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कर्तव्य - 1

घड़ी की टिक-टिक से पूरा कोर्ट रूम गूंज रहा था चारों ओर सन्नाटे का माहौल था लेकिन ऐसा नही था कि कोर्ट रूम में कोई था नही वहाँ पर कुल मिला कर यदि देखा जाता तो कम से कम तीस लोग थे। वकीलों का एक ग्रुप कुछ कागजी कार्यवाही करने में व्यस्त था। तो एक ग्रुप बेपरवाही से कार्यवाही पूरी होने का इन्तेजार कर रहा था। कोर्ट के सरकारी कर्मचारी बार-बार घड़ी को देखे जा रहे थे और देखते भी क्यों न सरकारी कर्मचारी पाँच बजे के बाद खुद को दफ्तर में किसी नरक से कम नही मानता है लेकिन आज मजबूरी थी मजिस्ट्रेट साहब भी अपनी न्याय की कुर्सी पर बैठे थे उनकी भी जिद्द थी कि आज ही फैसला सुनाया जायेगा। दोनों पक्षों की तनाव पूर्ण स्थिति को साफ तरीके से उस कोर्ट रूम में महसूस किया जा सकता था। एक तरफ माँ-बाप और भाई जिसकी बेटी जल कर मर गई थी जिनकी आँखों में प्रतिशोध को साफ देखा जा सकता था शायद जिनके लिये सजा-ए-मौत से ऊपर की कोई सजा हो वो भी कम जान पड़ती थी तो दूसरी तरफ एक तीस वर्षीय युवक जिसकी पत्नी की मृत्यु ने उसे अन्दर ही अन्दर तोड़ दिया था और पत्नी की हत्या के आरोप ने समाज से बहिष्कृत करने के साथ ही साथ एक सभ्य समाज के नाम पर दाग घोषित कर दिया था। आरोप दहेज हत्या जैसे सामाजिक अपराध का था जिसमें न केवल अनुराग बल्कि पूरा परिवार एक अत्यन्त बूढ़ी माँ और पिता एक विवाहित बहन, बडे भाई और भाभी आरोपी के तौर पर खड़े थे। मजिस्ट्रेट साहब भी आज कुछ असहज महसूस कर रहे थे उन्हे पता था कि जैसे ही वो अपना फैसला सुनायेंगे उनके कोर्ट रूम से आज फिर से रोने-चिल्लाने की आवाजे आने वाली थी मामला ही ऐसा था स्त्री अपराध का मामला हो और दोनो ही तरफ स्त्रियाँ हो फिर भी भावनाओं का सैलाब न उठे ऐसा कहाँ होने वाला था। दोनो ही पक्षों के लोग एक दूसरे को प्रश्नों भरी निगाहों से देख तो रहे थे लेकिन कोई कुछ कह नही रहा था और कहते भी क्या सबकी हालत लगभग एक जैसी ही थी। कोर्ट के रीडर या कहे बडे बाबू आज मन मार के बैठे थे क्योंकि आज देर तक रूकने के बदले उन्हे कुछ भी मिलने वाला नही था क्योंकि यदि आरोपी के पक्ष में फैसला होता तो खुशी खुशी लोग चाय पानी का खर्च दे जाते थे लेकिन अक्सर ऐसे मामलों में आरोपी को सजा होती है तो उनसे माँगने की हिम्मत होती नही और पीड़ित पक्ष से माँगने वो सोच भी नही सकते थे क्योंकि उन्हे भी भगवान के घर में मुँह दिखाना था। इस लिये मन मन ही आरोपी पक्ष को जी भर के गालियाँ दिये जा रहे थे। उनकी निगाहे आरोपी पक्ष को ऐसे देख रही थी जैसे संसार की समस्या की जड़ एक मात्र यह लोग हो।
(चिईईईईईईईईईईईईई)....अचानक से कुर्सी के पीछे हटने की आवाज के साथ ही कार्यवाही पूरी कर रहे वकीलों का ग्रुप उठा और मजिस्ट्रेट साहब ने अपने जजमेंट की कॉपी को अपने सामने रखा और कोर्ट रूम में मौजूद सभी लोगों को अपने चश्मे को ठीक करते हुए देखा।
“दोनों पक्षों में से किसी को क्या कुछ कहना है?” – जज साहब
दोनों ही पक्षों के वकीलों ने नही में सिर हिला कर इन्कार किया।
वकीलों के इन्कार के साथ ही जज साहब ने जजमेंट पढ़ना शुरू किया।
“स्टेट ट्रायल नम्बर 77/2016 सरकार बनाम अनुराग एवं अन्य जिसके अन्तिम फैसले के लिये दोनो पक्षों के काउन्सिल एवं दोनो पक्ष एकत्रित हुये है । उक्त ट्रायल के सारे गवाहों, सबूतों और दोनो पक्षो की दलील सुनने के पश्चात यह न्यायालय इस नतीजे पर पहुँचती है कि मृतका कामिनी की मृत्यु जिसे प्रतिपक्ष (अनुराग) ने आत्महत्या होने का दावा किया है वह निराधार है। यह मृत्यु जानबूझ कर दहेज के लिये की गयी हत्या मालूम होती है। जिस समय उक्त घटना घटी अभियुक्त अनुराग , कैलाश (अनुराग के पिता) एवं रूबी (अनुराग की बहन) घर पर ही मौजूद थे, किन्तु सुनीता देवी(अनुराग की माँ), मोहन एवं सोहना (अनुराग का बड़ा भाई-भाभी) की मौजूदगी उस समय दिल्ली में होना पाया जाता है। अतः कामिनी की हत्या में अनुराग, कैलाश एवं रूबी की संलिप्तता होना पाया जाता है। अतः ये न्यायालय अनुराग, कैलाश एवं रूबी को उक्त हत्या के लिये दोषी मानते हुये सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाती है। एवं सुनीता देवी, मोहन और सोहना को आरोप से मुक्त करती है।”
जज साहब के उठने के साथ सुनीता देवी फैसला सुनकर वही फर्श पर गिर पड़ती है। अनुराग बिल्कुल शान्त हो जाता है जैसे आँखे तो खुली हो लेकिन शरीर में जान न बची हो। कैलाश , रूबी , मोहन एवं सोहना वही फफक फफक के रोने लगते है। पुलिस अनुराग , कैलाश और रूबी को ले जाने लगती है। अनुराग अपने वकील विनय शर्मा का हाथ पकड़ लेता है और पूछता है –
“क्यों वकील साहब इसी दिन के लिये भरोसा दिलाये थे कि जीत जायेंगे हम? मैने आप पर भरोसा किया था कि मुझे न्याय दिलायेंगे आप ही मेरी इस हालत के जिम्मेदार है सिर्फ और सिर्फ आप..........................।”
विनय शर्मा के पास उत्तर में शब्द नही होते है वो बस अनुराग के मृतप्राय चेहरे को बस देखते रह जाते है। धीरे धीर कोर्ट रूम खाली हो जाता है। विनय शर्मा अपनी स्कूटर पर अपने घर पहुँचते है। रोज की तरह मुँह हाथ धोकर चाय पी रहे होते है कि अनुराग और अनुराग के परिवार का रोता बिलखता चेहरा उनके सामने आ जाता है। रोज की सुकून की चाय आज उन्हे फीकी सी लग रही होती है। विनय शर्मा के लिये केस हारना कोई नई बात नही थी चूकिं वकालत कुछ खास चलती नही थी तो अक्सर एक दम मरे हुये केस भी ले लेते जिनमें कोई वकील हाथ नही डालता था। मन उचटा हुआ था पत्नी के बार बार कहने पर भी बिना खाना खाये छत पर रेडियो लेकर जाकर अपना बिस्तर लगा लिया और एक गिलास पानी पीकर लेट गये। रेडियो पर गाने सुनने की कोशिश की लेकिन गानो ने भी उनका मन बहलाने में असमर्थ रहे। रेडियो बन्द कर के सोने की कोशिश करने लगे तो बार बार रोता हुआ चेहरा उनकी आंखो के सामने आ जाता और कुछ ही पल में फिर उठ कर बैठ जाते। ऐसे करते करते रात के 12 बज गये। उठकर छत पर टहलने लगे कि तभी पत्नी ने आकर पूछा –
“क्यों जी क्या बात है? कब से परेशान है ? कोई दिक्कत है क्या। कुछ बताते भी नही है।”
“कुछ नही बस आज थोड़ा तनाव भरा दिन था, तो मन भारी भारी सा लग रहा है।”- विनय
लाइये आपके सिर पर ठंडा तेल मालिश कर दूँ आराम आ जायेगा। विनय लेट गये ठंडे तेल की मालिश से आँख लग गयी..............
....................शेष अगले अंक में