और वह तेजी से अपने कमरे की ओर बढ़ चली।
" बेटा, ये सब लोग तुम्हारा ही इंतजार कर रहे हैं।" मां ने नंदिनी को रोकने की नाकामयाब कोशिश करते हुए कहा। पर नंदिनी उसे अनसुना कर अपने कमरे में घुस गई और मां के मुंह पर ही उसने फटाक से दरवाजा बंद कर दिया।
" रीनी, तुम जाओ और नंदिनी को लेकर यहां आओ। सब लोग बहुत देर से इंतजार कर रहे हैं। हम डिनर साथ में ही करेंगे।"
मां का आदेश टालना रीनी के बस में नहीं था। उसने नंदिनी के कमरे का दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खुलने पर वह अंदर घुसी।
नंदिनी अपने क्वीन साइज बेड पर लेटी हुई थी। उसके बेड पर चारों ओर खिलौनों का अंबार लगा हुआ था- टेडी बियर, पीली बिल्लियां, नीले खरगोश, पीली आंखों वाले रेशमी काले तेंदुए, बिंदियों वाले पांडा, गुलाबी बंदर आदि कपड़े के खिलौनों के बीच नंदिनी एक गुड़िया को अपनी छाती से लगाए कुछ बुदबुदा रही थी।
" नंदिनी, थोड़ी देर के लिए बाहर चलो। प्लीज। मेहमानों से थोड़ा हाय, हेलो तो कर लो। मां ने बोला है।"
नंदिनी की तन्द्रा भंग हुई। कुछ पलों के लिए वह चुप रही, फिर बोली-
" ओके! फ्रेश होकर आती हूँ। अब तुम जाओ।"
यह सुनकर रीनी कमरे से बाहर चली गई।


* * *

सभी की नजर नंदिनी के कमरे की ओर थी। 15 मिनट बीत गए...20 मिनट हो गया..... पर अभी तक नंदिनी बाहर नहीं निकली थी। मां ने रीनी की तरफ देखा। रीनी उनकी आंखों का संकेत समझ गई। वह उठकर नंदिनी के कमरे की ओर जा रही थी कि उसे नंदिनी ड्राइंग रूम की तरफ आती दिखाई दी। मैरून कलर के लांग गाउन में वो परी सरीखी लग रही थी। गालों के साथ अठखेलियाँ करती हुई उसके बालों की लट किसी को भी दीवाना बना सकती थी। मेहमान तो बस उसे देखते ही रह गए। दरअसल, नंदिनी में रंगों का सौंदर्य, फूलों की मुस्कान, हवाओ की ताजगी, चंद्रमा की शीतलता, नदियों की ठंडी ठंडी पिघली हुई चांदनी व इंद्रधनुष के राग एकाकार हो गए थे। नंदिनी सोफे के पास आई, अपनी हमेशा की जगह पर बैठ गई।
" बेटा, ये तन्मय जी हां। आज ही अमेरिका से आए हैं।" नंदिनी के पिता राजमल ने सामने वाले सोफे पर बैठे एक सुदर्शन नौजवान की तरफ इशारा करते हुए कहा। नंदिनी ने तन्मय का मुस्कुराते हुए अभिवादन किया।
बात को आगे बढाते हुए राजमल ने कहा, " नंदिनी बेटा। तन्मय जी लास एंजेलिस में एक एडवरटाइजिंग कंपनी के को- फाउंडर हैं और ये लोग तन्मय जी के पार्टनर हैं।"
" तो.....?" नंदिनी की आवाज में कर्टसी की बजाय अशिष्टता थी।
" बेटा, ये लोग तुम्हें लेकर एक एड फ़िल्म बनाना चाहते हैं।" पिता ने कहा।
" फिर टर्म एंड कंडीशन डिसकस करें ये लोग।" नंदिनी ने तुरन्त फैसला सुना दिया।
"बेटा, पहले पूरी बात तो सुनो। तन्मय जी अपनी कम्पनी की एक ब्रांच इंडिया में भी खोलना चाहते हैं। उन्होंने हमारे सामने उसकी पार्टनरशिप का ऑफर रखा है।"
"जी हां, नंदिनी जी। आप पार्टनरशिप भी कर सकते हैं और एड का आपको मुँहमाँगा बजट मिलेगा... .. और...।"
" सॉरी! आ' यम नाट इंटरेस्टेड ऑन योर एड नॉर पार्टनरशिप प्रपोजल।" तन्मय की बात को बीच में काटकर नंदिनी बोल पड़ी। फिर सोफे से उसने उठने का उपक्रम करते हुए कहा, " सॉरी' रात बहुत हो गई है। नाउ आई वांट रेस्ट। प्लीज, यू मे गो।"
इस पर मां बोल पड़ी- " बेटा! ऐसा मत करो। अच्छा ऑफर है। जल्दबाजी में निर्णय नहीं लिया जाता।"
" नहीं मां! मुझे नहीं करना कोई एड वेड!!" नंदिनी ने गंभीरता से जवाब दिया।
" बेटा! ठंडे दिमाग से सोच लो, फिर फैसला करना। सुबह तक बता देना।" यह आवाज राजमल की थी।
" ठीक है, सोचूंगी।" नंदिनी उठ खड़ी हुई। मां भी खड़ी हो गई। वह नंदिनी के एकदम करीब गई और उसके कान में फुसफुसाई- ' बेटा, एड के प्रपोजल पर गंभीरता से सोचना। तुम्हारे भाई की तबीयत खराब रहती है।' नंदिनी कुछ बोली नहीं। उसने अपनी गर्दन को एक हल्की सी जुंबिश दी बस। इसमें 'हां' था या 'ना' मां नहीं समझ पाई।
मां को अचानक कुछ ध्यान आया। उन्होंने रीनी को आवाज दी, " अरे रीनी! हम सब अभी तक भूखे हैं। आजा, खाना खाते हैं।" फिर वे नंदिनी की ओर मुखातिब हुईं- " बेटा आओ, सभी साथ में बैठकर खाना खाएं।" फिर वे किचन की तरफ चली गईं।
डाइनिंग टेबल पर खाना लग चुका था। सब अपना- अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे। खाने की प्लेट की तरफ देखकर नंदिनी चिल्लाई, " मां, ये क्या है? ये सब्जी मुझे पसंद नहीं है। फिर क्यों दिया मुझे?.....कितनी बार कहा है मैंने कि सलाद में टमाटर होना चाहिए।" यह कहते हुए नंदिनी ने प्लेट सरका दी और वह कुर्सी से उठ खड़ी हुई। ममता और राजमल दोनों ने उसे रोकने की कोशिश की पर वह रुकी नहीं। जाते- जाते उसने रीनी की ओर देखकर कहा, " मेरा खाना कमरे में भेज दो। और हां, दही लाना मत भूलना।"
रीनी खाना छोड़कर तुरन्त उठ खड़ी हुई। उसने एक अलग प्लेट में नंदिनी की पसंद की सामग्री रखी, फ्रिज से दही निकाला, सलाद फिर से काटा। उसे लेकर कमरे में आई तब तक नंदिनी कपड़े चेंज कर चुकी थी। रीनी के हाथ से उसने प्लेट ले ली- " अब तुम जाओ।" रीनी चली गई।
नंदिनी प्लेट लेकर अपने भाई दीपक के कमरे में गई। दीपक सो रहा था। नंदिनी ने उसके माथे को हल्के से छुआ। दीपक जाग गया, नंदिनी को देखकर उसने बिस्तर से उठने की कोशिश की, पर उठ नहीं पाया। " दीदी, आप यहां?" नंदिनी ने उसे सहारा देकर उठाया और स्नेह से कहा, " हां, मैं। तुम बिना खाए क्यों सो गए?...चलो, अच्छे बच्चे की तरह खाना खाओ।" दीपक ने सहमति से सिर हिलाया। उसकी आंखें डबडबा आई। नंदिनी ने उसके आँसू पोंछे और कहा, " दिल छोटा नहीं करते! तुम जल्दी अच्छे हो जाओगे।"
नंदिनी ने दीपक को खाना खिलाते समय उसे कुछ बताना शुरू कर दिया- " दीपक, मेरे भाई! दुखी मत रहो। तुम जल्दी ठीक हो जाओगे।...जीवन में उतार- चढ़ाव आते ही रहते हैं। पहिए का जो हिस्सा इस समय जमीन के साथ है, वो कुछ देर में ऊपर चला जाता है। ऊपर वाले को नीचे आने पड़ता है।..रात बीतती है तो सवेरा होता है। इसलिए कभी हिम्मत मत छोड़ो। आशावान बने रहो।" इस दौरान नंदिनी ने भी खाना खा लिया। दीपक को दही खिलाते हुए वो बोली, " खा ले! ये तेरी फेवरेट है।" यह कहते हुए नंदिनी की आंखों में मोती झिलमिलाने लगे थे।
" दीदी, तुम मेरा कितना ख्याल रखती हो।" दीपक ने नंदिनी का एक हाथ पकड़ते हुए कहा।
" मैं अपने भाई का ख्याल नहीं रखूंगी तो कौन रखेगा, पगले! कहते हुए नंदिनी बेहद भावुक हो गई। दीपक के लिए उसके मन में असीम स्नेह था। पुत्रवत प्यार।
"ये क्या, दीदी! तुम तो सेंटी हो गई। अच्छा चलो, ये बताओ कि आज शूट पर क्या - क्या हुआ?"
" दीपक, बात को बदलो नहीं।"
"मैं बात नहीं बदल रहा हूं दीदी। चलो शूट की बात बताओ। मुझे जानना है।" दीपक की आंखें एक बार फिर नम होने लगीं।
" भाई, बताओ न! क्या बात है ?"
" कुछ नहीं दीदी! तुम बताओ कि शूट पर क्या - क्या हुआ?"
" दीपक! तुम शायद मुझे अपना मानते ही नहीं। तभी तो आजकल बहुत कुछ छिपाने लगे हो। शायद मुझसे नहीं बताना चाहते तुम। कोई बात नहीं?
" ऐसी बात नहीं है दीदी!"
" नहीं दीपक! मत बताओ। क्यों बताओगे मुझे? मैं तुम्हारी सगी बहन तो हूँ नहीं।? यह कहते कहते नंदिनी फूट फूट कर रोने लगी। उसने अपना चेहरा घुटनों में छुपा लिया।
" दीदी, ऐसा मत कहो। इस घर में सिर्फ तुम्हीं मेरी अपनी हो। मेरी दीदी। सही बहन से बढ़कर। सगी बहन तो कभी नहीं पूछती कि खाना खाया कि नहीं। कैसे हूं? कुछ भी नहीं पूछती! सिर्फ तुम। सिर्फ तुम मेरा ख्याल रखती हो। नहीं तो....मा- बाप ने तो....।" कहते- कहते दीपक की रुलाई फूट पड़ी।
" मत रो। हुआ क्या, ये तो बता। और हां, दोपहर में खाना खाया था कि नहीं?"
" खाया था दीदी! पर आपके हाथों से बेहद सुकून मिलता है।" दीपक को अचानक जैसे कुछ याद आ गया हो-
"...अरे हां, दीदी! आज एफएम डायमंड पर दोपहर एक खूबसूरत गजल सुनने को मिली थी।"
" अच्छा!" नंदिनी अब संयत हो चुकी थी। एफएम डायमंड के नाम से दीपक की आंखें चमकने लगी थी। "... तो आज फिर हेमलता का जादू तुम पर चल गया।"
" दीदी! हेमलता नहीं। आरजे हेमलता बोलो।"
" हां बाबा! आरजे हेमलता! अब तो खुश! बताओ, वो कौन सी ग़ज़ल थी?"
"दीदी, पूरी याद नहीं है!"
" अब नखरे मत दिखाओ! सुनाओ।"
"कुछ लाइने ही याद हैं दीदी।"
"ओके। जितना याद है, उतना ही सुनाओ। वैसे, ग़ज़ल किसकी थी।"
" दीदी ! जैब बरेलवी की। ये ग़ज़ल-

मुंतजर फिर है कोई शाम ढले,
साहिलों पर कहीं चिराग जले।

उम्र भर सोजे ग़म के दाग जले,
क्यों अंधेरा है फिर चिराग तले।

दिल की दुनिया थी पुर सुकून लेकिन,
फिर भी दुनिया ने 'जैब' हाथ मले।

" वाह, वाह, बहुत सुंदर मेरे भाई! मुझे पता है तुम्हे गजले सुनना बहुत पसंद है, तुम्हे क्या मुझे भी पसंद है,लेकिन जिंदगी में इतना दर्द भी अच्छा नहीं है।" नंदिनी बोली।
दीपक के चेहरे पर उदासी की एक हल्की सी परत आ गई- " दीदी, एक बात बोलूं?"
" बोलो भाई। क्या चाहिए तुम्हे?"
" दीदी। बहुत दिन हो गया। इन दीवारों में कैद हो गया हूँ। घर में बंद होकर घुट रहा हूँ। दीदी, कल मुझे बाहर ले चलो।"
" जरूर चलेंगे भाई। हम दोनों कल बाहर चलेंगे।" और नंदिनी के साथ दीपक भी रोने लगा।
" दीदी, मैं आपको परेशान नहीं देख सकता। अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता। बिल्कुल भी नहीं होता। पर करूँ क्या, मैं इतना काबिल भी नहीं हूं कि इन सबको सबक सिखाऊं। मैं अपाहिज जो हूं।" बेबसी से भरी आवाज ने नंदिनी को भावुक कर दिया- " बस कर पगले!... थप्पड़ मारूंगा, अगर दुबारा अपने को अपाहिज समझा तो! तू ही तो मेरी हिम्मत है....। तू ही मेरी ताकत है। दुबारा ऐसा मत कहना।.. कभी मत कहना। नंदिनी की रुलाई थमी नहीं थी।
दीपक नंदिनी के आंसू पोछते हुए बोला, " और तुम मेरी हिम्मत हो, दीदी। वरना मैं तो कब का.....।"
" बस कर भाई....।" अचानक नंदिनी की नजर दीपक के हाथों पर पड़ी। वह चौंक गई। " इन दरिंदों ने आज भी मारा क्या? बताओ! इन लोगों को तो मैं.....।"
" नहीं दीदी। उनसे कुछ मत कहना। कुछ नहीं। प्लीज दीदी। प्लीज!!!"
" ओके..! नहीं कहूंगी।... पर बोलो भाई। कब तक ऐसे बर्दाश्त करेंगे?.... खैर..... बताओ। आज क्या हुआ था?
क्या हुआ था घर में?
* * *

(क्रमश...)