Talash - 6 in Hindi Moral Stories by डा.कुसुम जोशी books and stories PDF | तलाश - 6

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तलाश - 6

#तलाश_6
गतांक से आगे
पर मन को समझना कौन चाहता है, मन को समझते तो शमित से कोई शिकायत ही नही होती, मैं इन परिस्थिति में भी उनके साथ रहने को तैयार हूं, बस वह कम से कम भावात्मक रुप से तो मुझे जाने...समझे, ये कहते हुये कविता की रुलाई फूट गई ...
सुजाता ने कविता के कन्धे को थपथपाकर सान्त्वना दी, कविता अपने को संयत करते हुये बोली
" दी कई बार मुझे खुद समझ में नही आता मैं इन बेमतलब के रिश्तों से क्यों बंधी हूं, पर शमित के प्रति अनजाना सा आकर्षण महसूस करती हूं..मन चाहता है कि शमित मुझे कम से कम मित्र के रुप में स्वीकार करे, हम दोनों अपने मन की बात एक दूसरे से कर सके, एक दूसरे को समझ सके",
तो तुम्हारी असल उदासी का कारण शमित का व्यवहार है...और तुमने तीन साल से आज तक उससे इस विषय में बात नही की , न इस बात को अपने घर के लोगों के साथ साझा की? चकित नजरों से कविता को देखते हुये सुजाता बोली,
नही दी कभी नही कहा....मुझे डर लगता है कि वह नाराज न हो जाए,वो हमेशा इतनी गम्भीर मुद्रा में रहते हैं कि बात करने में भी डर लगता है,
तुम्हें शमित के नाराज होने का डर क्यों है? तुम्हारे करीब तो वो है ही नही, तुम्हें उससे बात करनी चाहिए थी, कम से कम पता तो चले की इस दूरी और उपेक्षा का कारण क्या है...ओह अब समझ में आ रहा है कि शमित की मां ऐसा व्यवहार तुम्हारे साथ क्यों करती हैं..अपने बेटे व्यवहार के कारण उसकी कमी पर पर्दा डालती हैं ,
शायद... हो सकता है, उनका नैचर भी कुछ अलग सा है , जब इस परिवार से मेरे लिये रिश्ता आया था तो पूरा परिवार बहुत खुश था, क्योंकि पापा तो मेरे बचपन में ही गुजर गये थे, मां पापा के मुकाबले कम पढ़ी थी तो उन्हें अनुकम्पा आधार पर पापा के ऑफिस में क्लर्की मिल गई, तीन बच्चे,दादा दादी सब लोग मां की जिम्मेदारी थे,
मां ने बहुत संघर्ष के साथ हमें बड़ा किया, एजुकेशन दी,शमित की मां ने मुझे कानपुर में किसी रिश्तेदार के वहां शादी के समारोह में देखा था, मुझे लगता है कि मेरे चेहरे का सीधापन और मेरा दबा व्यक्तित्व उन्हें पसन्द आ गया होगा,भाभी को छोड़ कर पूरा परिवार खुश था, भाभी को ये भी लगा कि इस शादी में दिखावा ज्यादा होगा और भैय्या को शादी में अधिक खर्च करना पड़ेगा, पर शमित के परिवार ने बेहद सिम्पल शादी की,कानपुर का उनका परिचित एकमात्र परिवार इस विवाह में शामिल हुआ था, इस जल्दबाजी का कारण किसी ने समझने की कोशिश नही की, मैं और पूरा परिवार मेरे भाग्य पर इतरा रहा था, पर किसी ने भी शमित के चेहरे की उदासी को पढ़ने की कोशिश नही की,
तो इसका मतलब शमित यह शादी नही करना चाहता था?
हां ऐसा मुझे लगता है क्योंकि मैंने एक बार शमित को मां से ये कहते हुये सुना था कि "मैं शादी नही करना चाहता था बस आपने मुझे मुश्किल में डाल दिया है",
लेकिन तुम्हारे प्रति निस्पृह रहने की बात तुमसे ही नही करता ...और तुम भी नही पूछती कि उसने शादी क्यों की,
मैंने पूछा भी नही ,न उसने कुछ बताया, बस पिछले साल एक दिन मांजी मेरे ऊपर बहुत नाराज हुई थी तो शमित ने मुझसे कहा था कि अगर तुम कानपुर अपनी मां के पास लौटना चाहती हो तो लौट सकती हो, मैं बहुत हैरान भी थी और दुखी भी ..मन हुआ कि हमेशा के लिये चली जाऊं, पर बिना पहले किसी भूमिका के मां के पास लौटने का साहस नही जुटा पाई,उसी के बाद मैंने सर्विस करने का निर्णय लिया था,
चलो कविता कम से कम तुमने यह निर्णय बहुत अच्छा लिया, और नौकरी के बहाने अपने को ढूंढने का फैसला किया, सुजाता की दुविधा ये थी कि "कविता को वो क्या राय दे , परिस्थितियों ने उसके आत्म सम्मान को कमजोर कर दिया था, और वह शमित के साथ भावात्मक जुड़ाव महसूस करती थी और हर सम्भव शमित के साथ रहना चाहती थी ,
"कविता तुम्हारा प्रेम और मजबूरी समझ में आती है, पर वह तभी सम्भव होता जब तुम्हारी तरह शमित भी सोचता, और ऐसी ही कुछ भावना उसके मन में होती, या कुछ सम्मान परिवार में मिल रहा होता, ये सब कुछ कहने का मक़सद तुम्हारा परिवार तोड़ना नही, पर सिद्धान्त: परिवार जैसा परिवार तो हो", सुजाता ने तल्ख़ शब्दों में कहा,
"दीदी आप बतायें मुझे क्या करना चाहिये..मैं बहुत कंफ्यूज हूं, अब लगने लगा है कि अवांछनीय वस्तु बन कर पूरी जिन्दगी नही गुजारी जा सकती, इस रिश्ते को तीन साल दे चुकी, अब तो मेरी उम्मीद टूटने लगी हैं",
"सबसे पहले लोग क्या कहेगें ये तो मन से निकाल दो, और अपनों से सब कुछ शेयर करो, फिर भी अपने जीवन को संवारना तुम्हारी ही जिम्मेदारी है कविता",
कविता को महसूस हुआ कि सच में उसका आत्मसम्मान आत्मविश्वास कुछ भी नही जो वो एक छत और व्याहता के नाम के लिये अपमान बर्दाश्त कर रही है,
सारा दिन सुजातादी के साथ बिताने और मन की बात करने से कविता बड़ा हल्का महसूस कर रही थी,उसने सोच लिया था अब उसे शमित से बात करनी चाहिये, जल्दी ही मौका देख कर वह बात करेगी,
उस दिन वह काफी देर से घर लौटी थी, कहा तो किसी ने कुछ नही, पर दुर्गा दी से पता चला की मांजी उसके बारे में पूछ रही थी "कि इतनी देर तक कविता कहां गायब है? और नौकरी करने से पंख निकल आये हैं", दुर्गा दी की बात सुन कर वह आज दुखी होने के बजाय मुस्कुरा दी, उसने खुद पहली बार अपने अन्दर सकारात्मक बदलाव महसूस किया,
इधर कविता को लगने लगा था कि अब वह इस नाम मात्र के परिवार और रिश्तों के प्रति निस्पृह सी होने लगी है कोई उम्मीद नही ,बल्कि उकताहट महसूस करती है, उसे तलाश थी एक मौके की जिससे वह अपने मन की बात शमित तक पहुंचा सके,
उस दिन रविवार था,अपने कमरे में बैठी कविता कापियां चैक कर रही थी, अचानक किसी काम से शमित कमरे में आया, उसे देख कई दिनों से अपने आप को शमित से बात करने के लिये तैयार कर रही कविता हिम्मत जुटा कर बोल पड़ी "शमित मुझे आपसे बात करनी है", शमित अचकचा कर कविता की ओर मुड़ा फिर कमरे से बाहर जाने का उपक्रम करता हुआ धीरे से बोला "हां बोलो",
"इतने साल हो गये हैं मुझे यहां... इतने अपमान के साथ तो पूरी जिन्दगी नही गुजारी जायेगी, आप लोग चाहते क्या हैं? साफ साफ बता दें तो अच्छा ही रहेगा", शमित का चेहरा विवर्ण हो आया, कुछ नही बोला ,चुपचाप बाहर निकल गया,
कविता ने शमित के इस व्यवहार पर गुस्से और शर्म को साथ महसूस किया,कैसा पुरुष है ये 'कापुरुष' सा मन ही मन बुदबुदाइ, कोई असर ही नही होता,
अनायास ही उसे शमित के लिये भी करुणा जागी, इतना कायर क्यों हो जाता है मेरे सामने न कोई गुस्सा न कोई उत्तर,सारी दुनिया के सामने कितना सामान्य बना रहता है, अपने व्यवसाय को भी शानदार तरह से डील करता है पर... मन रो पड़ा था उसका, कुछ देर स्वयं अपने को समझाती रही कि कम से कम सम्मान के ख़ातिर तो उसे ठोस निर्णय लेना ही पड़ेगा,कापियां चैक करने में भी अब उसका मन नही लग रहा था,
तभी दुर्गा ने आकर उसके चिन्तन में ये कहते हुये खलल डाला कि मांजी तुम्हें अपने कमरे में बुला रही हैं", कविता अचानक मिले इस आमन्त्रण से घबरा उठी,

क्रमश:
डॉ.कुसुम जोशी
गाजियाबाद, उ.प्र.