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फाँसी के बाद - 7

(7)

रात आर्लेक्चनू वाले तुम्हें उस समय कोठी में पहुँचा गये जब कि मैं मौजूद नहीं था । आने पर तुम्हें देखा मगर मेरे पास इतना समय नहीं था कि मैं आर्लेक्चनू वालों से कुछ पूछता या तुम्हारे होश में आने की प्रतीक्षा करता । इसलिये कि डेढ़ बजे वाली फ्लाईट से लन्दन जाना था ।

मेरी दुआयें तुम्हारे साथ है । यह पहला अवसर है जब कि तुम्हें रनधा जैसे खतरनाक आदमी से अकेले निपटना है । देखो कि कल चार बजे सवेरे रनधा को फाँसी होती भी है या नहीं ।

मैं तुम्हें भी अपने साथ ले चलता मगर विवशता यह थी कि अगर रनधा की फाँसी हो भी गई तब भी तुम्हारा काम शेष रह जायेगा । देखो ! लड़ाई में सावधानी से बढ़ कर कोई दूसरा हथियार नहीं होता इसलिये पूरी तरह सतर्क रहना । मैं इस बात की कोशिश करूँगा कि लन्दन से भी तुमसे संबंध स्थापित रखूँ ।

तुम्हारी सफलता के लिये मैं दुआयें करता रहूँगा । रमेश का ख्याल रखना ।

- तुम्हारा विनोद ।’

हमीद के लिये यह पत्र बड़ा ही विचित्र साबित हुआ था । एक एक शब्द से प्यार और शुद्ध ह्रदयता टपक रही थी । उसका मन चाहा कि दहाड़ें मार मार कर रोना आरंभ कर दे । विचित्र प्रकार की एकाकी और विवशता का एहसास हो रहा था । उसने अपने को संभाला और सोचने लगा कि आखिर विनोद ने रनधा के बारे में यह सब क्यों लिखा है ? सीमा को किसने बचाया और अर्लेक्च्नू वाले अस्पताल ले जाने के बजाय कोठी पर क्यों लाये ?

अब भला नाश्ते में क्या मन लगता । उसने कोफ़ी पी । पाइप भरकर दो-तीन कश लिये फिर उठकर अपने कमरे में आया । पाइप बुझाकर आल्मारी खोली और अपना छोटा वाला ऑटोमेटिक रिवोल्वर निकाला और उसका चेम्बर चेक करने के बाद डबल साइड वाला कोट और पतलून पहना । रेडीमेड मेकअप वाली स्प्रिंग निकालकर नथनों में फिट की और बाहर आ गया ।

मोटर साइकल निकालकर सीधे जेल की ओर रवाना हो गया ।

जेल के फाटक पर पहुंचकर उसने नथनों से स्प्रिंग निकालकर जेब में रखी । कोट पलटकर पहना और मोटर साइकल की नंबर प्लेट बदल दी ।

जेलर ने फीकी मुस्कान के साथ उसका स्वागत किया ।

“कोई खास बात ?” – हमीद ने पूछा ।

“अभी तक तो सब कुशल ही है ।” – जेलर ने कहा – “यह तो मैं आपको पहले ही बता चुका था कि रनधा से मिलने के लिये उसका वकील और उसके दो संबंधी आये थे । वह दोनों संबंधी आज चार बजे संध्या को फिर आयेंगे – यह मालूम करने के लिये कि रनधा की लाश उन्हें किस समय दी जायेगी ।”

“और कोई नई बात ?”

“रनधा की कोठरी पर जो संतरी तैनात है उसकी कुछ सूचनाएं बहुत महत्वपूर्ण है ।”

“जैसे ?”

“जब से रनधा दूसरी बार आया है उसने एक शब्द भी मुख से नहीं निकाला है । उसका चेहरा इतना बदल गया है कि कुछ लोगों के लिये तो कदाचित शिनाख्त में भी कठिनाई हो और अक्सर रात में ऐसा महसूस होता है जैसे फुसफुसाहट के से भाव में उससे कोई यह कह रहा हो कि – फांसी के तख्ते पर पहुंचने के बाद भी तुम नहीं मर सकते । भरोसा और विश्वास रखो ।”

हमीद उछल पड़ा । फिर पूछा ।

“वह आवाज रनधा की तो नहीं ?”

“जी नहीं ! वह किसी औरत की आवाज लग रही थी ।” – जेलर ने कहा – “प्रकट है कि रनधा की कोठरी में किसी औरत की परछाई का पाया जाना भी असंभव है । पहले तो मैंने यही समझा था कि संतरी का भ्रम रहा होगा । मगर दूसरे और तीसरे संतरी ने भी यही रिपोर्ट दी । मगर आप इत्मीनान रखें । इस बार न केवल हम ही लोग चौकन्ने और मुस्तैद हैं, बल्कि ऐसी व्यवस्था कर दी गई है कि पक्षी भी पर नहीं मार सकता ।”

“अच्छा – मैं सवेरे पांच बजे कल आऊंगा ।” – हमीद कहता हुआ उठा और जेलर से हाथ मिलाकर फाटक की ओर बढ़ा ।

फाटक से निकलने से पहले ही वह फिर उसी मेकअप में आ गया जिसमें वह यहां तक आया था । बाहर निकलकर उसने फिर पहली वाली नंबर प्लेट मोटर साइकल में लगाई और उस पर बैठकर चल पड़ा ।

अब दोपहर हो चली थी और हमीद मोटर साइकल उड़ाये चला जा रहा था । रनधा गिरफ्तार हो चुका था । उसका गिरोह टूट चुका था, मगर फिर भी न जाने क्यों उसके मन में यह संदेह बना रहा था कि जैसे ही वह कोठी से निकलेगा वैसे ही उसका पीछा आरंभ हो जायेगा । और इसी आधार पर जो भी गाड़ी उसे अपनी मोटर साइकल के पीछे दिखाई देती वह वही समझता कि वह गाड़ी उसके पीछे लगी हुई है ।

हमीद ने यह सोच रखा था कि कल वह सीमा के साथ पार्क अविन्यु जायेगा मगर वहां जाने से पहले वह एक बार अकेले पार्क अविन्यु जाकर बारह नंबर वाला फ़्लैट देख लेना चाहता था । उसका विचार था कि उस फ़्लैट में जो भी रहता होगा उसका कुछ न कुछ संबंध उस लोगों से अवश्य होगा जिनके पास वीना है ।

अब हमीद रेलवे पुल से आगे बढ़ गया था और अब शहर का खास इलाका भी समाप्त हो गया था । मोटर साइकल उस बाज़ार से गुजर रही थी जो नगर का रेड लेम्प एरिया या सबसे अधिक चहलपहल वाला एरिया समझा जाता था । उसी एरिया के भीतरी भाग में सेठ दूमिचंद की कोठी थी ।

हमीद ने मोटर साइकल रोककर उस गली की ओर देखा जिसमें दूमीचंद की कोठी थी । ऐसा लग रहा था जैसे लोग दुमीचंद की हत्या को भूल चुके हैं और उन नवजवानों को भी सब्र आ गया है जो वीना को देखकर ठंडी आह भरा करते थे ।

हमीद ने भी लम्बी सांस खींचकर मोटर साइकल स्टार्ट की । उसी समय गली में एक कार दिखाई पड़ी जिसकी ड्राइवर सीट पर वही आदमी बैठा हुआ था जिसे कल हमीद ने आर्लेक्चनू में सीमा के साथ देखा था । पिछली सीट पर दूमीचंद का लड़का प्रकाश बैठा हुआ था जिससे हमीद की इतनी अच्छी मुलाक़ात थी कि उसे मित्रता ही कहा जा सकता था ।

वह कार हमीद के निकट ही से गुजर गई । प्रकाश ने उसे देखा भी था मगर कार रुकी नहीं । आगे बढती चली गई ।

हमीद ने उसकी कार के पीछे अपनी मोटर साइकल लगा दी । उसे रह रहकर प्रकाश पर क्रोध आ रहा था जिसने उसे देखने के बाद भी उपेक्षित कर दिया था । मगर थोड़ी ही दूर जाने के बाद उसे अपने क्रोध पर हंसी आ गई – इसलिये कि वह तो मेकअप में था । फिर प्रकाश भला उसे कैसे पहचान सकता था ।

एक क्षण के लिये उसने सोचा कि प्रकाश ही तो है । फिर पीछा करने से क्या लाभ ? मगर दूसरे ही क्षण वह आदमी याद आया जो कार ड्राइव कर रहा था । वह हमीद की नज़रों में पहले से ही संदिग्ध था, मगर जब से सीमा ने उसके बारे में बताया था तब से उसे उस आदमी से और अधिक दिलचस्पी पैदा हो गई थी और उसने यह निश्चय कर लिया था कि अवसर पड़ने पर वह ख़ुद उससे खुलकर बातें करेगा ।

बात केवल उसी आदमी की नहीं थी, बल्कि रात के उत्पात ने और उलझन पैदा कर दी थी ।

हमीद की समझ में यह नहीं आ रहा था कि जब रनधा गिरफ़्तार हो गया तो फिर वह लोग कौन हो सकते हैं जिन्होंने सीमा का अपहरण करने की कोशिश की थी और मादाम ज़ायरे का क़त्ल किया था । उसने यह समझने की बहुत कोशिश की थी कि आखिर मादाम ज़ायरे को क्यों क़त्ल किया गया – उसे किस खाने में रखा जाये – मगर समझ में न आ सका था । मगर वह अब यह भी सोच रहा था कि आर्लेक्चनू जाकर मादाम ज़ायरे के प्रति भी छानबीन करनी चाहिये । विनोद की अनुपस्थिति के कारण उसे एक प्रकार से नई ज़िम्मेदारी का एहसास हो गया था ।

और फिर वह एकदम से चौंक पड़ा – इसलिये कि अब उसकी मोटर साइकल उस सड़क पर आ गई थी जो पार्क अविन्यु की ओर जाती थी । प्रकाश वाली कार उसके आगे बढ़ती जा रही थी ।

पार्क अविन्यु के फ्लैटों के सामने पहुंचकर प्रकाश वाली गाड़ी रुक गई । हमीद ने भी जल्दी से अपनी मोटर साइकल रोक दी, मगर नीचे उतरा नहीं । सीट पर बैठा हुआ वह दाहिनी ओर देख रहा था । मगर वास्तव में वह कनखियों से प्रकाश वाली कार को ही देख रहा था ।

कार से प्रकाश और वह कार ड्राइव करने वाला आदमी, जिसे ड्राइवर ही कहना उचित होगा, नीचे उतरे और ‘बी’ ब्लोक के फ्लैटों की ओर बढ़ने लगें । हमीद भी सीट से नीचे उतरा और उनके पीछे पीछे काफ़ी फासिला देकर चलता रहा ।

यहां तिजारती कंपनियों के बोर्ड भी नज़र आ रहे थे जिनसे यह साबित होता था कि उन कंपनियों के ओफिसिज़ भी यहीं हैं ।

हमीद को आश्चर्य हो रहा था कि आखिर बात क्या है जो उन दोनों में से किसी ने भी एक बार मुड़कर पीछे नहीं देखा – बस वह चले जा रहे थे ।

फिर जब वह दोनों बारह नंबर के फ़्लैट में दाखिल हुए तो हमीद की खोपड़ी हवा में नाचने लगी – इसलिये कि वीना ने इसी फ़्लैट में सीमा को बुलाया था और दूसरी चौंका देने तथा आश्चर्य में डालने वाली बात यह थी कि इस फ़्लैट पर मिस्टर ए.के. राय एडवोकेट के नाम की परिचय पट्टिका लगी हुई थी ।

हमीद रूककर बड़े ध्यान से परिचय पट्टिका देखने लगा । यह वही ए.के. राय एडवोकेट था जिसने रनधा के मामले में रनधा की ओर से उसके मुक़दमे की पैरवी की थी । फौजदारी का इतना प्रसिद्ध वकील था कि नगर का हर आदमी उसे जानता था ।

फिर वह सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ ऊपर पहुंचा । यहीं उसका आफिस था । उसके सेक्रेटरी, पी.ए. तथा क्लर्क यहीं बैठते थे । मुक़दमों की फाइलें भी यहीं रहती थीं । इस समय भी बहुत सारे लोग अंदर नज़र आ रहे थे जिसमें से कुछ ऊँघ रहे थे, कुछ मौन थे और कुछ क्लर्कों से कानाफूसी कर रहे थे । अंदर का वातावरण शांत भी था और सनसनीपूर्ण भी ।

हमीद दरवाजे से बाहर ही खड़ा अंदर का दृश्य देखता रहा ।

प्रकाश और ड्राइवर चेम्बर के अंदर गये और पांच ही मिनिट में बाहर निकले । हमीद उनसे कुछ पूछना ही चाहता था कि उसे सीमा नज़र आई । कदाचित वह भी उन दोनों के बाद चेम्बर से निकली थी इसलिये उन दोनों से कुछ पूछने का विचार उसने स्थगित कर दिया ।

वह दोनों उसके निकट से ही होते हुए नीचे चले जाने के लिये सीढ़ियों की ओर बढ़ गये और वह वहीँ खड़ा सीमा के बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगा ।

और फिर जैसे ही सीमा बाहर निकलकर सीढ़ियों की ओर बढ़ी, हमीद ने उसका मार्ग रोककर उसे सलाम किया ।

सीमा के चेहरे पर विस्मय के लक्षण उत्पन्न हुए । उसने विचित्र नज़रों से हमीद की ओर देखा फिर पूछा ।

“कहिये ?”

और तब हमीद को एहसास हुआ कि वह मेकअप में है और सीमा का चकित हो जाना उचित है । उसने अत्यंत कोमल स्वर में कहा ।

“मैं आपसे एकांत में कुछ बातें करना चाहता हूं ।”

सीमा एकदम से भड़क उठी और आंखें तरेरकर बोली ।

“आप होंश में है या नहीं ? हम एक दूसरे के लिये अपरिचित है फिर आप मुझसे एकांत में क्या बात करेंगे ?”

“नाराज़ होने की आवश्यकता नहीं है, देवी जी ।” – हमीद ने मुस्कुराकर कहा – “हम दोनों एक दूसरे से भलीभांति परिचित हैं ।”

हमीद की मुस्कान ने सीमा के क्रोध पर घी का काम किया । उसने तीव्र स्वर में कहा – “मैं आप जैसे नवजवानों को अच्छी तरह जानती पहचानती हूं । कुशल इसी में है कि मेरा रास्ता छोड़ दीजिये वर्ना अच्छा नहीं होगा ।”

हमीद उसके सामने से हट गया और वह तेज़ी के साथ आगे बढ़ गई ।

हमीद उसे सीढ़ियां तय करते हुए देखता रहा । फिर नथनों से स्प्रिंग निकालकर जेब में रखा और कोट उलटकर पहनता हुआ सीढ़ियों की ओर बढ़ा ।