Sholagarh @ 34 Kilometer - 28 books and stories free download online pdf in Hindi

शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 28

जुर्म और मुजरिम


मिनी की छत ढकी हुई थी। कार कुछ आगे जाने के बाद दाहिने तरफ मुड़ गई। कुछ दूर जाने पर सोहराब ने कार का बैक मिरर दुरुस्त किया और पीछे का जायजा लेने लगा। वह चेक करना चाहता था कि उसका पीछा तो नहीं किया जा रहा है।

कुछ दूर जाने के बाद उसने फिर से पीछे की तरफ देखा था। वह मुतमइन हो गया था कि पीछा नहीं किया जा रहा है। उसकी कार का रुख होटल सिनेरियो की तरफ था।

सुबह के सवा आठ बजे थे। होटलों में सुबह बड़ी मनहूस रहती है। ज्यादातर लोग देर तक सोने के आदी होते हैं। डायनिंग हाल में भी दस बजे के बाद ही रौनक नजर आती है। कार पार्क करने के बाद सोहराब और सलीम डायनिंग हाल की तरफ बढ़ गए। डायनिंग हाल में गिनती के लोग ही नजर आ रहे थे। सोहराब और सलीम कोने की एक मेज की तरफ बढ़ गए।

कुछ देर बाद ही वेटर आर्डर लेने के लिए आ गया।

“एस्‍प्रेसो।” इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने कहा।

आम तौर पर सार्जेंट सलीम ब्लैक कॉफी पसंद नहीं करता था, लेकिन उसका मूड कड़वा हो रहा था, इसलिए उसने भी एतराज नहीं किया।

“क्या हुआ बरखुर्दार! मुंह क्यों लटका हुआ है। आज एस्‍प्रेसो पर भी एतराज नहीं!” सोहराब ने सलीम की तरफ देखते हुए पूछा।

जवाब में सार्जेंट सलीम ने उसे श्रेया के रूखे सुलूक के बारे में बता दिया। सोहराब उसकी बात को बड़े ध्यान से सुनता रहा। उसके बाद उसने कहा, “जंगल में कई दिन साथ रहने के बाद तुम्हारी तो उससे अच्छी बांडिंग हो गई थी। तांगे पर हमले के बाद से ही उसका मिजाज बदल गया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि वह इन हमलों के पीछे तुम्हें वजह मान रही हो।”

“मुझे वजह मानने की भी कोई वजह होनी चाहिए न!” सलीम ने जवाब दिया।

“कुछ तो है जिसे समझना जरूरी है।” सोहराब ने सोचते हुए गंभीर आवाज में कहा, “श्रेया काफी अहम है। उस पर नजर रखना और दिन में एक दो चक्कर जरूर लगा लेना। वह अपराधी न भी हो, लेकिन अपराध की एक कड़ी जरूर है।”

“किस अपराध की बात कर रहे हैं? शेयाली तो मिल चुकी है न!” सलीम ने सोहराब की तरफ देखते हुए कहा।

“वह मर चुकी है।” सोहराब ने सपाट लहजे में कहा।

उसकी बात सुनकर सार्जेंट सलीम बुरी तरह चौंक पड़ा। वह बड़े ध्यान से सोहराब के चेहरे को देखता रहा। उसके बाद उसने कहा, “मैं उससे मिल आया हूं जंगल में। बल्कि मैंने उसके साथ अच्छा-खासा वक्त भी गुजारा है। बस जरा सी गलती हो गई वरना उसको साथ लेकर आता... उसके बाद किस्सा ही खत्म हो जाता।”

उसकी बात का इंस्पेक्टर सोहराब ने तुरंत कोई जवाब नहीं दिया। उसने सिगार सुलगाने के बाद दो-तीन गहरे कश लिए उसके बाद कहा, “तुम कोशिश करके भी उसे साथ नहीं ला सकते थे।”

“लेकिन क्यों?”

“क्योंकि तुम्हें लाने ही नहीं दिया जाता।”

“मतलब?”

“तुम जिससे मिले थे वह शेयाली नहीं उसकी बॉडी डबल थी।”

“बॉडी डबल!” सलीम ने आश्चर्य से दोहराया।

“इस तरह के बॉडी डबल का इस्तेमाल फिल्मों में किया जाता है। खास तौर से जहां स्टंट या जोखिम भरे सीन करने होते हैं।”

“मेरी आंखें धोखा नहीं खा सकतीं।” सलीम ने एक-एक शब्द में वजन पैदा करते हुए कहा, “मुझे जब होश आया था तो मैं उसकी गोद में सर रखे लेटा था। मैंने उसे बहुत करीब से देखा था।”

“बरखुर्दार... मेकअप भी कोई चीज होती है।”

“आप खुलकर क्यों नहीं बता रहे हैं कि आखिर माजरा क्या है। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है।” सलीम ने कहा।

“सीधा सा मतलब है प्यारे... कुछ भी तो उलझा हुआ नहीं है... दरअसल तुम दिमाग का इस्तेमाल ही नहीं करते हो, वरना जंगल में ही पूरी बात समझ में आ गई होती।”

“नहीं बताना है तो जिक्र ही क्यों छेड़ा था।” सलीम ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा। इसके बाद वह किसी लड़की की तरह मुंह फेर कर बैठ गया।

उसकी इस अदा पर सोहराब मुस्कुराए बिना नहीं रह सका। वह कुछ कहने ही जा रहा था कि वेटर कॉफी लेकर आ गया।

कुमार सोहराब ने दो कॉफी बनाई और एक उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, “लो कॉफी पियो।”

“मुझे नहीं पीनी है। आप मुझे बेवकूफ समझते हैं।”

“कॉफी तो लो। बताता हूं पूरी बात।” सोहराब ने कहा और सिगार बुझा दी। उसने कॉफी के दो सिप लेने के बाद बताना शुरू किया, “दरअसल जब शेयाली की मौत हुई तो उसे नेचुरल मौत नहीं समझा गया और केस खुफिया विभाग के पास आ गया। इसकी वजह यह थी कि उससे मिलते-जुलते कुछ केस खुफिया विभाग के सामने पहले ही आ चुके थे।”

इंस्पेक्टर सोहराब ने बात रोक कर कॉफी के कुछ सिप लिए और फिर बताना शुरू किया, “जब यह केस खुफिया विभाग के सुपुर्द हो गया तो अपराधी ने यह भ्रम पैदा करने की कोशिश की कि शेयाली जिंदा है, ताकि हम केस बंद कर दें।”

“मान लिया कि जंगल में शेयाली की डुप्लीकेट थी, लेकिन असली शेयाली हादसे की शिकार हुई थी या उसने खुदकुशी कर ली थी। इसमें जुर्म का तो कोई एंगल बनता ही नहीं है।”

“यही कुछ कड़ियां छूट रही हैं, जिन्हें जोड़ना बाकी है।” सोहराब ने कहा।

“इसका मतलब है कि आप मुजरिम तक पहुंच गए हैं?” सार्जेंट सलीम ने सोहराब की तरफ देखते हुए पूछा।

“कुछ हद तक।” इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने कहा।

“तो उसे गिरफ्तार कीजिए और किस्सा तमाम कीजिए।”

“अभी यह साफ नहीं हुआ है कि अपराध की कितनी पर्तें हैं। जब तक जुर्म की सारी कड़ियां न जुड़ जाएं मुजरिम पर हाथ डालना आसान नहीं है।”

“मेरे लिए क्या हुक्म है?” सलीम ने पूछा।

“शैलेष जी अलंकार कब से शूटिंग शुरू कर रहा है, पता करने की कोशिश करो। इसके साथ ही श्रेया पर भी नजर रखना जरूरी है।”

वेटर बिल ले आया था। सोहराब ने बिल अदा किया और दोनों उठ खड़े हुए।

बाहर निकलने के बाद सोहराब ने कहा, “तुम मिनी ले जाओ। मैं टैक्सी कर लूंगा।”

चोरी

रात के 11 बजे का वक्त था। काले रंग की एक लंबी सी कार तेजी से भागी जा रही थी। उसमें तीन आदमी और दो लड़कियां सवार थीं। कार एक लड़की ड्राइव कर रही थी। आगे की सीट पर दूसरी लड़की बैठी हुई थी। बाकी तीन मर्द पीछे की सीट पर बैठे हुए थे। अंदर पूरी तरह से खामोशी थी। कोई किसी से बात नहीं कर रहा था। यहां तक कि अंदर की लाइट भी बुझी हुई थी।

कार विजडम रोड की तरफ बढ़ गई थी। यह फिल्म इंडस्ट्री के लोगों का रिहाइशी इलाका था। इसी रोड पर शेयाली का बंग्ला था। कार की रफ्तार अभी भी तेज थी।

कार कुछ दूर जाने के बाद रुक गई। उसकी हेड लाइट्स भी बुझ गईं थीं। आगे की सीट पर बैठी हुई लड़की कार से उतर गई। उसने जेब से एक कागज निकाला और बेंच पर बैठे आदमी से उसे दिखा कर पता पूछने लगी। रोशनी के लिए उसने मोबाइल की लाइट जला ली थी। वह आदमी झुक कर पता पढ़ने की कोशिश करने लगा। तभी पीछे से उसकी गुद्दी पर इतना नपा-तुला हाथ पड़ा था कि वह सीधे जमीन पर आ रहा। तभी दो आदमी तेजी से कार से उतर आए। उन्होंने फटाफट रेशम की डोरी से उस आदमी के हाथ-पैर बांधे और एक बड़े पेड़ के पीछे डाल दिया।

दरअसल यह एक कांस्टेबल था। सोहराब ने कोतवाली से दो लोगों की ड्यूटी यहां लगाने को कहा था। एक कांस्टेबल रात में चुपके से ड्यूटी छोड़कर सोने चला गया था। शायद दोनों में अंडरस्टैंडिंग बन गई थी। बारी-बारी से दोनों रात में सोने चले चले जाते थे। सुबह के वक्त दो कांस्टेबल ड्यूटी चेंज करने आ जाते थे। उनके आने से पहले ही सोने के लिए जाने वाला कांस्टेबल लौट आता था। इस वक्त दूसरा वाला कांस्टेबल ड्यूटी पर था, जिसे बेहोश कर के किनारे डाल दिया गया था।

चारों कार में फिर सवार हो गए और कार रेंगते हुए कुछ आगे बढ़ गई। शेयाली के बंगले से थोड़ा पहले जाकर कार रुक गई। कार के इंजन से दो बार घों-घों की तेज आवाज आई और कार बंद हो गई। बंगले के गेट पर इस वक्त तीन गार्डों की ड्यूटी थी। आवाज सुनकर तीनों चौंक पड़े थे।

कार ड्राइव कर रही लड़की ने कार से उतर कर उसका बोनट उठा दिया था। बोनट उठने से कार के अंदर बैठे बाकी सभी उसकी आड़ में छिप गए। लड़की बोनट उठाकर कुछ देर अंदर देखने की कोशिश करती रही। उसके बाद वह धीमे कदमों से चलती हुई गार्डों के केबिन की तरफ बढ़ गई। उसने गार्ड को आवाज देते हुए कहा, “गार्ड साहब! मेरी गाड़ी खराब हो गई है। स्ट्रीट लाइट में कुछ साफ नजर नहीं आ रहा है। क्या आपके पास टार्च होगी।”

गार्ड ने टार्च उसकी तरफ बढ़ा दी।

“आपको दिखानी भी पड़ेगी।” लड़की ने मुस्कुराते हुए अदा से कहा।

लड़की जवान और खूबसूरत थी। गार्ड तुरंत मदद के लिए तैयार हो गया। जाते वक्त उसने मुस्कुराकर अपने बाकी दो साथियों को आंख भी मारी थी।

कार के पास पहुंचकर गार्ड ने टार्च जला ली और रोशनी दिखाने लगा। लड़की झुक कर अंदर सभी चीजों को बारी-बारी से चेक कर रही थी। तभी कांस्टेबल जैसा हश्र उस गार्ड का भी हुआ। रेशम की डोरी से उसकी भी मुश्कें कस दी गईं और अब वह कुछ दूर पर अंधेरे में पेड़ों के झुरमुट में पड़ा हुआ था।

दोनों आदमी बड़ी फुर्ती से कार के पीछे जाकर छुप गए थे। लड़की गार्डों के केबिन की तरफ गई और मुस्कुराते हुए एक गार्ड से कहा, “आपके साथी आपको बुला रहे हैं।”

गार्ड बड़ी फुर्ती से बाहर निकला था। पास आकर वह चारों तरफ देखने लगा। उसे गार्ड कहीं नजर नहीं आया। उसने लड़की से पूछा, “कहां है मनोहर?”

“जी उन्हें उस तरफ कुछ दिखा था, वह उधर ही गए हैं चेक करने।”

गार्ड तेजी से अंधेरे की तरफ बढ़ गया। अभी वह कुछ आगे ही गया था कि दो आदमियों ने उसे दबोच लिया। वह गार्ड भी बिना आवाज किए जमीन पर आ रहा। उसके हाथ-पैर बांध कर उसके दूसरे साथी के पास फेंक दिया गया।

लड़की तीसरे गार्ड को बुला लाई थी। उसे कार में धक्का लगाने का बहाना बनाकर बुलाया गया था। उसका अंजाम भी अपने बाकी दो साथियों जैसा ही हुआ था।

इस काम से फारिग हो कर तीनों आदमी लड़की के साथ तेजी से शेयाली के बंगले में घुस गए। चारों ने अंदर जाने के लिए गार्ड रूम की तरफ का रास्ता चुना था, क्योंकि गेट पर ताला लगा हुआ था। उनमें से एक आदमी गार्ड रूम में ही बैठकर पहरा देने लगा। बाकी तीन अंदर चले गए।

लान में हल्की रोशनी फैली हुई थी। वह लान पार करके बंग्ले तक पहुंच गए। उनमें से एक ने जेब से एक छोटा सा पेंचकस निकाला और कुछ देर की मशक्कत के बाद बंगले का ताला खोलने में वह कामयाब हो गया। तीनों अंदर बढ़ते चले गए।

बंग्ले में कोई नहीं था। विक्रम इस वक्त रेड मून नाइट क्लब में बैठा जुआ खेल रहा था।

तीनों सीधे विक्रम के बेडरूम में घुस गए। लड़की ने आगे बढ़कर वार्डरोब खोल दिया। वार्डरोब का बैक उसने हाथों से सरका दिया। अब वहां एक दरवाजा नजर आने लगा था। लड़की ने दरवाजे की सिटकिनी गिरा दी। उसे सीढ़ियां नजर आने लगीं। वह सीढ़ियां नीचे तक जाती थीं। अंदर एक कम वाट का बल्ब जल रहा था।

लड़की सीढ़ियां उतरने लगी। एक आदमी उसके पीछे चल दिया। दूसरा वहीं बेडरूम में रुक गया। उनके अंदाज से लग रहा था कि जैसे उन्हें इस बंग्ले के बारे में पूरी जानकारी हो।

नीचे एक बड़ा सा हाल था। आदमी ने बढ़कर अलमारी का ताला पेंचकस से खोल डाला। उसके अंदर रखे बैग को लड़की ने उठा लिया और इसके बाद वह ऊपर आ गई। वार्डरोब को पहले जैसी हालत में करने के बाद वह तीनों बेडरूम से होते हुए बंगले से बाहर निकल आए।

चारों कार में आकर बैठ गए। ड्राइवर लड़की ने बोनट नीचे गिरा दिया और ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गई। कार तेजी से आगे बढ़ गई।


लाश


अगले दिन सुबह सात बजे शेयाली के बंग्ले पर बड़ी संख्या में पुलिस मौजूद थी। किसी को भी अंदर जाने की इजाजत नहीं थी। बंग्ले के अंदर इंस्पेक्टर सोहराब, सार्जेंट सलीम और कोतवाली इंचार्ज मनीष मौजूद थे। विक्रम के खान की लाश बेडरूम में पड़ी हुई थी। सोहराब हर चीज की बड़ी बारीकी से जांच कर रहा था।

सुबह छह बजे घटना की सूचना कोतवाली इंचार्ज मनीष ने इंस्पेक्टर सोहराब को दी थी।

हुआ यह था कि चोरी से सोने गया गार्ड सुबह पांच बजे लौटकर आया तो उसने अपने साथी को वहां मौजूद नहीं पाया। कुछ देर वह इंतजार करता रहा। उसने उसका फोन मिलाया तो पास ही से उसे घंटी की आवाज आती सुनाई दी। वह जब वहां पहुंचा तो उसने साथी कांस्टेबल को बंधा हुआ पाया। उसने उसके हाथ-पैर खोले। उन्हें किसी अनहोनी की आशंका हो गई थी। दोनों तेजी से बंग्ले की तरफ गए तो वहां से गार्ड भी नदारद थे। तलाश करने पर उन्हें तीनों गार्ड मिल गए।

गार्ड जब बंग्ले के अंदर चेक करने गए तो उन्हें बेडरूम में विक्रम की लाश मिली। गार्डों ने कांस्टेबल को और कांस्टेबल ने कोतवाली इंचार्ज मनीष को घटना की जानकारी दी थी।

विक्रम की लाश पर चोट का कोई निशान नहीं था। लाश बेड पर आड़ी-तिरछी पड़ी हुई थी। बेडरूम में संघर्ष के कोई निशान नजर नहीं आ रहे थे।

इंस्पेक्टर सोहराब ने वार्डरोब खोलकर देखा तो उसे नीचे जाती सीढ़ियां नजर आईं। वह नीचे पहुंचा तो वहां का पूरा नजारा देखकर उसकी आंखें खुली रह गईं। तहखाने में आराइश का पूरा इंतजाम था। सोफे के सामने मेज पर एक ग्लास और शराब की बोतल रखी हुई थी। ऐसा लगता था कि यहां बैठकर शराब पी गई है। गिलास खाली था। पास ही कागज का एक टुकड़ा रखा हुआ था। इंस्पेक्टर सोहराब ने कागज के टुकड़े को उठा लिया। उसने उसे देखा तो उसके चेहरे पर चिंता की रेखाएं उभर आईं। तहखाने में भी उसे संघर्ष के कोई निशान नजर नहीं आए। वह अलमारी की तरफ बढ़ गया। वहां उसे हैंडल पर एक लंबा सा बाल नजर आया। उसने बड़े एहतियात से बाल उठाकर जेब में रख लिया। सोहराब ने अलमारी खोल दी। उसे वहां भी सब कुछ सामान्य नजर आया। उसके बाद वह ऊपर आ गया।

जब वह ऊपर पहुंचा तो वहां फिंगर प्रिंट स्क्वायड आ गया था। वह उंगलियों के निशान उठाने की कोशिश कर रहे थे। फोटोग्राफर लाश की तस्वीरें उतार रहा था। सोहराब ने नीचे तहखाने से भी उंगलियों के निशान लेने के लिए कहा। उसने विक्रम से तहखाने में मौजूद शराब और गिलास की जांच कराने के लिए भी कहा।

इंस्पेक्टर सोहराब और सलीम बेडरूम से बाहर आ गए। बाहर निकल कर सोहराब ने सिगार सुलगाई और उसका कश लेने लगा। उसने लान का भी बारीकी से जायजा लिया। वहां हेड कांस्टेबल तीनों गार्डों के बयान दर्ज कर रहा था। सोहराब और सलीम बंग्ले से निकलकर सड़क पर आ गए।

सोहराब बाहर के उजाले में जेब से बाल निकाल कर ध्यान से देखने लगा। बाल की लंबाई बता रही थी कि यह किसी महिला के हैं। बाल का रंग पीला था। कुछ दिन पहले ऐसा ही एक पीला बाल उसने बंग्ले के सामने एक पेड़ से बरामद किया था, जब विक्रम पर गोली चलाई गई थी। ऐसा ही पीला बाल बिल्ली की लाश के पास मिले रुमाल पर भी मिला था। उसे याद आया हाशना के बाल भी पीले रंग के हैं। यह ख्याल आते ही सोहराब गहरी सोच में डूब गया।

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शेयाली के बंग्ले से किस सामान की चोरी हुई थी?
पेंंटर विक्रम खान की लाश का राज क्या था?
पीले रंग का बाल किसका था।?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ का अगला भाग...