Red scooty one - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

लाल स्कूटी वाला - 2 (अंतिम भाग)

अक्षिता नाम की एक लड़की बारहवीं कक्षा में पढ़ती है और उसे एक चिराग़ नाम का लफंगा लड़का परेशान करता है इसलिए अक्षिता उसका आधारकार्ड देखना चाहती है, परंतु अक्षिता आधारकार्ड क्यों आधारकार्ड देखना चाहती है?! क्या अक्षिता उसे सबक सिखाए?! चलिए आगे देखते है....


फ़िर मैंने सुबह पाठशाला में जा कर मैंने प्रिया को बता दिया कि सब कुछ योजना के मुताबिक़ ही हुआ। आज पाठशाला से लौटते समय वो मेरे साथ आने वाली थीं। उसके के घर का रास्ता आ गया मगर चिराग़ नहीं आया। प्रिया ने बोला कि शायद आज नहीं आया होगा। मैंने कहा ठीक है फ़िर तुम जाओ यहाँ से मैं चली जाऊंगी। मैं घर आ कर सोचने लगीं की वो क्यों नहीं आया होगा?!" दुसरे दिन प्रिया मेरे साथ नहीं आई मैं अकेली ही थीं तभी, घर लौटते समय फ़िर से चिराग़ आ गया।


मैंने पूछा कि , "कल तुम क्यों नहीं आए थे?" वो बोला , "अरेे! वो लड़की आपके साथ थीं इसलिए...।" मैंने उसे कहा "अरे...उसकी कुछ प्रॉब्लम नहीं होगी वो मेरी अच्छी दोस्त है। " उसने हँसते हुए कहा, "फ़िर ठीक है अब से उसका डर नहीं।" मैंने उससे पूछा, "तुम आधारकार्ड ले कर आए हो?!"


उसने मेरी बात का ज़वाब नहीं दिया और बोला, "मैं वैसे तो बहुत साल से कश्मीर मैं रहता था, अब पिछले दो साल से मैं यहाँँ रहता हूँ।" मुझे मन में हँसी आ रही थी फ़िर भी मैंने रोकते हुए उससे पूछा, "तो फ़िर आप इतनी अच्छी गुजराती कैसे बोल लेते हो??!" उसकी चोरी पकड़ी गई हो वैसे वह बोला, "अरे...अरे मैं सिर्फ़ पढ़ाई के लिए वहाँँ गया था... और मुझे मेरी मातृभाषा तो आती ही हैं...।"


मैंने कहा, "अच्छा-अच्छा ठीक है, यह सब छोड़िए। आप अपना आधारकार्ड लाए हो?" वह बोला, "नहीं वो तो मैं भूल गया। मैंने कहा, "ठीक है फ़िर मैं आपको जवाब नहीं दूंगी।" वो थोड़ा मुँह बिगाड़कर बोला, "अरे! पर आपको क्यों आधारकार्ड चाहिए आपको क्या करना हैं उसका?" मैंने कहा, "ठीक हैं तो फ़िर मुझे नहीं चाहिए...आप अपने रास्ते जाईए और मैं अपने रास्ते जाऊँगी। आज के बाद मुझे बीच रास्ते रोकना मत।" वह अब थोड़ा नरमी से मेरे साथ पेश आने लगा।


वह बोला, " I am sorry, मुझे इस तरह से आपसे बात नहीं करनी चाहिए थीं।" मैंने कहा, "ठीक है तो फ़िर आप कल अपना आधारकार्ड ले आना।" वह बोला, " ठीक है फ़िर जैसी आपकी मर्ज़ी।" वो अपनी पतली सी स्कूटी ले कर हवा मैं उड़ रहा हो वैसे चला गया। उसकी कश्मीर में पढ़ाई वाली बात पर मुझे बहुत ही हँसी आई। जब वो यह बात बता रहा था तब उसका चहेरा देख के किसी को भी पता चल जाता कि वो झूठ बोल रहा था।


मैं जब घर पहुँचने आई तब मेरा घर जो सोसायटी में था उसके पहले कुछ घर आते हैं वहाँँ पर मैंने उस लफंगे को उसकी स्कूटी पार्क करते हुए देखा। वो जिस घर के अंदर गया वह तो मेरे एक रिश्तेदार का घर था। मैं दूसरे दिन जब सुबह पाठशाला जा रहीं थीं तभी फ़िर से उसे वहाँँ पर देखा। अब तो मुझे यक़ीन हो गया कि यह उस का ही घर हैं। वो अपनी बाालकनी से मुझे घूर-घूर के देख रहा था। मैंने उसे नज़रअंदाज़ किया और आगे की ओर चलने लगीं। पाठशाला में मैंने प्रिया तो कल की सारी बात बताई। कश्मीर वाली बात पर तो प्रिया भी ख़ूब हँसी। मैंने प्रिया को बताया कि वह लड़का चिराग़ तो मैं जहाँँ रहती हूँ वहाँँ ही रहता है। मैं उस जगह पे थोड़े महीने पहले ही शिफ्ट हुई थीं इसलिए मुझे ज्यादा कुछ मालूम नहीं था।


मैंने प्रिया को बता दिया कि वह आज भी मेरे साथ चले। प्रिया आने के लिए तैयार हो गई। आज तो मुझे उसका नाम और वो किसका बेटा है वो जानना ही था क्योंकि मैंने उसे जिस घर मैं देखा था वो हमारे करीबी रिश्तेदार का घर था। पाठशाला से घर लौटते समय जहाँँ से भीड़भाड़ थोड़ी कम हुई वहाँँ पर थोड़ी ही देर में वो लफंगा आ गया। मैंने बिना कुछ इधर-उधर की बातें किए बिना उससे कहां, "लाओ आधारकार्ड!" उसने अपनी जीन्स के पॉकेट मैं से आधारकार्ड निकालकर मेरे हाथ में थमा दिया।

मैंने जब वो आधारकार्ड पढ़ा तो मेरा शक सही निकला। यह चिराग़ तो हमारे ही एक रिश्तेदार का बेटा था। मैंने उसका नाम ज़ोर से पढ़ते हुए कहा, "अच्छा तो तुम्हारे पापा का नाम मनुभाई है। तुम्हें पता है मैं तुम्हारे पापा और मम्मी को पहेचानती हूँ ।" उसने जैसे यह सुना वैसे ही उसका सिर घूम गया उसने मेरे हाथ से आधारकार्ड छीना और बोला, "तुम अपने आप को क्या समज़ती हो?... तुम्हें किस बात का इतना घमंड है?.... तुज़ में एसा तो क्या है?..." मुझे तो उसकी बात से हँसी ही आ रही थी...परंतु प्रिया को गुस्सा आ गया। प्रिया बोली, "चल निकल इधर से...तेरी क्या औकात है जो तू हमसे जबान लड़ा रहा है...। चल निकल अभी के अभी।"


वह अपनी स्कूटी लेकर भागते हुए बोला, "देख लूंगा तुम्हें तो मैं..।" मैंने कहा, "चल निकल अभी इधर से..। वो वहाँँ से बहुत ही गुस्से में चला गया। प्रिया भी अपने घर के रास्ते की तरफ़ आगे बढ़ी। रास्ते में कई बार वो लफंगा मुझे दिखा। पर उसने मुझे अनदेखा किया। उस दिन के बाद से वो वहाँँ पर कभी भी नहीं दिखा। थोड़े दिनों बाद में मेरे एक रिश्तेदार की बेटी के साथ पाठशाला से लौट रही थीं तभी बातो बातों में पता चला कि वो लड़का उसे भी परेशान कर चुका था और उसकी तो शादी भी हो गई है। पर उसकी यही सब हरकतों की वजह से उसकी बीवी उसके साथ नहीं रहती हैं। उसकेे बाद मैंने उस लड़़के को कभी नहीं देखा।

वैसे इस नॉवेल को पढ़नेवाले काफ़ी लोगोंने अनुमान लगाया है की यह जो कहानी है वो किस्सा मेरे साथ हुआ है। तो आपका यह अनुमान सही है। यह घटना मेरे साथ ही घट चूकी है। वैसे तो मैंने यह किस्सा इस नॉवेल में बहुत ही हास्यत्मक तरीके से वर्णित किया है, परंतु यह जितना पढ़ने समय हास्यजनक लग रहा है उतना हकीकत में नहीं था। यह चिराग़ जैसे इंसान... इंसान के रूप में हैवान होते हैं। जो शरुआत मैं मीठी बातें कर के युवावस्था में आनेवाली लड़की को इस तरह से आकर्षित कर के उन्हें अपनी हवस का शिकार बनाते हैं। उन्हें इस तरह से सबक सिखाना बहुत ही ज़रूरी होता है।

( इस कहानी में पात्र और स्थल के नाम बदलें गए है।)

*________धन्यवाद________*