main to odh chunriya - 8 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | मैं तो ओढ चुनरिया - 8

मैं तो ओढ चुनरिया - 8

मैं तो ओढ चुनरिया

अध्याय आठ

रात मंदिर से सटी एक धर्मशाला में बङे से हाल में कटी । कोठारी ने दरियां झङवाकर बिछवा दी थी । रात को तुलाइयां और कंबल भी दे गया । लोग खुश हो गये ,- “ देखा महामाई सबकी फिकर खुद करती है । इन पंडित के मन में कैसे माया भर दी वरना आजकल कोई किसी की परवाह करता है क्या ? “ सोने जा रहे लोगों के बीच फिर से बातों का दौर चल पङा – लोग माता के चमत्कार की दंतकथाएं सुनाने लग पङे ।
यहीं ज्वालामुखी मंदिर के साथ लगती पहाङी पर गुरु गोरखनाथ की धूनी हैं । इसके बारे में एक कथा मशहूर है । एक बार गोरखनाथ अपनी यात्रा करते यहाँ आए । माता की सिद्धपीठ देख यहीं धूना रमा लिया । वे सिद्ध पुरुष थे । दूर दूर से लोग उनके दर्शन करने आते और रोग शोक मुक्त होकर लौटते । कई लोग उनके शिष्य बन गये । एक दिन उन्होने अपने शिष्य से कहा कि आज खिचङी खाने का मन है । तुम पानी उबालो ,मैं बस्ती से दाल चावल लेकर आता हूँ । शिष्य ने पानी खौलाया । आग जलाकर बैठा रहा । पानी गर्म होता रहा । चालीस दिन हो गये । गुरु लौटे नहीं । शिष्य पहाङी पर चढकर गुरु की टोह लेने लगा और वहीं अकङ कर जम गया । माँ ज्वाला ने अपनी लौ से पानी ठंडा नहीं होने दिया । वहाँ आज भी पानी का सोता है ,जिसका पानी हाथ लगाने पर बिल्कुल ठंडा है पर कपङे में बाँध कर दाल या चावल लटकाने से पक जाते हैं । उस पानी में ज्योति दिखाई देती है । सब लोगों ने कथा सुनकर हाथ जोङ लिए ।
साथ ही जो परिवार टिका था , पता लगा , वे जैतो से हैं । आढती हैं । इस बार काम में बहुत फायदा हुआ तो माता की हाजिरी भरने आए हैं ।
रवि और धम्मो उनसे मिलकर बेहद खुश हुए । आखिर पङोस का मामला ठहरा । फरीदकोट और जैतो में फासला ही कितना है । मुश्किल से आधा घंटा और हो भी तो क्या , जिला तो बठिंडा ही हुआ न । उसके बाद तो पूछो ही मत । धम्मो को बैठे बिठाये सास , जेठानी ,जेठ , ननद और बच्चे सब मिल गये ।
बातों बातों में धम्मो ने बताया कि वे कल वापिस लौट रहे हैं तो अम्मा नाराज हो गयी – न बेटा , बिल्कुल दरवाजे पर आकर दर्शन किये बिना तो मैं जाने न दूँगी । बस कल की तो बात है , कल कोटकांगङेवाली के दरशन करेंगे , शाम को चामुंडा देवी रुकेंगे । परसों सुबह आरती भोग के बाद इकट्ठे वापिस चलेंगे । शाम तक घर पहुँच जाएंगे । न करने का तो सवाल ही नहीं था । किसी बङे की बात काटने या जवाब देने का तब रिवाज ही नहीं था । किसी सयाने की कही हर बात पत्थर की लकीर होती । तो इस तरह हम सब भी इस परिवार के साथ अगले धाम की यात्रा का निश्चय कर सो गये ।
सुबह सारे चार बजे ही उठ बैठे । स्नान आदि से निवृत होकर सब एकबार फिर से माँ के भवन गये । वहाँ माँ की मंगलाचरण आरती चल रही थी । सब ने ज्योतियों के एकबार फिर से दर्शन किये । माँ को दूध और मिश्री का भोग लगाया और अगली यात्रा के लिए चल पङे । मंदिर से बस स्टैंड तक का तंग सा रास्ता तरह तरह की दुकानों से सज रहा था । ज्यादातर नारियल , चुनरी और प्रसाद की दुकानें थी । कुछ दुकानें चूङी और सिंदूर की और कुछ दुकानें बच्चों के खिलौनों की थी । अम्मा ने चंद्रा और धर्मशीला दोनों के लिए चूङियाँ और सिंदूर खरीदा । बच्चों के लिए ढेर सारे खिलौने । मेरे लिए एक झुनझुना और बत्तख । बच्चे खिलौने वहीं बिखेरकर खेलना चाहते थे । खिलौने बंद करने को तैयार ही नहीं थे । आखिर एक एक कुल्फी की रिश्वत से बात बनी । रवि ने कुल्फीवाले से पाँच कुल्फी ली बच्चे खिलौने छोङकर कुल्फी की ओर लपक लिये तो भाभी ने फटाफट खिलौने झोले में संभाल लिये । तबतक बस कांउटर पर आ लगी थी । बङे भाई साहब ने टिकट कटाई तो हम सब बस में बैठ गये ।
हरी भरी घाटियों से होती हुई बस टेढे मेढे रास्ते पर धीरे धीरे चल रही थी । ठंडी ठार हवा बङी अच्छी लग रही थी । करीब दो घंटे बाद बस कांगङे बस स्टैंड जा पहुँची । वहाँ से हम पैदल ही कांगङा के मंदिर के लिए चल पङे । मां ने सबको माँ सती की एक पौराणिक कथा सुनाई । यह कथा कहती है कि देवी सती के पिता दक्ष जब प्रजापति बने तो उन्होंने एक यज्ञ किया । उस यज्ञ में सभी देवता देवियां निमंत्रित किये गये । दक्ष ने अपने दूसरे दामाद चंद्र देव को भी बुलाया पर शिव और सती को निमंत्रण नहीं दिया । इस अपमान से आहत सति ने पिता के यज्ञकुंड में दाह कर प्राण त्याग दिये । और बलिदान करके यज्ञ पूरा नहीं होने दिया था। शिव ने अपनी पत्नि के शरीर को अपने कंधे पर ले लिया और तांडव शुरू कर दिया। विश्व को नष्ट करने से रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र के साथ सती का शरीर 51 भागों में विभाजित किया। सती का शरीर अंश जहाँ जहाँ गिरे , वहाँ इक्कयावन शक्तिपीठ स्थापित हुए । इस जगह सती के बायां स्तन गिर गए, इस प्रकार यह एक शक्ति पीठ बना। मूल मंदिर महाभारत के समय पांडवों द्वारा बनाया गया था। किंवदंती कहते हैं कि एक दिन पांडवों ने अपने स्वप्न में देवी दुर्गा को देखा था जिसमें उन्होंने उन्हें बताया कि वह नागराकोट गांव में स्थित है और यदि वे चाहते हैं कि वे स्वयं को सुरक्षित रखें तो उन्हें उस क्षेत्र में उनके लिए मंदिर बनाना चाहिए अन्यथा वे नष्ट हो जाएंगे। उसी रात उन्होंने नगरकोट गांव में उनके लिए एक शानदार मंदिर बनाया।
यह मंदिर अपने धन दौलत के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था । इसे मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा कई बार लूट लिया गया था। मोहम्मद गजनवी ने इस मंदिर को कम से कम 5 बार लूट लिया, बार बार पहाङी राजाओं ने पहले से भव्य मंदिर बना दिया । यह देवा राजा संसारचंद की कुलदेवी कही जाती हैं । अतीत में इसमें सोने का टन और शुद्ध चांदी से बनने वाले कई घंट थे। 1905 में कांगङा घाटी में आये एक शक्तिशाली भूकंप से किला व मंदिर नष्ट हो गया था और बाद में सरकार ने इसे फिर से बनाया।


, इस मंदिर के बारे में प्रसिद्ध है कि एक बार मुगल सैनिक मंदिर लूटने के लिए अंदर घुसे ही थे कि सैकङों मधुमक्खिसों ने एक साथ उन पर हमला कर दिया । सैनिक गिरते पङते बाहर भागे । कुछ पहाङी से गिर कर मर गये । कुछ अंधे हो गये । तबसे माँ का एक नाम भ्रामरी भी है । अतीत में इस मंदिर में सोने का टन और शुद्ध चांदी से बनने वाले कई घंट थे। 1905 में मंदिर एक शक्तिशाली भूकंप से नष्ट हो गया और बाद में सरकार ने इसे फिर से बनाया।
मंदिर में माँ दुर्गा की बङी भव्य मूर्ति है । सबने माता के दर्शन किये । माँ मुझे गोद में लिए न जाने कितनी देर मंदिर में विग्रह के सामने बैठी रही ।


बाकी अगली कङी में ...

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Suresh

Suresh 2 years ago

sneh goswami

sneh goswami 2 years ago

Nice one

Akshay Goswami

Akshay Goswami 2 years ago

Jai ho

Sneh Goswami

Sneh Goswami Matrubharti Verified 2 years ago

S J

S J 2 years ago