TRIDHA - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

त्रिधा - 11

"वैसे वर्षा शायद उतनी बुरी भी नहीं है।" प्रभात की बोली हुई वह लाइन आज तक त्रिधा के कानों में गूंजती थी।

दरवाजे पर लगातार दस्तक होने से त्रिधा अपने कॉलेज के जीवन की यादों से वर्तमान में लौट कर आई। त्रिधा ने अपने आंसू पोंछे और कमरे से निकलकर दरवाजा खोला। सामने उसका भाई विशाल अपनी पत्नी मान्यता के साथ खड़ा हुआ था।

त्रिधा ने अपने आप को सामान्य सामान्य रखने का भरसक प्रयास करते हुए कहा - "कितनी देर लगा दी तुम दोनों ने, आओ बैठो मैं चाय बना देती हूं।"

मान्यता ने आगे बढ़कर त्रिधा को बैठाया और बोली - "अब मैं आ गई हूं न दीदी, अब आप बस आराम कीजिए और अपनी हॉबीजमें अपना वक्त लगाइए, आपको हम लोगों के लिए कोई काम नहीं करना है क्योंकि आप हमसे बड़ी हैं, सब लोग इनके घरवालों की तरह बुरे नहीं होते दीदी।" इतना कहकर मान्यता किचन में जाकर चाय बनाने लगी।

विशाल वहीं त्रिधा के पास बैठ गया और बोला - "आज बहुत सालों बाद आपको इतना परेशान देख रहा हूं दीदी। क्या बात है दीदी?"

त्रिधा ने मुस्कुराते हुए बात टालने के उद्देश्य से कहा - "कोई बात नहीं है विशाल।"

अबकी बार विशाल त्रिधा के पैरों के पास बैठ गया और देखते हुए बोला - "मैं जानता हूं दीदी आप प्रभात भैया और संध्या दीदी को बहुत याद करती हैं और सबसे ज्यादा प्यार भी उन दोनों से ही करती हैं। आपको हर वक्त उनकी याद आती है और आज तो उनकी चिट्ठी आई है, तो आप सामान्य कैसे हो सकती हैं भला?"

त्रिधा ने उदास होकर कहा - "अब इन बातों का कोई फायदा नहीं है विशाल।"

मान्यता ने त्रिधा को चाय देते हुए कहा - "इतने साल हो गए हैं दीदी, जबसे इनसे शादी कर के इस घर में आई हूं, तब से आपको सिर्फ संध्या दीदी और प्रभात भईया की बातें करते ही सुना है। आपने आज तक कभी नहीं बताया कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो आप प्रभात भईया और संध्या दीदी से दूर हो गईं, कभी हमने भी आपसे नहीं पूछा। मगर आज प्रभात भईया ने वापस आपसे दोस्ती की एक नई शुरुआत की है तो आपको भी पीछे नहीं हटना चाहिए दीदी।"

त्रिधा ने मान्यता के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा - "कुछ रिश्ते जब बिगड़ते हैं तो कभी ठीक नहीं हो पाते मान्यता। जिनसे जितना स्नेह हो, उनसे जब रिश्ते बिगड़ते हैं तो ठीक होने में भी उतना ही समय लगता है या शायद कभी कभी वे रिश्ते कभी ठीक होते ही नहीं है।"

विशाल बोला - "मगर दीदी आप कब तक ऐसे ही रहेंगी? प्रभात भईया और संध्या दीदी आपके दोस्त थे, उनसे दूर होने के बाद आपने कोई दोस्त नहीं बनाया, यह बात तो मैं समझ सकता हूं मगर आप शादी क्यों नहीं करना चाहतीं दीदी?"

त्रिधा ने विशाल के कान ऐंठते हुए कहा - "अभी अठ्ठाइस साल की हुई हूं, सठियाई नहीं हूं विशाल, अपनी दीदी को ज्ञान देना बंद करो।" और फिर तीनों हंस पड़े।

शाम को त्रिधा अपने कमरे में बैठी हुई थी। उसके मन में मान्यता की कही हुई बात ही घूम रही थी 'प्रभात भईया ने वापस आपसे दोस्ती की एक नई शुरुआत की है तो आपको भी पीछे नहीं हटना चाहिए'

त्रिधा ने अपने आपसे सवाल किया - "मुझे वापस भोपाल जाना चाहिए भी या नहीं?"

***

उस दिन त्रिधा हर्षवर्धन के साथ एक कैफे में बैठी हुई थी। यह पहली बार था जब दोनों एक साथ थे और इस बार प्रभात और संध्या भी उनके साथ नहीं थे।

हर्षवर्धन ने अपने और त्रिधा के लिए कोल्ड काफी ऑर्डर की और कुछ देर तक त्रिधा को देखता रहा, फिर बोला - "त्रिधा मुझे तुमसे एक बहुत जरूरी बात करनी थी इसीलिए तुम्हें यहां बुलाया, कॉलेज में यह बात कहना संभव नहीं था।"

त्रिधा को लगा ही था हर्षवर्धन ऐसा ही कुछ कहेगा। वह बोली - "मैं समझ गई थी कोई बहुत ही जरूरी बात है और उतनी ही सीरियस भी, बताओ हर्षवर्धन, क्या हुआ?"

हर्षवर्धन कुछ इस तरह से बोला जैसे यह बोलने के लिए उसे बहुत साहस जुटाना पड़ा हो - "त्रिधा, मुझे नहीं पता कि संध्या और प्रभात का वर्षा से कैसा इक्वेशन है मगर मुझे वर्षा कुछ ठीक नहीं लगती। मैं खुद प्रभात और संध्या से इस बारे में बात करना चाहता था लेकिन तुम जानती हो वर्षा मेरी एक्स है और इसीलिए शायद वे लोग मेरी बात उतने अच्छे से नहीं समझेंगे जितने अच्छे से वे तुम्हारी बात समझ जायेंगे।"

त्रिधा फीकी सी मुस्कुराहट के साथ बोली - "हर्षवर्धन, मुझे लगता है हम लोग वर्षा को लेकर ज्यादा सोच रहे हैं।"

"बस करो यार त्रिधा। तुम देवी नहीं हो जो किसी चीज का बुरा न लगे तुम्हें। छः महीने हो गए वर्षा को हम सबके बीच आए।और इन छः महीनों में उसने हम सबके बीच एक अनकही सी दीवार खड़ी कर दी है। तुम बताओ, क्या तुम प्रभात और संध्या के साथ उतनी ही सहज आज भी हो जितनी फर्स्ट ईयर में थीं? मैं नहीं हूं अब उतना सहज उनके साथ!"

"मुझे बुरा लगता है हर्षवर्धन मगर मैं इतनी स्वार्थी नहीं हो सकती कि प्रभात व संध्या की जिंदगी में कोई नया दोस्त ही न आने दूं, और सबसे बड़ी बात ये है कि भले ही वे दोनों मुझे या तुम्हें उतना वक्त नहीं दे पाते मगर आज भी उनकी प्राथमिकता मैं हूं, तुम हो, वर्षा नहीं। वह बस उनकी एक दोस्त है और हम दोनों उनका परिवार हैं। तुम खुद को वर्षा से कंपेयर ही क्यों कर रहे हो?"

हर्षवर्धन त्रिधा को जो समझाना चाहता था, त्रिधा वह समझ ही नहीं रही थी। हर्षवर्धन बोला - "त्रिधा मात्र कुछ महीनों में उसने तुम्हारे हिस्से का समय ले लिया। क्या भरोसा कल को वह हम चारों के बीच कोई बड़ी गलतफहमी खड़ी कर दे, एक ऐसी खाई बना दे जिसे हम लोग कभी भर न सकें?"

त्रिधा पूरे विश्वास के साथ बोली - "प्रभात समझदार है हर्ष, वह संध्या के बचपने को संभाल सकता है और वर्षा का हम सबके बीच इस हद तक असहजता बना देना भी इसीलिए संभव हुआ है क्योंकि संध्या ने उसे मौका दिया है, मगर मैं एक बार कोशिश करूंगी दोनों को समझाने की।"

हर्षवर्धन बोला - "अगर मैं कहूं अब बहुत देर हो गई है तो?"

त्रिधा के पास हर्षवर्धन की इस बात का कोई जवाब नहीं था। जानती तो वह भी थी कि वर्षा ठीक नहीं है मगर प्रभात और संध्या को हद से ज्यादा समझाना उन पर रोक टोक लगाना हो जाता जो स्वतः ही उन दोनों को उससे दूर कर देता और फिर अभी त्रिधा को ऐसी कोई वजह भी नहीं नजर आ रही थी जिसके आधार पर वह प्रभात और संध्या से कह पाती कि वर्षा गलत है। त्रिधा सोच रही थी, वर्षा सही नहीं है यह उसका और हर्षवर्धन का मात्र एक वहम भी तो हो सकता था…

अगले दिन त्रिधा कॉलेज पहुंची तो देखा प्रभात, संध्या और वर्षा एक साथ बैठे हुए थे और ठीक वैसे ही बातें कर रहे थे जैसे वे सब कभी त्रिधा के साथ बैठकर किया करते थे। क्लास रूम के दरवाजे पर खड़ी त्रिधा को आज एहसास हुआ कि वह इस ग्रुप में हो या न हो, अब प्रभात और संध्या को कोई खास फर्क नहीं पड़ता था। इन छः महीनों में वर्षा ने उसके दोस्तों को उससे इस हद तक दूर कर दिया था कि वह चाह कर भी उनसे कुछ कह नहीं पा रही थी, एक अदृश्य दीवार खड़ी कर दी थी वर्षा ने उन सब के बीच।

त्रिधा क्लासरूम के दरवाजे पर खड़ी, तीन महीने पहले की वह घटना याद कर रही थी जो यदि न घटी होती तो शायद आज उसके और उसके सबसे अच्छे दोस्तों के बीच सब कुछ सही रहता। त्रिधा को अच्छे से याद था, एक शाम को उसके पास संध्या का फोन आया था। वह, प्रभात, वर्षा, हर्षवर्धन और त्रिधा के साथ कहीं बाहर घूमने जाना चाहती थी। त्रिधा और हर्षवर्धन दोनों ही वर्षा के कारण उनके साथ नहीं जाना चाहते थे। हर्षवर्धन वर्षा से नफ़रत करता था क्योंकि यह वही वर्षा थी जिसने एक बार त्रिधा पर एसिड फेंकने की कोशिश की थी। और त्रिधा, उसे वर्षा से नापसंदगी की कई वजहें थीं जिनमें सबसे पहली वजह, उसका हर्षवर्धन के साथ कॉलेज के पीछे वाले ग्राउंड का वह दृश्य था जो आज तक त्रिधा की आंखों से नहीं हट पा रहा था, और दूसरी वजह यह थी कि जब से वर्षा आई थी तब से संध्या और प्रभात दोनों ही उसे कम समय दे रहे थे। त्रिधा का तो पूरी दुनिया में कोई नहीं था सिवाय उसकी रोशनी मैडम, संध्या और प्रभात के और वे ही संध्या और प्रभात उसे कम समय दे रहे थे जिसके कारण त्रिधा में उन दोनों को खोने का डर बैठ गया था। उसमें अपनों को खोने को लेकर एक असुरक्षा की भावना जन्म ले चुकी थी जिसे त्रिधा भी समझती थी और इसीलिए उसने कभी संध्या और प्रभाव से वर्षा से बात करने के लिए मना नहीं किया था। उसकी असुरक्षा की भावना भी गलत नहीं थी और संध्या और प्रभात की जिंदगी में नए दोस्तों को आने से न रोकना भी गलत नहीं था।

संध्या और प्रभात का मन रखने के लिए शाम को हर्षवर्धन और त्रिधा बेमन से उन तीनों के साथ घूमने गए। वे सभी झील के किनारे खड़े होकर आइसक्रीम खा रहे थे और संध्या सामने एक छोटे से भेड़ के बच्चे को देखकर इतनी उत्साहित हो गई कि वह उसके पीछे भागने लगी और कब सड़क पर आ गई उसे पता ही नहीं चला। ठीक उसी समय एक कार तेज रफ्तार से संध्या की और बढ़ रही थी, ड्राइवर कोई सत्रह अठारह साल का लड़का था और अब शायद उससे कार संभाली नहीं जा रही थी। यह दृश्य प्रभात, हर्षवर्धन, वर्षा, त्रिधा सबने देखा और वे सभी संध्या को आवाज़ देते हुए उसकी ओर दौड़ पड़े मगर संध्या पर कोई असर न हुआ। त्रिधा और वर्षा एकसाथ संध्या के पास पहुंची और त्रिधा, संध्या को धक्का देकर कार के दूसरी ओर गिराना चाहती थी ताकि वह बच जाए मगर इससे पहले ही उसका पैर मुड़ गया और वह खुद सड़क पर गिर गई। उधर वर्षा ने संध्या को अपनी ओर खींचकर बचा लिया। कार तेज रफ्तार से आगे निकल गई, संध्या और वर्षा को तो कोई चोट नहीं आई मगर त्रिधा का पैर सड़क से खुरच गया था।

प्रभात ने "संध्या तुम ठीक हो न" कहकर संध्या को अपने गले लगा लिया। हर्षवर्धन दौड़ कर त्रिधा के पास पहुंचा और उसे सहारा देकर खड़ा किया। वह प्रभात और संध्या को आवाज देकर बुलाने ही वाला था मगर तभी प्रभात ने वर्षा को गले लगा लिया और बोला - "थैंक्स वर्षा आज अगर तुम नहीं आतीं तो संध्या… थैंक्स अ लॉट वर्षा।"

हषर्वर्धन प्रभात और संध्या को आवाज देकर बुलाने ही वाला था मगर तभी त्रिधा ने हर्षवर्धन का हाथ कसकर पकड़ लिया। वह बोली - "अब रहने दो हर्षवर्धन। अब मैं अपनी राह पर चल सकती हूं।" त्रिधा की बात सुनकर हर्षवर्धन भी चुप ही रहा। अब त्रिधा को संध्या और प्रभात को अपनी चोट दिखाना ठीक नहीं लग रहा था।

छः महीने में वर्षा का संध्या और प्रभात की हर छोटी-छोटी चीज का ध्यान रखना, उनसे हमेशा अच्छे से बात करना, उनकी हर उम्मीद को पूरा करना, उन्हें इतना महत्व देना, यह सब उसकी चाल थी या कुछ और... समय रहते त्रिधा, प्रभात और संध्या समझ ही नहीं पाए और जब त्रिधा हर्षवर्धन की बात सुनने के बाद इस बात को समझी तो इतनी देर हो चुकी थी कि वह चाह कर भी किसी से कुछ नहीं कह पा रही थी। इसी बीच त्रिधा से यह गलती हुई कि जब वर्षा उसके दोनों दोस्तों के इतने करीब हो रही थी तब त्रिधा ने खुद को उनसे दूर कर लिया यह सोच कर कि उनके जीवन में नए दोस्त तो आयेंगे ही और शायद अपनी इसी सोच के कारण वह बहुत बड़ी गलती कर चुकी थी।

आज त्रिधा ने तय कर लिया था कि वह संध्या और प्रभात से इस बारे में जरूर बात करेगी। यही सोचकर त्रिधा क्लासरूम में आकर बैठ गई। अभी प्रोफेसर आए नहीं थे तो त्रिधा ने सोचा कि यही सही समय है संध्या और प्रभात से बात करने का। वह उनके पास गई और बोली - "मुझे तुम दोनों से बहुत जरूरी बात करनी है।"

प्रभात ने उसे देखकर कहा - "हां बोलो न त्रिधा क्या बात है?"

त्रिधा बोली - "मुझे तुम दोनों से अकेले में बात करनी है।"

संध्या हैरानी से बोली - "अकेले ही तो हैं बस हम सब दोस्त ही तो हैं, क्लास तो लगभग खाली है त्रिधा।"

संध्या की बात सुनकर त्रिधा समझ गई अब वह अपनी बात कह भी दे तो कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला था।

त्रिधा अपनी आंखों में आई नमी को छिपाती हुई बोली - "वर्षा तुम्हारी भी क्लास का समय हो गया है अपनी क्लास में जाओ।"

त्रिधा के बात करने के लहजे से संध्या, प्रभात, और वर्षा को साफ समझ आ गया कि वह बहुत गुस्से में है। वर्षा चुपचाप वहां से उठ कर चली गई।

वर्षा के जाते ही प्रभात, त्रिधा के पास आया और उससे बोला - "तुम्हें वर्षा से समस्या क्या है त्रिधा?"

प्रभात की चुभती हुई बात त्रिधा के कानों में सीसे की तरह लगी। वह बोली - "समस्या ये है कि तुम दोनों की सारी दुनिया ही वर्षा हो चुकी है और मैं उस दुनिया का एक हिस्सा तक नहीं हूं।"

प्रभात बोला - तुमसे" किसने कहा यह? वर्षा की ही तरह तुम भी महत्वपूर्ण हो त्रिधा।"

त्रिधा के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कुराहट आ गई बोली - "हां 'वर्षा की ही तरह' मैं 'भी' महत्वपूर्ण हूं।" और इतना कहकर वह बिना प्रभात और संध्या की बात सुने ही वहां से चली गई। इसके बाद त्रिधा ने प्रभात और संध्या से कोई बात नहीं की और न ही उन दोनों ने उससे बात करने की कोई कोशिश की।

कॉलेज का समय खत्म हुआ तब त्रिधा कैंटीन में अकेली बैठी हुई थी। प्रभात और संध्या आज पहले ही अपने अपने घर जा चुके थे।

त्रिधा अकेली बैठी थी। उसे अकेले देख कर वर्षा उसके पास आकर बैठ गई और उसे देखते हुए एक तीखी मुस्कुराहट के साथ बोली - "क्या हुआ त्रिधा? प्रभात और संध्या ने बात नहीं सुनी तुम्हारी?"

वर्षा की बात सुनकर त्रिधा हैरानी से वर्षा के चेहरे की ओर देख रही थी।

वर्षा ने आगे कहा - "हैरान हो? उम्मीद नहीं थी कि मैं ये सब कर सकती हूं?"

त्रिधा अब भी हैरानी से वर्षा के चेहरे को देख रही थी।

वर्षा ने आगे कहना जारी रखा - "नफरत तो मुझे तुमसे उसी दिन से है जबसे हर्षवर्धन ने मुझे छोड़कर तुम्हारा हाथ पकड़ा था। उसके बाद जिस चेहरे की वजह से हर्षवर्धन ने मुझे छोड़ा था उस चेहरे को जलाने के लिए एसिड तक लेकर आई थी मैं। मगर उस हर्षवर्धन ने मेरा वह बदला भी पूरा नहीं होने दिया। उसने वह एसिड उठाकर मेरे ही हैंडबैग पर डाल दिया और उल्टे मुझे धमकी देकर बोला कि अगली बार मैंने ऐसा कुछ करने की कोशिश की तो एसिड गिरेगा और हैंड बैग में से बैग शब्द हट जाएगा। इसके बाद मैंने तुम्हें नुकसान पहुंचाने के बारे में सोचना भी बंद कर दिया और अपने जीवन में आगे बढ़ने का सोचा। फिर मैं राजीव से मिली उसके साथ बहुत खुश रहने लगी थी मैं, मगर उस राजीव को भी समझा-बुझाकर तुमने मुझसे दूर कर दिया और अपनी सहेली माया के रिलेशनशिप को बचा लिया। जब हर्षवर्धन के बाद राजीव भी मुझसे दूर हो गया तब मैंने कसम खा ली थी कि तुम्हें तुम्हारे हर एक चाहने वाले से दूर कर दूंगी, चाहे मुझे इसकी जो भी कीमत चुकानी पड़े। देखो त्रिधा देखो! इन छः महीनों में तुम्हारे दोस्तों से अच्छे से बात करके, उनका ध्यान रखकर, यहां तक कि संध्या के लिए अपनी जान भी दाँव पर लगाकर मैंने उसकी और प्रभात की दोस्ती कमा‌ ली... देखो आज मैं कामयाब हो गई… आज तुम्हारे सबसे अच्छे दोस्त, संध्या और प्रभात अब मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं और तुम्हारी कही गई एक भी बात अब उन्हें मेरे खिलाफ नहीं कर सकती।" इतना कहकर वर्षा अपनी जगह से उठ खड़ी हुई और एक कुटिल मुस्कुराहट के साथ हाथ झाड़ती हुई कॉलेज से बाहर निकल गई।

आज त्रिधा का शक यकीन में बदल गया था कि अब तक की हर घटना वर्षा की चाल थी। वह तो कभी बदली ही नहीं थी। वह तो बस बदलने का दिखावा कर रही थी ताकि त्रिधा को सबसे दूर कर सके।

कुछ देर बाद था त्रिधा अपनी जगह से उठी और थके हुए कदमों से अपने हॉस्टल पहुंच गई। हॉस्टल पहुंचकर उससे खाना भी नहीं खाया जा रहा था। उसने जैसे तैसे थोड़ा बहुत खाना खाया और फिर अपने कमरे में जाकर बैठ गई। त्रिधा न जाने कितने घंटो तक ऐसे ही बैठी रही। दोपहर से शाम हो गई मगर त्रिधा किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थी।

शाम को वह बच्चों को पढ़ाने चली गई। आज वह प्रभात के साथ जाने की जगह सिटी बस से ही चली गई थी। बच्चों को पढ़ा कर लौटते समय त्रिधा की नजरें उसी सड़क पर गई जहां पर एक साल पहले वह बच्चों को पढ़ा कर लौट रही थी और तभी कुछ लड़के वहां आकार उसके साथ बदतमीजी करने लगे थे तब हर्षवर्धन ने उसे उनसे बचा लिया था मगर प्रभात उससे नाराज हो गया था और उसने कह दिया था कि अब बच्चों को पढ़ाने के लिए वही त्रिधा को छोड़कर आएगा और वही लौटते समय लेकर भी आएगा। त्रिधा की आँखों में आंसू आ गए। वह सोचने लगी, कहां वह समय था और कहां आज का समय है जब प्रभात और संध्या को उसकी कोई परवाह ही नहीं रही, उसकी एक बात तक सुनने के लिए उनके पास वक्त नहीं बचा।

देर शाम को त्रिधा हॉस्टल के अपने कमरे में बैठी हुई थी। उसे माया की बहुत याद आ रही थी। आज से ठीक छः महीने पहले उसकी माया से कॉल पर बात हुई थी वह भी उसकी शादी वाले दिन। उसके बाद से माया का कभी कॉल नहीं आया और जब जब त्रिधा ने उसके नंबर पर कॉल करने की कोशिश की तब तब उसका नंबर बंद आता था। फिर एक दिन उस नंबर पर रिंग गई और जिसने फोन उठाया वह बांग्ला बोल रही थी। त्रिधा समझ गई माया के नंबर बदल चुके थे। आज उसे माया की बहुत याद आ रही थी। वह सोच रही थी काश कोई जरिया होता जिससे वह माया से बात कर पाती। आज त्रिधा को अहसास हो रहा था कि जब तक हम किसी के साथ होते हैं तब तक उसकी कद्र नहीं करते, उससे खीजते रहते हैं मगर जब वह हमसे दूर हो जाता है, तब उसकी अहमियत का अहसास होता है...

अचानक दरवाजे पर दस्तक की आवाज सुनकर त्रिधा अपनी सोच से बाहर आई। उसने समय देखा रात के आठ बज रहे थे। वह मन ही मन सोच रही थी 'इस समय कौन आया होगा?'

जैसे ही त्रिधा ने दरवाजा खोला, सामने खड़े व्यक्ति को देखकर वह आश्चर्यचकित रह गई, इस समय उसके यहां होने की त्रिधा कल्पना भी नहीं कर सकती थी। वह तो बस हैरानी से अपने सामने खड़े उस व्यक्ति को देख रही थी...


क्रमशः

आयुषी सिंह