Sholagarh @ 34 Kilometer - 21 books and stories free download online pdf in Hindi

शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 21

एक और हमला


श्रेया को कांधे पर लाद रखे बदमाश की कमर पर इस जोर की लात पड़ी थी कि वह जमीन पर आ रहा। इसके साथ ही दूसरी लात और दोनों हाथ बाकी तीन बचे बदमाशों के काम आए थे। इस अचानक हमले से उनमें भगदड़ मच गई। लात खाने वाला भी जमीन से उठ कर तेजी से भागा। सोहराब ने कुछ दूर तक उनका पीछा किया, लेकिन चारों अंधेरे का फायदा उठाकर वहां से फरार हो गए।

लौट कर मजदूर बने सोहराब ने श्रेया के मुंह पर से टेप हटा दिया। उसने उसके दोनों हाथ भी खोल दिए। श्रेया खौफ भरी आंखों से उसे देख रही थी। आसपास अंधेरा होने की वजह से वह उसका चेहरा साफ तौर से नहीं देख सकी थी। सोहराब भी अंधेरे की वजह से उसे पहचान नहीं पाया।

“आइए चलें।” सोहराब ने नर्मी से कहा।

श्रेया जमीन से उठ कर खड़ी हो गई। वह धीमे कदमों से सोहराब के साथ चलने लगी। उसके पैरों में अभी भी दर्द था।

कुछ दूर चलने के बाद सोहराब ने उससे पूछा, “आपको वह चारों कहां ले जाना चाहते थे?”

“मुझे नहीं मालूम। मैं तो सो रही थी।” श्रेया ने जवाब दिया।

“वह आपको कहां से उठा कर लाए हैं।”

“ऊपर वाले कमरे से।” श्रेया ने जवाब दिया।

“मतलब आप इस कोठी में ठहरी हैं?”

“जी हां।” श्रेया ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

“फिल्म में काम करती हैं?”

“नहीं, मैं यहां सार्जेंट सलीम के साथ आई हूं।”

“ओह!” सलीम इतना कह कर खामोश हो गया। उसे श्रेया की आवाज पहचानी सी लग तो रही थी, लेकिन वह यहां इस हाल में मिलेगी उसे इसका अंदाजा नहीं था।

सोहराब ने कुछ देर बाद पूछा, “सलीम कहां है?”

“ऊपर के फ्लोर पर।” श्रेया ने कहा।

“क्या तुम तेज चल सकती हो?” सोहराब ने उससे पूछा।

“मेरे पैरों में जख्म है।” श्रेया ने दर्द भरी आवाज में कहा।

“ओह!”

सोहराब और श्रेया चलते हुए किसी तरह से ऊपर सलीम के कमरे तक पहुंचे। सलीम बेखबर सो रहा था। सोहराब ने उसे थपकी देकर उठाने की कोशिश की, लेकिन वह टस से मस न हुआ। वह गहरी नींद में था। सोहराब ने मेज से गिलास उठाया और पूरा पानी उसके मुंह पर उंडेल दिया। नतीजे में सलीम हड़बड़ाकर उठ बैठा।

“हमें यहां से तुरंत निकलना है।” सोहराब ने उससे कहा।

सलीम फटी-फटी आंखों से उसे देख रहा था। उसके बाद उसने आश्चर्य भरी आवाज में कहा, “आप यहां...!”

“मैं भी आपसे यही जानना चाहता हूं।” सोहराब ने मुस्कुराते हुए कहा।

सलीम फिर से लेट गया और खर्राटे लेने लगा। सोहराब ने उसे गर्दन से उठा कर बैठा दिया। “उठो हमें तुरंत ही चलना है यहां से।”

यह सारा माजरा श्रेया आश्चर्य से देख रही थी। मेकअप की वजह से श्रेया सोहराब को पहचान नहीं सकी थी। वैसे भी उसकी मुलाकात सोहराब से सिर्फ एक बार समुंदर के किनारे कुछ देर के लिए हुई थी।

सलीम उठ कर खड़ा हो गया। उसने जूते पहने और फिर तीनों कमरे से निकल आए। सोहराब ने लाइट बुझा कर कमरे का दरवाजा भेड़ दिया। तीनों सीढ़ियां उतर कर बाहर आ गए।
अंधेरा ज्यादा गहरा हो गया था। सुबह होने से पहले अंधेरा घना हो जाता है। श्रेया को चलने में दिक्कत हो रही थी। तीनों लॉन को पार करके गेट तक पहुंचे। गेट पर गार्ड बैठा ऊंघ रहा था।

गेट से बाहर आने के बाद वह तीनों सड़क पर खड़े किसी सवारी को तलाश करने लगे। सोहराब ने सार्जेंट सलीम से कहा, “तुम श्रेया को पीठ पर लादो और तेजी से निकलो यहां से।”

इस बार श्रेया बिना न-नुकुर के सलीम की पीठ पर लद गई और सलीम उसे लेकर तेज कदमों से चलने लगा। सोहराब भी साथ था। कुछ दूर जाने के बाद उन्हें एक घोड़ा गाड़ी खड़ी नजर आई।

“तुम श्रेया को इससे लेकर रेलवे स्टेशन चलो मैं आता हूं।” सोहराब ने कहा।

सलीम ने तांगे वाले से बात की वह तुंरत ही चलने को राजी हो गया।

“साहब, रात का टेम है किराया डबल मतलब सौ रुपये लगेगा।” तांगे वाले ने हस्बेआदत सवारी बैठालने से पहले बात साफ की।

“हां ठीक है तुम दो सौ रुपये ले लेना, लेकिन चलो जल्दी।” सलीम ने उकताए हुए अंदाज में कहा।

सलीम ने श्रेया को तांगे पर चढ़ा दिया और फिर खुद भी बैठ गया। तांगा दोनों को लेकर चल दिया। स्टेशन रोड पर सन्नाटा पसरा हुआ था। अभी किसी ट्रेन के आने और जाने का वक्त नहीं था शायद। सड़क पर घोड़े के टापों की आवाज सन्नाटे को चीर रही थी। सार्जेंट सलीम को ड्राक्यूला नॉवेल का पहला सीन याद हो आया। जाने क्यों वह अंदर तक सिहर गया।

नींद पूरी न होने की वजह से सलीम के सर में तेज दर्द हो रहा था। तांगा चलने से हवा उसे थपकी देने लगी और उसे फिर से नींद आने लगी। श्रेया उसके बगल बैठी हुई थी। वह उसके कांधे पर सर रखकर कुछ देर बाद ही सो गई। नींद आने के बावजूद सलीम आंखें फाड़कर नींद भगाने की कोशिश कर रहा था।

एक खयाल ने उसकी नींद कोसों दूर भगा दी। उसके सामने मसला यह आन पड़ा था कि वह तांगे पर तो सवार हो गया था और उसकी जेब में फूटी कौड़ी भी नहीं थी। उसके जेहन में जंगलियों के लिए एक भद्दी सी गाली घूमने लगी। उन्होंने उसे कहीं का नहीं छोड़ा था। उसका पर्स ही नहीं रिवाल्वर तक गायब था। कपड़े तक उतार लिए थे।

उसे सोहराब पर भी गुस्सा आ रहा था। ‘जनाबे आली को साथ चलने में शर्म आ रही थी। अलग ही जाना था तो कुछ पैसे दे कर जाते।’

अचानक उसकी सोच को ब्रेक लग गया। सोच को ब्रेक ही नहीं लगा बल्कि नींद भी गायब हो गई। उसने तुरंत ही श्रेया को खींच कर नीचे गिरा दिया और खुद भी दोनों सीटों के बीच दुबक गया। जो हुआ था, उसे इसका बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था। एक गोली उसके कानों के पास से आवाज करते हुए गुजर गई थी। उसके कुछ दे बाद दो फायर और हुए थे। फिर सन्नाटे में कुछ लोगों के भागने की आवाज उसने सुनी थी। उसके बाद सन्नाटा छा गया था।

श्रेया सलीम के बगल में दुबकी कांप रही थी। उसके दिल की धड़कन इस कदर बेकाबू हो रही थी कि जैसे दिल सीना चीर कर बाहर आ जाएगा। घोड़ा अपनी रफ्तार से भागा चला जा रहा था। सलीम काफी देर ऐसे ही पड़ा रहा। कुछ देर बाद उसने गर्दन उठा कर बाहर की तरफ देखा। इस बार उसके दिल की धड़कन तेज हो गई। तांगे वाला गायब था।

“... तो क्या यह हमला तांगे वाले पर किया गया था। बेचारा मारा गया।” सार्जेंट सलीम बुदबुदाया और उठ कर बैठ गया। श्रेया को उसने सीटों के बीच में ही लेटे रहने दिया। वह तांगे वाले की लाश तलाश करने लगा। सामने तांगे वाले की जगह खाली पड़ी थी।

“शायद लाश रास्ते में ही गिर गई।” उसने अपने आप से कहा। वह गमगीन हो गया था। “बेचारा अच्छा भला सो रहा था। उसे मौत खींच लाई।” सलीम ने चारों तरफ देखते हुए कहा।

सलीम अपनी सीट पर बैठ गया। कुछ देर बाद तांगा एक जगह पर रुक गया। सलीम ने चौंक कर सामने की तरफ देखा। तांगा स्टेशन के बाहर खड़ा था। उस ने श्रेया को उठने में मदद की और दोनों तांगे से नीचे उतर आए।

“तांगे वाला कहां गया?” श्रेया ने पूछा।

“मारा गया।” सलीम ने अफसोसनाक लहजे में कहा।

“ओह... नहीं!” श्रेया ने कहा और वह अंदर तक सिहर गई।


बदमाश


सोहराब से चारों पिटने के बाद जंगल की तरफ भाग खड़े हुए। काफी दूर जाने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि उनका पीछा नहीं किया जा रहा है। इसके बावजूद वह भाग रहे थे।

काफी आगे निकल आने के बाद चारों झाड़ियों के एक झुरमुट के पास रुक गए। झाड़ियों की आड़ में चारों जमीन पर बैठ कर सांसों को दुरुस्त करने लगे।

कुछ देर बाद उनमें से एक ने जेब से फोन निकाला और किसी के नंबर डायल करने लगा। फोन तुरंत उठा और दूसरी तरफ से आवाज आई, “काम हो गया?”

“न... नहीं सर!” फोन करने वाले ने हकलाते हुए कहा।

“तुम लोग किसी लायक नहीं हो गदहों!” उधर से यह बात इतना चीख कर कही गई थी कि बाकी तीनों ने भी सुनी और उनके चेहरे उतर गए।

“स... सर, हम कामयाब हो गए थे, लेकिन अचानक दो आदमी कहीं से आए और उन्होंने हम पर हमला कर दिया। उनके हाथों में रिवाल्वर भी थी। हम किसी तरह वहां से भाग सके। लड़की भी वहीं छूट गई।” फोन करने वाले ने बात को थोड़ा बढ़ा-चढ़ा कर बताया ताकि उन्हें कमजोर और बुजदिल न माना जाए।

“दो आदमी!” दूसरी तरफ से चिंताजनक स्वर सुनाई दिया।

“देखने में वह कैसे थे?” उधर से पूछा गया।

“सर, अंधेरा होने की वजह से हम उनका चेहरा नहीं देख सके।”

“ठीक है... तुम चारों सुबह होने से पहले शहर छोड़ दो। 15 दिन शहर में नहीं दिखने चाहिए।” दूसरी तरफ से हिदायत दी गई। उसके बाद फोन काट दिया गया।

“तुमने झूठ क्यों बोला?” बाकी तीन में से एक ने फोन करने वाले से पूछा।

“तो क्या बॉस से पिटने के लिए सच बता देता। तुम्हें अकल नहीं है, इसलिए चोंच बंद रखा करो।” फोन करने वाले ने भन्नाते हुए कहा।

कुछ देर तक खामोशी रही। चारों बैठे कुछ सोचते रहे। उसके बाद फोन करने वाले ने उन तीनों को बॉस की हिदायत उन्हें बता दी। इसके बाद चारों उठ कर एक तरफ चले गए।


गुस्सा


श्रेया का सर चकराने लगा। वह जमीन पर बैठ गई। तभी सलीम को कदमों की आहट सुनाई दी। उसने पलट कर देखा तो सोहराब किसी के साथ चला आ रहा था। नजदीक आने पर उसने देखा कि वह तांगे वाला था। उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ।

सोहराब ने आते ही पूछा, “कैसा सफर रहा बर्खुर्दार!”

“बहुत मस्त!” सलीम ने बूढ़ी औरतों की तरह हाथ नचा कर जले-भुने लफ्जों में कहा।

सलीम के जवाब पर तांगे वाला उसे आश्चर्य से देखने लगा। सोहराब ने पर्स से पांच-पांच सौ के दो नोट तांगे वाले को थमाते हुए कहा, “आप बेखौफ हो कर जाइए... अब रास्ते में कुछ नहीं होगा। बस आप इस घटना का जिक्र किसी से न कीजिएगा।”

दस गुना पैसे पाकर तांगे वाला खुशी-खुशी सोहराब और सलीम को सलाम करके चला गया।

“आप ठीक हैं?” सोहराब ने श्रेया से पूछा।

“जी थोड़ा चक्कर आ गया था।” श्रेया ने उठते हुए कहा।

शोलागढ़ के छोटे से स्टेशन पर इस वक्त ज्यादा भीड़ नहीं थी। तीनों स्टेशन की तरफ चल दिए। सलीम ने श्रेया को पकड़ रखा था। अंदर जा कर एक सीट पर श्रेया और सलीम बैठ गए। सोहराब फिर बिना बताए कहीं चला गया था।

सलीम भन्नाया हुआ बैठा था। “पता नहीं कोई ट्रेन है भी कि नहीं और साहब सीधे स्टेशन ले आए हैं। वह भी इस तरह से कि जान जाते-जाते बची।” सलीम ने बुदबुदाते हुए कहा। उसका मूड बुरी तरह से खराब हो रहा था।

“क्या हुआ... इतना जले हुए क्यों बैठे हैं?” श्रेया ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा।

“आराम से सो जाओ। जब हम जहन्नुम पहुंच जाएंगे तो तुम्हें जगा लेंगे।” सलीम ने बिफरते हुए कहा।

“मुझे क्यों सुना रहे हो। तुमने ही मुझे इस परेशानी में फंसाया है। लांग ड्राइव पर ले गए थे मुझे। ड्राइव इतनी लांग हो गई है कि खत्म ही नहीं हो रही है।” श्रेया ने गुस्से भरे लहजे में कहा।

उसकी इस बात से सलीम ढीला पड़ गया।

सुबह का उजाला फैलने लगा था। कुछ दूर पर ग़ौग़ाइयों का एक ग़ौल शोर मचा रहा था। सलीम सर घुमा कर उन्हें देखने लगा। उनकी चहचहाहट भी उसका दिल जला रही थीं। उसका दिमाग बुरी तरह से उलट गया था। मन हो रहा था कि जोर-जोर से चीखने लगे। उसकी बेबसी खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी।

ग़ौग़ाई एक चिड़िया होती है। यह हमेशा झुंड में ही रहती हैं। भूरे रंग की यह चिड़िया समूह में छोटे पेड़ों और जमीन पर फुदकती रहती है। पीले रंग की चोंच वाली इस चिड़िया को सतबहिनी और अंग्रेजी में सेवेन सिस्टर्स (Seven sisters) भी कहते हैं।

तभी कुछ ऐसा हुआ कि सार्जेंट सलीम की खोपड़ी एकदम घूम गई।


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बार-बार उन पर हमला क्यों हो रहा था?
सोहराब उन्हें कहां ले जा रहा था?
इंस्पेक्टर सोहराब शोलागढ़ क्यों आया था?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर का अगला भाग...