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चोलबे ना - 7 - फ्रैक्चर, प्लॉस्टर और चुनाव

अभी मैं उहापोह की स्थिति में पेंडुलम की तरह डोल ही रहा था कि चच्चा हाँफते हुए कहीं चले जा रहे थे। देखकर लगा कि चिढ़े हुए हैं। जैसे उन्होंने कोई भदइला आम जेठ के महीने में खा लिए हों और जहर की तरह दाँत से ज्यादा मन एकदम ही खट्टा हो गया हो। जब मैंने उनकी गाड़ी को अपने स्टेशन पर रुकते नहीं देखा तो मैंने चच्चा को जोर से हॉर्न देते हुए बोला,

‘अरे चच्चा! कहाँ रफ्फू-चक्कर हुए फिर रहे हैं। पैर की चकरघिरन्नी को थोड़ी देर के लिए मेरे स्टॉप पर रोकिए तो सही! क्या पता कोई सवारी ही मिल जाए?’

चच्चा पहले तो गच्चा खा गए कि बोला किसने लेकिन जैसे ही उनकी याददाश्त वापस लौटी तो खखार कर बोले, ‘तुम हो बच्चा! मैं समझा कि कोई और बोल रहा है?’

‘अरे चच्चा! ये गाड़ी लेकर कहाँ चले थे? चाची भी तो आजकल अपने मायके गई हुई हैं।’

‘क्या कहें बेटा? आजकल जीवन एकदम नरक हुआ पड़ा है। एक ओर तो तुम्हारी चाची के यहाँ ना रहने से ढ़ँग से खाना नहीं मिल रहा है और ऊपर से प्रदेश का चुनाव मेरा खून पीता जा रहा है’ चच्चा ने ऐसे बोला जैसे वो किसी और दुनिया में ही हों।

‘क्यों चच्चा? क्या हो गया प्रदेश के चुनाव में कि आपका खून जलने लगा?’

‘क्या तुमने खबर नहीं सुना?’

‘कौन सी खबर?’

‘यही कि मुख्यमंत्री साहिबा का विपक्षियों ने पैर तोड़ दिया है!’

‘अच्छा! उस खबर की बात कर रहे हैं।‘

‘हाँ-हाँ। उसी खबर की बात कर रहा हूँ।’

‘पर खून आपका क्यों जल रहा है? पैर तो मुख्यमंत्री साहिबा का टूटा है।’

‘यही तो तुम नहीं समझे! ये पैर मुख्यमंत्री का नहीं बल्कि भारत के महान लोकतंत्र का टूटा है।’

‘अच्छा! वो कैसे चच्चा?’

‘क्या तुम्हे पता नहीं है कि मुख्यमंत्री साहिबा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुईं मुख्यमंत्री हैं?’

‘मगर इस देश में मुख्यमंत्री, मंत्री या फिर प्रधानमंत्री, सभी तो लोकतांत्रिक तरीके से ही चुने जाते हैं। इसमें कौन सी नई बात है?’

‘तुम समझ नहीं रहे हो। ये विशेष मुख्यमंत्री हैं। क्या तुम्हें नहीं पता कि ये देश की सबसे धर्मनिरपेक्ष व लोकतान्त्रिक मुख्यमंत्री हैं? मैं तो उन्हे दुनिया में लोकतंत्र का सबसे बड़ा स्तंभ मानता हूँ।’

‘अच्छा! मुझे तो इसकी खबर ही नहीं थी। खैर! परेशान क्यों हैं? उनका प्लॉस्टर तो दो दिन के भीतर ही कट चुका था। सुना है उनका टूटा हुआ पैर जुड़ गया है। अब तो गर्म पट्टी पर हैं’, मैंने अपने हर शब्द पर जोर देते हुए कहा।

‘क्या तुमको ये समझ नहीं आ रहा कि एक चुने हुए मुख्यमंत्री पर हमला हुआ था?’, चच्चा थोड़े उखड़ने लगे।

‘पर चच्चा! प्रदेश की मालिक तो वही हैं। इसकी जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। सिर्फ इसी दुर्घटना की ही नहीं बल्कि हर दुर्घटना व हत्या की जिम्मेदारी उनकी ही है। लोकतंत्र तो यही कहता है ना चच्चा! वैसे उनको सभी के ऊपर कार्यवाही करना चाहिए।’, चच्चा को चच्चा की लोकतांत्रिक चासनी चटाते हुए मैंने बोला।

‘परेशान मैं गर्म पट्टी या फिर टूटे पैर से नहीं हूँ। चुनाव में ये सब तो चलता ही रहता है। खिलाड़ियों में उत्साह जो रहता है। लेकिन मैं रेफरी की बेइमानी से बहुत दुखी और निराश हूँ’, चच्चा ने ये बात बदलते हुए अपनी बात ऐसे कहा जैसे बहुत गंभीर बात कह रहे हों।

‘अब रेफरी ने क्या कर दिया चच्चा?’

‘तुम्हें दिख नहीं रहा कि प्रधानमंत्री जी ने रेफरी को फिक्स कर रखा है!’, चच्चा जोश में आते हुए बोले।

‘पर हुआ क्या? कुछ बताएंगे भी!’, मैंने भी जोर देते हुए कहा।

‘रेफरी प्रदेश पुलिस की जाँच पर संदेह कर रहा है। कह रहा है कि वो अपने हिसाब से जाँच करेगा। ये भी कोई बात हुई?’

‘चच्चा रेफरी तो खेल के नियम के हिसाब से ही काम करेगा। वैसे भी आप ही तो कहते हैं कि मैना को पकड़ने के लिए तोते का इस्तेमाल किया जाता है। तो क्या पता तोता इसीलिए उड़कर जाँच कर रहा हो?’

चच्चा खुश होते हुए बोले, ‘अब जाकर सही बात बोले हो बच्चा। दिल खुश हो गया। तुम जैसे नौवजवान जब तक इस देश में हैं कोई भी लोकतंत्र को कमजोर नहीं कर सकता।’

चच्चा ने स्पष्ट निर्यण सुनाया।

मैंने मौके को उचित समझकर एक आखिरी प्रश्न चच्चा से पूछने का मन बना ही लिया, ‘चच्चा! एक प्रश्न पूछना है! पूछ लूँ।‘

‘हाँ-हाँ। एक क्या, कई सवाल पूछ लो? बोलो क्या पूछना है?’

‘उस डॉक्टर का फोन नंबर मिलेगा? हो तो देना।’

चच्चा हैरान थे कि मैं इतने बढ़िया बतचीत के माहौल के बीच ये कौन सा तराना छेड़ दिया, ‘किस डॉक्टर का नंबर चाहिए बेटा?’

‘उसी डॉक्टर का जिसने मुख्यमंत्री साहिबा के टूटे पैर को दो दिन में ठीक कर दिया था। क्या पता कभी जरूरत पड़ जाए?’

इतना सुनना था कि चच्चा भड़क गए और नई पीढ़ी को कोसते व बड़बड़ाते हुए किसी नए बस स्टॉप पर रूकने के लिए निकल लिए।