Sholagarh @ 34 Kilometer - 24 books and stories free download online pdf in Hindi

शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 24

फकीर

ट्रेन स्टेशन पर कुछ देर में पहुंचने वाली थी। इंस्पेक्टर सोहराब ने सार्जेंट सलीम को जगा दिया और उसकी जेब में दो हजार रुपये रखते हुए कहा, “तुम श्रेया को लेकर गुलमोहर विला पहुंचो। मैं कुछ देर में आता हूं।”

“क्या श्रेया को भी गुलमोहर विला ले जाना है?” सलीम ने आश्चर्य से पूछा।

“फिलहाल यही कीजिए।” सोहराब ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।

सोहराब के इस फैसले से सलीम की बांछें खिल गईं थीं। अब जरा घूमने-फिरने में मजा आएगा। डांस के लिए एक बढ़िया पार्टनर भी मिल गया है। उसने मन ही मन सोचा। तभी सोहराब की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हो गई। वह कह रहा था, “खुश मत होइए... श्रेया को तुम कोठी से बाहर नहीं ले जा सकोगे।”

सलीम ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा, “फिर उसे उसके घर ही छोड़ आता हूं।”

“बकवास बंद कीजिए। आप श्रेया से इस दौरान यह मालूम करने की कोशिश कीजिएगा कि उस पर हमले क्यों हो रहे हैं? या वह इसके जरिए हमारी सहानुभूति हासिल करके हमारे करीब आना चाहती है।”

“इससे भला उसे क्या फायदा। वैसे वह आप में खासी इंट्रेस्टेड है। कह रही थी कि आप बहुत प्यारे आदमी हैं।”

“मैं थप्पड़ मार दूंगा। गंभीरता से बात सुनिए।” सोहराब ने उसे घूरते हुए कहा, “हो सकता है कि वह अपराधियों से मिली हुई हो और खुद पर हमले करा कर हमारे करीब आना चाहती हो ताकि हमारी गतिविधियों पर नजर रख सके।”

“तो फिर उसे कोठी पर रखने की क्या जरूरत है?” सलीम ने कहा।

“यह सिर्फ अभी कयास है। हो सकता है वह सचमुच अपराधियों के निशाने पर हो।” बात पूरी होते ही सोहराब उठ कर खड़ा हो गया।

ट्रेन की स्पीड धीमी होने लगी थी।

“जाकर श्रेया को जगा दो।” सोहराब ने सलीम से कहा।

केबिन में जाकर सलीम ने श्रेया को जगा दिया। वह उठ कर बैठ गई। उसने एक छोटी सी अंगड़ाई ली तो सलीम को ऐसा लगा जैसे दिल के तमाम तार झनझना उठे हों। श्रेया के खुले बालों की एक लट उसके चहरे पर झूल रही थी। उसने बालों का एक कैजअल जूड़ा बनाया और नीचे उतर आई। उसके पैर लड़खड़ा रहे थे। उसके चेहरे पर दर्द फैल गया था। श्रेया ने सलीम के कांधे को जोर से पकड़ लिया। सलीम उसके पकड़ने के अंदाज से ही समझ गया कि वाकई उसे ज्यादा दर्द है। नौजवान गार्ड श्रेया को बड़े ध्यान से देख रहा था। आहिस्ता-आहिस्ता चलते हुए सलीम और श्रेया केबिन से बाहर आ गए।

ट्रेन रेंग रही थी और कुछ देर बाद ही स्टेशन पर लग गई। सोहराब ने जा कर गार्ड का शुक्रिया अदा किया और फिर तीनों ही ट्रेन से उतर आए। इस वक्त शाम के तकरीबन चार बज रहे थे।

ट्रेन प्लेटफार्म नंबर सात पर जाकर रुकी थी। पूरे प्लेटफार्म पर सन्नाटा था। प्लेट फार्म नंबर वाला बोर्ड देख कर सलीम की जान निकल गई। उसे काफी दूर चल कर प्लेटफार्म नंबर एक पर पहुंचना था। वह धीमी चाल से सीढ़ियों की तरफ चल दिया। कुछ दूर जाने के बाद उसने पलट कर सोहराब से कुछ कहने की कोशिश की तो देखा उसका कहीं अता-पता नहीं था।

सलीम को सीढ़ियों के पास बैठा एक फकीर बड़े ध्यान से देख रहा था। सलीम को आश्चर्य हुआ कि प्लेटफार्म नंबर सात पर यह फकीर क्या कर रहा है। इस तरफ तो सवारियां ही नहीं आती हैं। ज्यादातर खाली ट्रेनें या फिर मालगाड़ी ही यहां आकर रुकती है।

सलीम फकीर को नजरअंदाज करता हुआ सीढ़ियां चढ़ने लगा। ऊपर पहुंच कर उसने पलट कर देखा तो फकीर गायब था। वह उसे कहीं जाते हुए भी नहीं दिख रहा था।


गुलमोहर विला


7, डार्क स्ट्रीट स्थित कोठी गुलमोहर विला के सामने सलीम की टैक्सी जाकर रुक गई। सलीम ने किराया अदा कर दिया और श्रेया को लेकर गेट की तरफ बढ़ गया।


“यह तुम हमें कहां ले जा रहे हो?” श्रेया ने चारों तरफ देखते हुए पूछा।


“अपने गरीबखाने।” सलीम ने कहा।


“मुझे मेरे फ्लैट पर पहुंचा दो।” श्रेया ने कहा।


“पहले अंदर तो चलो। शाम को पहुंचा दूंगा।” सलीम ने उसे जवाब दिया।


जब वह अंदर पहुंचे तो वहां का दृश्य देखकर सलीम को बहुत गुस्सा आया। पहले तो उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ, लेकिन उसने जो कुछ देखा वह गलत भी नहीं था। अलबत्ता श्रेया के लिए सब कुछ सामान्य ही था। दरअसल इंस्पेक्टर सोहराब गाउन पहने बड़े आराम से लान की घास पर टहल रहा था। उसके मुंह में सिगार लगा हुआ था। वह गहरी सोच में डूबा हुआ था।


“हुजूर हमें धक्के खाने के लिए छोड़ कर यहां इस तरह आराम से टहल रहे हैं।” सलीम ने धीरे से कहा। उसे इस बात पर आश्चर्य भी था कि वह इतनी जल्दी यहां कैसे पहुंच गया और फिर मेकअप वगैरा छुड़ा कर इस तरह से टहल रहे हैं जैसे घर पर ही रहे हों दिन भर।


सलीम और श्रेया जब उसके करीब पहुंचे तो सोहराब ने जो सवाल किया उससे तो सार्जेंट सलीम की खोपड़ी ही उलट गई। “अरे तुम लोग कहां से आ रहे हो? कहां गायब रहे इतने दिन? पुलिस ने कहां-कहां नहीं तलाशा तुम्हें।”


अगर श्रेया साथ न रही होती तो सलीम फट पड़ता, लेकिन उसने खुद को शांत करते हुए जवाब दिया, “कुछ नहीं बस यूं ही जरा शॉपिंग के लिए निकल गए थे। आप खैरियत से हैं।” यह कहते हुए सलीम ने बहुत ही बुरा मुंह बनाया था।


सलीम की बात सुनकर श्रेया आश्चर्य से उसकी तरफ देखने लगी। दरअसल श्रेया को एक दम एहसास नहीं था कि मालगाड़ी में साथ आने वाला शख्स सोहराब था।


“आ जाओ इधर ही।” सोहराब ने कहा।


लॉन में कई सारी कुर्सियां पड़ी हुई थीं। सलीम और श्रेया जाकर वहां बैठ गए। सूरज अस्तांचल की तरफ बढ़ चला था। उसकी किरणें नीम के पेड़ों से छन कर लान में पड़ रही थीं। पास ही एक तूफान फैन चल रहा था, जिससे उन्हें गर्मी का एहसास नहीं था। सोहराब ने नौकर को फोन करके कॉफी लाने के लिए कहा।


“कैसी हैं आप?” सोहराब ने श्रेया से पूछा।


“जी अच्छी हूं।” श्रेया ने संक्षिप्त जवाब दिया।


“आपके पैरों में क्या हुआ। आप काफी लंगड़ा कर चल रही हैं।” सोहराब ने पूछा।


“पैरों में जख्म है।” श्रेया ने उसे बताया।


“कैसे चोट लग गई।”


“पैदल चलने से जख्म हो गया है।”


“आप दोनों कहां लापता रहे इतने दिन? हम सब बहुत परेशान थे।”


जवाब देने से पहले श्रेया ने खोपड़ी घुमाकर सार्जेंट सलीम की तरफ देखा, लेकिन वह आंखें बंद किए एकदम शांत बैठा था। सांस भी इतनी धीमे ले रहा था कि बदन में हल्की सी भी जुंबिश नहीं हो रही थी। उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे ध्यान लगा कर बैठा हो। श्रेया ने सलीम को संक्षेप में पूरी रूदाद बता डाली। अपहरण होने से लेकर शोलागढ़ पहुंचने और फिर यहां आने तक। बस उसने शोलगढ़ में सोते में अपहरण और तांगे पर हमले वाली बात नहीं बताई थी।


पूरी बात सुनने के बाद सोहराब ने उससे कहा, “आप आराम से बैठिए और इसे अपना ही घर समझिए। आप पैरों से जूती उतार दीजिए। आराम मिलेगा।”


उसने जूती उतारी तो उसके पैरों की हालत देखकर खुद श्रेया के बदन में एक झुरझुरी सी आ गई। उसके तलवे की पूरी खाल उधड़ गई थी। दरअसल छाले पड़ने और उनके फूट जाने के बाद पैरों की यह दुर्गति हुई थी।


सोहराब ने नौकर को फोन करके फर्स्ट एड बॉक्स लाने के लिए कहा। कुछ देर बाद ही करीमा भागते हुए फर्स्ट एड बाक्स ले आया। सोहराब लान की घास पर बैठ कर श्रेया के पैरों पर कोई लोशन लगाने लगा। हालांकि श्रेया ने उसे काफी मना किया और कहा कि वह खुद लगा लेगी।


“अब आप दो दिन बहुत कम चलिएगा। जल्दी ही पैर ठीक हो जाएगा।” सोहराब ने कहा और उठ कर लान के एक हिस्से में वाशबेसिन पर हाथ धोने चला गया। वह लौटकर आया तो नौकर कॉफी के साथ ही खाने का कुछ सामान रख रहा था। सोहराब ने उससे पानी लाने के लिए भी कहा।


नौकर के जाने के बाद सोहराब ने श्रेया से कहा, “आपको कुछ दिन यहीं रहना होगा।”


“लेकिन मैं घर जाना चाहती हूं।” श्रेया ने बिना उसकी तरफ देखे जवाब दिया।


“इसे आप अपना ही घर समझिए। हम आपके घर पर इत्तेला करवा देंगे।” सोहराब ने उसे समझाते हुए कहा।


“मैं अकेली ही रहती हूं।” श्रेया ने जवाब दिया। कुछ देर खामोश रहने के बाद उसने फिर कहा, “लेकिन आप मुझे यहां क्यों रोके रखना चाहते हैं।”


“क्योंकि आपकी जान को खतरा है।” सोहराब ने न चाहते हुए भी उससे कहा।


“मेरी जान को खतरा…!” श्रेया ने आश्चर्य से पूछा।


“जी... जैसा कि अभी आपने अपनी दास्तान सुनाई है। उससे तो यही नतीजा निकलता है कि अपराधी आपको रास्ते से हटाना चाहते हैं।”


सोहराब की यह बात सुनकर श्रेया उसकी तरफ देखने लगी। सोहराब से आंख मिलते ही उसके बदन में बिजली सी लहराई थी और उसने निगाहें झुका ली थीं।


“लेकिन मैं नहीं समझती कि मेरी जान को खतरा है।” श्रेया ने उससे कहा।


“आप पर कोई दबाव नहीं है। आप आजाद हैं।” सोहराब ने कहा, “लेकिन मेरी एक गुजारिश है कि जब तक पैर ठीक न हो जाए आप यहीं रहिए।”


सोहराब की इस बात का श्रेया ने कोई जवाब नहीं दिया। सोहराब ने जो लोशन लगाया था उससे उसके पैरों का दर्द एक दम गायब हो गया था।


नौकर टेबल पर जग और तीन ग्लास रख गया। सोहराब ने फर्स्ट एड बॉक्स से कुछ दवाइयां निकालीं और श्रेया को देते हुए कहा, “आप इन्हें खा लीजिए आपका जख्म तेजी से भरेगा और दर्द भी नहीं रहेगा।”


सोहराब ने ग्लास में पानी उंडेल कर उसे दे दिया। उसके बाद वह कॉफी बनाने लगा। सलीम अभी भी आंख बंद किए बैठा था। शायद वह बैठे-बैठे ही सो गया था। सोहराब ने कॉफी का कप श्रेया को पकड़ा दिया और कुकीज की प्लेट उसके आगे कर दी। इसके बाद वह कॉफी का एक कप लेकर सलीम की तरफ चला गया।

उसने सलीम को झिंझोड़कर जगाया और कॉफी का कप उसके हांथों में थमा दिया। सलीम ने कॉफी पीने से मना कर दिया और उठ कर तेजी से अपने बेडरूम की तरफ चला गया। उसने जूते भी नहीं उतारे और सीधे जाकर बिस्तर पर लेट गया। कुछ देर बाद ही उसके खर्राटे कमरे में गुंज रहे थे।


हीरों का व्यापारी


सोहराब और श्रेया बैठे नाश्ता करते रहे। इंस्पेक्टर सोहराब कोशिश कर रहा था कि वह श्रेया को ज्यादा से ज्यादा नाश्ता करा दे, क्योंकि वह सुबह से ही भूखी थी।

नाश्ता खत्म करने के बाद सोहराब ने श्रेया से कहा, “मेरे ख्याल से अब आपको भी आराम करना चाहिए। हम लोग रात 11 बजे डिनर पर मिलते हैं।”

इसके बाद सोहराब ने फोन करके दो नौकरों को बुला लिया। उनके आने के बाद उसने कहा, “मैडम को मेहमानखाने पहुंचा दो। एक नौकर इनकी खिदमत में तैनात कर दें। इन्हें किसी तरह की दिक्कत नहीं होनी चाहिए। आप दोनों इन्हें सहारा देकर ले जाइए।”

दोनों नौकर श्रेया को सहारा देकर ले जाने लगे। जब वह मेहमानखाने के दरवाजे पर पहुंचे तो वहां सोहराब हाथों में एक पैकेट लिए उनका मुंतजिर था। उसने श्रेया के हाथों में पैकेट देते हुए कहा, “यह आपके कपड़े हैं। नाइट सूट और घर में पहन के लिए।”

श्रेया अभी भी घाघरा और चोली में ही थी। कमरे के अंदर आ कर श्रेया ने पैकेट को खोला तो उसमें नाइट गाउन के अलावा तीन जोड़ नये कपड़े रखे हुए थे।

इस काम से फारिग हो कर इंस्पेक्टर सोहराब सीधे मेकअप रूम में घुस गया।

एक घंटे बाद जब वह बाहर निकला तो वह एक हीरा व्यापारी के भेस में था। उसकी दोनों उंगलियों में हीरे की कई अंगूठियां चमक रहीं थीं। गले में भी हीरे की एक बड़ी सी माला लटक रही थी। चेहरे पर घनी मूंछें थीं और सर पर चमेली का तेल चुपड़ा हुआ था।

कुछ देर बाद गुलमोहर विला से लाल रंग की फैंटम कार बाहर निकल रही थी। उसे सोहराब का नौकर करीमा ड्राइव कर रहा था। करीमा इस वक्त शोफर की वर्दी में था।


*** * ***


सोहराब ने हीरों के व्यापारी का रूप क्यों धरा था?
श्रेया को इंस्पेक्टर सोहराब अपनी कोठी पर क्यों रोकना चाहता था?
सलीम श्रेया से कुछ उगलवाने में कामयाब हो सका?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर का अगला भाग...