Stories of Swatantra Saxena - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

स्वतंत्र सक्सेना की कहानियाँ - 9

वेद प्रकाश

डॉ0 स्वतंत्र कुमार सक्सेना

वेद प्रकाश जी उस दि न बड़े प्रसन्न थे। कई दिनों से चिंतित थे, निराशा जनित आतंक ने उनकी नींद हराम कर रखी थी।

सोचा भी न था वातावरण ऐसा बदल जाएगा । मंचों पर गुरुओं की भारतीय परंपरा के आज भी गुणगान किये जाते हैं। पर मास्टर का नाम आते ही अफसर कैसे मुंह बिचका देते हैं । सारे काम ही तो गुरु जनों पर लाद दिए हैं जन गणना गुरुजी करें, चुनाव गुरु जी करवाएं ,और साक्षरता आंदोलन चला तो उसका ठीकरा भी घूम फिर कर गुरु जनों के ही सर फूटा। अब छात्रों को कब पढ़ाएं रिजल्ट कैसे सुधारें! स्कूल बंद देखते -देखते बच्चे कक्षाओं से उदासीन हो गए तो उसके जिम्मेदार भी गुरु जी । जब से पंचायत राज आया परेशानी और बढ़ गई ।ए.डी.आई. व बी. ई.ओ. के साथ अब सरपंच भी हड़काने लगा-काए मास्टर! टैम से नईं आउत?’

स्कूल की इमारत में फसल पर अनाज के बोरे व भूसा भर दिया जाता । चाहे जब बारात ठहर जाती । मैंदान में पंडित बारे लाल की भैंसे बंध गईं। इन्हीं लोगों से हाजिरी पर दस्तखत कराने के लिए चार पांच चक्कर काटने पड़ते। ऊपर से अफसर दनदनाते, सुनते कुछ नहीं । नौकरी की इस अंतिम दहाई में इस तरह के संकट से दो चार होना पड़ेगा, सोचा भी न था। पीपल के पेड़ के नीचे टूटी कुर्सी पर इस अकिंचनता में कक्षा पढ़ाना, उन्हें लगता जैसे बदन पर हजारों बिच्छू रेंग रहे हों। ऐसे में उन्होंने जनपद ऑफिस में तबादले की अर्जी लगाने की सोची, रात को बड़े सुन्दर शब्‍दों में उन्होंने प्रार्थना पत्र तैयार किया। मास्टर राम प्रकाश को दो- तीन दिन तक चाय पिलाई, लगातार बैठकें कीं, आखिर राम प्रकाश जी पसीजे, उन्होंने आश्वासन दिया कि काम करवा देंगे ।दो-तीन दिन टहलाने के बाद आखिर एक दिन राम प्रकाश उनके साथ कार्यालय पहुंचे तो साहब दौरे पर निकल गए थे, वे लौट ही रहे थे कि साहब की जीप बंगले पर आती दिखी, हौसला बांध कर आगे बढ़े साहब ने बड़े बेमन से अर्जी ली ।

पूंछा-----’कहां से हो? ‘

------ जी राम गढ़ से।

---कब से?

-जी पांच वर्ष से।

-कहां चाहते हो?

-यहीं शहर के किसी स्कूल में ।

- अच्छा देखेंगे

अर्जी खोल कर देखते ही साहब की बांछें खिल गईं बोले –‘किसने लिखी है?’

-जी मैंने।

- साहब- ‘बहुत सुन्दर राईटिंग है हमारे लाखन बाबू का लेख तो उनके सिवाय कोई आसानी से पढ़ ही नहीं पाता ।बहुत माथा पच्ची करना पड़ती है।आफिस में काम करोगे ?मेहनत का काम है ,मस्ती नहीं चलेगी ,रेगुलर रहना होगा ।’

- जी। आप कहेंगे तो जरुर, मेरा काम देख लें।

साहब-’ठीक है देखेंगे।’

आश्‍वासन पाकर, वेद प्रकाश ने राहत की सांस ली ।

वे ब्लॉक ऑफिस में अटैच हो गए, कहां पठन -पाठन बच्चों का सानिध्य और यहां एक सामान में अटा कबाड़ भरा छोटा सा कमरा ,उसी के कोने में कुर्सी- मेज डाल दी गई और एक महारानी विक्टोरिया के जमाने की याद दिलाती एक लकड़ी की विशाल अलमारी टेबिल के सामने एक हिलती हुई बेंच । उन्होंने अपना काम सम्हाल लिया । पहले उन्हें आवक- जावक रजिस्टर थमा दिया गया ।मजबूर थकी - थकी धुंधली नजरों वाले बूढ़े- बुढ़ियां आशा- निराशा में डूबते- उबरते उन्हें अर्जी देते स्वीकृत कराने की चिरौरी करते चाय नाश्ते की पेशकश करते ।उद्धत बेरोजगार नौजवान मन की सारी कड़वाहट- निराशा उन पर उंडेलते, वेद प्रकाश बस मुस्करा देते। कुछ लोग टेबिल पर रुपये रख देते, साथ की टेबिलों पर बैठे बाबू उनकी टेबिल की गतिविधियों को कनखियों से निहारते। एक साथी ने कहा भी-----’’ अरे! कुछ मांगो मत पर यदि कोई देता है तो मना मत करें । आती लक्ष्मी का अनादर करना, अच्छी बात नहीं। ये तो ऑफिस का दस्तूर है।‘ ‘जब दफतर के लोग चाय पीते गप्पें हांकते ऐसे में वे अर्जियां चुनते ,जिले से आई डाक करीने से लगाते, साहब के आते ही उन्हें पेश करते व संबंधित विभागों को भेजते। एक दिन साहब को कोई जबाब तुरंत देना था जबाब लिखने वाला बाबू गायब था ,अतः साहब से डिक्टेश्‍न लेकर वे जबाब बनाकर ले आए।

साहब देख कर बोले-’’ भई वाह। ये ड्राफ्टिगं कहां से सीखी।

वेद प्रकाश ----’-’ सर! फॉरमली ट्रेन्ड नहीं हूँ। जब ग्वालियर में पढ़ता था तो मेरे मकान मालिक मुंशी जी थे ,उनकी बेगार करते करते कुछ सीख गया ।’

साहब ---’तो अब तुम्हीं जबाब लिख लाया करो।’

अब वे नये वातावरण में कुछ जम से रहे थे वापिस भेजे जाने का डर कुछ कम सा हो गया था।साहब का व्यवहार कृपा पूर्ण लगा। ऐसे में ही शिक्षा कर्मियों की भर्ती प्रारंभ हो गई। मात्र तीस पद उस पर 1500 फॉर्म घनघोर भीड़ उस पर मात्र दस दिन का ही समय। फार्म जमा करने में किसी की दिलचस्पी न थी। अतःयह काम भी वेद प्रकाश जी के मजबूत कन्धों पर डाल दिया गया । सबेरे से ही ऑफिस खुलते ही खिड़की पर बेरोजगारों की उतावली भीड़ इकट्ठी हो जाती ,फॉर्म लेना उसके सम्पूर्ण संलग्न प्रपत्र देखना फिर उन्हें एक रजिस्टर में भरना क्रमांक देना समय लेता था। आंखें थक जाती उंगलियां दर्द करने लगतीं ,उधर फॉर्म जमा करने वालों की भीड़ आवाजें कसती---’ बहुत देर लगाता है ,नौसिखिया है ,आलसी है, सरकारी टट्टू’ वे सिर झुकाए काम में लगे रहते।एक दिन दो बजे उन्होंने खिड़की बन्द की घर से लाए टिफिन के डिब्बे खोल कर टेबिल पर रख एक कौर मुंह में दिया ही था कि एस.डी.एम.साहब का ऑफिस बॉय गुड्डू प्रगट हो गया ।

ऑफिस बॉय गुड्डू-----’साहब ने बुलाया है फौरन चलो।’

वेद प्रकाश जी का दिल धड़कने लगा क्या बात है पहुंचे तो एक नेता जी खड़े थे।

साहब नेता जी की ओर इशारा कर बोले-ये कह रहे हैं, आप। पैसे लेकर फॉर्म जमा करते हैं?’

वेद प्रकाश बहक गए, साहब से नजरें मिला कर अंदर के क्रोध पर जैसे -तैसे भरसक काबू पाते हुए, अपनी जेब से रुपये निकाल कर दिखाते हुए बोले----’’साहब!मेरी जेब में मात्र बीस रुपए हैं ,पचास फॅार्म के तो बहुत सारे रुपए होना थे ,मेरी टेबिल की तलाशी का आदेश दें।’

साहब नेता जी की ओर मुखातिब होते हुये -----’’सच- सच बताओ क्या बात है’

नेता जी तमक कर ----’-’साहब ये फॉर्म नहीं ले रहे । बीच में ही खिड़की बंद कर दी । बहुत भीड़ है ,बच्चे परेशान हो रहे हैं ।’

वेद प्रकाश------’’साहब!डेढ़ के बजाय दो बज रहे हैं। खाना खाकर खोल दूंगा। नेता जी सबसे पीछे बाद में आए ,अपना फॉर्म फौरन जमा करना चाहते हैं ।मैंने कहा..—‘क्रम से लूंगा ,आप मेरे पास फॅार्म रख जायें, मैं जमा कर लूंगा ।’

साहब-’जाओ खाना खाओ। नेता जी की ओर देखते हुए------’’मि0 शिकायत सोच समझ कर किया करे। अब झूठी शिकायत लेकर मेरे पास मत आना, वरना तुम्हें ही अंदर करवा दूंगा ।’

सी.ई.ओ. साहब के बंगले पर सारे फॉर्मों की छंटाई हो रही थी।एक दिन साहब ने बंगले पर बुला कर दो हजार रुपये हाथ पर रख दिए।वेद प्रकाश ने रुपये टेबिल पर रख कर साहब से हाथ जोड़ कर कहा -’आपकी कृपा ही बहुत है ।‘

साहब ने कहा -’फिर, बोलो! और कोई इच्छा ,कोई तुम्हारा केन्डिीडेट?’

अब वेद प्रकाश लोभ संवरण न कर सके ,अभ्यार्थियों में उनका भतीजा भी था, ‘राम मूर्ति ,संकोची सहज, बेरोजगार युवक, उन्होंने अवसर देखकर निवेदन कर ही दिया ।

वेद प्रकाश ----’’हाँ साहब! मेरा एक भतीजा है ‘,राममूर्ति। यदि कर सकें तो कृपा होगी ।’

साहब-’ हाँ ,हाँ ,क्यों नहीं ,देख लेंगे।

हिम्मत करके वेद प्रकाश थोड़ा झिझक कर बोले--’’साहब!और लोग जो दे रहे हैं वह सेवा मैं भी कर दूंगा ।’

हांलाकि वे जानते थे कि बड़े भाई और वे मिल कर भी शायद तुरंत व्यवस्था न कर सकें। वेद प्रकाश सोच रहे थे खेत गिरवी रख देंगे ,राममूर्ति तो नौकरी से लग जाएगा ।

साहब -अरे कैसी बातें करते हो’ ,तुम्हारा काम हो जाएगा ।’

आखिर चयनित उम्मीदवारों की सूची दफ्तर में आ ही गई। बड़े बाबू के पास थी, वे बड़े नखरे से उसे कुछ खास उम्मीदवारों को दिखा रहे थे ,परम गोपनीय थी।

वेद प्रकाश उल्लासित थे उन्हें पूर्ण वि‍श्‍वास था। वे बड़े बाबू की टेबिल पर पंहुचे चाय की फरमाइश्‍ हुई आज वे तुरंत तैयार हो गए । उन्होंने सरसरी नजर से सूची पढ़ी, नाम नहीं दिखा चश्‍मा चढ़ा कर ध्यान से पढ़ा, फिर भी नाम गायब था।

बड़े बाबू ताड़ गए पूंछा--’अरे! किसका नाम देख रहे हो ,एडवांस ले लिया था क्या आज पकड़े गए ।’

अरे नहीं वे उद्धिग्न हो उठे। इतने में चेम्बर की घंटी बजी वे बुझे मन से साहब के चेम्बर में गए ।

साहब----’’अरे हाँ।!तुम्हारे उम्मीदवार का नाम था पर एन मौके पर गम्भीर सिंह जी आ गए ,उनके बेटे को लेना पड़ा । तुम्हारे केन्डीडेट को अगली बार देख लेंगे । चिन्ता मत करो।’

पर वे गहन चिन्ता में डूब गए थे घर जा कर राममूर्ति से नजरें कैसे मिलाएंगे ।

डॉ0 स्वतंत्र कुमार सक्सेना

सवित्री सेवा आश्रम तहसील रोड

डबरा

जिला ग्वालियर मध्य प्रदेश