TRIDHA - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

त्रिधा - 6

* अगले दिन कॉलेज में *

" त्रिधा " संध्या त्रिधा को देखते ही चिल्ला पड़ी जिसे देखकर त्रिधा के साथ कॉलेज आई माया समझ गई कि फिर कोई बवाल होने को है और उसने वहां से सीधे क्लास में जाने में ही अपनी भलाई समझी।

" क्या है ? " त्रिधा ने सहज ही पूछा।

" तू आज कल प्रभात के चक्कर में अपनी दूसरी दोस्त को भूलती नहीं जा रही ? " संध्या ने चिढ़कर कहा।

" ऐसा नहीं है इस वक़्त उसे मेरी जरूरत थी बस इसीलिए और वैसे भी तुम मेरे लिए बहुत स्पेशल हो इतना मत जला करो " त्रिधा ने इधर उधर देखते हुए कहा क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि प्रभात, संध्या को पसंद करता है यह बात इस तरह संध्या के सामने आए और वह हां कहने की जगह उल्टे ना बोल दे।

" अच्छा छोड़ो और ये बताओ लेक्चर अटेंड करें क्या ? " संध्या ने मुंह बनाते हुए पूछा।
" ये पूछने की बात थी ? " त्रिधा ने भी आंखें बड़ी बड़ी करते हुए कहा।

" हां क्योंकि आज मेरा मन नहीं " संध्या ने अब भी मुंह बना रखा था।

' अच्छा ही रहेगा इससे कुछ देर आमने सामने बैठकर बात करूंगी तो शायद किसी तरह प्रभात की भी मदद हो पाए ' यह सोच कर त्रिधा ने कहा " ठीक है चलो कैंटीन में बैठकर तुमसे तुम्हारे टाइप की बातें करते हैं ताकि तुम्हारा मन अच्छा हो... चलो " कहते हुए त्रिधा संध्या का हाथ पकड़कर उसे कैंटीन की ओर ले गई। दोनों अभी कैंटीन में पहुंची ही थीं कि तभी उनकी निगाह हर्षवर्धन पर पड़ी जिसे देखकर संध्या ने हाथ हिलाकर उससे हाय कहा और त्रिधा उसे नजरअंदाज करते हुए एक जगह बैठ गई जहां से उसे हर्षवर्धन नजर न आए लेकिन हर्षवर्धन उठा और ऐसी जगह बैठ गया कि अब वह त्रिधा को आसानी से नजर आ रहा था हारकर त्रिधा ने दो कप चाय के लिए छोटू से बोल दिया और संध्या की तरफ देख कर कुछ बोलने ही वाली थी कि इससे पहले ही संध्या बोल पड़ी।

" चाय कौन पीता है ? " संध्या ने मुंह बनाते हुए कहा।

" डाउन टू अर्थ लोग, जिनको इन छोटी छोटी चीजों में अपनी आन बान शान दिखाने की न पड़ी हो ? " त्रिधा ने कहा तो संध्या से था लेकिन उसकी नज़रें सामने बैठकर कॉफ़ी पीते हर्षवर्धन पर थीं।

" हैं " संध्या को कुछ समझ नहीं आया।

" कुछ नहीं , तुम बताओ आज कल इतनी खोई खोई सी क्यों रहती हो? मैं बहुत दिन से नोटिस कर रही हूं कि तुम आज कल न तो लेक्चर पर ध्यान देती हो और न ही मुझसे ज्यादा बात कर रही हो... कोई परेशानी है क्या ? " त्रिधा ने संध्या के हाथों पर हाथ रखकर पूछा।

" हां... एक्चुअली परेशानी तो नहीं बट आय'म जस्ट कन्फ्यूज्ड " संध्या के चेहरे पर अजीब से भाव आ गए ।

" तो मैं कब काम आऊंगी बताओ न क्या बात है ? " त्रिधा ने हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा।

" यार देखो तुम्हें पता है न कि मैं प्यार में विश्वास रखती हूं पर ऐसे प्यार में जो ज़िंदगी भर के लिए हो ऐसे कुछ महीनों या कुछ साल के लिए नहीं........ " इतना कहकर संध्या चुप हो गई। जब बहुत देर तक उसने कुछ न कहा तो त्रिधा ने ही बात आगे बढ़ाते हुए कहा " तो हुआ क्या है.... किसी से प्यार हो गया है क्या ? " त्रिधा ने संध्या से मज़ाक करते हुए कहा।

" शायद हां..... एंड इट्स नॉट फनी त्रिधा " संध्या ने खीजकर कहा।

" ओके तो बताओ परेशानी कहां है ? " त्रिधा ने पूछा।

" त्रिधा मुझे एक ऐसा लड़का चाहिए जो बिल्कुल मेरी तरह हो हंसने वाला, मज़ाक करने वाला, थोड़ा ऐटिट्यूड भी हो उसमें पर वो ऐटिट्यूड मेरे लिए न हो, वो मुझे एक प्रिंसेस की तरह ट्रीट करे और मेरा कभी मज़ाक न उड़ाए, चाहे हम दोनों में से गलती जिसकी भी हो, माफी वही मांगे , मुझे रिश्ते में आज़ादी चाहिए हर पल की रोक टोक नहीं, वह मेरी अच्छाइयां देखकर नहीं, मेरी बुराइयां जानने के बाद भी मुझसे प्यार करे पर...... " इतना कहकर संध्या फिर से चुप हो गई।

" और मुझे एक ऐसा लड़का चाहिए जो मैच्योर हो, डाउन टू अर्थ हो, मुझे समझे और मेरी परवाह करे, मैं कुछ अच्छा करूं तो खुश हो और कुछ गलत करूं तो मुझे रोके, हमेशा मेरे साथ रहे, साए की तरह.... अरे यार तुम्हारे चक्कर में कहां मैं भी अपनी बातें करने लगी, हां तुम बताओ तो परेशानी कहां है और ' पर ' से क्या मतलब ? " त्रिधा ने कहा जिसे हर्षवर्धन भी ध्यान से सुन रहा था और सोच रहा था कि वह इससे बिल्कुल उलट है ' हमेशा मज़ाक करता रहता है, ज़िद्दी है, और हर हाल में त्रिधा का साथ देना चाहता है चाहे वह सही हो या गलत, उसे रिश्ते में आज़ादी चाहिए और त्रिधा को हर पल का साथ।
" देखा जाए तो मैं संध्या के लिए परफेक्ट हूं " कहते हुए हर्षवर्धन ने अपना माथा पीट लिया और फिर बुदबुदाते हुए कहा " कैसे होगा यह सब, पर तुम्हारे लिए मैं सबकुछ करूंगा त्रिधा "

" त्रिधा जैसा लड़का तुम्हें चाहिए मैं ऐसा लड़का जानती हूं " संध्या ने बिना किसी भाव के कहा।

" कौन ? " त्रिधा ने संध्या को शक की निगाह से देखते हुए पूछा।

" प्रभात मुद्गल " प्रभात का नाम लेते वक्त संध्या के चेहरे पर चमक थी जिसका अंदाज़ उसे नहीं था पर वह चमक त्रिधा ने देख ली थी और अब उसे भी एक उम्मीद थी कि शायद दोनों में कुछ तो कंपैटिबिलिटी है।

" कभी चुप नहीं रहती यह बड़बोली संध्या यही दिन देखना बाकी था " हर्षवर्धन ने एक बार फिर बुदबुदाते हुए अपना माथा पीट लिया।

" तुम पागल हो संध्या, प्रभात मेरा दोस्त है मैंने कभी उसे ऐसे नहीं देखा और जैसा लड़का मुझे चाहिए अगर कोई जेहादी वैसा निकला तब तो तुम उसे भी सजेस्ट कर दोगी मुझे बेवकूफ लड़की " त्रिधा ने खिसियाकर कहा।

" अच्छा अपनी बकवास छोड़ो मेरी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन दो " संध्या ने कहा।

" हां बको " त्रिधा अब भी चिढ़ रही थी।

" वो मुझे पता नहीं कब, कैसे, और क्यों पर मुझे उसकी अच्छाइयों से प्यार होने लगा और प्रॉब्लम यह है कि जैसा लड़का मुझे चाहिए प्रभात उससे बिल्कुल उलट है और मुझे लगता नहीं ऐसा रिश्ता ज्यादा दिन चल पाएगा हम लोग जिंदगीभर क्या एक दूसरे के लिए समझौते ही करते रहेंगे और मुझे तो पता भी नहीं की वह मुझसे प्यार करता भी है या नहीं " संध्या ने कहा।

" हां तो कोई बात नहीं अगर तुम श्योर नहीं हो तो रहने दो न और उसकी पहल का इंतजार करो , कुछ वक़्त रुको वह.... एक मिनट प्रभात.... अपना प्रभात ? " त्रिधा को अपनी धुन में याद ही नहीं रहा कि उसने क्या बोल दिया और बाद में जब उसे ध्यान आया कि संध्या ने प्रभात कहा है तो वह खुशी और हैरत के मिले जुले भावों के साथ संध्या को घूरने लगी।

" हां तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड प्रभात " संध्या ने अपने चेहरे की खुशी छुपाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा।

" यिप्प्प्प्पी " त्रिधा खुशी से उछल पड़ी जिसे देखकर संध्या, हर्षवर्धन और कैंटीन का छोटू भी चौंक गया कि हमेशा शांत रहने वाली त्रिधा को यह क्या हुआ। कुछ देर तक अपनी जगह पर बार बार उछलने कूदने के बाद त्रिधा ने संध्या के गालों को ज़ोर से खींचते हुए " बुद्धू वह भी तुमसे बहुत प्यार करता है बस तुम्हारे डर की वजह से कुछ बोल नहीं पा रहा " इतना कहकर त्रिधा ने संध्या के गालों पर ज़ोर से किस करते हुए कहा " तुम्हें पता नहीं संध्या मैं आज कितनी खुश हूं " और इतना कहकर त्रिधा एक बार फिर खुशी से उछलने लगी।

" कोई मुझे बताएगा कि यहां हो क्या रहा है तुम दोनों को पूरे लेक्चर के दौरान ढूंढ़ता रहा और तुम लोग यहां बैठे हुए हो " प्रभात की आवाज़ सुनकर संध्या मंद मंद मुस्कुरा पड़ी और त्रिधा भागकर उसके पास गई और उसे ज़ोर से गले लगाकर कहा " आज से संध्या तुम्हारी हुई चलो अब मुझे पार्टी दो, और बस मेरी तारीफ ही तारीफ करते जाओ "

कुछ देर बाद त्रिधा ने प्रभात और संध्या को एक दूसरे को लेकर, उन दोनों की भावनाओ के बारे में बताया और समझाया कि जहां प्यार हो वहां कोई भी लड़ाई , कोई भी समझौता या कोई भी गलती मायने नहीं रखती। त्रिधा के समझाने पर संध्या के मन से भी संशय दूर हुआ और अब वह भी प्रभात के साथ अपनी एक नई शुरुआत के लिए तैयार थी। इस सब के दौरान हर्षवर्धन पर किसी का ध्यान नहीं गया तो वह खुद ही आकर उनके पास बैठ गया और बोला "प्लीज़ स्टॉप ट्रीटिंग मी लाइक एन आउटसाइडर"

" मेरे भाई किसने कहा तू आउटसाइडर है? तुझसे तो बहुत हिसाब करना है" प्रभात ने एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा।

" हिसाब किताब बाद में पहले मुझे बताओ कि अब फाइनली हो क्या रहा है , कौन किसका दोस्त है ? कौन किसकी गर्लफैंड है ? और कौन किसका बॉयफ्रेंड है ? " हर्षवर्धन ने अपना सिर झटकते हुए पूछा।

" तू मंदबुद्धि है क्या भाई ? " प्रभात ने हर्षवर्धन की ओर देखकर खीजते हुए कहा।

" अरे पर... वो मुझे भी थोड़ी जल्दी है कोई फ्री हो तो एक बॉयफ्रेंड ले लो जीवन भर के लिए, हर एक पल के साथ के लिए " हर्षवर्धन ने त्रिधा की ओर देखते हुए कहा।

" ये दोनों एक दूसरे के बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड हैं यह तुम भी जानते हो, तुम इस कॉन्वर्सेशन के शुरुआत से यंही हो... सो स्टॉप इरिटेटिंग मी " त्रिधा ने प्रभात और संध्या की तरफ इशारा करते हुए कहा। यह सुनकर हर्षवर्धन कुछ उदास होकर वहां से चला गया, उसे उदास देखकर त्रिधा को भी बुरा लगा पर उसने यह ज़ाहिर न होने दिया और प्रभात से पार्टी के लिए जिद करने लगी।

" ओके आज शाम को पक्का , बोलो कहां चलना है और क्या चरना है ? " प्रभात ने त्रिधा को देखते हुए कहा।

" ओ हो हो.... त्रिधा से कुछ मत कह देना, मेरी प्रायोरिटी अब भी मेरी त्रिधू ही है " संध्या ने त्रिधा को गले लगाते हुए कहा।

" गोल गप्पे खाने हैं, पिज़्ज़ा खाना है, छोले भटूरे खाने हैं, और इसके अलावा जो कुछ तुम खिलाओ " त्रिधा ने कहा।

" इंसान हो या भैंस कितना चरती हो , तुम्हें देखकर कौन कहेगा कि तुम इतना खा लेती हो " प्रभात ने आश्चर्य से कहा।

" तुम मेरे खाने पर नजर मत लागाओ " त्रिधा ने प्रभात से ठीक वैसे ही कहा जैसे प्रभात ने पहले दिन कहा था।

" ठीक है शाम को पक्का अब घर चलें आज खुशी खुशी में तुम दोनों तो पढ़ोगी नहीं, मुझे भी नहीं पढ़ने दोगी है न... चलो फिर घर ही चलो " प्रभात ने दोनों को ताना देते हुए कहा और फिर दोनों अपने घर और त्रिधा अपने हॉस्टल पहुंची। आज तीनों के ही मन में खुशी थी लेकिन हर्षवर्धन की हिम्मत और उसका त्रिधा के मिल जाने का भरोसा, दोनों ही त्रिधा की बेरुखी से टूटने लगे थे।

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"तुम्हारे रिलेशनशिप की शुरुआत और मेरे लिए पार्टी वाह वाह क्या बात है, गजब.... गजब...." कैफे में बैठी हुई त्रिधा ने अपने सामने बैठे प्रभात के गाल खींचते हुए कहा।


" हां , मजबूरी है क्या करूं सिरफिरी लड़की से दोस्ती जो कर ली" प्रभात ने त्रिधा को देखते हुए कहा। दोनों की बातों से संध्या पर कोई असर नहीं हुआ और वह अपने पिज़्ज़ा को खाने में व्यस्त थी।


"तुम अाई ही क्यों हो खाना खाने या एन्जॉय करने?" त्रिधा ने संध्या को घूरते हुए पूछा।


"एन्जॉय करने" दो शब्द बोलकर संध्या फिर खाने लगी।


"ओह संध्या तुम यहां मेकअप लगाकर, ड्रेस पहनकर क्या सिर्फ खाने अाई थी, अरे अपने बॉयफ्रेंड से रोमांस करो और मुझे चैन से खाने दो" त्रिधा ने कहा।


"कहां भुक्कड़ों में फंस गया मैं, दोनों सिर्फ खाना जानती हो" कहते हुए प्रभात ने मुंह बना दिया।


"यार खाने का काम मेरा है, तुम्हारी गर्लफ्रेंड मुझे कॉपी कर रही है तो मैं क्या कर सकती हूं" त्रिधा ने कहा।


"मैं इसकी गर्लफ्रेंड हूं तुम्हारी दोस्त नहीं?" संध्या ने खीजते हुए कहा।


"नहीं मेरी बहन हो तुम" कहकर त्रिधा मुस्कुरा दी।


"हां वैसे तुम दोनों काफी मिलती जुलती हो आदतों में" प्रभात ने कहा। और फिर सामान्य बातें करते हुए तीनों कुछ देर वहीं रहे। इसके बाद संध्या अपनी स्कूटी से अपने घर चल दी और प्रभात हमेशा की तरह त्रिधा का बच्चों की तरह खयाल रखता हुआ उसके हॉस्टल छोड़कर अपने घर चला गया।


तीन महीने बीत गए। अब सभी की ज़िन्दगी एक निश्चित गति से आगे बढ़ रही थी। संध्या और प्रभात एक दूसरे के साथ खुश थे। ज़िन्दगी जीने के अपने ढंग से संध्या ने प्रभात का अकेलापन दूर कर दिया था। माया राजीव को भूलकर अपनी पढ़ाई में मशगूल थी। कोई बेचैन था तो सिर्फ हर्षवर्धन और त्रिधा । माया के पढ़ाई में रम जाने से अब त्रिधा हॉस्टल में काफी बोरियत महसूस करती थी और प्रभात और संध्या को वक़्त बेवक्त परेशान करना अब उसे ठीक नहीं लगता था। अब अपनी पढ़ाई और बच्चों को पढ़ाने के अलावा त्रिधा का ज्यादातर समय खाली ही बीतने लगा था जिसमें हर्षवर्धन की बातें उसके ख्यालों में रहने लगीं थीं....पहले से भी ज्यादा। मगर त्रिधा जानती थी कि हर्षवर्धन के घरवालों से अपने हिस्से का प्यार पाने के लिए लड़ना , हर्षवर्धन के खयालों से लड़ने से कहीं ज्यादा मुश्किल होगा। इसीलिए वह खुद को रोके हुए थी मगर इंसान का अपने दिमाग पर तो ज़ोर होता है पर दिल कहां किसी की सुनता है। अपने अकेलेपन के चलते, हर्षवर्धन के लिए त्रिधा का प्यार अब और भी ज्यादा बढ़ने लगा था मगर उसकी उस परेशानी का हल कुछ नहीं था। ठीक ऐसा ही हाल हर्षवर्धन का था। दोस्तों के नाम पर उसने जो चमचे पाल रखे थे, वे उसकी कोई मदद न ही कर सकते थे और न ही करना चाहते थे। साथ ही हर्षवर्धन भी त्रिधा के बारे में उन्हें बताकर उसके लिए परेशानियां खड़ी नहीं करना चाहता था। प्रभात से भी भी वह केवल एक दोस्त की तरह बात करता था मगर त्रिधा का प्यार पाने में उसकी मदद नहीं मांग पा रहा था। वह अपने प्यार के लिए प्रभात का फायदा नहीं उठाना चाहता था। वह जानता था यदि त्रिधा को पता चला कि प्रभात उसकी मदद कर रहा है तो वह हर हाल में प्रभात से दूर हो जाएगी और खुदको अकेला कर लेगी। वह अपनी वजह से त्रिधा और प्रभात की दोस्ती खराब नहीं करना चाहता था। अब परीक्षाएं सर पर थी तो सब अपना ध्यान पढ़ाई में लगा चुके थे।


पहले दिन इतिहास की परीक्षा थी। प्रभात और त्रिधा दोनों ही जब परीक्षा कक्ष से बाहर निकले तो बेहद खुश नजर आ रहे थे। उधर माया और संध्या के चेहरों को देखकर कोई भी अंदाज़ा लगाना बहुत कठिन था। हर्षवर्धन सबसे अंत में परीक्षा कक्ष से बाहर निकला। उसके चेहरे पर खुशी तो नहीं मगर संतुष्टि जरूर नजर आ रही थी। उस दिन बस एक दूसरे से परीक्षा के बारे में पूछकर सभी अपने अपने रास्ते बढ़ गए।


अब सबका यही रूटीन रहता परीक्षा देना , एक दूसरे से "परीक्षा कैसी हुई?" पूछना और वापस घर जाकर अपनी अपनी किताबों में घुस जाना।


अंतिम परीक्षा के बाद जब सभी अपने अपने परीक्षा कक्ष से बाहर निकले तो खुश थे। उस दिन परीक्षा सरल थी तो सभी अपनी कॉपियां जमा कराकर वक़्त से पहले ही बाहर निकल आए थे सिवाय त्रिधा के। उस दिन माया को बाजार में कुछ ज़रूरी काम था तो वह संध्या को लेकर चली गई जबकि प्रभात और हर्षवर्धन बातें करते हुए त्रिधा का इंतजार करने लगे। त्रिधा अंतिम घंटी बजने के बाद परीक्षा कक्ष से बाहर अाई और प्रभात और हर्षवर्धन से दूर उदास चेहरा लिए एक कोने में लगी बेंच पर जाकर बैठ गई और रोने लगी। उस रोता देखकर हर्षवर्धन की उसके पास जाकर उसे चुप कराने की इच्छा हुई मगर वह यह सोचकर रुक गया कि अभी तो त्रिधा की रुखाई कुछ कम हुई है ऐसे में उसके ज्यादा आस पास रहने से शायद वह सहज महसूस न करे। हर्षवर्धन ने प्रभात से त्रिधा की ओर देखकर कहा "जाओ प्रभात आज उसे अपने सबसे अच्छे दोस्त की ज़रूरत है" त्रिधा को रोता देखकर प्रभात को भी आश्चर्य हुआ और वह उसके पास जाकर बैठ गया। प्रभात ने त्रिधा के सर पर हाथ रखा तो वह और ज्यादा ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। प्रभात ने उसे चुप कराया और कहा "अब बताओ तो त्रिधु की आखिर हुआ क्या है?"


"मेरा पेपर बिल्कुल अच्छा नहीं गया प्रभात। पता नहीं अचानक क्या हुआ मेरी तबियत बिगड़ने लगी अजीब सी घबराहट और बेचैनी होने लगी और फिर मुझसे लिखा नहीं जा रहा था। अगर मैं फेल हो गई तो मेरी स्कॉलरशिप ख़त्म हो जाएगी फिर मेरा क्या होगा" कहते हुए त्रिधा फिर रो पड़ी।


"ऐसा कुछ नहीं होगा तुम चिंता मत करो, तुम बहुत इंटेलिजेंट हो और तुम्हारी तबियत तो कुछ देर पहले ही बिगड़ी है उससे पहले तो तुमने लिखा ही है न फिर क्यों घबरा रही हो?" प्रभात ने त्रिधा को समझाया।


"हां.... शायद सब ठीक हो....शायद" कहते हुए त्रिधा वहां से उठकर चली गई और कुछ देर बाद मुंह धोकर बाहर अाई तो देखा कि अब प्रभात के साथ साथ हर्षवर्धन भी बैठा हुआ था।


"सब ठीक है त्रिधा?" उसके थोड़ा नज़दीक आते ही हर्षवर्धन ने उससे पूछा।


"हां... प्रभात, हर्षवर्धन, मैं अभी चलती हूं। तुमसे कल मिल लूंगी प्रभात। अभी मुझे कुछ वक़्त अकेले रहना है" कहकर त्रिधा अपने हॉस्टल के रास्ते बढ़ गई और प्रभात और हर्षवर्धन उसे जाते हुए देखते रहे।


"क्या मैं जान सकता हूं कि त्रिधा को क्या परेशानी है?" हर्षवर्धन ने प्रभात से पूछा।


"किस हक से?" प्रभात ने एक मुस्कुराहट के साथ पूछा।


"हां, करता हूं मैं उससे प्यार पर अभी सही वक़्त नहीं आया है। मैं खुद सही समय आने पर उससे बात करूंगा। तब तक तुम या संध्या कोई ज़ोर जबरदस्ती मत करना उससे, उसे अच्छा नहीं लगेगा" हर्षवर्धन ने प्रभात से कहा।


"बहुत तकलीफें देखी है उसने अपने अतीत में, अपने मां पापा के जाने के बाद चाचा चाची के साथ रहती थी पर वो एक वक़्त का खाना भी नहीं देती थी इसे, अपनों से ही बहुत धोखे मिले हैं उसे। अब यहां अाई है तो थोड़ी खुश रहने लगी है, संध्या ने उसे बदल दिया है, ढेर सारी खुशियां दे दीं हैं। आज पेपर देते वक़्त उसकी तबियत बिगड़ गई थी तो वह डर रही थी कहीं फेल हो गई तो स्कॉलरशिप रद्द न हो जाए उसकी।" प्रभात ने हर्षवर्धन को पूरी बात संक्षेप में बता दी।


"पर अगर स्कॉलरशिप रद्द हो भी जाती है तो हम सब हैं न इतना भी नहीं कर सकते क्या उसके लिए?" हर्षवर्धन ने पूछा।


"तुम्हें पता है वह ट्यूशन क्यों पढ़ाती है?" प्रभात ने हर्षवर्धन को सवालिया दृष्टि से देखा। जब हर्षवर्धन असमझ की नज़रों से प्रभात को देखता रहा तो उसने आगे कहा "बहुत स्वाभिमानी है वह, किसी का कुछ नहीं लेती है। जिसके पास कुछ नहीं होता उसका स्वाभिमान बहुत बड़ी चीज है उसके लिए। इस बात का हमेशा खयाल रखना हर्ष।" प्रभात ने कहा और फिर हर्षवर्धन चुप रह गया।उससे आगे कुछ बोलते न बना। कुछ देर बाद दोनों अपने अपने रास्ते पर बढ़ गए।


क्रमशः


© आयुषी सिंह